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प्रेम अदीब का झुकाव बचपन से ही फ़िल्मों की तरफ था। बोलते सिनेमा की शुरूआत हो चुकी थी। [[मुंबई]] के साथ-साथ [[कोलकाता]] और [[लाहौर]] भी फ़िल्म-निर्माण का केन्द्र बनकर उभर रहे थे। एक रोज़ प्रेम अदीब ने घर छोड़ा और फ़िल्मों में काम करने की तमन्ना लिए [[कोलकाता]] चले गए। लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद काम नहीं मिला तो लाहौर पहुँचे लेकिन वहाँ भी कामयाबी नहीं मिली तो आख़िर में वो मुंबई चले आए। <ref>{{cite web |url=http://beetehuedin.blogspot.in/2012/09/manzil-ki-dhun-me-jhoomte-prem-adib.html |title=प्रेम अदीब|accessmonthday=13 जून |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=beetehuedin.blogspot.in |language=हिन्दी }}</ref> | प्रेम अदीब का झुकाव बचपन से ही फ़िल्मों की तरफ था। बोलते सिनेमा की शुरूआत हो चुकी थी। [[मुंबई]] के साथ-साथ [[कोलकाता]] और [[लाहौर]] भी फ़िल्म-निर्माण का केन्द्र बनकर उभर रहे थे। एक रोज़ प्रेम अदीब ने घर छोड़ा और फ़िल्मों में काम करने की तमन्ना लिए [[कोलकाता]] चले गए। लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद काम नहीं मिला तो लाहौर पहुँचे लेकिन वहाँ भी कामयाबी नहीं मिली तो आख़िर में वो मुंबई चले आए। <ref>{{cite web |url=http://beetehuedin.blogspot.in/2012/09/manzil-ki-dhun-me-jhoomte-prem-adib.html |title=प्रेम अदीब|accessmonthday=13 जून |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=beetehuedin.blogspot.in |language=हिन्दी }}</ref> | ||
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प्रेम अदीब का परिचय
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पूरा नाम | प्रेम अदीब |
अन्य नाम | शिवप्रसाद, प्रेम नारायण |
जन्म | 10 अगस्त, 1916 |
जन्म भूमि | सुल्तानपुर |
मृत्यु | 25 दिसम्बर, 1959 |
मृत्यु स्थान | मुम्बई |
अभिभावक | रामप्रसाद दर |
पति/पत्नी | प्रतिमा अदीब |
कर्म भूमि | मुम्बई |
कर्म-क्षेत्र | अभिनेता |
मुख्य फ़िल्में | ‘वीरांगना’ (1947), ‘एक्ट्रेस’, ‘अनोखी अदा’, ‘रामबाण’ (1948), ‘भोली’, ‘हमारी मंज़िल’, ‘राम विवाह’ (1949) आदि। |
पुरस्कार-उपाधि | प्रेम अदीब को उर्दू के ‘अदब’ लफ़्ज़ से बनी ‘अदीब’ की उपाधि से नवाब वाजिद अली शाह द्वारा नवाज़ा गया था। |
अन्य जानकारी | प्रेम अदीब को उनके असली नाम शिवप्रसाद की जगह फ़िल्मी नाम ‘प्रेम’, मोहन सिन्हा ने ही दिया था। |
अद्यतन | 05:44, 13 जून 2017 (IST) |
प्रेम अदीब भारतीय सिनेमा के परदे पर राम की भूमिका में नज़र आने वाले अभिनेता थे, जिनका नाम उस दौर के फ़िल्म प्रेमियों के ज़हन में आज भी ताज़ा है। 1930 के दशक के मध्य में सामाजिक फ़िल्मों से अपना करियर शुरू करने वाले अभिनेता प्रेम अदीब 1940 के दशक में धार्मिक फ़िल्मों का एक मशहूर नाम बन चुके थें।
परिचय
प्रेम अदीब का जन्म 10 अगस्त, 1916 को सुल्तानपुर में हुआ था। कश्मीरी मूल के प्रेम अदीब के दादा-परदादा अवध के नवाब वाजिद अली शाह के ज़माने में कश्मीर छोड़कर अवध के शहर फ़ैज़ाबाद (अब उत्तरप्रदेश) में आ बसे थे। उनके दादा का नाम देवीप्रसाद दर था। प्रेम अदीब के पिता रामप्रसाद दर फ़ैज़ाबाद से सुल्तानपुर चले आए थे और यही पर प्रेम अदीब का जन्म हुआ। इनका नाम ‘शिवप्रसाद’ रखा गया। इनके पिता वकालत करते थे। प्रेम अदीब की प्रारंभिक शिक्षा सुल्तानपुर व जोधपुर में हुई, लेकिन इनकी रूचि अभिनय करने की थी। अदीब को उनके असली नाम शिवप्रसाद की जगह फ़िल्मी नाम ‘प्रेम’, मोहन सिन्हा ने ही दिया था।
प्रेम अदीब का झुकाव बचपन से ही फ़िल्मों की तरफ था। बोलते सिनेमा की शुरूआत हो चुकी थी। मुंबई के साथ-साथ कोलकाता और लाहौर भी फ़िल्म-निर्माण का केन्द्र बनकर उभर रहे थे। एक रोज़ प्रेम अदीब ने घर छोड़ा और फ़िल्मों में काम करने की तमन्ना लिए कोलकाता चले गए। लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद काम नहीं मिला तो लाहौर पहुँचे लेकिन वहाँ भी कामयाबी नहीं मिली तो आख़िर में वो मुंबई चले आए। [1]
- विवाह
26 फरवरी, 1943 को प्रेम अदीब की शादी हुई। इनकी पत्नी का नाम प्रतिमा अदीब था। दामिनी और दामाद शैलेन सोहोनी इनकी संतानें थी।
उपाधि
प्रेम अदीब की पत्नी प्रतिमा अदीब के अनुसार, उर्दू के ‘अदब’ लफ़्ज़ से बनी ‘अदीब’ की उपाधि से नवाब वाजिद अली शाह द्वारा नवाज़े जाने के बाद ‘दर’ परिवार को ‘अदीब’ के नाम से जाना जाने लगा था।
गांधी द्वारा देखी गयी पहली फ़िल्म
1943 में इनकी सबसे लोकप्रिय फिल्म ‘रामराज्य’ बनी जिसने देश भर में दर्शकों का दिल जीत लिया और इन्हें विशेष ख्याति दिलाई। महात्मा गांधी ने भी यह फ़िल्म देखी। इस फ़िल्म ने 101 सप्ताह से भी अधिक चलने का कीर्तिमान हासिल किया था। ये पहली भारतीय फ़िल्म थी जो अमरीका में भी दिखाई गई थी। इस फ़िल्म में स्पेशल इफ़ेक्टस इस्तेमाल हुए थे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ प्रेम अदीब (हिन्दी) beetehuedin.blogspot.in। अभिगमन तिथि: 13 जून, 2017।
बाहरी कड़ियाँ