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'''निदा फ़ाज़ली''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Nida Fazli'', जन्म: [[12 अक्तूबर]] [[1938]]) आधुनिक [[उर्दू]] शायरी के बहुत ही लोकप्रिय शायर हैं। यह शायर [[हिन्दी]] के पाठकों के लिए भी उतना ही सुपरिचित है जितना उर्दू के पाठकों के लिए। इनका पूरा नाम मुक़्तिदा हसन निदा फ़ाज़ली है, जो बाद में निदा फ़ाज़ली के रूप में प्रसिद्ध हुआ। निदा फ़ाज़ली इनका लेखन का नाम है। निदा का अर्थ है स्वर/ आवाज़/ Voice। फ़ाज़िला [[कश्मीर]] के एक इलाके का नाम है जहाँ से निदा के पूर्वज आकर [[दिल्ली]] में बस गए थे, इसलिए उन्होंने अपने उपनाम में फ़ाज़ली जोड़ा।<ref name="SKS"/>  
'''निदा फ़ाज़ली''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Nida Fazli'', जन्म: [[12 अक्तूबर]] [[1938]]) आधुनिक [[उर्दू]] शायरी के बहुत ही लोकप्रिय शायर हैं। यह शायर [[हिन्दी]] के पाठकों के लिए भी उतना ही सुपरिचित है जितना उर्दू के पाठकों के लिए। इनका पूरा नाम मुक़्तिदा हसन निदा फ़ाज़ली है, जो बाद में निदा फ़ाज़ली के रूप में प्रसिद्ध हुआ। निदा फ़ाज़ली इनका लेखन का नाम है। निदा का अर्थ है स्वर/ आवाज़/ Voice। फ़ाज़िला [[कश्मीर]] के एक इलाके का नाम है जहाँ से निदा के पूर्वज आकर [[दिल्ली]] में बस गए थे, इसलिए उन्होंने अपने उपनाम में फ़ाज़ली जोड़ा।<ref name="SKS"/>  
==जीवन परिचय==
==जीवन परिचय==
निदा फ़ाज़ली का जन्म [[दिल्ली]] में [[12 अक्तूबर]] [[1938]] को हुआ था। इनकी स्कूली शिक्षा [[ग्वालियर]] में हुई थी। निदा फ़ाज़ली के पिता एक शायर थे, जो [[भारत का विभाजन|भारत विभाजन]] के समय [[पाकिस्तान]] चले गए। भारतीयता के पोषक निदा फ़ाज़ली भारता को छोड़कर पाकिस्तान नहीं गए और आज भी इस देश को अपनी रचनात्मक प्रतिभा से समृद्ध कर रहे हैं। निदा फ़ाज़ली गज़लों के साथ दोहे भी बखूबी कहते हैं, नज़्मों में भी इन्हें महारत हासिल है। 1960 के दशक के दौरान अपने समकालीन शायरों [[कैफ़ी आज़मी]], [[अली सरदार जाफ़री|सरदार अली जाफ़री]] और [[साहिर लुधियानवी]] पर एक समीक्षात्मक किताब मुलाकातें भी निदा फ़ाज़ली ने लिखी है।<ref name="SKS">{{cite web |url=http://sunaharikalamse.blogspot.in/2012/05/blog-post.html |title=लोकप्रिय भारतीय शायर -निदा फ़ाज़ली |accessmonthday=29 दिसम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=सुनहरी कलम से (ब्लॉग) |language= हिंदी}}</ref>उनकी एक ही बेटी है जिसका नाम तहरीर है।  
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निदा फ़ाज़ली की मृत्यु [[8 फरवरी]] [[2016]] को [[मुम्बई]] हुयी है।
निदा फ़ाज़ली की मृत्यु [[8 फरवरी]] [[2016]] को [[मुम्बई]] हुई है।
 
==आरम्भिक जीवन==
==आरम्भिक जीवन==
सन [[1946]] में जीविका की तलाश में निदा फ़ाज़ली [[मुम्बई]] का रुख़ किया। मुम्बई में प्रारम्भिक दिनों में [[धर्मयुग पत्रिका|धर्मयुग]] और ब्लिट्ज में आलेख भी लिखे। मुम्बई में रहते हुए मुशायरों में भी बेहद लोकप्रियता हासिल की। फ़िल्म 'रज़िया सुल्तान' के निर्माण के समय शायर जानिसार अख्तर के निधन के बाद फ़िल्म निर्माता [[कमाल अमरोही]] ने इन्हें गीत लिखने के लिए अवसर दिया। इनके लिखे गीत काफ़ी लोकप्रिय भी हुए। इसके बाद आज तक इनके फ़िल्मी गीत लेखन का सफ़र जारी है।<ref name="SKS"/>  
सन [[1946]] में जीविका की तलाश में निदा फ़ाज़ली ने [[मुम्बई]] का रुख़ किया। मुम्बई में प्रारम्भिक दिनों में '[[धर्मयुग पत्रिका|धर्मयुग]]' और 'ब्लिट्ज' में आलेख भी लिखे। मुम्बई में रहते हुए मुशायरों में भी बेहद लोकप्रियता हासिल की। फ़िल्म 'रज़िया सुल्तान' के निर्माण के समय शायर जानिसार अख्तर के निधन के बाद फ़िल्म निर्माता [[कमाल अमरोही]] ने इन्हें गीत लिखने के लिए अवसर दिया। इनके लिखे गीत काफ़ी लोकप्रिय भी हुए। इसके बाद आज तक इनके फ़िल्मी गीत लेखन का सफ़र जारी है।<ref name="SKS"/>  
==भाषा शैली==
==भाषा शैली==
निदा फ़ाज़ली की शायरी की भाषा आम आदमी को भी समझ में आ जाती है। यह कवि /शायर सहज भाषा में गूढ़ से गूढ़ बात कहने में माहिर है। निदा फ़ाज़ली एक सूफ़ी शायर हैं [[रहीम]], [[कबीर]] और [[मीरा]] से प्रभावित होते हैं तो [[मीर]] और [[ग़ालिब]] भी इनमें रच- बस जाते हैं। निदा फाज़ली की शायरी की जमीन विशुद्ध भारतीय है। वो छोटी उम्र से ही लिखने लगे थे। जब वह पढ़ते थे तो उनके सामने की पंक्ति में एक लड़की बैठा करती थी जिससे वो एक अनजाना, अनबोला सा रिश्ता अनुभव करने लगे थे। लेकिन एक दिन कॉलेज के बोर्ड पर एक नोटिस दिखा "Miss Tondon met with an accident and has expired" (कुमारी टंडन का एक्सीडेण्ट हुआ और उनका देहान्त हो गया है)। निदा बहुत दु:खी हुए और उन्होंने पाया कि उनका अभी तक का लिखा कुछ भी उनके इस दु:ख को व्यक्त नहीं कर पा रहा है, ना ही उनको लिखने का जो तरीक़ा आता था उसमें वो कुछ ऐसा लिख पा रहे थे जिससे उनके अंदर का दु:ख की गिरहें खुलें। एक दिन सुबह वह एक मंदिर के पास से गुजरे जहाँ पर उन्होंने किसी को [[सूरदास]] का भजन मधुबन तुम क्यौं रहत हरे? बिरह बियोग स्याम सुंदर के ठाढ़े क्यौं न जरे? गाते सुना, जिसमें [[कृष्ण]] के [[मथुरा]] से [[द्वारका]] चले जाने पर उनके वियोग में डूबी [[राधा]] और गोपियाँ फुलवारी से पूछ रही होती हैं