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वर्तमान निवास स्थान: चितरंजन पार्क, नई दिल्ली (भारत)
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'''रेखा गनेशन''' ([[अंग्रेज़ी]]:Rekha Ganeshan) (जन्म- [[10 अक्टूबर]] [[1954]] [[तमिलनाडु]]) [[हिन्दी]] फ़िल्म जगत की उन चुनिंदा [[अभिनेत्री|अभिनेत्रियों]] में से एक हैं अपनी वर्सटैलिटी और [[हिन्दी फ़िल्म|हिन्दी फ़िल्मों]] की बेहतरीन अभिनेत्री मानी जाने वाली रेखा ने अपने करियर की शुरूआत [[1966]] में बाल कलाकार के तौर पर तेलगु फ़िल्म रंगुला रतलाम सेे की थी।
==जीवन परिचय==
==जीवन परिचय==
रेखा का पूरा नाम भानुरेखा गणेशन है। इनका जन्म [[10 अक्टूबर]] [[1954]] को [[तमिलनाडु]] में हुआ। कहा जाता है रेखा ने जब फ़िल्मी जीवन की शुरुआत की थी तब वो काफी मोटी थी। उस समय किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि एक मोटी सी लड़की आगे जाकर बॉलीवुड की सदाबहार अभिनेत्री बन जाएगी। रेखा ने सिर्फ व्यावसायिक फ़िल्में की हैं। बल्कि कलात्मक फ़िल्मों से भी उन्होंने अपने अभिनय की छाप छोड़ी है।
'''पंडित देवब्रत चौधरी''' ([[अंग्रेजी]]: Pandit Debu Chaudhary, जन्म: 1935, मायमेंसिंग, वर्तमान बांग्लादेश) को भारतीय [[संगीत]] के क्षेत्र में ‘देबू’ के नाम से भी जाना जाता है। पंडित देवब्रत (देबू) चौधरी [[भारत]] के प्रमुख सितार वादक, [[भारतीय शास्त्रीय संगीत]] के क्षेत्र में एक ख्याति प्राप्त [[संगीतकार]] और [[दिल्ली विश्वविद्यालय]] में संगीत के शिक्षक रह चुके हैं। इन्होंने ‘सेनिआ संगीत घराना’ के श्री पंचू गोपाल दत्ता और संगीत आचार्य उस्ताद मुश्ताक अली खान से संगीत की शिक्षा ग्रहण की। इन्हें ‘[[पद्मभूषण]]और [[पद्मश्री]]’ जैसे प्रतिष्ठित सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से भी अलंकृत किया जा चुका है।
रेखा [[1966]] में फ़िल्मों में आ गईं थी. अभिनेत्री की पहली फ़िल्म एक तेलुगु रंगुला रत्नम थी जिसमें उन्होंने एक बाल कलाकार की भूमिका निभाई थी. लेकिन [[हिंदी सिनेमा]] में उनकी शुरुआत [[1970]] में आई फ़िल्म सावन भादों से हुई.
रेखा ने अपने 40 सालों के लंबे करियर में लगभग 180 से उपर फ़िल्मों में काम किया है। अपने करियर के दौरान उन्होंने कई दमदार रोल किए और कई मजबूत फीमेल किरदार को पर्दे पर बेहतरीन तरीके से पेश किया और मुख्यधारा के सिनेमा के अलावा उन्होंने कई आर्ट फ़िल्मों मे भी काम किया जिसे [[भारत]] में पैरलल सिनेमा कहा जाता हैै। उन्हें तीन बार फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिल चुका है, दो बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का और एक बार सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्री का जिसमें क्रमशः खूबसूरत, खून भरी मांग और खिलाडि़यों का खिलाड़ी जैसी फ़िल्में शामिल हैं। उमराव जान के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का [[राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार]] भी मिल चुका है। उनके करियर का ग्राफ कई बार नीचे भी गिरा लेकिन के उन्होंने अपने को कई बार इससे उबारा और स्टेटस को बरकरार रखने के लिए उनकी क्षमता ने सभी का दिल जीता। [[2010]] में उन्हें [[भारत सरकार]] की ओर से पद्मश्री सम्मान से भी नवाजा गया।
====परिवार====
रेखा का जन्म [[चेन्नई]] में [[तमिल]] अभिनेता जेमिनी गनेशन और तेलगु अभिनेत्री पुष्पावली के यहां हुआ था। उनके पिता अभिनेता के तौर पर काफी सफल हुए और रेखा भी उन्हीं के पदचिन्हों पर चलीं। वे तेलगु को अपनी मातृभाषा मानती हैं। वे [[हिन्दी]], [[तमिल]] और इंग्लिश भी अच्छे से बोल लेती हैं।
====शिक्षा====
रेखा पापुलर चर्च पार्क कान्वेंट, चेन्नई की एल्युंमिनाई रहीं है। रेखा ने अभिनय क्षेत्र में करियर बनाने के लिए पढ़ाई छोड़ दी। उनकी इस लाइन में आने की कोई व्यक्तिगत इच्छा नहीं थी लेकिन परिवार में आर्थिक समस्या होने की वजह से उन्होंने यह कदम उठाया।
====विवाह====
[[1990]] में दिल्ली के कारोबारी मुकेश अग्रवाल से शादी कर ली। अफवाह यह भी उड़ी कि उन्होंने [[1973]] में अभिनेता विनोद मेहरा से शादी की लेकिन [[2004]] में सिमी ग्रेवाल के टीवी इंटरव्यू में मुकेश के साथ उनकी शादी का खंडन किया और उन्हें अपना वेलविशर बताया। वे अभी [[मुंबई]] के बांद्रा इलाके में रहती हैं।
====फ़िल्मी करियर====
वे बाल कलाकार के तौर पर तेलगु फ़िल्म रंगुला रतलाम में दिखाई दीं जिसमें उनका नाम बेबी भानुरेखा बताया गया। [[1969]] में हीरोइन के रूप में उन्होंने अपना डेब्यू सफल कन्नड़ फ़िल्म आॅपरेशन जैकपाट नल्ली सीआईडी 999 से किया था जिसमें उनके हीरो राजकुमार थे। उसी सालद उनकी पहली हिन्दी फ़िल्म अंजाना सफर रिलीज हुई थी। फ़िल्म के एक किसिंग सीन के विवाद के चलते यह फ़िल्म नहीं रिलीज हो पाई। बाद में इस फ़िल्म को दो शिकारी के नाम से रिलीज किया गया।
उनका अभिनय में कोई इंट्रेस्ट नहीं था लेकिन आर्थिक तंगी होने की वजह से उन्होंने यह किया। यह उनके जीवन का कठिन समय था।
[[1970]] में उनकी दो फ़िल्में रिलीज हुईं-तेलगु फ़िल्म अम्मा कोसम और हिन्दी फ़िल्म सावन भादो जो कि उनकी बाॅलीवुड में अभिनेत्री के तौर पर डेब्यू फ़िल्म मानी जाती है। सावन भादो हिट रही और रेखा रातों रात स्टार बन गईं। बाद में उन्हें कई फ़िल्मों में रोल मिलने लगे लेकिन वे एक ग्लैमर गर्ल से ज्यादा कुछ नहीं थे। उस समय उन्होंने रामपुर का लक्ष्मण, कहानी किस्मत की, प्राण जाए पर वचन ना जाए जैसी फ़िल्मों में काम किया। इन सबने अच्छा कारोबार किया। उनकी पहली फ़िल्म जिसमें उनकी परफाॅर्मेंस को सराहा गया, वह थी [[अमिताभ बच्चन]] के साथ दो अंजाने जिसमें उन्होंने अमिताभ की लालची बीवी का किरदार निभाया था। इस फ़िल्म को दर्शकों और आलोचकों की तरफ से ठीक ठाक रेस्पांस मिला। फ़िल्म ‘घर’ उनके करियर का टर्निंग प्वाइंट रही। यह फ़िल्म उनके करियर का माइलटोन रही और फ़िल्म में उनके अभिनय को आलोचकों और जनता दोनों ने काफी सराहा। इस फ़िल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के तौर पर पहली बार फ़िल्मफेेयर पुरस्कार में नामांकित किया गया।
उसी साल आई फ़िल्म मुकद्दर का सिंकंदर में वे एक बार फिर [[अमिताभ बच्चन]] के साथ दिखाई दीं। यह फ़िल्म उस साल की बड़ी हिट रही और रेखा उस समय की सबसे सफल अभिनेत्रियों में शुमार हो गईं। फ़िल्म की काफी तारीफ हुई और रेखा को सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्री का के तौर पर फ़िल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया।
 
[[1980]] में वे काॅमेडी फ़िल्म खूबसूरत में दिखाई दीं जिसके निर्देशक [[ऋषिकेश मुखर्जी]] थे जिनके साथ रेखा का पिता-बेटी का रिश्ता बन चुका था। यह फ़िल्म भी सफल हुई और और रेखा को उनकी काॅमिक टाइमिंग के लिए सराहा गया। इसे फ़िल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का पुरस्कार तो मिला ही, साथ ही साथ रेखा को पहली बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला। इसके बाद से अग्रणी फ़िल्म निर्देशकों ने रेखा को और नोटिस किया और अपनी फ़िल्मों मे उन्हें कास्ट करने की खासी रूचि दिखाई। उनकी [[अमिताभ बच्चन]] के साथ आई ज्यादातर फ़िल्में हिट हुईं। उनका अमिताभ के साथ अफेयर मीडिया में काफी चर्चा का विषय भी बना रहा क्योंकि अमिताभ पहले से शादीशुदा थे। इसके बाद आई यश चोपड़ा की फ़िल्म सिलसिला में वे अमिताभ और जया भादुड़ी के साथ नजर आईं। फ़िल्म में रेखा ने अमिताभ की प्रेमिका की भूमिका निभाई तो वहीं जया ने अमिताभ की पत्नी की भूमिका निभाई। इस दौरान उन्होंने अपनी हिन्दी को भी काफी सुधारा जिसके लिए मीडिया में उनकी काफी तारीफ हुई।
[[1981]] में आई उनकी उमराव जान। यह फ़िल्म उनके करियर की बेस्ट फ़िल्मों में से एक रही और इस फ़िल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार भी दिया गया। इसके बाद भी उनकी कई फ़िल्में आई जो कि काफी हिट हुईं।
 
