"शरत चंद्र चट्टोपाध्याय": अवतरणों में अंतर

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'''शरत चंद्र चट्टोपाध्याय''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Sarat Chandra Chattopadhyay'', जन्म: [[15 सितम्बर]], सन् [[1876]]; मृत्यु: [[16 जनवरी]], सन् [[1938]]) [[बांग्ला]] के अमर कथाशिल्पी और सुप्रसिद्ध [[उपन्यासकार]] थे। इनका जन्म [[15 सितम्बर]] सन् [[1876]] ई. को [[हुगली ज़िला|हुगली ज़िले]] के एक देवानंदपुर गाँव में हुआ था। शरतचंद्र अपने [[माता]]-[[पिता]] की नौ संतानों में एक थे। शरतचंद्र ने अठ्ठारह साल की उम्र में बारहवीं पास की थी। शरतचंद्र ने इन्हीं दिनों 'बासा' (घर) नाम से एक [[उपन्यास]] लिख डाला, पर यह रचना प्रकाशित नहीं हुई।<ref>{{cite web |url=http://friendfeed.com/hindia/f5c88a7b?embed=1 |title=  
शरत चंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म [[15 सितम्बर]] सन [[1876]] ई. को [[हुगली]] ज़िले के एक [[देवानंदपुर]] गाँव में हुआ था। शरतचंद्र अपने माता पिता की नौ संतानों में एक थे। शरत चंद्र चट्टोपाध्याय [[बांग्ला]] के अमर कथाशिल्पी और सुप्रसिद्ध उपन्यासकार थे। शरतचंद्र ने अठ्ठारह साल की उम्र में बारहवीं पास की थी। शरतचंद्र ने इन्हीं दिनों 'बासा' (घर) नाम से एक उपन्यास लिख डाला, पर यह रचना प्रकाशित नहीं हुई।<ref>{{cite web |url=http://friendfeed.com/hindia/f5c88a7b?embed=1 |title=  
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कॉलेज की पढ़ाई को बीच में ही छोड़कर वे तीस रुपए मासिक के क्लर्क होकर [[बर्मा]] (वर्तमान [[म्यांमार]]) पहुँच गए। शरत चंद्र चट्टोपाध्याय की कथा-साहित्य की प्रस्तुति जिस रूप-स्वरूप में हुई, लोकप्रियता के तत्त्व ने उनके पाठकीय आस्वाद में वृद्धि ही की है। शरत चंद्र चट्टोपाध्याय अकेले ऐसे भारतीय कथाकार भी हैं, जिनकी अधिकांश कालजयी कृतियों पर फ़िल्में बनीं तथा अनेक धारावाहिक सीरियल भी बने। इनकी कृतियाँ देवदास, चरित्रहीन और श्रीकान्त के साथ तो यह बार-बार घटित हुआ है।
कॉलेज की पढ़ाई को बीच में ही छोड़कर वे तीस रुपए मासिक के क्लर्क होकर [[बर्मा]] पहुँच गए। शरत चंद्र चट्टोपाध्याय की कथा-साहित्य की प्रस्तुति जिस रूप-स्वरूप में हुई, लोकप्रियता के तत्त्व ने उनके पाठकीय आस्वाद में वृद्धि ही की है। शरत चंद्र चट्टोपाध्याय अकेले ऐसे भारतीय कथाकार भी हैं, जिनकी अधिकांश कालजयी कृतियों पर फिल्में बनीं तथा अनेक धारावाहिक सीरियल भी बने। इनकी कृतियाँ देवदास, चरित्रहीन और श्रीकान्त के साथ तो यह बार-बार घटित हुआ है।
==साहित्यिक परिचय==
==सामाजिक रूढ़ियों पर प्रहार==
शरत चंद्र चट्टोपाध्याय यथार्थवाद को लेकर साहित्य क्षेत्र में उतरे थे। यह लगभग बंगला साहित्य में नई चीज़ थी। शरत चंद्र चट्टोपाध्याय ने अपने लोकप्रिय उपन्यासों एवं कहानियों में सामाजिक रूढ़ियों पर प्रहार किया था, पिटी-पिटाई लीक से हटकर सोचने को बाध्य किया था।