ऐ फुलवारी, तुम हरी क्यों बनी हुई हो? कृष्ण के वियोग में तुम खड़े-खड़े क्यों नहीं जल गईं? वह सुन कर निदा को लगा कि उनके अंदर दबे हुए दु:ख की गिरहें खुल रही है। फिर उन्होंने [[कबीरदास]], [[तुलसीदास]], बाबा फ़रीद इत्यादि कई अन्य कवियों को भी पढ़ा और उन्होंने पाया कि इन कवियों की सीधी-सादी, बिना लाग लपेट की, दो-टूक भाषा में लिखी रचनाएँ अधिक प्रभावकारी है जैसे सूरदास की ही उधो, मन न भए दस बीस। एक हुतो सो गयौ स्याम संग, को अराधै ते ईस॥ तब से वैसी ही सरल भाषा सदैव के लिए उनकी अपनी शैली बन गई।<ref name="कविता कोश"/>
निदा फ़ाज़ली की शायरी की भाषा आम आदमी को भी समझ में आ जाती है। यह कवि /शायर सहज भाषा में गूढ़ से गूढ़ बात कहने में माहिर है। निदा फ़ाज़ली एक सूफ़ी शायर हैं [[रहीम]], [[कबीर]] और [[मीरा]] से प्रभावित होते हैं तो [[मीर]] और [[ग़ालिब]] भी इनमें रच- बस जाते हैं। निदा फाज़ली की शायरी की जमीन विशुद्ध भारतीय है। वो छोटी उम्र से ही लिखने लगे थे। जब वह पढ़ते थे तो उनके सामने की पंक्ति में एक लड़की बैठा करती थी जिससे वो एक अनजाना, अनबोला सा रिश्ता अनुभव करने लगे थे। लेकिन एक दिन कॉलेज के बोर्ड पर एक नोटिस दिखा "Miss Tondon met with an accident and has expired" (कुमारी टंडन का एक्सीडेण्ट हुआ और उनका देहान्त हो गया है)। निदा बहुत दु:खी हुए और उन्होंने पाया कि उनका अभी तक का लिखा कुछ भी उनके इस दु:ख को व्यक्त नहीं कर पा रहा है, ना ही उनको लिखने का जो तरीक़ा आता था उसमें वो कुछ ऐसा लिख पा रहे थे जिससे उनके अंदर का दु:ख की गिरहें खुलें। एक दिन सुबह वह एक मंदिर के पास से गुजरे जहाँ पर उन्होंने किसी को [[सूरदास]] का भजन मधुबन तुम क्यौं रहत हरे? बिरह बियोग स्याम सुंदर के ठाढ़े क्यौं न जरे? गाते सुना, जिसमें [[कृष्ण]] के [[मथुरा]] से [[द्वारका]] चले जाने पर उनके वियोग में डूबी [[राधा]] और गोपियाँ फुलवारी से पूछ रही होती हैं ऐ फुलवारी, तुम हरी क्यों बनी हुई हो? कृष्ण के वियोग में तुम खड़े-खड़े क्यों नहीं जल गईं? वह सुन कर निदा को लगा कि उनके अंदर दबे हुए दु:ख की गिरहें खुल रही है। फिर उन्होंने [[कबीरदास]], [[तुलसीदास]], बाबा फ़रीद इत्यादि कई अन्य कवियों को भी पढ़ा और उन्होंने पाया कि इन कवियों की सीधी-सादी, बिना लाग लपेट की, दो-टूक भाषा में लिखी रचनाएँ अधिक प्रभावकारी है जैसे सूरदास की ही उधो, मन न भए दस बीस। एक हुतो सो गयौ स्याम संग, को अराधै ते ईस॥ तब से वैसी ही सरल भाषा सदैव के लिए उनकी अपनी शैली बन गई।<ref name="कविता कोश"/>

07:41, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

निदा फ़ाज़ली
निदा फ़ाज़ली
निदा फ़ाज़ली
पूरा नाम मुक़्तिदा हसन निदा फ़ाज़ली
जन्म 12 अक्तूबर 1938

(आयु- 86 वर्ष)

जन्म भूमि दिल्ली
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र उर्दू शायर, गीतकार
मुख्य रचनाएँ काव्य संग्रह- 'खोया हुआ सा कुछ', 'लफ़्ज़ों के फूल', 'आँखों भर आकाश', 'मोर नाच' आदि।
भाषा हिंदी, उर्दू, अंग्रेज़ी
विद्यालय ग्वालियर कॉलेज
शिक्षा स्नातकोत्तर
पुरस्कार-उपाधि 1998 में साहित्य अकादमी पुरस्कार - (खोया हुआ सा कुछ)
नागरिकता भारतीय
अद्यतन‎
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

निदा फ़ाज़ली (अंग्रेज़ी: Nida Fazli, जन्म: 12 अक्तूबर 1938) आधुनिक उर्दू शायरी के बहुत ही लोकप्रिय शायर हैं। यह शायर हिन्दी के पाठकों के लिए भी उतना ही सुपरिचित है जितना उर्दू के पाठकों के लिए। इनका पूरा नाम मुक़्तिदा हसन निदा फ़ाज़ली है, जो बाद में निदा फ़ाज़ली के रूप में प्रसिद्ध हुआ। निदा फ़ाज़ली इनका लेखन का नाम है। निदा का अर्थ है स्वर/ आवाज़/ Voice। फ़ाज़िला कश्मीर के एक इलाके का नाम है जहाँ से निदा के पूर्वज आकर दिल्ली में बस गए थे, इसलिए उन्होंने अपने उपनाम में फ़ाज़ली जोड़ा।[1]

जीवन परिचय

निदा फ़ाज़ली का जन्म दिल्ली में 12 अक्तूबर, 1938 को हुआ था। इनकी स्कूली शिक्षा ग्वालियर, मध्य प्रदेश में हुई थी। निदा फ़ाज़ली के पिता एक शायर थे, जो भारत विभाजन के समय पाकिस्तान चले गए। भारतीयता के पोषक निदा फ़ाज़ली भारत को छोड़कर पाकिस्तान नहीं गए और आज भी इस देश को अपनी रचनात्मक प्रतिभा से समृद्ध कर रहे हैं। निदा फ़ाज़ली गज़लों के साथ दोहे भी बखूबी कहते हैं, नज़्मों में भी इन्हें महारत हासिल है। 1960 के दशक के दौरान अपने समकालीन शायरों कैफ़ी आज़मी, सरदार अली जाफ़री और साहिर लुधियानवी पर एक समीक्षात्मक किताब मुलाकातें भी निदा फ़ाज़ली ने लिखी है।[1]उनकी एक ही बेटी है जिसका नाम तहरीर है। निदा फ़ाज़ली की मृत्यु 8 फरवरी 2016 को मुम्बई हुई है।

आरम्भिक जीवन

सन 1946 में जीविका की तलाश में निदा फ़ाज़ली ने मुम्बई का रुख़ किया। मुम्बई में प्रारम्भिक दिनों में 'धर्मयुग' और 'ब्लिट्ज' में आलेख भी लिखे। मुम्बई में रहते हुए मुशायरों में भी बेहद लोकप्रियता हासिल की। फ़िल्म 'रज़िया सुल्तान' के निर्माण के समय शायर जानिसार अख्तर के निधन के बाद फ़िल्म निर्माता कमाल अमरोही ने इन्हें गीत लिखने के लिए अवसर दिया। इनके लिखे गीत काफ़ी लोकप्रिय भी हुए। इसके बाद आज तक इनके फ़िल्मी गीत लेखन का सफ़र जारी है।[1]

