"ताज बेगम": अवतरणों में अंतर
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'''ताज बेगम''' प्रसिद्ध [[मुग़ल]] बादशाह [[औरंगज़ेब]] की भतीजी थी। औरंगज़ेब की पुत्री [[जेबुन्निसा|जैबुन्निसा बेगम]] और ताज बेगम ने 'कृष्ण-भक्ति' की दीक्षा ले ली थी। | '''ताज बेगम''' प्रसिद्ध [[मुग़ल]] बादशाह [[औरंगज़ेब]] की भतीजी थी। औरंगज़ेब की पुत्री [[जेबुन्निसा|जैबुन्निसा बेगम]] और भतीजी ताज बेगम ने 'कृष्ण-भक्ति' की दीक्षा ले ली थी। | ||
==कृष्ण भक्त== | |||
ताज़ बेगम के कृष्ण-भक्ति के पदों ने तो [[मुस्लिम]] समाज को सोचने पर विवश कर दिया था, जिसके कारण [[मुग़ल साम्राज्य|मुग़लिया सल्तनत]] में हलचल मच गई। ताज़ बेगम जिस तरह से कृष्ण-भक्ति के पद गाती थीं, उससे कट्टर मुस्लिमों को बहुत कष्ट होता था। [[औरंगज़ेब]] की भतीजी ताज बेगम का एक प्रसिद्ध पद निम्नलिखित है- | |||
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बड़ा चित्त का अड़ीला, कहूं देवतों से | बड़ा चित्त का अड़ीला, कहूं देवतों से | ||
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गुननि गहूंगी मैं।। | गुननि गहूंगी मैं।। | ||
नन्द के कुमार, कुरबान तेरी सुरत पै, | नन्द के कुमार, कुरबान तेरी सुरत पै, | ||
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==ब्रजयात्रा== | |||
कहीं-कहीं ताज बेगम को [[अकबर]] की पत्नी बताया गया है और उसे 'ताज बीबी' के नाम से सम्बोधित किया गया है। | |||
इनके विषय में [[कथा]] है कि एक बार ताज बीबी काबा शरीफ की यात्रा पर चल पड़ीं। मार्ग में एक पड़ाव [[ब्रज]] में पड़ा। घंटे घड़ियालों की अवाज सुनकर ताज बीबी ने लोगों से पूछा कि यह क्या है। [[दीवान]] ने कहा यहां कुछ लोगों का छोटा खुदा रहता है। ताज ने आग्रह किया कि वह छोटा खुदा से मिलकर ही आगे चलेंगी, किन्तु मंदिर में प्रवेश करना चाहा तो पंडों ने उन्हें रोक दिया। इस पर ताज वहीं बैठकर गाने लगीं। कहते हैं ताज की भक्ति से प्रसन्न होकर [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] ने इन्हें साक्षात दर्शन देकर कृतार्थ किया। ताज बीबी गोस्वामी विट्ठलनाथ जी की सेविका बन गईं। उन्होंने कृष्ण की भक्ति में [[कविता|कविताएं]], [[छंद]] और [[धमार]] लिखे जो आज भी पुष्टिमार्गीय मंदिरों में गाए जाते हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.krantidoot.in/2015/02/krishn-bhakt-tajbibi.html |title=एक थीं कृष्ण दीवानी ताज बीबी!|accessmonthday= 19 दिसम्बर|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=krantidoot.in |language=हिंदी }}</ref> | |||
मौलवियों ने जब ताज बीबी को शरअ की दुहाई दी तो उन्होंने उत्तर दिया- | |||
<blockquote><poem>अब शरअ नहीं मेरे कुछ काम की, श्याम मेरे हैं, मैं मेरे श्याम की। | |||
बृज में अब धूनी रमा ली जायेगी, जब लगन हरि से लगा ली जायेगी।</poem></blockquote> | |||
और आगे वे कहती हैं- | |||
<blockquote><poem>अल्ला बिस्मिल्ला रहमान औ रहीमी छोड़, | |||
पुर वो शहीदों की चर्चा चलाऊँगी। | |||
सूथना उतार, पहन घाघरा घुमावदार, | |||
फ़रिया को फार शीश चुनरी चढ़ाऊंगी॥ | |||
कहत है ताज कृष्ण सों पैजकर, | |||
वृन्दावन छोड़ अब कितहूँ न जाउंगी। | |||
बांदी बनूंगी महारानी राधा जू की, | |||
तुर्कनी बहाय नाम गोपिका कहाउंगी॥</poem></blockquote> | |||
सारे पुरुषार्थों के सार, प्रेम मूर्ति आनंदघन नन्द के फरजंद को पाकर अलमस्ती और बेफिक्री से सराबोर हो गई थीं ताज बीबी। वे बार-बार अपने विरोधियों से कहती हैं- | |||
<blockquote><poem>क्यों सताते हो मुझे पछताओगे। | |||
दिलजलों की आह से जल जाओगे॥</poem></blockquote> | |||
==समाधि== | |||
ताज बीबी के ललित छंद की जितनी भी व्याख्या की जाये, वह अधूरी ही होगी। [[अकबर]] की हिन्दू पत्नी जोधाबाई को तो बहुत लोग जानते हैं, किन्तु उनकी यह मुस्लिम पत्नी भी भगवान कृष्ण की भक्ति में तल्लीन हुईं। अकबर की इस पत्नी का नाम ताज बीबी था। इनकी समाधि आज भी [[ब्रज|ब्रजभूमि]] की रमनरेती से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर मौजूद है और कृष्ण भक्ति की गाथा कह रही है। पुरातत्व विभाग की उपेक्षाओं के कारण ताज बीबी का समाधि स्थल आज विराने में कांटों के वन से घिरा हुआ गुमनाम पड़ा है। | |||