शरत चंद्र चट्टोपाध्याय यथार्थवाद को लेकर साहित्य क्षेत्र में उतरे थे। यह लगभग बंगला साहित्य में नई चीज थी। शरत चंद्र चट्टोपाध्याय ने अपने लोकप्रिय उपन्यासों एवं कहानियों में सामाजिक रूढ़ियों पर प्रहार किया था, पिटी-पिटाई लीक से हटकर सोचने को बाध्य किया था।
====प्रतिभा====
==प्रतिभा==
शरतचंद्र की प्रतिभा उपन्यासों के साथ-साथ उनकी कहानियों में भी देखने योग्य है। उनकी कहानियों में भी उपन्यासों की तरह मध्यवर्गीय समाज का यथार्थ चित्र अंकित है। शरतचंद्र प्रेम कुशल के चितेरे थे। शरतचंद्र की कहानियों में प्रेम एवं स्त्री-पुरुष संबंधों का सशक्त चित्रण हुआ है। इनकी कुछ कहानियाँ कला की दृष्टि से बहुत ही मार्मिक हैं। ये कहानियाँ शरत के हृदय की सम्पूर्ण भावनाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। उन्होंने कहानियाँ अपने बालपन के संस्मरण से और अपने संपर्क में आये मित्र व अन्य जन के जीवन से उठाई हैं। ये कहानियाँ जैसे हमारे जीवन का एक हिस्सा है ऐसा प्रतीत होता है।   
शरतचंद्र की प्रतिभा उपन्यासों के साथ-साथ उनकी कहानियों में भी देखने योग्य है। उनकी कहानियों में भी उपन्यासों की तरह मध्यवर्गीय समाज का यथार्थ चित्र अंकित है। शरतचंद्र प्रेम कुशल के चितेरे थे। शरतचंद्र की कहानियों में प्रेम एवं स्त्री-पुरुष संबंधों का सशक्त चित्रण हुआ है। इनकी कुछ कहानियाँ कला की दृष्टि से बहुत ही मार्मिक हैं। ये कहानियाँ शरत के हृदय की सम्पूर्ण भावनाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। उन्होंने कहानियाँ अपने बालपन के संस्मरण से और अपने संपर्क में आये मित्र व अन्य जन के जीवन से उठाई हैं। ये कहानियाँ जैसे हमारे जीवन का एक हिस्सा है ऐसा प्रतीत होता है।   
==महात्मा गाँधी का कथन==
====महात्मा गाँधी का कथन====
[[महात्मा गांधी]] ने कहा था- "पाप से घृणा करो, पापी से नहीं।" विश्वविख्यात बांग्ला कथाशिल्पी शरत चंद्र चट्टोपाध्याय ने गांधी जी के उपरोक्त कथन को अपने साहित्य में उतारा था। उन्होंने पतिता, कुलटा, पीड़ित दहबी-कुचली और प्रताड़ित नारी की पीड़ा को अपनी रचनाओं में स्वर दिया।<ref name="भारतीय साहित्य संग्रह">{{cite web |url=http://pustak.org/bs/home.php?bookid=5804 |title=  
[[महात्मा गांधी]] ने कहा था- "पाप से घृणा करो, पापी से नहीं।" विश्वविख्यात बांग्ला कथाशिल्पी शरत चंद्र चट्टोपाध्याय ने गांधी जी के उपरोक्त कथन को अपने साहित्य में उतारा था। उन्होंने पतिता, कुलटा, पीड़ित दहबी-कुचली और प्रताड़ित नारी की पीड़ा को अपनी रचनाओं में स्वर दिया।<ref name="भारतीय साहित्य संग्रह">{{cite web |url=http://pustak.org/bs/home.php?bookid=5804 |title= प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश |accessmonthday=[[13 सितंबर]] |accessyear=[[2010]] |authorlink= |format= |publisher=भारतीय साहित्य संग्रह |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश |accessmonthday=[[13 सितंबर]] |accessyear=[[2010]] |authorlink= |format= |publisher=भारतीय साहित्य संग्रह |language=हिन्दी }}</ref>
====हृदय के सच्चे पारख़ी====
==हृदय के सच्चे पारख़ी==
शरतचंद्र के मन में नारियों के प्रति बहुत सम्मान था वे नारी [[हृदय]] के सच्चे पारख़ी थे। उनकी कहानियों में स्त्री के रहस्यमय चरित्र, उसकी कोमल भावनाओं, दमित इच्छाओं, अपूर्ण आशाओं, अतृप्त आकांक्षाओं, उसके छोटे-छोटे सपनों, छोटी-बड़ी मन की उलझनों और उसकी महत्त्वकांक्षाओं का जैसा सूक्ष्म, सच्चा और मनोवैज्ञानिक चित्रण-विश्लेषण हुआ है, वह अन्यत्र दुर्लभ है।<ref name= "भारतीय साहित्य संग्रह" />  
शरतचंद्र के मन में नारियों के प्रति बहुत सम्मान था वे नारी हृदय के सच्चे पारख़ी थे। उनकी कहानियों में स्त्री के रहस्यमय चरित्र, उसकी कोमल भावनाओं, दमित इच्छाओं, अपूर्ण आशाओं, अतृप्त आकांक्षाओं, उसके छोटे-छोटे सपनों, छोटी-बड़ी मन की उलझनों और उसकी महत्त्वकांक्षाओं का जैसा सूक्ष्म, सच्चा और मनोवैज्ञानिक चित्रण-विश्लेषण हुआ है, वह अन्यत्र दुर्लभ है।<ref name= "भारतीय साहित्य संग्रह" />  
==सम्पूर्ण साहित्य==
==सम्पूर्ण साहित्य==
शरतचंद्र  का सम्पूर्ण साहित्य नारी के उत्थान से पतन और पतन से उत्थान की करुण कथाओं से भरा पड़ा है। शरतचंद्र अपनी कहानियों में केवल पीडित-प्रताड़ित नारी की पतनगाथा नहीं गाते, सिर्फ उसके पतिता और कुलटा हो जाने की कथा नहीं कहते, उसके स्नेह, त्याग, बलिदान ममता और प्रेम की पावन-कथा भी सुनाते हैं। शरतचंद्र की कहानियों में नारी के नीचतम और महानतम दोनों रूपों के एक साथ दर्शन होते हैं। जब शरतचंद्र नारी के अधोपतन की कथा कहते-कहते उसी नारी के उदात्त और उज्ज्वल चरित्र को उद्घाटित करते हैं, तो पाठक सन्न रह जाता है। उसने मन में यह प्रश्न कहीं गहरे घर कर जाता है कि एक ही स्त्री के दो रूप कैसे हो सकते हैं और वह यह नहीं समझ पाता कि आख़िर वह नारी के किस रूप को स्वीकार करे। शरतचंद्र अपनी कहानियों में नारी ह्रदय की गांठों और गुत्थियों को जिस कुशलता से  खोलते हैं, उनकी रचनाओं में नारी का जो बहुरूप सामने आता है, वैसी झलक विश्व-साहित्य में कहीं नहीं मिलती।<ref name= "भारतीय साहित्य संग्रह" />  
शरतचंद्र  का सम्पूर्ण साहित्य नारी के उत्थान से पतन और पतन से उत्थान की करुण कथाओं से भरा पड़ा है। शरतचंद्र अपनी कहानियों में केवल पीडित-प्रताड़ित नारी की पतनगाथा नहीं गाते, सिर्फ़ उसके पतिता और कुलटा हो जाने की कथा नहीं कहते, उसके स्नेह, त्याग, बलिदान ममता और प्रेम की पावन-कथा भी सुनाते हैं। शरतचंद्र की कहानियों में नारी के नीचतम और महानतम दोनों रूपों के एक साथ दर्शन होते हैं। जब शरतचंद्र नारी के अधोपतन की कथा कहते-कहते उसी नारी के उदात्त और उज्ज्वल चरित्र को उद्घाटित करते हैं, तो पाठक सन्न रह जाता है। उसने मन में यह प्रश्न कहीं गहरे घर कर जाता है कि एक ही स्त्री के दो रूप कैसे हो सकते हैं और वह यह नहीं समझ पाता कि आख़िर वह नारी के किस रूप को स्वीकार करे। शरतचंद्र अपनी कहानियों में नारी हृदय की गांठों और गुत्थियों को जिस कुशलता से  खोलते हैं, उनकी रचनाओं में नारी का जो बहुरूप सामने आता है, वैसी झलक विश्व-साहित्य में कहीं नहीं मिलती।<ref name= "भारतीय साहित्य संग्रह" />  
