"बसन्त बहार (1956 फ़िल्म)": अवतरणों में अंतर
कविता भाटिया (वार्ता | योगदान) No edit summary |
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 52: | पंक्ति 52: | ||
[[Category:कला कोश]] | [[Category:कला कोश]] | ||
[[Category:1956]] | [[Category:1956]] | ||
[[Category:सिनेमा कोश]] | [[Category:सिनेमा कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
14:00, 7 मार्च 2018 के समय का अवतरण
बसन्त बहार (1956 फ़िल्म)
| |
निर्देशक | राजा नवाथे |
कलाकार | भारत भूषण, निम्मी, कुमकुम, मनमोहन कृष्णा |
संगीत | शंकर-जयकिशन |
गायक | भीमसेन जोशी और मन्ना डे |
प्रसिद्ध गीत | ‘केतकी गुलाब जुही चम्पक बन फूले' |
प्रदर्शन तिथि | 1956 |
भाषा | हिंदी |
अन्य जानकारी | फ़िल्म 'बसन्त बहार' में मन्ना डे के गाये गीत 'मील के पत्थर' सिद्ध हुए। |
बसन्त बहार (अंग्रेज़ी: Basant Bahar) वर्ष 1956 में प्रदर्शित संगीत-प्रधान फ़िल्म थी। जिसके संगीतकार शंकर-जयकिशन थे। राग आधारित गीतों की रचना फ़िल्म के कथानक की माँग भी थी और उस दौर में इस संगीतकार जोड़ी के लिए चुनौती भी। शंकर-जयकिशन ने शास्त्रीय संगीत के दो दिग्गजों- पण्डित भीमसेन जोशी और सारंगी के सरताज पण्डित रामनारायण को यह ज़िम्मेदारी सौंपी। पण्डित भीमसेन जोशी ने फ़िल्म के गीतकार शैलेन्द्र को राग बसन्त की एक पारम्परिक बन्दिश गाकर सुनाई और शैलेन्द्र ने 12 मात्रा के ताल पर शब्द रचे।
विवरण
पण्डित जी के साथ पार्श्वगायक मन्ना डे को भी गाना था। मन्ना डे ने जब यह सुना तो पहले उन्होने मना किया, लेकिन बाद में राजी हुए। इस प्रकार भारतीय फ़िल्म संगीत के इतिहास में एक अविस्मरणीय गीत दर्ज़ हुआ। शंकर जयकिशन के संगीत निर्देशन में फ़िल्म के शीर्षक के अनुरूप यह गीत राग 'बसन्त बहार' पर आधारित है। गीतकार शैलेन्द्र की यह रचना है। इस फ़िल्म में उस समय के सर्वाधिक चर्चित और सफल अभिनेता भारतभूषण नायक थे और निर्माता थे आर. चन्द्रा। संगीतकार शंकर-जयकिशन ने फ़िल्म के अधिकतर गीत शास्त्रीय रागों पर आधारित रखे थे। इससे पूर्व भारतभूषण की कई फ़िल्मों में मोहम्मद रफ़ी उनके लिए सफल गायन कर चुके थे। शशि भारतभूषण के भाई शशिभूषण इस फ़िल्म में मोहम्मद रफ़ी को ही लेने का आग्रह कर रहे थे, जबकि फ़िल्म निर्देशक मयप्पन मुकेश से गवाना चाहते थे। यह बात जब शंकर जी को मालूम हुआ तो उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि राग आधारित इन गीतों को मन्ना डे के अलावा और कोई गा ही नहीं सकता। यह विवाद इतना बढ़ गया कि शंकर-जयकिशन को इस फ़िल्म से हटने की धमकी तक देनी पड़ी। अन्ततः मन्ना डे के नाम पर सहमति बनी। फ़िल्म 'बसन्त बहार' में मन्ना डे के गाये गीत 'मील के पत्थर' सिद्ध हुए। इस फ़िल्म का एक गीत ‘केतकी गुलाब जुही चम्पक बन फूले...’। यह गीत पण्डित भीमसेन जोशी और मन्ना डे की आवाज में है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख