"बिप्र श्राप तें दूनउ भाई": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
सपना वर्मा (वार्ता | योगदान) ('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र का नाम=रा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - " जगत " to " जगत् ") |
||
पंक्ति 33: | पंक्ति 33: | ||
;चौपाई | ;चौपाई | ||
बिप्र श्राप तें दूनउ भाई। तामस असुर देह तिन्ह पाई॥ | बिप्र श्राप तें दूनउ भाई। तामस असुर देह तिन्ह पाई॥ | ||
कनककसिपु अरु हाटकलोचन। | कनककसिपु अरु हाटकलोचन। जगत् बिदित सुरपति मद मोचन॥ | ||
</poem> | </poem> | ||
{{poemclose}} | {{poemclose}} | ||
;भावार्थ- | ;भावार्थ- | ||
उन दोनों भाइयों ने ब्राह्मण (सनकादि) के शाप से असुरों का तामसी शरीर पाया। एक का नाम था हिरण्यकशिपु और दूसरे का हिरण्याक्ष। ये देवराज इंद्र के गर्व को छुड़ाने वाले सारे | उन दोनों भाइयों ने ब्राह्मण (सनकादि) के शाप से असुरों का तामसी शरीर पाया। एक का नाम था हिरण्यकशिपु और दूसरे का हिरण्याक्ष। ये देवराज इंद्र के गर्व को छुड़ाने वाले सारे जगत् में प्रसिद्ध हुए। | ||
{{लेख क्रम4| पिछला=जनम एक दुइ कहउँ बखानी |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=बिजई समर बीर बिख्याता}} | {{लेख क्रम4| पिछला=जनम एक दुइ कहउँ बखानी |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=बिजई समर बीर बिख्याता}} |
14:02, 30 जून 2017 के समय का अवतरण
बिप्र श्राप तें दूनउ भाई
| |
कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
भाषा | अवधी भाषा |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | बालकाण्ड |
बिप्र श्राप तें दूनउ भाई। तामस असुर देह तिन्ह पाई॥ |
- भावार्थ-
उन दोनों भाइयों ने ब्राह्मण (सनकादि) के शाप से असुरों का तामसी शरीर पाया। एक का नाम था हिरण्यकशिपु और दूसरे का हिरण्याक्ष। ये देवराज इंद्र के गर्व को छुड़ाने वाले सारे जगत् में प्रसिद्ध हुए।
![]() |
बिप्र श्राप तें दूनउ भाई | ![]() |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख