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जन्म: 26 जुलाई 1925, कपद्वंज, खेड़ा, गुजरात
वर्तमान निवास स्थान: चितरंजन पार्क, नई दिल्ली (भारत)


मृत्यु: 2 जुलाई 2009, मुंबई
कार्यक्षेत्र: सितार वादक और संगीत शिक्षक


कार्यक्षेत्र: चित्रकारी
'''तैयब मेहता''' ([[अंग्रेजी]]: Tyeb Mehta, जन्म: [[26 जुलाई]], [[1925]], [[गुजरात]], ज़िला खेड़ा) एक जाने-माने भारतीय [[चित्रकार]] थे। वे प्रसिद्ध ‘बॉम्बे प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुप’ के सदस्य थे। इस समूह में एफ.एन. सौज़ा, [[एस.एच. रजा]] और [[एम.एफ. हुसैन]] जैसे महान कलाकार भी शामिल थे। वे स्वतंत्रता के बाद की पीढ़ी के उन चित्रकारों में से थे जो राष्ट्रवादी बंगाल स्कूल ऑफ़ आर्ट के परंपरा से हटकर एक आधुनिक विधा में कार्य करना चाहते थे।
उनके जीवन के अंतिम दशक में उनकी बनायीं हुई पेंटिंग्स रिकॉर्ड कीमतों पर बिकीं जिसमें उनके मृत्यु के बाद बिकी एक पेंटिंग भी शामिल है जो [[दिसम्बर]] [[2014]] में 17 करोड़ रुपये से ज्यादा कीमत पर बेची गयी। इससे पहले भी मेहता की एक पेंटिंग ‘गर्ल इन लव’ लगभग 4.5 करोड़ रुपये में बिकी थी। सन [[2002]] में उनकी एक पेंटिंग ‘सेलिब्रेशन’ लगभग 1.5 करोड़ रुपये में बिकी थी जो अन्तराष्ट्रीय स्तर पर उस समय तक की सबसे महंगी भारतीय पेंटिंग थी।
आज भारतीय कला में सारी दुनिया की दिलचस्पी है और इस दिलचस्पी का एक बड़ा श्रेय तैयब मेहता को भी जाता है। जब क्रिस्टी जैसी कलादीर्घा ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनकी कृतियों की नीलामी की तो [[भारतीय कला]] के लिए ये एक बड़ी बात थी। समकालीन भारतीय कला इतिहास में तैयब मेहता ही अकेले पेंटर थे जिनका काम इतने कीमतों में बिका।
==जीवन परिचय==
==जीवन परिचय==
तैयब मेहता का जन्म [[26 जुलाई]] [[1925]] को [[गुजरात]] के खेड़ा जिले में हुआ था। उनका पालन-पोषण [[मुंबई]] के क्रावफोर्ड मार्केट में दावूदी बोहरा समुदाय में हुआ था। सन 1947 में उन्होंने विभाजन के बाद हुए दंगों में [[मुंबई]] के मोहम्मद अली रोड पर एक व्यक्ति को पत्थर से मारे जाने की हृदय विदारक घटना देखी थी। इस घटना ने उनको इतना प्रभावित किया कि उनके कामों में इसकी झलक कहीं न कहीं हमें दिख ही जाती है।
'''पंडित देवब्रत चौधरी''' ([[अंग्रेजी]]: Pandit Debu Chaudhary, जन्म: 1935, मायमेंसिंग, वर्तमान बांग्लादेश) को भारतीय [[संगीत]] के क्षेत्र में ‘देबू’ के नाम से भी जाना जाता है। पंडित देवब्रत (देबू) चौधरी [[भारत]] के प्रमुख सितार वादक, [[भारतीय शास्त्रीय संगीत]] के क्षेत्र में एक ख्याति प्राप्त [[संगीतकार]] और [[दिल्ली विश्वविद्यालय]] में संगीत के शिक्षक रह चुके हैं। इन्होंने ‘सेनिआ संगीत घराना’ के श्री पंचू गोपाल दत्ता और संगीत आचार्य उस्ताद मुश्ताक अली खान से संगीत की शिक्षा ग्रहण की। इन्हें ‘[[पद्मभूषण]]’ और ‘[[पद्मश्री]]’ जैसे प्रतिष्ठित सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से भी अलंकृत किया जा चुका है।


तैयब मेहता ने प्रारंभ में कुछ समय के लिए मुंबई स्थित एक नामी फिल्म स्टूडियो ‘फेमस स्टूडियोज’ के लैब में फिल्म एडिटर का कार्य किया। बाद में उन्होंने [[मुंबई]] के सर जे.जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट्स में दाखिला लिया और सन [[1952]] में यहाँ से डिप्लोमा ग्रहण किया। इसके बाद वे ‘बॉम्बे प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुप’ के सदस्य बन गए। यह ग्रुप पश्चिम के आधुनिकतावादी शैली से प्रभावित था और तैयब के साथ-साथ उसमें एफ.एन. सौज़ा, [[एस.एच. रजा]] और [[एम.एफ. हुसैन]] जैसे महान कलाकार भी शामिल थे।
ये संगीत से संबंधित कई पुस्तकों के लेखक, आठ नए संगीत रागों के जन्मदाता और बहुत से नए संगीत के धुनों के निर्माता भी हैं। इन्होंने वर्ष [[1963]] से देश-विदेश में बहुत से स्टेज शो, रेडियो और टीवी कार्यक्रमों में अपने संगीत की प्रस्तुति दी है। ये ‘सेनिया संगीत घराना’ मैहर (मध्य प्रदेश) के शास्त्रीय संगीत के ध्वज वाहक हैं। ये संगीत का शिक्षण कार्य करते हुए [[दिल्ली विश्वविद्यालय]] के संगीत संकाय के डीन और विभागाध्यक्ष भी रह चुके हैं। इनकी संगीत के मधुर धुनों की एक अपनी अलग ही विशेषता है। इन्होंने बहुत से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त किए हैं। ये इस्कॉन मंदिर के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के आजीवन सदस्य भी हैं।
==कॅरियर==
==पारिवारिक जीवन==
सन [[1959]] में तैयब लन्दन चले गए और [[1964]] तक वहीँ रहकर कार्य किया। सन [[1968]] में जब उन्हें जॉन डी रॉकफेलर फ़ेलोशिप मिल गयी तब वे न्यू यॉर्क चले गए। लन्दन प्रवास के दौरान उनकी कला फ़्रन्कोइस बेकन जैसे कलाकारों से प्रभावित हुई जबकि न्यू यॉर्क प्रवास के दौरान उनकी चित्रकारी में अतिसूक्ष्म्वाद देखने को मिला। उन्होंने बॉम्बे के बांद्रा स्थित बूचड़खाने में ‘कूदाल’ नाम की एक शार्ट फिल्म भी बनाई जिसे सन [[1970]] में फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवार्ड मिला।
पंडित देवब्रत (चौधरी) का जन्म वर्ष [[1935]] में मायमेंसिंग (तत्कालीन भारत) वर्तमान [[बांग्लादेश]] में हुआ था। इन्होंने मात्र चार वर्ष की उम्र से ही सितार के साथ खेलना प्रारम्भ कर दिया था। उन्होंने अपने पहले सार्वजनिक संगीत कार्यक्रम का प्रदर्शन मात्र 12 वर्ष की अवस्था में ही कर दिया था। इनके संगीत के कार्यक्रम का आल इंडिया रेडिओ पर प्रथम प्रसारण 18 वर्ष की अवस्था में वर्ष [[1953]] में हुआ था।
जीवन के 38 वर्ष बिताने के बाद इन्होंने सितार का प्रशिक्षण ‘सेनिआ घराने’ के महान संगीत आचार्य उस्ताद मुश्ताक अली खान से लेना प्रारम्भ किया। इन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा प्राप्त की।
[[दिल्ली विश्वविद्यालय]] से अवकाश प्राप्त करने के बाद ये वर्तमान में अपने पुत्र, पुत्री, दामाद और भतीजा-भतिजिओं के साथ चितरंजन पार्क, नई दिल्ली में रहते हैं।
==शिक्षण एवं प्रशिक्षण कार्य==
इन्होंने वर्ष [[1971]] से वर्ष [[1982]] तक [[दिल्ली विश्वविद्यालय]] में [[संगीत]] विभाग के रीडर के रूप में अध्यापन का कार्य किया और वर्ष 1985 से वर्ष 1988 तक ये इसी विभाग में डीन और विभागाध्यक्ष भी रहे. इन्होंने महर्षि इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी (अब महर्षि यूनिवर्सिटी ऑफ मनेजमेंट), अमेरिका में भी वर्ष 1991 से वर्ष 1994 तक भारतीय शास्त्रीय संगीत को पाश्चात्य देशों में प्रचार-प्रसार में अपनी विशेष सेवाएं दी हैं.


