"सूरदास का जन्म": अवतरणों में अंतर
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|मुख्य रचनाएँ=[[सूरसागर]], [[सूरसारावली]], [[साहित्य-लहरी]], नल-दमयन्ती, ब्याहलो आदि | |||
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गोस्वामी हरिराय के 'भाव प्रकाश' के अनुसार [[सूरदास]] का जन्म [[दिल्ली]] के पास सीही नाम के [[गाँव]] में एक अत्यन्त निर्धन [[सारस्वत|सारस्वत ब्राह्मण]] [[परिवार]] में हुआ था। उनके तीन बड़े भाई थे। सूरदास जन्म से ही अन्धे थे, किन्तु सगुन बताने की उनमें अद्भुत शक्ति थी। 6 वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने अपनी सगुन बताने की विद्या से [[माता]]-[[पिता]] को चकित कर दिया था। किन्तु इसी के बाद वे घर छोड़कर चार कोस दूर एक गाँव में तालाब के किनारे रहने लगे थे। सगुन बताने की विद्या के कारण शीघ्र ही उनकी ख्याति चारों और फैल गई। गान विद्या में भी वे प्रारम्भ से ही प्रवीण थे। शीघ्र ही उनके अनेक सेवक हो गये और वे 'स्वामी' के रूप में पूजे जाने लगे। 18 वर्ष की अवस्था में उन्हें पुन: विरक्ति हो गयी और वे यह स्थान छोड़कर [[आगरा]] और [[मथुरा]] के बीच [[यमुना]] के किनारे गऊघाट पर आकर रहने लगे। | गोस्वामी हरिराय के 'भाव प्रकाश' के अनुसार [[सूरदास]] का जन्म [[दिल्ली]] के पास सीही नाम के [[गाँव]] में एक अत्यन्त निर्धन [[सारस्वत|सारस्वत ब्राह्मण]] [[परिवार]] में हुआ था। उनके तीन बड़े भाई थे। सूरदास जन्म से ही अन्धे थे, किन्तु सगुन बताने की उनमें अद्भुत शक्ति थी। 6 वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने अपनी सगुन बताने की विद्या से [[माता]]-[[पिता]] को चकित कर दिया था। किन्तु इसी के बाद वे घर छोड़कर चार कोस दूर एक गाँव में तालाब के किनारे रहने लगे थे। सगुन बताने की विद्या के कारण शीघ्र ही उनकी ख्याति चारों और फैल गई। गान विद्या में भी वे प्रारम्भ से ही प्रवीण थे। शीघ्र ही उनके अनेक सेवक हो गये और वे 'स्वामी' के रूप में पूजे जाने लगे। 18 वर्ष की अवस्था में उन्हें पुन: विरक्ति हो गयी और वे यह स्थान छोड़कर [[आगरा]] और [[मथुरा]] के बीच [[यमुना]] के किनारे गऊघाट पर आकर रहने लगे। | ||
==जन्म== | ==जन्म== | ||
[[सूरदास]] का जन्म कब हुआ, इस विषय में पहले उनकी तथाकथित रचनाओं, '[[साहित्य लहरी]]' और '[[सूरसारावली]]' के आधार पर अनुमान लगाया गया था और अनेक वर्षों तक यह दोहराया जाता रहा कि उनका जन्म [[संवत]] 1540 विक्रमी (सन 1483 ई.) में हुआ था, परन्तु विद्वानों ने इस अनुमान के आधार को पूर्ण रूप में अप्रमाणिक सिद्ध कर दिया तथा [[पुष्टिमार्ग]] में प्रचलित इस अनुश्रुति के आधार पर कि सूरदास श्री मद्वल्लभाचार्य से 10 दिन छोटे थे, यह निश्चित किया कि सूरदास का जन्म [[वैशाख]] [[शुक्ल पक्ष]] [[पंचमी]], संवत 1535 वि. (सन 1478 ई.) को हुआ था। इस साम्प्रदायिक जनुश्रुति को प्रकाश में लाने तथा उसे अन्य प्रमाणों में पुष्ट करने का श्रेय डॉ. दीनदयाल गुप्त को है। जब तक इस विषय में कोई