==कृतियाँ==
==कृतियाँ==
शरतचंद्र ने अनेक उपन्यास लिखे हैं जिनमें पंडित मोशाय, बैकुंठेर बिल, मेज दीदी, दर्पचूर्ण, अभागिनी का स्वर्ग, श्रीकांत, अरक्षणीया, निष्कृति, मामलार फल, अनुपमा का प्रेम, गृहदाह, शेष प्रश्न, दत्ता, देवदास, ब्राह्मण की लड़की, सती, विप्रदास, देना पावना आदि प्रमुख हैं। इन्होंने [[बंगाल]] के क्रांतिकारी आंदोलन को लेकर 'पथेर दावी' उपन्यास लिखा था। कई भारतीय भाषाओं में शरत के उपन्यासों के अनुवाद हुए हैं। शरतचंद्र के कुछ उपन्यासों पर आधारित हिन्दी फ़िल्में भी कई बार बनी हैं। [[1974]] में इनके उपन्यास 'चरित्रहीन' पर आधारित फ़िल्म बनी थी। उसके बाद देवदास को आधार बनाकर देवदास फ़िल्म का निर्माण तीन बार हो चुका है। पहली देवदास [[1936]] कुन्दन लाल सहगल द्वारा अभिनीत, दूसरी देवदास [[1955]] दिलीप कुमार, वैजयन्ती माला द्वारा अभिनीत तथा तीसरी देवदास [[2002]] शाहरुख़ ख़ान, माधुरी दीक्षित, ऐश्वर्या राय द्वारा अभिनीत है। इसके अतिरिक्त 1974  में चरित्रहीन, परिणीता [[1953]] और [[2005]] में भी बनी थी, बड़ी दीदी ([[1969]]) तथा मँझली बहन, आदि पर भी चलचित्रों के निर्माण हुए हैं।
शरतचंद्र ने अनेक उपन्यास लिखे हैं जिनमें पंडित मोशाय, बैकुंठेर बिल, मेज दीदी, दर्पचूर्ण, अभागिनी का स्वर्ग, श्रीकांत, अरक्षणीया, निष्कृति, मामलार फल, अनुपमा का प्रेम, गृहदाह, शेष प्रश्न, दत्ता, देवदास, ब्राह्मण की लड़की, सती, विप्रदास, देना पावना आदि प्रमुख हैं। इन्होंने [[बंगाल]] के क्रांतिकारी आंदोलन को लेकर 'पथेर दावी' उपन्यास लिखा था। कई भारतीय भाषाओं में शरत के उपन्यासों के अनुवाद हुए हैं। शरतचंद्र के कुछ उपन्यासों पर आधारित हिन्दी फ़िल्में भी कई बार बनी हैं। [[1974]] में इनके उपन्यास 'चरित्रहीन' पर आधारित फ़िल्म बनी थी। उसके बाद देवदास को आधार बनाकर देवदास फ़िल्म का निर्माण तीन बार हो चुका है। पहली [[देवदास (1936)]] [[कुन्दन लाल सहगल]] द्वारा अभिनीत, दूसरी [[देवदास (1955 फ़िल्म)|देवदास (1955)]] [[दिलीप कुमार]], [[वैजयन्ती माला]] द्वारा अभिनीत तथा तीसरी देवदास (2002) शाहरुख़ ख़ान, [[माधुरी दीक्षित]], [[ऐश्वर्या राय]] द्वारा अभिनीत है। इसके अतिरिक्त [[1974]] में चरित्रहीन, परिणीता [[1953]] और [[2005]] में भी बनी थी, बड़ी दीदी ([[1969]]) तथा मँझली बहन, आदि पर भी चलचित्रों के निर्माण हुए हैं।
 
==रचनात्मक हस्तक्षेप==
==रचनात्मक हस्तक्षेप==