[[1990]] के दौरान रेखा की सफलता में गिरावट हुई। उन्होंने कई ऐसी फ़िल्मों में काम किया जो कि खास कारोबार भी नहीं कर पाईं और आलोचकों से भी अच्छी प्रतिक्रियाएं नहीं मिलीं। इस दौरान श्रीदेवी और माधुरी दीक्षित जैसी अभिनेत्रियां भी चर्चित हो गईं। इसके बाद उन्होंने कामसूत्रः ए टेल आॅफ लव और खिलाडि़यों का खिलाड़ी जैसी फ़िल्मों में काम किया। खिलाडि़यों का खिलाड़ी ने काफी अच्छा कारोबार किया और फ़िल्म उस साल की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फ़िल्मों में से एक रही। इस फ़िल्म में पहली बार रेखा ने मैडम माया का निगेटिव किरदार निभाया था। फ़िल्म में [[अक्षय कुमार]] और रवीना टंडन भी थे।
 
[[2000]] आते आते उन्होंने फ़िल्में कम कर दीं और कुछ ही फ़िल्मों में दिखाई दीं। इस दौरान वे फ़िल्म बुलंदी में दिखाई दीं। 2001 में वे फ़िल्म लज्जा में दिखाई दीं। फिर वे राकेश रोशन की फ़िल्म कोई मिल गया में रितिक की मां के किरदार में पर्दे पर आईं तो वहीं फ़िल्म परिणीता में एक आइटम नंबर भी करती हुई नजर आईं।
 
 
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{{संदर्भ ग्रंथ}}


==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
ये संगीत से संबंधित कई पुस्तकों के लेखक, आठ नए संगीत रागों के जन्मदाता और बहुत से नए संगीत के धुनों के निर्माता भी हैं। इन्होंने वर्ष [[1963]] से देश-विदेश में बहुत से स्टेज शो, रेडियो और टीवी कार्यक्रमों में अपने संगीत की प्रस्तुति दी है। ये ‘सेनिया संगीत घराना’ मैहर (मध्य प्रदेश) के शास्त्रीय संगीत के ध्वज वाहक हैं। ये संगीत का शिक्षण कार्य करते हुए [[दिल्ली विश्वविद्यालय]] के संगीत संकाय के डीन और विभागाध्यक्ष भी रह चुके हैं। इनकी संगीत के मधुर धुनों की एक अपनी अलग ही विशेषता है। इन्होंने बहुत से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त किए हैं। ये इस्कॉन मंदिर के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के आजीवन सदस्य भी हैं।
<references/>
==पारिवारिक जीवन==
पंडित देवब्रत (चौधरी) का जन्म वर्ष [[1935]] में मायमेंसिंग (तत्कालीन भारत) वर्तमान [[बांग्लादेश]] में हुआ था। इन्होंने मात्र चार वर्ष की उम्र से ही सितार के साथ खेलना प्रारम्भ कर दिया था। उन्होंने अपने पहले सार्वजनिक संगीत कार्यक्रम का प्रदर्शन मात्र 12 वर्ष की अवस्था में ही कर दिया था। इनके संगीत के कार्यक्रम का आल इंडिया रेडिओ पर प्रथम प्रसारण 18 वर्ष की अवस्था में वर्ष [[1953]] में हुआ था।
जीवन के 38 वर्ष बिताने के बाद इन्होंने सितार का प्रशिक्षण ‘सेनिआ घराने’ के महान संगीत आचार्य उस्ताद मुश्ताक अली खान से लेना प्रारम्भ किया। इन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा प्राप्त की।
[[दिल्ली विश्वविद्यालय]] से अवकाश प्राप्त करने के बाद ये वर्तमान में अपने पुत्र, पुत्री, दामाद और भतीजा-भतिजिओं के साथ चितरंजन पार्क, नई दिल्ली में रहते हैं।
==शिक्षण एवं प्रशिक्षण कार्य==
इन्होंने वर्ष [[1971]] से वर्ष [[1982]] तक [[दिल्ली विश्वविद्यालय]] में [[संगीत]] विभाग के रीडर के रूप में अध्यापन का कार्य किया और वर्ष 1985 से वर्ष 1988 तक ये इसी विभाग में डीन और विभागाध्यक्ष भी रहे. इन्होंने महर्षि इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी (अब महर्षि यूनिवर्सिटी ऑफ मनेजमेंट), अमेरिका में भी वर्ष 1991 से वर्ष 1994 तक भारतीय शास्त्रीय संगीत को पाश्चात्य देशों में प्रचार-प्रसार में अपनी विशेष सेवाएं दी हैं.


==बाहरी कड़ियाँ==
[[दिल्ली विश्वविद्यालय]] से अवकाश ग्रहण के बाद इन्होंने एक विशेष [[संगीत]] प्रोजेक्ट पर कार्य करना प्रारम्भ किया, जो दुर्लभ संगीत वाद्य यंत्रों के द्वारा प्रस्तुत धुनों को परम्परागत ‘ध्रुपद’ और ‘ख्याल’ राग द्वारा नए राग में प्रस्तुत करने का है. यह प्रोजेक्ट आने वाली युवा पीढ़ी को [[संगीत]] के क्षेत्र में बहुत ही दुर्लभ अनुभव प्रदान करेगा.