अन्यथा प्रमाण न मिले, हम सूरदास की जन्म-तिथि को यही मान सकते हैं। | [[सूरदास]] का जन्म कब हुआ, इस विषय में पहले उनकी तथाकथित रचनाओं, '[[साहित्य लहरी]]' और '[[सूरसारावली]]' के आधार पर अनुमान लगाया गया था और अनेक वर्षों तक यह दोहराया जाता रहा कि उनका जन्म [[संवत]] 1540 विक्रमी (सन 1483 ई.) में हुआ था, परन्तु विद्वानों ने इस अनुमान के आधार को पूर्ण रूप में अप्रमाणिक सिद्ध कर दिया तथा [[पुष्टिमार्ग]] में प्रचलित इस अनुश्रुति के आधार पर कि सूरदास श्री मद्वल्लभाचार्य से 10 दिन छोटे थे, यह निश्चित किया कि सूरदास का जन्म [[वैशाख]] [[शुक्ल पक्ष]] [[पंचमी]], संवत 1535 वि. (सन 1478 ई.) को हुआ था। इस साम्प्रदायिक जनुश्रुति को प्रकाश में लाने तथा उसे अन्य प्रमाणों में पुष्ट करने का श्रेय डॉ. दीनदयाल गुप्त को है। जब तक इस विषय में कोई अन्यथा प्रमाण न मिले, हम सूरदास की जन्म-तिथि को यही मान सकते हैं। | ||
==विद्वान मतभेद== | ==विद्वान मतभेद== | ||
सूरदास के विषय में आज जो भी ज्ञात है, उसका आधार मुख्यत: '[[वैष्णवन की वार्ता|चौरासी वैष्णवन की वार्ता]]' ही है। इसके अतिरिक्त [[पुष्टिमार्ग]] में प्रचलित अनुश्रुतियाँ जो गोस्वामी हरिराय द्वारा किये गये उपर्युक्त वार्ता के परिवर्द्धनों तथा उस पर लिखी गयी 'भावप्रकाश' नाम की [[टीका]] और गोस्वामी यदुनाथ द्वारा लिखित 'वल्लभ दिग्विजय' के रूप में प्राप्त होती है, सूरदास के जीवनवृत्त की कुछ घटनाओं की सूचना देती है। [[नाभादास]] के '[[भक्तमाल]]' पर लिखित प्रियादास की टीका, कवि मियासिंह के 'भक्त विनोद', ध्रुवदास की 'भक्तनामावली' तथा नागरीदास की 'पदप्रसंगमाला' में भी सूरदास सम्बन्धी अनेक रोचक अनुश्रुतियाँ प्राप्त होती हैं, परन्तु विद्वानों ने उन्हें विश्वसनीय नहीं माना है। | सूरदास के विषय में आज जो भी ज्ञात है, उसका आधार मुख्यत: '[[वैष्णवन की वार्ता|चौरासी वैष्णवन की वार्ता]]' ही है। इसके अतिरिक्त [[पुष्टिमार्ग]] में प्रचलित अनुश्रुतियाँ जो गोस्वामी हरिराय द्वारा किये गये उपर्युक्त वार्ता के परिवर्द्धनों तथा उस पर लिखी गयी 'भावप्रकाश' नाम की [[टीका]] और गोस्वामी यदुनाथ द्वारा लिखित 'वल्लभ दिग्विजय' के रूप में प्राप्त होती है, [[चित्र:Sur Shyam Temple Sur Kuti Sur Sarovar Agra-25.jpg|सूर श्याम मंदिर, सूरकुटी, सूर सरोवर, [[आगरा]]|thumb|left|250px]]सूरदास के जीवनवृत्त की कुछ घटनाओं की सूचना देती है। [[नाभादास]] के '[[भक्तमाल]]' पर लिखित प्रियादास की टीका, कवि मियासिंह के 'भक्त विनोद', ध्रुवदास की 'भक्तनामावली' तथा नागरीदास की 'पदप्रसंगमाला' में भी सूरदास सम्बन्धी अनेक रोचक अनुश्रुतियाँ प्राप्त होती हैं, परन्तु विद्वानों ने उन्हें विश्वसनीय नहीं माना है। | ||
'चौरासी वैष्णवन की वार्ता' से ज्ञात होता है कि प्रसिद्ध [[मुग़ल]] सम्राट् [[अकबर]] ने सूरदास से भेंट की थी, परन्तु यह आश्चर्य की बात है कि उस समय के किसी [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] इतिहासकार ने '[[सूरसागर]]' के रचयिता | |||