सन 1984-85 के दौरान वे शान्तिनिकेतन में भी रहे जिसके बाद उनकी चित्रकारी में महत्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिला। इस दौरान उनके चित्रों की विषय-वस्तु ‘बंधे हुए सांड’ और ‘रिक्शापुलर्स’ थे। इसके बाद उन्होंने 1970 के दशक में ‘डायगनल’ श्रृंखला के चित्र बनाये। उन्होंने अंग विच्छेद वाली और गिरती आकृतियों का प्रयोग 70 के दशक में शुरू किया जो कला की दुनिया को उनका महत्वपूर्ण योगदान है।
[[दिल्ली विश्वविद्यालय]] से अवकाश ग्रहण के बाद इन्होंने एक विशेष [[संगीत]] प्रोजेक्ट पर कार्य करना प्रारम्भ किया, जो दुर्लभ संगीत वाद्य यंत्रों के द्वारा प्रस्तुत धुनों को परम्परागत ‘ध्रुपद’ और ‘ख्याल’ राग द्वारा नए राग में प्रस्तुत करने का है. यह प्रोजेक्ट आने वाली युवा पीढ़ी को [[संगीत]] के क्षेत्र में बहुत ही दुर्लभ अनुभव प्रदान करेगा.
सन [[2002]] में क्रिस्टी की नीलामी में जब उनकी एक पेंटिंग ‘सेलिब्रेशन’ लगभग 1.5 करोड़ रुपये में बिकी तब उस समय किसी भी भारतीय चित्रकार की यह सबसे महंगी पेंटिंग थी। सन [[2005]] में भारतीय कलादीर्घा ‘सैफ्रनआर्ट’ ने ऑनलाइन नीलामी में उनकी एक पेंटिंग ‘काली’ को 1 करोड़ रुपये में बेचा। जून [[2008]] में क्रिस्टी ने एक नीलामी में उनकी एक पेंटिंग को 20 लाख अमेरिकी डॉलर में बेचा। सन 2005 में उनकी एक पेंटिंग ‘जेस्चर’ 3.1 करोड़ रुपये में एक भारतीय रंजित मलकानी ने खरीदी। उस समय यह किसी भी भारतीय द्वारा किसी भी भारतीय समकालीन कला के नमूने को खरीदने के लिए सबसे ज्यादा रकम थी।
तैयब मेहता पहले ऐसे भारतीय समकालीन [[चित्रकार]] थे जिनकी पेंटिंग्स 10 लाख डॉलर या उससे अधिक कीमत में बेची गयीं। यह ऐसा समय था जिसके बाद पूरी दुनिया के कला प्रशंसक भारतीय कला और चित्रकारी में गहरी दिलचस्पी लेने लगे।
तैयब मेहता के करीबी कहते हैं कि वे अपनी [[कला]] के प्रति इतने समर्पित थे कि पूर्ण रूप से संतुष्ट न होने तक अपनी पेंटिंग्स को कला दीर्घाओं में भेजने से कतराते थे। उनके अन्दर सृजनात्मकता की एक जिद थी जिसकी ख़ातिर उन्होंने कई कैनवस नष्ट कर दिए। वे मानते थे कि किसी भी कला को सार्वजनिक होने से पहले कलाकार को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए की उसमें कोई खोट नहीं रह गया हो।
==व्यक्तिगत जीवन==
तैयब मेहता का विवाह सकीना से हुआ था। उन्होंने अपने जीवन का ज्यादातर समय [[मुंबई]] में बिताया। मुंबई के अलावा वे [[लन्दन]], न्यू यॉर्क और [[शान्तिनिकेतन]] में भी रहे।
उनका निधन [[2 जुलाई]] [[2009]] को ह्रदय गति रुक जाने के कारण मुंबई के एक अस्पताल में हुआ। वे अपने पीछे अपनी पत्नी, एक पुत्र (युसूफ) और पुत्री (हिमानी) छोड़ गए।


