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[[शिवाजी]] [[भारत]] के महान् योद्धा एवं रणनीतिकार थे, जिन्होंने 1674 ई. में [[पश्चिम भारत]] में [[मराठा साम्राज्य]] की नींव रखी। उन्होंने कई वर्ष [[औरंगज़ेब]] के [[मुग़ल साम्राज्य]] से संघर्ष किया। सन 1674 में रायगढ़ में उनका राज्याभिषेक हुआ और वे छत्रपति बने। शिवाजी ने अपनी अनुशासित सेना एवं सुसंगठित प्रशासनिक इकाइयों की सहायता से एक योग्य एवं प्रगतिशील प्रशासन प्रदान किया। उन्होंने समर-विद्या में अनेक नवाचार किये तथा छापामार युद्ध की नयी शैली (शिवसूत्र) को विकसित किया। उन्होंने प्राचीन [[हिन्दू]] राजनैतिक प्रथाओं तथा दरबारी शिष्टाचारों को पुनर्जीवित किया और फ़ारसी के स्थान पर मराठी एवं [[संस्कृत]] को राजकाज की भाषा बनाया। | |||
==पिता द्वारा माता का त्याग== | |||
भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में बहुत-से लोगों ने शिवाजी के जीवन-चरित से प्रेरणा लेकर [[भारत]] की स्वतन्त्रता के लिये अपना तन, मन धन न्यौछावर कर दिया। शिवाजी के पिता [[शाहजी भोंसले]] ने शिवाजी के जन्म के उपरान्त ही अपनी पत्नी [[जीजाबाई]] को प्रायः त्याग दिया था। उनका बचपन बहुत उपेक्षित रहा और वे सौतेली माँ के कारण बहुत दिनों तक पिता के संरक्षण से वंचित रहे। उनके पिता शूरवीर थे और अपनी दूसरी पत्नी तुकाबाई मोहिते पर आकर्षित थे। जीजाबाई उच्च कुल में उत्पन्न प्रतिभाशाली होते हुए भी तिरस्कृत जीवन जी रही थीं। | भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में बहुत-से लोगों ने शिवाजी के जीवन-चरित से प्रेरणा लेकर [[भारत]] की स्वतन्त्रता के लिये अपना तन, मन धन न्यौछावर कर दिया। शिवाजी के पिता [[शाहजी भोंसले]] ने शिवाजी के जन्म के उपरान्त ही अपनी पत्नी [[जीजाबाई]] को प्रायः त्याग दिया था। उनका बचपन बहुत उपेक्षित रहा और वे सौतेली माँ के कारण बहुत दिनों तक पिता के संरक्षण से वंचित रहे। उनके पिता शूरवीर थे और अपनी दूसरी पत्नी तुकाबाई मोहिते पर आकर्षित थे। जीजाबाई उच्च कुल में उत्पन्न प्रतिभाशाली होते हुए भी तिरस्कृत जीवन जी रही थीं। | ||
==पालन-पोषण== | |||
जीजाबाई यादव वंश से थीं। उनके पिता एक शक्तिशाली और प्रभावशाली सामन्त थे। बालक शिवाजी का लालन-पालन उनके स्थानीय संरक्षक [[दादोजी कोंडदेव|दादाजी कोणदेव]],जीजाबाई तथा [[समर्थ रामदास|समर्थ गुरु रामदास]] की देखरेख में हुआ। माता जीजाबाई तथा गुरु रामदास ने कोरे पुस्तकीय ज्ञान के प्रशिक्षण पर अधिक बल न देकर शिवाजी के [[मस्तिष्क]] में यह भावना भर दी थी कि देश, समाज, गौ तथा ब्राह्मणों को मुसलमानों के उत्पीड़न से मुक्त कराना उनका परम कर्तव्य है। शिवाजी स्थानीय लोगों के बीच रहकर शीघ्र ही उनमें अत्यधिक सर्वप्रिय हो गये। उनके साथ आस-पास के क्षेत्रों में भ्रमण करने से उनको स्थानीय दुर्गों और दर्रों की भली प्रकार व्यक्तिगत जानकारी प्राप्त हो गयी। कुछ स्वामिभक्त लोगों का एक दल बनाकर उन्होंने उन्नीस वर्ष की आयु में [[पूना]] के निकट [[तोरण दुर्ग|तोरण के दुर्ग]] पर अधिकार करके अपना जीवन-क्रम आरम्भ किया। उनके [[हृदय]] में स्वाधीनता की लौ जलती थी। उन्होंने कुछ स्वामिभक्त साथियों को संगठित किया। धीरे धीरे उनका विदेशी शासन की बेड़ियाँ तोड़ने का संकल्प प्रबल होता गया। | [[चित्र:Shivaji-Maharaj-With-Jijamata.jpg|[[जीजाबाई]] के साथ [[शिवाजी]]|left|thumb|220px]] | ||
जीजाबाई यादव वंश से थीं। उनके पिता एक शक्तिशाली और प्रभावशाली सामन्त थे। बालक शिवाजी का लालन-पालन उनके स्थानीय संरक्षक [[दादोजी कोंडदेव|दादाजी कोणदेव]], जीजाबाई तथा [[समर्थ रामदास|समर्थ गुरु रामदास]] की देखरेख में हुआ। माता जीजाबाई तथा गुरु रामदास ने कोरे पुस्तकीय ज्ञान के प्रशिक्षण पर अधिक बल न देकर शिवाजी के [[मस्तिष्क]] में यह भावना भर दी थी कि देश, समाज, गौ तथा ब्राह्मणों को मुसलमानों के उत्पीड़न से मुक्त कराना उनका परम कर्तव्य है। शिवाजी स्थानीय लोगों के बीच रहकर शीघ्र ही उनमें अत्यधिक सर्वप्रिय हो गये। उनके साथ आस-पास के क्षेत्रों में भ्रमण करने से उनको स्थानीय दुर्गों और दर्रों की भली प्रकार व्यक्तिगत जानकारी प्राप्त हो गयी। कुछ स्वामिभक्त लोगों का एक दल बनाकर उन्होंने उन्नीस वर्ष की आयु में [[पूना]] के निकट [[तोरण दुर्ग|तोरण के दुर्ग]] पर अधिकार करके अपना जीवन-क्रम आरम्भ किया। उनके [[हृदय]] में स्वाधीनता की लौ जलती थी। उन्होंने कुछ स्वामिभक्त साथियों को संगठित किया। धीरे धीरे उनका विदेशी शासन की बेड़ियाँ तोड़ने का संकल्प प्रबल होता गया। | |||
