"प्रयोग:कविता बघेल": अवतरणों में अंतर

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'''प्रतापचंद्र मजूमदार''' (जन्म- 1840 ई. [[हुगली ज़िला]], [[बंगाल]]; मृत्यु-  [[24 मई]], [[1905]] )  [[ब्रह्मसमाज]] के प्रसिद्ध नेता थे। [[1893]]  से [[1894]] के [[शिकागो]] के धार्मिक सम्मेलन में इन्होंने [[भारतीय दर्शन]] पर भाषण दिया था। इन पर [[देवेन्द्र नाथ टैगोर]] और [[केशव चंद्र सेन]] के विचारों का गहरा प्रभाव था। [[बंकिम चंद्र चटर्जी]] और [[सुरेन्द्र नाथ बनर्जी]] इनके निकट के सहयोगी थे।{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन=भारतकोश पुस्तकालय |संपादन=|पृष्ठ संख्या=485|url=}}
{| class="bharattable-green" width="100%"
==परिचय==
|-
प्रतापचंद्र मजूमदार का जन्म [[बंगाल]] के [[हुगली ज़िला|हुगली ज़िले]] में 1840 ई. हुआ था। इन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज [[कोलकाता]] से शिक्षा प्राप्त की।
| valign="top"|
==ब्रह्मसमाज संगठन==
{| width="100%"
प्रतापचंद्र मजूमदार [[1859]] में विधिवत् [[ब्रह्मसमाज]] मे सम्मिलित हो गए थे। परंतु संगठन में मतभेद हो जाने के कारण जब ये  [[केशव चंद्र सेन]] से मिले जिन्होंने [[1865]] में 'नव विधान समाज' नाम का अलग संगठन बनाया था, से जुड़ गये। प्रतापचंद्र मजूमदार ने ब्रह्मसमाज की विचारधाराओं के प्रचार लिए [[भारत]] के सभी प्रमुख नगरों की यात्राएँ कीं और भाषण दिए।
|
;इगलैंड में भाषण 
<quiz display=simple>
प्रतापचंद्र मजूमदार [[1874]] और [[1883]] में [[ब्रह्मसमाज]] की विचारधाराओं के प्रचार करने के लिये इगलैंड गए और भाषण दिये। [[1893]] से [[1894]] के [[शिकागो]] के धार्मिक सम्मेलन में भी इन्होंने [[भारतीय दर्शन]] पर भाषण दिये। [[अमेरिका]] में ये तीन महीने रहे  और अनेक  भाषण दिये। अमेरिका में इनके भाषणों का  इतना प्रभाव पड़ा, कि इनकी सहायता करने के लिये लोगों ने वहाँ 'मजूमदार मिशन फंड' के नाम से धन संग्रह  करना शुरु कर दिया था। अपने विचारों के प्रचार के लिए [[1900]] ई. में ये एक बार फिर [[अमेरिका]] गए।
{किस राजपूत रानी ने [[हुमायूँ]] के पास [[राखी]] भेजकर [[बहादुर शाह]] के विरुद्ध सहायता माँगी थी?
==सामाजिक भेदभाव==
|type="()"}
प्रतापचंद्र मजूमदार उदार और प्रगतिशील विचारों के व्यक्ति थे। ये [[समाज]] में [[जाति]], [[धर्म]], [[भाषा]] आदि के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं मानते थे। इन्होंने युवाओं को प्रशिक्षित करने के लिए एक संस्था की स्थापना की थी जो बाद में [[कोलकाता]] विश्वविद्यालय का हिस्सा बन गई। इन्होंने कई ग्रंथों की रचनाएं भी की थी।
+[[रानी कर्णावती]]
==मृत्यु==
-[[संयोगिता]]
प्रतापचंद्र मजूमदार का [[24 मई]], [[1905]] को निधन हो गया था।
-हाड़ारानी
-रानी अनारा


==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
{जो सम्बंध स्त्रियों के झुमकों का [[कान|कानों]] से है, वही पुरुषों में-
<references/>
|type="()"}
 
