"राजा के उपरोहितहि": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
सपना वर्मा (वार्ता | योगदान) No edit summary |
सपना वर्मा (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 31: | पंक्ति 31: | ||
{{poemopen}} | {{poemopen}} | ||
<poem> | <poem> | ||
; | ;दोहा | ||
राजा के उपरोहितहि हरि लै गयउ बहोरि। | |||
लै राखेसि गिरि खोह महुँ मायाँ करि मति भोरि॥ 171॥ | |||
</poem> | </poem> | ||
{{poemclose}} | {{poemclose}} | ||
पंक्ति 41: | पंक्ति 41: | ||
{{लेख क्रम4| पिछला=भानुप्रतापहि बाजि समेता |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=आपु बिरचि उपरोहित रूपा}} | {{लेख क्रम4| पिछला=भानुप्रतापहि बाजि समेता |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=आपु बिरचि उपरोहित रूपा}} | ||
''' | '''दोहा'''- मात्रिक अर्द्धसम [[छंद]] है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं। | ||
11:28, 10 जून 2016 के समय का अवतरण
राजा के उपरोहितहि
| |
कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
भाषा | अवधी भाषा |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | बालकाण्ड |
राजा के उपरोहितहि हरि लै गयउ बहोरि। |
- भावार्थ-
फिर वह राजा के पुरोहित को उठा ले गया और माया से उसकी बुद्धि को भ्रम में डालकर उसे उसने पहाड़ की खोह में ला रखा॥ 171॥
राजा के उपरोहितहि |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख