"जी.पी. श्रीवास्तव": अवतरणों में अंतर
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==शिक्षा == | |||
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==भाषा शैली == | |||
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==कृतियाँ == | |||
गंगा प्रसाद जी की कुल मिलाकर अब तक बाईस पुस्तकें प्रकाश में आ चुकी हैं। आपकी प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार हैं- | |||
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*[[1931]] ई. में | *[[1931]] ई. में गंगा प्रसाद जी का प्रथम उपन्यास 'लतखोरी लाल' प्रकाशित हुआ जो आप के समय में बहुचर्चित [[उपन्यास]] रहा। | ||
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*[[1953]] में इनका एक नाटक 'बौछार' | *[[1953]] में इनका एक नाटक 'बौछार' के नाम से प्रकाशित हुआ था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी साहित्य कोश भाग-2|लेखक=डॉ. धीरेन्द्र वर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन=भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन=|पृष्ठ संख्या=218|url=}}</ref> | ||
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जी.पी. श्रीवास्तव
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पूरा नाम | गंगा प्रसाद श्रीवास्तव |
अन्य नाम | गंगा बाबू |
जन्म | 23 अप्रैल, 1889 ई. |
जन्म भूमि | सारन, बिहार |
मृत्यु | 30 अगस्त, 1976 ई. |
कर्म-क्षेत्र | साहित्यकार |
मुख्य रचनाएँ | 'लम्बी दाढ़ी' (1913 ई.), 'नाक झोक' (1919 ई.) आदि। |
भाषा | हिन्दी |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | गंगा बाबू को ‘साहित्य वारिधि’ व ‘साहित्य महारथी’ जैसे अलंकरण से विभूषित किया गया। |
गंगा प्रसाद श्रीवास्तव (जन्म- 23 अप्रैल, 1889, सारन, बिहार; मृत्यु- 30 अगस्त, 1976) हिन्दी साहित्यकार थे। गंगा प्रसाद अच्छे कथाकार, कहानीकार के अलावा एक बेहतर अभिनेता भी थे। कई नाटकों में उन्होंने सशक्त अभिनय किया है। उस दौरान श्रीवास्तव जी एकांकी के सशक्त अभिनेता थे। सरलता एवं अभिनय के गुण से परिपक्व, एकांकी लिखने में माहिर गंगा बाबू का नाम हिंदी के शुरुआती एकांकीकार के रूप में जाना जाता है। गंगा बाबू को ‘साहित्य वारिधि’ व ‘साहित्य महारथी’ जैसे अलंकरण से विभूषित किया गया।
परिचय
गंगा प्रसाद श्रीवास्तव का जन्म 23 अप्रैल, 1889 ई. को छपरा, ज़िला सारन, बिहार प्रांत में हुआ था। हिन्दी के हास्य रस के लेखकों में इनका प्रमुख स्थान है। जी. पी. श्रीवास्तव का पूरा नाम गंगा प्रसाद श्रीवास्तव है। किंतु हिन्दी के पाठकों में जी. पी. श्रीवास्तव के नाम से ही प्रसिद्ध हैं।
शिक्षा
गंगा प्रसाद जी ने प्रयाग विश्वविद्यालय से बी. ए., एल-एल. बी. की परीक्षा पास करके गोण्डा ज़िला में वकालत की।
भाषा शैली
गंगा प्रसाद जी का हिन्दी के हास्य रस के लेखकों में प्रमुख स्थान है। हास्य रस की जिस परम्परा को भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने 'अन्धेर नगरी चौपट राजा' में स्थापित किया था, इन्होंने हास्य को उसी दिशा में विकसित किया है। गंगा प्रसाद जी की प्रतिभा प्राय: सभी विधाओं में समान रूप से व्यक्त हुई है। नाटक, उपन्यास, कहानी, कविता एवं शुद्ध परिकल्पना के आधार पर गल्प भी इन्होंने लिखे हैं।
कृतियाँ
गंगा प्रसाद जी की कुल मिलाकर अब तक बाईस पुस्तकें प्रकाश में आ चुकी हैं। आपकी प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार हैं-
- कहानी संग्रह 'लम्बी दाढ़ी' 1913 ई. में प्रकाशित हुई।
- नाटक 'उलट फेर' 1918 ई. को प्रकाशित हुआ।
- काव्यसंग्रह 'नाक झोक' 1919 ई. प्रकाश में आया।
- 1931 ई. में गंगा प्रसाद जी का प्रथम उपन्यास 'लतखोरी लाल' प्रकाशित हुआ जो आप के समय में बहुचर्चित उपन्यास रहा।
- 1932 में दूसरा उपन्यास 'दिल की आग उर्फ दिल जले की आग' प्रकाशित हुआ।
- 1953 में इनका एक नाटक 'बौछार' के नाम से प्रकाशित हुआ था।[1]
निधन
गंगा प्रसाद श्रीवास्तव की मृत्यु 30 अगस्त 1976 ई. को हुई थी।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी साहित्य कोश भाग-2 |लेखक: डॉ. धीरेन्द्र वर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 218 |
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