==पुरस्कार और सम्मान==
==संगीत पर आधारित नई धुनों, पुस्तकों और सीडी का निर्माण==
*सन [[1968]] में उन्हें ‘<ref>जॉन डी रॉकफेलर फ़ेलोशिप</ref>’ प्रदान की गयी।
इन्होंने आठ नए संगीत के रागों की रचना की है, ये राग हैं- बिस्वेस्वरी, पलास-सारंग, अनुरंजनी, आशिकी ललित, स्वनान्देस्वरी, कल्याणी बिलावल, शिवमंजरी और प्रभाती मंजरी (अपनी पत्नी मंजू की स्मृति में बनाया). इसके अतिरिक्त इन्होंने संगीत पर आधारित तीन पुस्तकों की भी रचना की है, ये हैं- ‘सितार एंड इट्स टेक्निक्स’, ‘म्यूजिक ऑफ इंडिया’ और ‘ऑन इंडियन म्यूजिक’. अपने अमेरिका प्रवास के दौरान इन्होंने ‘महर्षि गन्धर्व वेद’ नाम से  24 सीडी को 24 घंटों के संगीत के लिए रिकॉर्ड कराया।
*सन [[1968]] में ही [[दिल्ली]] में पेंटिंग के लिए एक स्वर्ण पदक प्रदान किया गया।
इन्होंने बहुत से एल्बम और कैसेट्स का भी निर्माण EMI, HMV, ABK (USA), टीवी सीरीज, रिदम हाउस, आर्काइव म्यूजिक यूएसए, ‘टी’ सीरीज और संसार की अन्य कम्पनियों के साथ मिलकर किया है।
*सन [[1974]] में फ्रांस में आयोजित ‘<ref>इंटरनेशनल फेस्टिवल ऑफ़ पेंटिंग</ref>’ में उन्हें स्वर्ण पदक प्रदान किया गया।
==संगीत के प्रति इनका लगाव==
*सन [[1988]] में मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें ‘<ref>[[कालिदास सम्मान]]</ref>’ से नवाजा।
पंडित देबू चौधरी को दुर्लभ संगीत और वाद्य यंत्रों पर आधारित रचनाओं का संग्रह करने में विशेष लगाव है, जिसके परिणामस्वरुप इन्होने इस अनूठी परियोजना को प्रारंभ किया। पंडित जी का यह ड्रीम प्रोजेक्ट जब पूर्ण हो जाएगा तो यह भारतीय वाद्य संगीत के इतिहास में एक मील के पत्थर से कम नहीं होगा। इनकी अन्य उपलब्धियों में वर्ष 1984 में स्वीडन में 67 दिनों में 87 व्याख्यान हैं, जो 70 से अधिक कार्यक्रमों में दिए गए थे। विश्व स्तर पर आयोजित इन कार्यक्रमों में भारत सरकार ने इनको अपना पूर्ण सहयोग दिया था।
*सन [[2005]] में उन्हें कला, संस्कृति और शिक्षा के लिए दयावती मोदी फाउंडेशन पुरस्कार दिया गया।
ये महान सितार वादकों के उस युग से सम्बन्ध रखते हैं, जिनमें प्रमुख हैं- उस्ताद विलायत खान, पंडित रवि शंकर और निखिल बनर्जी आदि, ये 17 फ्रेट के विशेषज्ञ हैं, जबकि अधिकांशतः सितार वादक 19 फ्रेट का सितार बजाते हैं।
*सन [[2007]] में [[भारत सरकार]] ने उन्हें [[पद्म भूषण]] से सम्मानित किया।
==पुरस्कार एवं सम्मान==
*उनकी शार्ट फिल्म ‘कूदाल’ को सन [[1970]] में फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवार्ड दिया गया।
इन्हें भारत सरकार की तरफ से ‘पद्मभूषण’ और ‘पद्मश्री’ जैसे प्रतिष्ठित सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से भी अलंकृत किया जा चुका है। भारतीय संगीत नाटक अकादमी द्वारा इन्हें संगीत के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए पुरस्कृत किया जा चुका है। इन्हें कुछ समय पूर्व एशिया के एकमात्र संगीत विश्वविद्यालय ‘इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय’ खैरागढ़ (छत्तीसगढ़) द्वारा डी. लिट. की उपाधि से नवाजा जा चुका है।
भारत सरकार के सार्वजनिक प्रसारण माध्यम ‘ऑल इंडिया रेडियो’ के 54वीं वर्षगांठ के अवसर पर वर्ष 2002 में देबू चौधरी के जीवन के इतिहास को प्रसारित किया गया।
हाल ही के वर्षों में इन्हें [[संगीत]] के क्षेत्र में आजीवन उपलब्धियों के लिए [[दिल्ली]], [[मुंबई]] और [[कोलकाता]] के विभिन्न सांस्कृतिक केन्द्रों द्वारा विशेष सम्मान समारोहों में कई ख्यातियों एवं उपाधियों से विभूषित किया गया है।

