"जगत पिता रघुपतिहि बिचारी": अवतरणों में अंतर

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और रघुनाथ को जगत का पिता (परमेश्वर) विचारकर, नेत्र भरकर उनकी छवि देख लो (ऐसा अवसर बार-बार नहीं मिलेगा)। सुंदर, सुख देने वाले और समस्त गुणों की राशि ये दोनों भाई शिव के हृदय में बसनेवाले हैं (स्वयं शिव भी जिन्हें सदा हृदय में छिपाए रखते हैं, वे तुम्हारे नेत्रों के सामने आ गए हैं)।
और रघुनाथ को जगत् का पिता (परमेश्वर) विचारकर, नेत्र भरकर उनकी छवि देख लो (ऐसा अवसर बार-बार नहीं मिलेगा)। सुंदर, सुख देने वाले और समस्त गुणों की राशि ये दोनों भाई शिव के हृदय में बसनेवाले हैं (स्वयं शिव भी जिन्हें सदा हृदय में छिपाए रखते हैं, वे तुम्हारे नेत्रों के सामने आ गए हैं)।


{{लेख क्रम4| पिछला=ब्यर्थ मरहु जनि गाल बजाई |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=सुधा समुद्र समीप बिहाई}}
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14:18, 30 जून 2017 के समय का अवतरण

जगत पिता रघुपतिहि बिचारी
रामचरितमानस
रामचरितमानस
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
भाषा अवधी भाषा
शैली सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड बालकाण्ड
चौपाई

जगत पिता रघुपतिहि बिचारी। भरि लोचन छबि लेहु निहारी॥
सुंदर सुखद सकल गुन रासी। ए दोउ बंधु संभु उर बासी॥

भावार्थ-

और रघुनाथ को जगत् का पिता (परमेश्वर) विचारकर, नेत्र भरकर उनकी छवि देख लो (ऐसा अवसर बार-बार नहीं मिलेगा)। सुंदर, सुख देने वाले और समस्त गुणों की राशि ये दोनों भाई शिव के हृदय में बसनेवाले हैं (स्वयं शिव भी जिन्हें सदा हृदय में छिपाए रखते हैं, वे तुम्हारे नेत्रों के सामने आ गए हैं)।


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जगत पिता रघुपतिहि बिचारी
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चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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