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अस कहि गहे नरेस पद स्वामी होहु कृपाल। | अस कहि गहे नरेस पद स्वामी होहु कृपाल। | ||
मोहि लागि | मोहि लागि दु:ख सहिअ प्रभु सज्जन दीनदयाल॥ 167॥ | ||
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14:01, 2 जून 2017 के समय का अवतरण
अस कहि गहे नरेस
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
भाषा | अवधी भाषा |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | बालकाण्ड |
अस कहि गहे नरेस पद स्वामी होहु कृपाल। |
- भावार्थ-
ऐसा कहकर राजा ने मुनि के चरण पकड़ लिए। (और कहा -) हे स्वामी! कृपा कीजिए। आप संत हैं। दीनदयालु हैं। (अतः) हे प्रभो! मेरे लिए इतना कष्ट (अवश्य) सहिए॥ 167॥
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अस कहि गहे नरेस | ![]() |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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