12:25, 12 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण

वर्तमान निवास स्थान: चितरंजन पार्क, नई दिल्ली (भारत)

कार्यक्षेत्र: सितार वादक और संगीत शिक्षक

जीवन परिचय

पंडित देवब्रत चौधरी (अंग्रेजी: Pandit Debu Chaudhary, जन्म: 1935, मायमेंसिंग, वर्तमान बांग्लादेश) को भारतीय संगीत के क्षेत्र में ‘देबू’ के नाम से भी जाना जाता है। पंडित देवब्रत (देबू) चौधरी भारत के प्रमुख सितार वादक, भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में एक ख्याति प्राप्त संगीतकार और दिल्ली विश्वविद्यालय में संगीत के शिक्षक रह चुके हैं। इन्होंने ‘सेनिआ संगीत घराना’ के श्री पंचू गोपाल दत्ता और संगीत आचार्य उस्ताद मुश्ताक अली खान से संगीत की शिक्षा ग्रहण की। इन्हें ‘पद्मभूषण’ और ‘पद्मश्री’ जैसे प्रतिष्ठित सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से भी अलंकृत किया जा चुका है।

ये संगीत से संबंधित कई पुस्तकों के लेखक, आठ नए संगीत रागों के जन्मदाता और बहुत से नए संगीत के धुनों के निर्माता भी हैं। इन्होंने वर्ष 1963 से देश-विदेश में बहुत से स्टेज शो, रेडियो और टीवी कार्यक्रमों में अपने संगीत की प्रस्तुति दी है। ये ‘सेनिया संगीत घराना’ मैहर (मध्य प्रदेश) के शास्त्रीय संगीत के ध्वज वाहक हैं। ये संगीत का शिक्षण कार्य करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के संगीत संकाय के डीन और विभागाध्यक्ष भी रह चुके हैं। इनकी संगीत के मधुर धुनों की एक अपनी अलग ही विशेषता है। इन्होंने बहुत से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त किए हैं। ये इस्कॉन मंदिर के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के आजीवन सदस्य भी हैं।

पारिवारिक जीवन

पंडित देवब्रत (चौधरी) का जन्म वर्ष 1935 में मायमेंसिंग (तत्कालीन भारत) वर्तमान बांग्लादेश में हुआ था। इन्होंने मात्र चार वर्ष की उम्र से ही सितार के साथ खेलना प्रारम्भ कर दिया था। उन्होंने अपने पहले सार्वजनिक संगीत कार्यक्रम का प्रदर्शन मात्र 12 वर्ष की अवस्था में ही कर दिया था। इनके संगीत के कार्यक्रम का आल इंडिया रेडिओ पर प्रथम प्रसारण 18 वर्ष की अवस्था में वर्ष 1953 में हुआ था। जीवन के 38 वर्ष बिताने के बाद इन्होंने सितार का प्रशिक्षण ‘सेनिआ घराने’ के महान संगीत आचार्य उस्ताद मुश्ताक अली खान से लेना प्रारम्भ किया। इन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा प्राप्त की। दिल्ली विश्वविद्यालय से अवकाश प्राप्त करने के बाद ये वर्तमान में अपने पुत्र, पुत्री, दामाद और भतीजा-भतिजिओं के साथ चितरंजन पार्क, नई दिल्ली में रहते हैं।

शिक्षण एवं प्रशिक्षण कार्य

इन्होंने वर्ष 1971 से वर्ष 1982 तक दिल्ली विश्वविद्यालय में संगीत विभाग के रीडर के रूप में अध्यापन का कार्य किया और वर्ष 1985 से वर्ष 1988 तक ये इसी विभाग में डीन और विभागाध्यक्ष भी रहे. इन्होंने महर्षि इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी (अब महर्षि यूनिवर्सिटी ऑफ मनेजमेंट), अमेरिका में भी वर्ष 1991 से वर्ष 1994 तक भारतीय शास्त्रीय संगीत को पाश्चात्य देशों में प्रचार-प्रसार में अपनी विशेष सेवाएं दी हैं.