-बाली का [[कान|कानों]] से है।
 
-बोर का कानों से है।
'''प्रफुल्लचंद्र घोष'''  (जन्म - [[1891]] ई., ढ़ाका ज़िला:  मृत्यु- [[1983]] [[कोलकाता]] ) [[पश्चिम बंगाल]] के प्रथम [[मुख्यमंत्री]] थे ।ये बहुपठित व्यक्ति थे । [[पुराण]], [[उपनिषद्]] और [[गीता]] इनके प्रिय ग्रंथ थे। [[1921]] के [[असहयोग आंदोलन]] बढ़ाने के लिए ढ़ाका में इन्होंने 'अभय आश्रम' की स्थापना की। [[स्वामी विवेकानंद]], [[अरविन्द घोष]], [[गांधी जी]] और रविंद्रनाथ टैगौर के विचारों का इन पर गहरा प्रभाव था।{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन=भारतकोश पुस्तकालय |संपादन=|पृष्ठ संख्या=487|url=}}
-पुन्छा का कानों से है।
==परिचय==
+मुरकियों का कानों से है।
[[पश्चिम बंगाल]] के प्रथम [[मुख्यमंत्री]] डॉ. प्रफुल्लचंद्र घोष का जन्म ढ़ाका जिले में [[1891]] ई. में हुआ था। कॉलेज से एम.एस-सी. करने के बाद इन्होंने [[कोलकाता]]  विश्वविद्यालय से [[1919]] में पी-एच.डी.की उपाधि ली। ये बहुपठित व्यक्ति थे। [[पुराण]], [[उपनिषद्]] और [[गीता]] इनके प्रिय ग्रंथ थे। पश्चिमी देशों के [[स्वतंत्रता संग्राम]] के [[इतिहास]] का भी इन्होंने अध्ययन किया था।
</quiz>
==क्रांतिकारी जीवन==
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विद्यार्थी जीवन से ही डॉ. प्रफुल्लचंद्र घोष क्रांतिकारी आंदोलन की ओर आकर्षित हुए और अनुशीलन समिति के प्रभाव में आ गए, पर [[1911]] में [[कोलकाता]] [[कांग्रेस]] में भाग लेने के बाद इनके विचार बदल गए।
|}
==गांधी जी से भेंट==
डॉ. प्रफुल्लचंद्र घोष की जब [[गांधी जी]] से भेंट हुई तो ये इनके विचारों से प्रभावित होकर ये [[असहयोग आंदोलन]] से जुड़ गये। और [[1921]] के असहयोग आंदोलन को बढ़ाने के लिए ढ़ाका में 'अभय आश्रम' की स्थापना की थी। [[1929]] की [[लाहौर]] [[कांग्रेस]] में भाग लेने के बाद प्रफुल्लचंद्र घोष [[1930]] और [[1931]] में दो बार फिर गिरफ्तार हुए। [[1939]] की त्रिपुरी [[कांग्रेस]] के समय इन्होंने सुभाष बाबू के विरोध में [[पट्टाभि सीतारमैया]] का समर्थन किया था। उसके बाद ही ये [[कांग्रेस]] कार्य समिति के सदस्य बनाए गए। [[1940]] और [[1942]] में ये फिर गिरफ्तार हुए और [[1944]] में ही जेल से बाहर आ सके।
==राजनीतिक जीवन==
[[1947]] में स्वतंत्रता के साथ साथ देश का विभाजन हो गया और प्रफुल्लचंद्र घोष [[पश्चिम बंगाल]] के पहले [[मुख्यमंत्री]] बन गये, परंतु [[कांग्रेस]] दल द्वारा अविश्वास प्रकट करने पर इन्हें [[1948]] में इस पद से हट जाना पड़ा। बाद में इन्होंने 'कृषक मजदूर पार्टी' बनाई जो आगे जाकर  सोशलिस्ट पार्टी में मिल गई। [[1967]] में [[पश्चिम बंगाल]] की प्रथम संयुक्त मोर्चा सरकार में इन्होंने खाद्य मंत्री का पद संभाला। बाद में जब यह सरकार गिर गई तो विधान सभा में [[कांग्रेस]] के सहयोग से नई सरकार बनी और प्रफुल्लचंद्र घोष फिर एक बार [[मुख्यमंत्री]] बन गए। लेकिन [[1969]] के निर्वाचन में पराजित हो जाने के बाद ये राजनीति से अलग हो गए और अपना शेष जीवन सामाजिक कार्यों में लगाया। ये जाति प्रथा और छुआछूत के विरोधी थे और मानते थे कि बालक की शिक्षा उसकी मातृभाषा में होनी चाहिए।
==रचनाएं==
प्रफुल्लचंद्र घोष ने अनेक पुस्तकों की रचनाएं की। इनमें प्रमुख हैं - प्राचीन भारतीय साहित्य का इतिहास, गीता बोध (गांधी जी की गुजराती पुस्तक का अनुवाद), इंडियन नेशनल कांग्रेस, [[महात्मा गांधी]] आदि।
==मृत्यु==
डॉ. प्रफुल्लचंद्र घोष की मृत्यु [[1983]] [[कोलकाता]] में हो गई।
 
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>

12:36, 5 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण

1 किस राजपूत रानी ने हुमायूँ के पास राखी भेजकर बहादुर शाह के विरुद्ध सहायता माँगी थी?

रानी कर्णावती
संयोगिता
हाड़ारानी
रानी अनारा

2 जो सम्बंध स्त्रियों के झुमकों का कानों से है, वही पुरुषों में-

बाली का कानों से है।
बोर का कानों से है।
पुन्छा का कानों से है।
मुरकियों का कानों से है।