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विलियम जोंस
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पूरा नाम | सर विलियम जोंस |
जन्म | 28 सितम्बर, 1746 ई. |
जन्म भूमि | लंदन |
मृत्यु | 17 अप्रैल, 1794 ई. |
मृत्यु स्थान | कोलकाता, भारत |
कर्म भूमि | लंदन, भारत |
मुख्य रचनाएँ | 'ऑन द लॉ ऑफ बेलमेंट्स', 'मोअल्लकात' आदि। |
प्रसिद्धि | प्राच्य विद्यापंडित और विधिशास्त्री |
विशेष योगदान | इन्हें संस्कृत, फ़ारसी, अरबी, जर्मन, फ़्रैंच, पुर्तग़ाली, इतालवी तथा स्पेनी आदि कई भाषाओं का ज्ञान था। |
अन्य जानकारी | विलियम जोंस द्वारा किये गए कालिदास के 'अभिज्ञानशाकुंतलम' के अनुवाद ने संस्कृत और भारत संबंधी यूरोपीय दृष्टि में क्रांति उत्पन्न कर दी थी। गेटे आदि महान् कवि उस अनुवाद से बड़े प्रभावित हुए थे। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
सर विलियम जोंस (अंग्रेज़ी: William Jones ; जन्म- 28 सितम्बर, 1746 ई., लंदन; मृत्यु- 17 अप्रैल, 1794 ई., कोलकाता, भारत) अंग्रेज़ प्राच्य विद्यापंडित और विधिशास्त्री तथा प्राचीन भारत संबंधी सांस्कृतिक अनुसंधानों के प्रारम्भकर्ता थे। इन्हें संस्कृत, फ़ारसी, अरबी, जर्मन, फ़्रैंच तथा स्पेनी आदि कई भाषाओं का ज्ञान था। इन्होंने भारत में पूर्वी विषयों के अध्ययन में गम्भीर रुचि ली थी।
जन्म तथा शिक्षा
सर विलियम जोंस का जन्म लंदन में 28 सितंबर, 1746 ई. को हुआ था। इन्होंने हैरो और ऑक्सफ़ोर्ड में शिक्षा प्राप्त की थी। इसके बाद शीघ्र ही इन्होंने इब्रानी, फ़ारसी, अरबी और चीनी भाषाओं का अभ्यास कर लिया। इनके अतिरिक्त जर्मन, इतावली, फ्रेंच, स्पेनी और पुर्तग़ाली भाषाओं पर भी इनका अच्छा अधिकार हो गया।[1]
लेखन कार्य
नादिरशाह के जीवनवृत्त का फ़ारसी भाषा से फ्रेंच भाषा में सर विलियम जोंस का अनुवाद 1770 में प्रकाशित हुआ। 1771 में उन्होंने फ़ारसी व्याकरण पर एक पुस्तक लिखी। 1774 में 'पोएसिअस असिपातिका कोमेंतेरिओरम लिबरीसेम्स' और 1783 में 'मोअल्लकात' नामक सात अरबी कविताओं का अनुवाद किया। फिर इन्होंने पूर्वी साहित्य, भाषाशास्त्र और दर्शन पर भी अनेक महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं और अनुवाद किए।
'सर' की उपाधि
सर विलियम जोंस ने क़ानून पर भी कई अच्छी पुस्तकें लिखीं। उनकी 'ऑन द लॉ ऑफ बेलमेंट्स' (1781) विशेष प्रसिद्ध है। 1774 से सर विलियम जोंस ने अपना जीवन क़ानून के क्षेत्र में लगा दिया था। वे 1783 में बंगाल के उच्च न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्त हुए थे। उसी वर्ष उन्हें 'सर' की उपाधि मिली।[1]
संस्कृत साहित्य का अध्ययन
भारत में सर विलियम जोंस ने पूर्वी विषयों के अध्ययन में गंभीर रुचि प्रदर्शित की। उन्होंने संस्कृत का अध्ययन किया और 1784 में 'बंगाल एशियाटिक सोसाइटी' की स्थापना की, जिससे भारत के इतिहास, पुरातत्व, विशेषकर साहित्य और विधिशास्त्र संबंधी अध्ययन की नींव पड़ी। यूरोप में इन्होंने संस्कृत साहित्य की गरिमा सबसे पहले घोषित की। इनके द्वारा किये गए कालिदास के 'अभिज्ञानशाकुंतलम' के अनुवाद ने संस्कृत और भारत संबंधी यूरोपीय दृष्टि में क्रांति उत्पन्न कर दी। गेटे आदि महान् कवि उस अनुवाद से बड़े प्रभावित हुए। सर विलियम जोंस ने ही सबसे पहले ऐतिहासिक धरोहरों पर केंद्रित शोध प्रक्रिया शुरू की। इससे धरोहरों के बारे में नवीन जानकारियां मिलनी शुरू हुईं।
निधन
कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में 17 अप्रैल, 1794 ई. को महापंडित सर विलियम जोंस का निधन हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 सर विलियम जोंस (हिन्दी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 27 अगस्त, 2014।
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बाहरी कड़ियाँ