'चौरासी वैष्णवन की वार्ता' से ज्ञात होता है कि प्रसिद्ध [[मुग़ल]] सम्राट् [[अकबर]] ने सूरदास से भेंट की थी, परन्तु यह आश्चर्य की बात है कि उस समय के किसी [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] इतिहासकार ने '[[सूरसागर]]' के रचयिता महान् भक्त कवि सूरदास का कोई उल्लेख नहीं किया। इसी युग के अन्य महान् भक्त कवि [[तुलसीदास]] का भी मुग़लकालीन इतिहासकारों ने उल्लेख नहीं किया। अकबरकालीन प्रसिद्ध इतिहास ग्रन्थों- [[आईना-ए-अकबरी]]', 'मुशि आते-अबुलफ़ज़ल' और 'मुन्तखबुत्तवारीख' में सूरदास नाम के दो व्यक्तियों का उल्लेख हुआ है, परन्तु ये दोनों प्रसिद्ध [[भक्त]] कवि सूरदास से भिन्न हैं। 'आईना-ए-अकबरी' और 'मुन्तखबुत्तवारीख' में अकबरी दरबार के रामदास नामक गवैया के पुत्र सूरदास का उल्लेख है। ये सूरदास अपने पिता के साथ अकबर के दरबार में जाया करते थे। 'मुंशिआते-अबुलफ़ज़ल' में जिन सूरदास का उल्लेख है, वे [[काशी]] में रहते थे, [[अबुल फ़ज़ल]] ने अनेक नाम एक पत्र लिखकर उन्हें आश्वासन दिया था कि काशी के उस करोड़ी के स्थान पर जो उन्हें क्लेश देता है, नया करोड़ी उन्हीं की आज्ञा से नियुक्त किया जायगा। कदाचित ये सूरदास मदनमोहन नाम के एक अन्य भक्त थे। | |||
11:05, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
सूरदास का जन्म
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पूरा नाम | महाकवि सूरदास |
जन्म | संवत् 1540 विक्रमी (सन् 1483 ई.) अथवा संवत 1535 विक्रमी (सन् 1478 ई.) |
जन्म भूमि | रुनकता, आगरा |
मृत्यु | संवत् 1642 विक्रमी (सन् 1585 ई.) अथवा संवत् 1620 विक्रमी (सन् 1563 ई.) |
मृत्यु स्थान | पारसौली |
अभिभावक | रामदास (पिता) |
कर्म भूमि | ब्रज (मथुरा-आगरा) |
कर्म-क्षेत्र | सगुण भक्ति काव्य |
मुख्य रचनाएँ | सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य-लहरी, नल-दमयन्ती, ब्याहलो आदि |
विषय | भक्ति |
भाषा | ब्रज भाषा |
पुरस्कार-उपाधि | महाकवि |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | सूरदास जी वात्सल्य रस के सम्राट माने जाते हैं। उन्होंने श्रृंगार और शान्त रसों का भी बड़ा मर्मस्पर्शी वर्णन किया है। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
गोस्वामी हरिराय के 'भाव प्रकाश' के अनुसार सूरदास का जन्म दिल्ली के पास सीही नाम के गाँव में एक अत्यन्त निर्धन सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके तीन बड़े भाई थे। सूरदास जन्म से ही अन्धे थे, किन्तु सगुन बताने की उनमें अद्भुत शक्ति थी। 6 वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने अपनी सगुन बताने की विद्या से माता-पिता को चकित कर दिया था। किन्तु इसी के बाद वे घर छोड़कर चार कोस दूर एक गाँव में तालाब के किनारे रहने लगे थे। सगुन बताने की विद्या के कारण शीघ्र ही उनकी ख्याति चारों और फैल गई। गान विद्या में भी वे प्रारम्भ से ही प्रवीण थे। शीघ्र ही उनके अनेक सेवक हो गये और वे 'स्वामी' के रूप में पूजे जाने लगे। 18 वर्ष की अवस्था में उन्हें पुन: विरक्ति हो गयी और वे यह स्थान छोड़कर आगरा और मथुरा के बीच यमुना के किनारे गऊघाट पर आकर रहने लगे।