भाषा शैली

निदा फ़ाज़ली की शायरी की भाषा आम आदमी को भी समझ में आ जाती है। यह कवि /शायर सहज भाषा में गूढ़ से गूढ़ बात कहने में माहिर है। निदा फ़ाज़ली एक सूफ़ी शायर हैं रहीम, कबीर और मीरा से प्रभावित होते हैं तो मीर और ग़ालिब भी इनमें रच- बस जाते हैं। निदा फाज़ली की शायरी की जमीन विशुद्ध भारतीय है। वो छोटी उम्र से ही लिखने लगे थे। जब वह पढ़ते थे तो उनके सामने की पंक्ति में एक लड़की बैठा करती थी जिससे वो एक अनजाना, अनबोला सा रिश्ता अनुभव करने लगे थे। लेकिन एक दिन कॉलेज के बोर्ड पर एक नोटिस दिखा "Miss Tondon met with an accident and has expired" (कुमारी टंडन का एक्सीडेण्ट हुआ और उनका देहान्त हो गया है)। निदा बहुत दु:खी हुए और उन्होंने पाया कि उनका अभी तक का लिखा कुछ भी उनके इस दु:ख को व्यक्त नहीं कर पा रहा है, ना ही उनको लिखने का जो तरीक़ा आता था उसमें वो कुछ ऐसा लिख पा रहे थे जिससे उनके अंदर का दु:ख की गिरहें खुलें। एक दिन सुबह वह एक मंदिर के पास से गुजरे जहाँ पर उन्होंने किसी को सूरदास का भजन मधुबन तुम क्यौं रहत हरे? बिरह बियोग स्याम सुंदर के ठाढ़े क्यौं न जरे? गाते सुना, जिसमें कृष्ण के मथुरा से द्वारका चले जाने पर उनके वियोग में डूबी राधा और गोपियाँ फुलवारी से पूछ रही होती हैं ऐ फुलवारी, तुम हरी क्यों बनी हुई हो? कृष्ण के वियोग में तुम खड़े-खड़े क्यों नहीं जल गईं? वह सुन कर निदा को लगा कि उनके अंदर दबे हुए दु:ख की गिरहें खुल रही है। फिर उन्होंने कबीरदास, तुलसीदास, बाबा फ़रीद इत्यादि कई अन्य कवियों को भी पढ़ा और उन्होंने पाया कि इन कवियों की सीधी-सादी, बिना लाग लपेट की, दो-टूक भाषा में लिखी रचनाएँ अधिक प्रभावकारी है जैसे सूरदास की ही उधो, मन न भए दस बीस। एक हुतो सो गयौ स्याम संग, को अराधै ते ईस॥ तब से वैसी ही सरल भाषा सदैव के लिए उनकी अपनी शैली बन गई।[2]

प्रमुख कृतियाँ

निदा फ़ाज़ली की कुछ प्रमुख कृतियाँ -आँखों भर आकाश, मौसम आते जाते हैं, खोया हुआ सा कुछ, लफ़्ज़ों के फूल, मोर नाच, आँख और ख़्वाब के दरमियाँ, सफ़र में धूप तो होगी आदि।

निदा फ़ाज़ली की रचनाएँ[2]
प्रसिद्ध फ़िल्मी गीत और ग़ज़ल काव्य संग्रह आत्मकथा और संस्मरण संपादन
  • तेरा हिज्र मेरा नसीब है, तेरा गम मेरी हयात है (फ़िल्म- रज़िया सुल्ताना)
  • आई ज़ंजीर की झन्कार, ख़ुदा ख़ैर कर (फ़िल्म- रज़िया सुल्ताना)
  • होश वालों को खबर क्या, बेखुदी क्या चीज है (फ़िल्म- सरफ़रोश)
  • कभी किसी को मुक़म्मल जहाँ नहीं मिलता (फ़िल्म- आहिस्ता-आहिस्ता)
  • तू इस तरह से मेरी ज़िंदग़ी में शामिल है (फ़िल्म- आहिस्ता-आहिस्ता)
  • चुप तुम रहो, चुप हम रहें (फ़िल्म- इस रात की सुबह नहीं)
  • दुनिया जिसे कहते हैं, मिट्टी का खिलौना है (ग़ज़ल)
  • हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी (ग़ज़ल)
  • अपना ग़म लेके कहीं और न जाया जाये (ग़ज़ल)
  • लफ़्ज़ों के फूल (पहला प्रकाशित संकलन)
  • मोर नाच
  • आँख और ख़्वाब के दरमियाँ
  • खोया हुआ सा कुछ (1996)
  • आँखों भर आकाश
  • सफ़र में धूप तो होगी
आत्मकथा
  • दीवारों के बीच
  • दीवारों के बाहर
संस्मरण
  • मुलाक़ातें
  • सफ़र में धूप तो होगी
  • तमाशा मेरे आगे
  • बशीर बद्र : नयी ग़ज़ल का एक नाम
  • जाँनिसार अख़्तर : एक जवान मौत
  • दाग़ देहलवी : ग़ज़ल का एक स्कूल
  • मुहम्मद अलवी : शब्दों का चित्रकार
  • जिगर मुरादाबादी : मुहब्बतों का शायर