==संबंधित लेख==
==संगीत पर आधारित नई धुनों, पुस्तकों और सीडी का निर्माण==
{{अभिनेत्री}}
इन्होंने आठ नए संगीत के रागों की रचना की है, ये राग हैं- बिस्वेस्वरी, पलास-सारंग, अनुरंजनी, आशिकी ललित, स्वनान्देस्वरी, कल्याणी बिलावल, शिवमंजरी और प्रभाती मंजरी (अपनी पत्नी मंजू की स्मृति में बनाया). इसके अतिरिक्त इन्होंने संगीत पर आधारित तीन पुस्तकों की भी रचना की है, ये हैं- ‘सितार एंड इट्स टेक्निक्स’, ‘म्यूजिक ऑफ इंडिया’ और ‘ऑन इंडियन म्यूजिक’. अपने अमेरिका प्रवास के दौरान इन्होंने ‘महर्षि गन्धर्व वेद’ नाम से  24 सीडी को 24 घंटों के संगीत के लिए रिकॉर्ड कराया।
__INDEX__
इन्होंने बहुत से एल्बम और कैसेट्स का भी निर्माण EMI, HMV, ABK (USA), टीवी सीरीज, रिदम हाउस, आर्काइव म्यूजिक यूएसए, ‘टी’ सीरीज और संसार की अन्य कम्पनियों के साथ मिलकर किया है।
[[Category:अभिनेत्री]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:पद्म श्री]][[Category:सिनेमा]][[Category:कला कोश]]
==संगीत के प्रति इनका लगाव==
__NOTOC__
पंडित देबू चौधरी को दुर्लभ संगीत और वाद्य यंत्रों पर आधारित रचनाओं का संग्रह करने में  विशेष लगाव है, जिसके परिणामस्वरुप इन्होने इस अनूठी परियोजना को प्रारंभ किया। पंडित जी का यह ड्रीम प्रोजेक्ट जब पूर्ण हो जाएगा तो यह भारतीय वाद्य संगीत के इतिहास में एक मील के पत्थर से कम नहीं होगा। इनकी अन्य उपलब्धियों में वर्ष 1984 में स्वीडन में 67 दिनों में 87 व्याख्यान हैं, जो 70 से अधिक कार्यक्रमों में दिए गए थे। विश्व स्तर पर आयोजित इन कार्यक्रमों में भारत सरकार ने इनको अपना पूर्ण सहयोग दिया था।
ये महान सितार वादकों के उस युग से सम्बन्ध रखते हैं, जिनमें प्रमुख हैं- उस्ताद विलायत खान, पंडित रवि शंकर और निखिल बनर्जी आदि, ये 17 फ्रेट के विशेषज्ञ हैं, जबकि अधिकांशतः सितार वादक 19 फ्रेट का सितार बजाते हैं।
==पुरस्कार एवं सम्मान==
इन्हें भारत सरकार की तरफ से ‘पद्मभूषण’ और ‘पद्मश्री’ जैसे प्रतिष्ठित सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से भी अलंकृत किया जा चुका है। भारतीय संगीत नाटक अकादमी द्वारा इन्हें संगीत के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए पुरस्कृत किया जा चुका है। इन्हें कुछ समय पूर्व एशिया के एकमात्र संगीत विश्वविद्यालय ‘इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय’ खैरागढ़ (छत्तीसगढ़) द्वारा डी. लिट. की उपाधि से नवाजा जा चुका है।
भारत सरकार के सार्वजनिक प्रसारण माध्यम ‘ऑल इंडिया रेडियो’ के 54वीं वर्षगांठ के अवसर पर वर्ष 2002 में देबू चौधरी के जीवन के इतिहास को प्रसारित किया गया।
हाल ही के वर्षों में इन्हें [[संगीत]] के क्षेत्र में आजीवन उपलब्धियों के लिए [[दिल्ली]], [[मुंबई]] और [[कोलकाता]] के विभिन्न सांस्कृतिक केन्द्रों द्वारा विशेष सम्मान समारोहों में कई ख्यातियों एवं उपाधियों से विभूषित किया गया है।

12:25, 12 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण

वर्तमान निवास स्थान: चितरंजन पार्क, नई दिल्ली (भारत)

कार्यक्षेत्र: सितार वादक और संगीत शिक्षक

जीवन परिचय

पंडित देवब्रत चौधरी (अंग्रेजी: Pandit Debu Chaudhary, जन्म: 1935, मायमेंसिंग, वर्तमान बांग्लादेश) को भारतीय संगीत के क्षेत्र में ‘देबू’ के नाम से भी जाना जाता है। पंडित देवब्रत (देबू) चौधरी भारत के प्रमुख सितार वादक, भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में एक ख्याति प्राप्त संगीतकार और दिल्ली विश्वविद्यालय में संगीत के शिक्षक रह चुके हैं। इन्होंने ‘सेनिआ संगीत घराना’ के श्री पंचू गोपाल दत्ता और संगीत आचार्य उस्ताद मुश्ताक अली खान से संगीत की शिक्षा ग्रहण की। इन्हें ‘पद्मभूषण’ और ‘पद्मश्री’ जैसे प्रतिष्ठित सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से भी अलंकृत किया जा चुका है।

ये संगीत से संबंधित कई पुस्तकों के लेखक, आठ नए संगीत रागों के जन्मदाता और बहुत से नए संगीत के धुनों के निर्माता भी हैं। इन्होंने वर्ष 1963 से देश-विदेश में बहुत से स्टेज शो, रेडियो और टीवी कार्यक्रमों में अपने संगीत की प्रस्तुति दी है। ये ‘सेनिया संगीत घराना’ मैहर (मध्य प्रदेश) के शास्त्रीय संगीत के ध्वज वाहक हैं। ये संगीत का शिक्षण कार्य करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के संगीत संकाय के डीन और विभागाध्यक्ष भी रह चुके हैं। इनकी संगीत के मधुर धुनों की एक अपनी अलग ही विशेषता है। इन्होंने बहुत से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त किए हैं। ये इस्कॉन मंदिर के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के आजीवन सदस्य भी हैं।

पारिवारिक जीवन

पंडित देवब्रत (चौधरी) का जन्म वर्ष 1935 में मायमेंसिंग (तत्कालीन भारत) वर्तमान बांग्लादेश में हुआ था। इन्होंने मात्र चार वर्ष की उम्र से ही सितार के साथ खेलना प्रारम्भ कर दिया था। उन्होंने अपने पहले सार्वजनिक संगीत कार्यक्रम का प्रदर्शन मात्र 12 वर्ष की अवस्था में ही कर दिया था। इनके संगीत के कार्यक्रम का आल इंडिया रेडिओ पर प्रथम प्रसारण 18 वर्ष की अवस्था में वर्ष 1953 में हुआ था। जीवन के 38 वर्ष बिताने के बाद इन्होंने सितार का प्रशिक्षण ‘सेनिआ घराने’ के महान संगीत आचार्य उस्ताद मुश्ताक अली खान से लेना प्रारम्भ किया। इन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा प्राप्त की। दिल्ली विश्वविद्यालय से अवकाश प्राप्त करने के बाद ये वर्तमान में अपने पुत्र, पुत्री, दामाद और भतीजा-भतिजिओं के साथ चितरंजन पार्क, नई दिल्ली में रहते हैं।

शिक्षण एवं प्रशिक्षण कार्य

इन्होंने वर्ष 1971 से वर्ष 1982 तक दिल्ली विश्वविद्यालय में संगीत विभाग के रीडर के रूप में अध्यापन का कार्य किया और वर्ष 1985 से वर्ष 1988 तक ये इसी विभाग में डीन और विभागाध्यक्ष भी रहे. इन्होंने महर्षि इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी (अब महर्षि यूनिवर्सिटी ऑफ मनेजमेंट), अमेरिका में भी वर्ष 1991 से वर्ष 1994 तक भारतीय शास्त्रीय संगीत को पाश्चात्य देशों में प्रचार-प्रसार में अपनी विशेष सेवाएं दी हैं.

दिल्ली विश्वविद्यालय से अवकाश ग्रहण के बाद इन्होंने एक विशेष संगीत प्रोजेक्ट पर कार्य करना प्रारम्भ किया, जो दुर्लभ संगीत वाद्य यंत्रों के द्वारा प्रस्तुत धुनों को परम्परागत ‘ध्रुपद’ और ‘ख्याल’ राग द्वारा नए राग में प्रस्तुत करने का है. यह प्रोजेक्ट आने वाली युवा पीढ़ी को संगीत के क्षेत्र में बहुत ही दुर्लभ अनुभव प्रदान करेगा.

संगीत पर आधारित नई धुनों, पुस्तकों और सीडी का निर्माण

इन्होंने आठ नए संगीत के रागों की रचना की है, ये राग हैं- बिस्वेस्वरी, पलास-सारंग, अनुरंजनी, आशिकी ललित, स्वनान्देस्वरी, कल्याणी बिलावल, शिवमंजरी और प्रभाती मंजरी (अपनी पत्नी मंजू की स्मृति में बनाया). इसके अतिरिक्त इन्होंने संगीत पर आधारित तीन पुस्तकों की भी रचना की है, ये हैं- ‘सितार एंड इट्स टेक्निक्स’, ‘म्यूजिक ऑफ इंडिया’ और ‘ऑन इंडियन म्यूजिक’. अपने अमेरिका प्रवास के दौरान इन्होंने ‘महर्षि गन्धर्व वेद’ नाम से 24 सीडी को 24 घंटों के संगीत के लिए रिकॉर्ड कराया। इन्होंने बहुत से एल्बम और कैसेट्स का भी निर्माण EMI, HMV, ABK (USA), टीवी सीरीज, रिदम हाउस, आर्काइव म्यूजिक यूएसए, ‘टी’ सीरीज और संसार की अन्य कम्पनियों के साथ मिलकर किया है।

संगीत के प्रति इनका लगाव

पंडित देबू चौधरी को दुर्लभ संगीत और वाद्य यंत्रों पर आधारित रचनाओं का संग्रह करने में विशेष लगाव है, जिसके परिणामस्वरुप इन्होने इस अनूठी परियोजना को प्रारंभ किया। पंडित जी का यह ड्रीम प्रोजेक्ट जब पूर्ण हो जाएगा तो यह भारतीय वाद्य संगीत के इतिहास में एक मील के पत्थर से कम नहीं होगा। इनकी अन्य उपलब्धियों में वर्ष 1984 में स्वीडन में 67 दिनों में 87 व्याख्यान हैं, जो 70 से अधिक कार्यक्रमों में दिए गए थे। विश्व स्तर पर आयोजित इन कार्यक्रमों में भारत सरकार ने इनको अपना पूर्ण सहयोग दिया था। ये महान सितार वादकों के उस युग से सम्बन्ध रखते हैं, जिनमें प्रमुख हैं- उस्ताद विलायत खान, पंडित रवि शंकर और निखिल बनर्जी आदि, ये 17 फ्रेट के विशेषज्ञ हैं, जबकि अधिकांशतः सितार वादक 19 फ्रेट का सितार बजाते हैं।

पुरस्कार एवं सम्मान

इन्हें भारत सरकार की तरफ से ‘पद्मभूषण’ और ‘पद्मश्री’ जैसे प्रतिष्ठित सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से भी अलंकृत किया जा चुका है। भारतीय संगीत नाटक अकादमी द्वारा इन्हें संगीत के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए पुरस्कृत किया जा चुका है। इन्हें कुछ समय पूर्व एशिया के एकमात्र संगीत विश्वविद्यालय ‘इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय’ खैरागढ़ (छत्तीसगढ़) द्वारा डी. लिट. की उपाधि से नवाजा जा चुका है। भारत सरकार के सार्वजनिक प्रसारण माध्यम ‘ऑल इंडिया रेडियो’ के 54वीं वर्षगांठ के अवसर पर वर्ष 2002 में देबू चौधरी के जीवन के इतिहास को प्रसारित किया गया। हाल ही के वर्षों में इन्हें संगीत के क्षेत्र में आजीवन उपलब्धियों के लिए दिल्ली, मुंबई और कोलकाता के विभिन्न सांस्कृतिक केन्द्रों द्वारा विशेष सम्मान समारोहों में कई ख्यातियों एवं उपाधियों से विभूषित किया गया है।