जन्म
सूरदास का जन्म कब हुआ, इस विषय में पहले उनकी तथाकथित रचनाओं, 'साहित्य लहरी' और 'सूरसारावली' के आधार पर अनुमान लगाया गया था और अनेक वर्षों तक यह दोहराया जाता रहा कि उनका जन्म संवत 1540 विक्रमी (सन 1483 ई.) में हुआ था, परन्तु विद्वानों ने इस अनुमान के आधार को पूर्ण रूप में अप्रमाणिक सिद्ध कर दिया तथा पुष्टिमार्ग में प्रचलित इस अनुश्रुति के आधार पर कि सूरदास श्री मद्वल्लभाचार्य से 10 दिन छोटे थे, यह निश्चित किया कि सूरदास का जन्म वैशाख शुक्ल पक्ष पंचमी, संवत 1535 वि. (सन 1478 ई.) को हुआ था। इस साम्प्रदायिक जनुश्रुति को प्रकाश में लाने तथा उसे अन्य प्रमाणों में पुष्ट करने का श्रेय डॉ. दीनदयाल गुप्त को है। जब तक इस विषय में कोई अन्यथा प्रमाण न मिले, हम सूरदास की जन्म-तिथि को यही मान सकते हैं।
विद्वान मतभेद
सूरदास के विषय में आज जो भी ज्ञात है, उसका आधार मुख्यत: 'चौरासी वैष्णवन की वार्ता' ही है। इसके अतिरिक्त पुष्टिमार्ग में प्रचलित अनुश्रुतियाँ जो गोस्वामी हरिराय द्वारा किये गये उपर्युक्त वार्ता के परिवर्द्धनों तथा उस पर लिखी गयी 'भावप्रकाश' नाम की टीका और गोस्वामी यदुनाथ द्वारा लिखित 'वल्लभ दिग्विजय' के रूप में प्राप्त होती है,
सूरदास के जीवनवृत्त की कुछ घटनाओं की सूचना देती है। नाभादास के 'भक्तमाल' पर लिखित प्रियादास की टीका, कवि मियासिंह के 'भक्त विनोद', ध्रुवदास की 'भक्तनामावली' तथा नागरीदास की 'पदप्रसंगमाला' में भी सूरदास सम्बन्धी अनेक रोचक अनुश्रुतियाँ प्राप्त होती हैं, परन्तु विद्वानों ने उन्हें विश्वसनीय नहीं माना है।
'चौरासी वैष्णवन की वार्ता' से ज्ञात होता है कि प्रसिद्ध मुग़ल सम्राट् अकबर ने सूरदास से भेंट की थी, परन्तु यह आश्चर्य की बात है कि उस समय के किसी फ़ारसी इतिहासकार ने 'सूरसागर' के रचयिता महान् भक्त कवि सूरदास का कोई उल्लेख नहीं किया। इसी युग के अन्य महान् भक्त कवि तुलसीदास का भी मुग़लकालीन इतिहासकारों ने उल्लेख नहीं किया। अकबरकालीन प्रसिद्ध इतिहास ग्रन्थों- आईना-ए-अकबरी', 'मुशि आते-अबुलफ़ज़ल' और 'मुन्तखबुत्तवारीख' में सूरदास नाम के दो व्यक्तियों का उल्लेख हुआ है, परन्तु ये दोनों प्रसिद्ध भक्त कवि सूरदास से भिन्न हैं। 'आईना-ए-अकबरी' और 'मुन्तखबुत्तवारीख' में अकबरी दरबार के रामदास नामक गवैया के पुत्र सूरदास का उल्लेख है। ये सूरदास अपने पिता के साथ अकबर के दरबार में जाया करते थे। 'मुंशिआते-अबुलफ़ज़ल' में जिन सूरदास का उल्लेख है, वे काशी में रहते थे, अबुल फ़ज़ल ने अनेक नाम एक पत्र लिखकर उन्हें आश्वासन दिया था कि काशी के उस करोड़ी के स्थान पर जो उन्हें क्लेश देता है, नया करोड़ी उन्हीं की आज्ञा से नियुक्त किया जायगा। कदाचित ये सूरदास मदनमोहन नाम के एक अन्य भक्त थे।
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