दिल्ली विश्वविद्यालय से अवकाश ग्रहण के बाद इन्होंने एक विशेष संगीत प्रोजेक्ट पर कार्य करना प्रारम्भ किया, जो दुर्लभ संगीत वाद्य यंत्रों के द्वारा प्रस्तुत धुनों को परम्परागत ‘ध्रुपद’ और ‘ख्याल’ राग द्वारा नए राग में प्रस्तुत करने का है. यह प्रोजेक्ट आने वाली युवा पीढ़ी को संगीत के क्षेत्र में बहुत ही दुर्लभ अनुभव प्रदान करेगा.

संगीत पर आधारित नई धुनों, पुस्तकों और सीडी का निर्माण

इन्होंने आठ नए संगीत के रागों की रचना की है, ये राग हैं- बिस्वेस्वरी, पलास-सारंग, अनुरंजनी, आशिकी ललित, स्वनान्देस्वरी, कल्याणी बिलावल, शिवमंजरी और प्रभाती मंजरी (अपनी पत्नी मंजू की स्मृति में बनाया). इसके अतिरिक्त इन्होंने संगीत पर आधारित तीन पुस्तकों की भी रचना की है, ये हैं- ‘सितार एंड इट्स टेक्निक्स’, ‘म्यूजिक ऑफ इंडिया’ और ‘ऑन इंडियन म्यूजिक’. अपने अमेरिका प्रवास के दौरान इन्होंने ‘महर्षि गन्धर्व वेद’ नाम से 24 सीडी को 24 घंटों के संगीत के लिए रिकॉर्ड कराया। इन्होंने बहुत से एल्बम और कैसेट्स का भी निर्माण EMI, HMV, ABK (USA), टीवी सीरीज, रिदम हाउस, आर्काइव म्यूजिक यूएसए, ‘टी’ सीरीज और संसार की अन्य कम्पनियों के साथ मिलकर किया है।

संगीत के प्रति इनका लगाव

पंडित देबू चौधरी को दुर्लभ संगीत और वाद्य यंत्रों पर आधारित रचनाओं का संग्रह करने में विशेष लगाव है, जिसके परिणामस्वरुप इन्होने इस अनूठी परियोजना को प्रारंभ किया। पंडित जी का यह ड्रीम प्रोजेक्ट जब पूर्ण हो जाएगा तो यह भारतीय वाद्य संगीत के इतिहास में एक मील के पत्थर से कम नहीं होगा। इनकी अन्य उपलब्धियों में वर्ष 1984 में स्वीडन में 67 दिनों में 87 व्याख्यान हैं, जो 70 से अधिक कार्यक्रमों में दिए गए थे। विश्व स्तर पर आयोजित इन कार्यक्रमों में भारत सरकार ने इनको अपना पूर्ण सहयोग दिया था। ये महान सितार वादकों के उस युग से सम्बन्ध रखते हैं, जिनमें प्रमुख हैं- उस्ताद विलायत खान, पंडित रवि शंकर और निखिल बनर्जी आदि, ये 17 फ्रेट के विशेषज्ञ हैं, जबकि अधिकांशतः सितार वादक 19 फ्रेट का सितार बजाते हैं।

पुरस्कार एवं सम्मान

इन्हें भारत सरकार की तरफ से ‘पद्मभूषण’ और ‘पद्मश्री’ जैसे प्रतिष्ठित सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से भी अलंकृत किया जा चुका है। भारतीय संगीत नाटक अकादमी द्वारा इन्हें संगीत के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए पुरस्कृत किया जा चुका है। इन्हें कुछ समय पूर्व एशिया के एकमात्र संगीत विश्वविद्यालय ‘इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय’ खैरागढ़ (छत्तीसगढ़) द्वारा डी. लिट. की उपाधि से नवाजा जा चुका है। भारत सरकार के सार्वजनिक प्रसारण माध्यम ‘ऑल इंडिया रेडियो’ के 54वीं वर्षगांठ के अवसर पर वर्ष 2002 में देबू चौधरी के जीवन के इतिहास को प्रसारित किया गया। हाल ही के वर्षों में इन्हें संगीत के क्षेत्र में आजीवन उपलब्धियों के लिए दिल्ली, मुंबई और कोलकाता के विभिन्न सांस्कृतिक केन्द्रों द्वारा विशेष सम्मान समारोहों में कई ख्यातियों एवं उपाधियों से विभूषित किया गया है।