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==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== |
12:05, 19 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण
ताज बेगम प्रसिद्ध मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब की भतीजी थी। औरंगज़ेब की पुत्री जैबुन्निसा बेगम और भतीजी ताज बेगम ने 'कृष्ण-भक्ति' की दीक्षा ले ली थी।
कृष्ण भक्त
ताज़ बेगम के कृष्ण-भक्ति के पदों ने तो मुस्लिम समाज को सोचने पर विवश कर दिया था, जिसके कारण मुग़लिया सल्तनत में हलचल मच गई। ताज़ बेगम जिस तरह से कृष्ण-भक्ति के पद गाती थीं, उससे कट्टर मुस्लिमों को बहुत कष्ट होता था। औरंगज़ेब की भतीजी ताज बेगम का एक प्रसिद्ध पद निम्नलिखित है-
छैल जो छबीला, सब रंग में रंगीला
बड़ा चित्त का अड़ीला, कहूं देवतों से
न्यारा है।
माल गले सोहै, नाक-मोती सेत जो है
कान,
कुण्डल मन मोहै, लाल मुकुट सिर
धारा है।
दुष्टजन मारे, सब संत जो उबारे ताज,
चित्त में निहारे प्रन, प्रीति करन
वारा है।
नन्दजू का प्यारा, जिन कंस
को पछारा,
वह वृन्दावन वारा, कृष्ण साहेब
हमारा है।।
सुनो दिल जानी, मेरे दिल
की कहानी तुम,
दस्त ही बिकानी,
बदनामी भी सहूंगी मैं।
देवपूजा ठानी मैं, नमाज हूं भुलानी,
तजे कलमा-क़ुरआन साड़े
गुननि गहूंगी मैं।।
नन्द के कुमार, कुरबान तेरी सुरत पै,
हूं तो मुग़लानी, हिंदुआनी बन
रहूंगी मैं।।
ब्रजयात्रा
कहीं-कहीं ताज बेगम को अकबर की पत्नी बताया गया है और उसे 'ताज बीबी' के नाम से सम्बोधित किया गया है।
इनके विषय में कथा है कि एक बार ताज बीबी काबा शरीफ की यात्रा पर चल पड़ीं। मार्ग में एक पड़ाव ब्रज में पड़ा। घंटे घड़ियालों की अवाज सुनकर ताज बीबी ने लोगों से पूछा कि यह क्या है। दीवान ने कहा यहां कुछ लोगों का छोटा खुदा रहता है। ताज ने आग्रह किया कि वह छोटा खुदा से मिलकर ही आगे चलेंगी, किन्तु मंदिर में प्रवेश करना चाहा तो पंडों ने उन्हें रोक दिया। इस पर ताज वहीं बैठकर गाने लगीं। कहते हैं ताज की भक्ति से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने इन्हें साक्षात दर्शन देकर कृतार्थ किया। ताज बीबी गोस्वामी विट्ठलनाथ जी की सेविका बन गईं। उन्होंने कृष्ण की भक्ति में कविताएं, छंद और धमार लिखे जो आज भी पुष्टिमार्गीय मंदिरों में गाए जाते हैं।[1]
मौलवियों ने जब ताज बीबी को शरअ की दुहाई दी तो उन्होंने उत्तर दिया-
अब शरअ नहीं मेरे कुछ काम की, श्याम मेरे हैं, मैं मेरे श्याम की।
बृज में अब धूनी रमा ली जायेगी, जब लगन हरि से लगा ली जायेगी।
और आगे वे कहती हैं-
अल्ला बिस्मिल्ला रहमान औ रहीमी छोड़,
पुर वो शहीदों की चर्चा चलाऊँगी।
सूथना उतार, पहन घाघरा घुमावदार,
फ़रिया को फार शीश चुनरी चढ़ाऊंगी॥
कहत है ताज कृष्ण सों पैजकर,
वृन्दावन छोड़ अब कितहूँ न जाउंगी।
बांदी बनूंगी महारानी राधा जू की,
तुर्कनी बहाय नाम गोपिका कहाउंगी॥
सारे पुरुषार्थों के सार, प्रेम मूर्ति आनंदघन नन्द के फरजंद को पाकर अलमस्ती और बेफिक्री से सराबोर हो गई थीं ताज बीबी। वे बार-बार अपने विरोधियों से कहती हैं-
क्यों सताते हो मुझे पछताओगे।
दिलजलों की आह से जल जाओगे॥
समाधि
ताज बीबी के ललित छंद की जितनी भी व्याख्या की जाये, वह अधूरी ही होगी। अकबर की हिन्दू पत्नी जोधाबाई को तो बहुत लोग जानते हैं, किन्तु उनकी यह मुस्लिम पत्नी भी भगवान कृष्ण की भक्ति में तल्लीन हुईं। अकबर की इस पत्नी का नाम ताज बीबी था। इनकी समाधि आज भी ब्रजभूमि की रमनरेती से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर मौजूद है और कृष्ण भक्ति की गाथा कह रही है। पुरातत्व विभाग की उपेक्षाओं के कारण ताज बीबी का समाधि स्थल आज विराने में कांटों के वन से घिरा हुआ गुमनाम पड़ा है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ एक थीं कृष्ण दीवानी ताज बीबी! (हिंदी) krantidoot.in। अभिगमन तिथि: 19 दिसम्बर, 2017।