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| '''प्रणकृष्ण पारिजा''' (जन्म-1 अप्रैल, 1819 ई. कटक ज़िला, उड़ीसा मृत्यु-
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| | {किस राजपूत रानी ने [[हुमायूँ]] के पास [[राखी]] भेजकर [[बहादुर शाह]] के विरुद्ध सहायता माँगी थी? |
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| | +[[रानी कर्णावती]] |
| | -[[संयोगिता]] |
| | -हाड़ारानी |
| | -रानी अनारा |
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| शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्र में नाम कमानेवाले प्रणकृष्ण पारिजा का जन्म 1 अप्रैल,1819 ई. को उड़ीसा के कटक जिले में एक निर्धन ग्रामीण परिवार में हुआ था। वे आर्थिक कठिनाई के कारण बड़ी उम्र होने पर ही स्कूल जा सके थे। फिर भी अपने अध्यवसाय से स्नातक की शिक्षा के लिए कॉलेज तक पहुंच गए। उसी समय उड़ीसा पृथक् प्रदेश बना था। वहां की सरकार की छात्रवृत्ति पर पारिजा को इंगलैंड की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटि में पढ़ने का अवसर मिल गया। उन्होंने वनस्पति विज्ञान का अध्ययन किया और इस विषय मे वहां से पुरुस्कार पाने वाले प्रथम भारतीय छात्र बने। विश्वयुद्ध के कारण उन्हें अधिक समय तक ब्रिटेन में रुकना पड़ा था।
| | {जो सम्बंध स्त्रियों के झुमकों का [[कान|कानों]] से है, वही पुरुषों में- |
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| भारत आने पर पारिजा कटक कॉलेज के प्रोफेसर, प्रिंसिपल और प्रदेश के कृषि निदेशक रहने के बाद 1943 से 1948 तक उत्कल विश्वविद्यालय के उपकुलपति रहे। 1949 में उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के उपकुलपति का भार संभाला।1951 से 1966 तक वे पुन: उत्कल विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें राष्ट्रपति ने 'पद्म्भूषण' की उपाधि देकर सम्मानित थे। उन्होंने विज्ञान कांग्रेस की अध्यक्षता भी की थी।
| | -बाली का [[कान|कानों]] से है। |
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| | -बोर का कानों से है। |
| पारिजा ने सक्रिय राजनीति में भाग नहीं लिया। वे मानते थे कि देश में अनुशासन लाने के लिए अल्पकालिक 'डिक्टेटर शिप' और फिर केंद्र में सुदृढ़ सरकार होनी चाहिए।
| | -पुन्छा का कानों से है। |
| | +मुरकियों का कानों से है। |
| | </quiz> |
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