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11:07, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
शिवाजी का परिचय
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पूरा नाम | शिवाजी राजे भोंसले |
जन्म | 19 फ़रवरी, 1630 ई. |
जन्म भूमि | शिवनेरी, महाराष्ट्र |
मृत्यु तिथि | 3 अप्रैल, 1680 ई. |
मृत्यु स्थान | रायगढ़ |
पिता/माता | शाहजी भोंसले, जीजाबाई |
पति/पत्नी | साइबाईं निम्बालकर |
संतान | सम्भाजी |
उपाधि | छत्रपति |
शासन काल | 1642 - 1680 ई. |
शा. अवधि | 38 वर्ष |
राज्याभिषेक | 6 जून, 1674 ई. |
पूर्वाधिकारी | शाहजी भोंसले |
उत्तराधिकारी | सम्भाजी |
राजघराना | मराठा |
वंश | भोंसले |
संबंधित लेख | महाराष्ट्र, मराठा, मराठा साम्राज्य, ताना जी, रायगढ़, समर्थ गुरु रामदास, दादोजी कोंडदेव, राजाराम, ताराबाई। |
शिवाजी भारत के महान् योद्धा एवं रणनीतिकार थे, जिन्होंने 1674 ई. में पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी। उन्होंने कई वर्ष औरंगज़ेब के मुग़ल साम्राज्य से संघर्ष किया। सन 1674 में रायगढ़ में उनका राज्याभिषेक हुआ और वे छत्रपति बने। शिवाजी ने अपनी अनुशासित सेना एवं सुसंगठित प्रशासनिक इकाइयों की सहायता से एक योग्य एवं प्रगतिशील प्रशासन प्रदान किया। उन्होंने समर-विद्या में अनेक नवाचार किये तथा छापामार युद्ध की नयी शैली (शिवसूत्र) को विकसित किया। उन्होंने प्राचीन हिन्दू राजनैतिक प्रथाओं तथा दरबारी शिष्टाचारों को पुनर्जीवित किया और फ़ारसी के स्थान पर मराठी एवं संस्कृत को राजकाज की भाषा बनाया।
पिता द्वारा माता का त्याग
भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में बहुत-से लोगों ने शिवाजी के जीवन-चरित से प्रेरणा लेकर भारत की स्वतन्त्रता के लिये अपना तन, मन धन न्यौछावर कर दिया। शिवाजी के पिता शाहजी भोंसले ने शिवाजी के जन्म के उपरान्त ही अपनी पत्नी जीजाबाई को प्रायः त्याग दिया था। उनका बचपन बहुत उपेक्षित रहा और वे सौतेली माँ के कारण बहुत दिनों तक पिता के संरक्षण से वंचित रहे। उनके पिता शूरवीर थे और अपनी दूसरी पत्नी तुकाबाई मोहिते पर आकर्षित थे। जीजाबाई उच्च कुल में उत्पन्न प्रतिभाशाली होते हुए भी तिरस्कृत जीवन जी रही थीं।
पालन-पोषण
जीजाबाई यादव वंश से थीं। उनके पिता एक शक्तिशाली और प्रभावशाली सामन्त थे। बालक शिवाजी का लालन-पालन उनके स्थानीय संरक्षक दादाजी कोणदेव, जीजाबाई तथा समर्थ गुरु रामदास की देखरेख में हुआ। माता जीजाबाई तथा गुरु रामदास ने कोरे पुस्तकीय ज्ञान के प्रशिक्षण पर अधिक बल न देकर शिवाजी के मस्तिष्क में यह भावना भर दी थी कि देश, समाज, गौ तथा ब्राह्मणों को मुसलमानों के उत्पीड़न से मुक्त कराना उनका परम कर्तव्य है। शिवाजी स्थानीय लोगों के बीच रहकर शीघ्र ही उनमें अत्यधिक सर्वप्रिय हो गये। उनके साथ आस-पास के क्षेत्रों में भ्रमण करने से उनको स्थानीय दुर्गों और दर्रों की भली प्रकार व्यक्तिगत जानकारी प्राप्त हो गयी। कुछ स्वामिभक्त लोगों का एक दल बनाकर उन्होंने उन्नीस वर्ष की आयु में पूना के निकट तोरण के दुर्ग पर अधिकार करके अपना जीवन-क्रम आरम्भ किया। उनके हृदय में स्वाधीनता की लौ जलती थी। उन्होंने कुछ स्वामिभक्त साथियों को संगठित किया। धीरे धीरे उनका विदेशी शासन की बेड़ियाँ तोड़ने का संकल्प प्रबल होता गया।
विवाह
शिवाजी का विवाह साइबाईं निम्बालकर के साथ सन 1641 में बंगलौर में हुआ था। उनके गुरु और संरक्षक कोणदेव की 1647 में मृत्यु हो गई थी। इसके बाद शिवाजी ने स्वतंत्र रहने का निर्णय लिया।
शिवाजी का परिचय |
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