निदा फ़ाज़ली की ग़ज़लें

(1) (2) (3)

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता 
कहीं जमीं तो कहीं आस्मां नहीं मिलता 
बुझा सका है भला कौन वक्त के शोले 
ये ऐसी आग है जिसमें धुआँ नहीं मिलता 
तमाम शहर में ऐसा नहीं खुलूस न हो 
जहाँ उम्मीद हो इसकी वहाँ नहीं मिलता 
कहाँ चराग़ जलाएँ कहाँ गुलाब रखें 
छतें तो मिलती हैं लेकिन मकाँ नहीं मिलता 
ये क्या अज़ाब है सब अपने आप में गुम हैं 
जुबाँ मिली है मगर हमजुबाँ नहीं मिलता 
चराग़ जलते ही बिनाई बुझने लगती है 
खुद अपने घर में ही घर का निशाँ नहीं मिलता

सफ़र में धूप तो होगी, जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो
यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिरा के अगर तुम सम्हल सको तो चलो
हर इक सफ़र को है महफूज़ रास्तों की तलाश
हिफ़ाज़तों की रिवायत बदल सको तो चलो
यही है ज़िन्दगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो
किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आप को खुद ही बदल सको तो चलो

अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं 
रुख हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं 
पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है 
अपने ही घर में, किसी दूसरे घर के हम हैं 
वक्त के साथ है मिट्टी का सफ़र सदियों से 
किसको मालूम, कहाँ के हैं किधर के हम हैं 
जिस्म से रूह तलक अपने कई आलम हैं 
कभी धरती के कभी चाँद नगर के हम हैं 
चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफ़िर का नसीब 
सोचते रहते हैं, किस राहगुज़र के हम हैं 
गिनतियों में ही गिने जाते हैं हर दौर में हम 
हर क़लमकार की बेनाम ख़बर के हम हैं 

निदा फ़ाज़ली के दोहे

सबकी पूजा एक सी, अलग -अलग हर रीत। 
मस्जिद जाए मौलवी, कोयल गाए गीत॥ 

          पूजा -घर में मूरती, मीरा के संग श्याम।
          जितनी जिसकी चाकरी, उतने उसके दाम॥ 

सीता -रावण, राम का, करें बिभाजन लोग।
एक ही तन में देखिए, तीनों का संजोग॥ 

          माटी से माटी मिले, खो के सभी निशान।
          किसमें कितना कौन है, कैसे हो पहचान॥

सम्मान और पुरस्कार

  • 1998 में साहित्य अकादमी पुरस्कार - काव्य संग्रह खोया हुआ सा कुछ (1996)
  • 2003 में स्टार स्क्रीन पुरस्कार - श्रेष्टतम गीतकार - फ़िल्म 'सुर के लिए
  • 2003 में बॉलीवुड मूवी पुरस्कार - श्रेष्टतम गीतकार - फ़िल्म सुर के गीत 'आ भी जा' के लिए
  • मध्य प्रदेश सरकार का मीर तकी मीर पुरस्कार (आत्मकथा रूपी उपन्यास 'दीवारों के बीच' के लिए)
  • मध्य प्रदेश सरकार का खुसरो पुरस्कार - उर्दू और हिन्दी साहित्य के लिए
  • महाराष्ट्र उर्दू अकादमी का श्रेष्ठतम कविता पुरस्कार - उर्दू साहित्य के लिए
  • बिहार उर्दू अकादमी पुरस्कार
  • उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी का पुरस्कार
  • हिन्दी उर्दू संगम पुरस्कार (लखनऊ)[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 लोकप्रिय भारतीय शायर -निदा फ़ाज़ली (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) सुनहरी कलम से (ब्लॉग)। अभिगमन तिथि: 29 दिसम्बर, 2012।
  2. 2.0 2.1 2.2 निदा फ़ाज़ली / रचनाएँ (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) कविता कोश। अभिगमन तिथि: 29 दिसम्बर, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

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