शरतचंद्र बाबू ने मनुष्य को अपने विपुल लेखन के माध्यम से उसकी मर्यादा सौंपी और समाज की उन तथाकथित परम्पराओं को ध्वस्त किया, जिनके अन्तर्गत नारी की आँखें अनिच्छित आँसुओं से हमेशा छलछलाई रहती हैं। शरत बाबू ने समाज द्वारा अनसुनी रह गई वंचितों की विलख-चीख और आर्तनाद को परख़ा और यह जाना कि जाति, वंश और धर्म आदि के नाम पर एक बड़े वर्ग को मनुष्य की श्रेणी से ही अपदस्थ किया जा रहा है। उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से इस षड्यन्त्र के अन्तर्गत पनप रही तथाकथित सामाजिक ‘आम सहमति’ पर रचनात्मक हस्तक्षेप किया, जिसके चलते वह लाखों करोड़ों पाठकों के चहेते शब्दकार बने। नारी और अन्य शोषित समाजों के धूसर जीवन का उन्होंने चित्रण ही नहीं किया, बल्कि उनके आम जीवन में आच्छादित इन्दधनुषी रंगों की छटा भी बिखेरी थी। शरत का प्रेम को आध्यात्मिकता तक ले जाने में  विरल योगदान है। शरत-साहित्य आम आदमी के जीवन को जीवंत करने में सहायक जड़ी-बूटी सिद्ध हुआ है।<ref>{{cite web |url=http://pus/bs/home.php?bookid=5575 |title=शरतचंद्र चट्टोपाध्याय |accessmonthday=[[13 सितंबर]] |accessyear=[[2010]] |authorlink= |format= |publisher=भारतीय साहित्य संग्रह |language=हिन्दी }}</ref>
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==मृत्यु==
==मृत्यु==
प्रसिद्ध उपन्यासकार शरत चंद्र चट्टोपाध्याय की मृत्यु [[16 जनवरी]] सन [[1938]] ई. को हुयी थी। शरतचंद्र चट्टोपाध्याय को यह गौरव हासिल है कि उनकी रचनाएँ हिन्दी सहित सभी भारतीय भाषाओं में आज भी चाव से पढ़ी जाती हैं। लोकप्रियता के मामले में बंकिम और शरतचंद्र [[रवीन्द्रनाथ टैगोर]] से भी आगे हैं।
प्रसिद्ध उपन्यासकार शरत चंद्र चट्टोपाध्याय की मृत्यु [[16 जनवरी]] सन् [[1938]] ई. को हुई थी। शरतचंद्र चट्टोपाध्याय को यह गौरव हासिल है कि उनकी रचनाएँ [[हिन्दी]] सहित सभी भारतीय भाषाओं में आज भी चाव से पढ़ी जाती हैं। लोकप्रियता के मामले में [[बंकिम चंद्र चटर्जी]] और शरतचंद्र [[रवीन्द्रनाथ टैगोर]] से भी आगे हैं।


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05:32, 16 जनवरी 2018 के समय का अवतरण

शरत चंद्र चट्टोपाध्याय
पूरा नाम शरत चंद्र चट्टोपाध्याय
जन्म 15 सितम्बर सन् 1876 ई.
जन्म भूमि देवानंदपुर, पश्चिम बंगाल
मृत्यु 16 जनवरी सन् 1938 ई.
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र साहित्य
मुख्य रचनाएँ 'देवदास', 'चरित्रहीन', 'श्रीकान्त', 'दर्पचूर्ण', 'पंडित मोशाय' आदि।
विषय सामाजिक
भाषा हिन्दी, बांग्ला
प्रसिद्धि बांग्ला उपन्यासकार
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी शरतचंद्र के कुछ उपन्यासों पर आधारित हिन्दी फ़िल्में भी कई बार बनी हैं। 1974 में इनके उपन्यास 'चरित्रहीन' पर आधारित फ़िल्म बनी थी। उसके बाद देवदास को आधार बनाकर देवदास फ़िल्म का निर्माण तीन बार हो चुका है।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

शरत चंद्र चट्टोपाध्याय (अंग्रेज़ी: Sarat Chandra Chattopadhyay, जन्म: 15 सितम्बर, सन् 1876; मृत्यु: 16 जनवरी, सन् 1938) बांग्ला के अमर कथाशिल्पी और सुप्रसिद्ध उपन्यासकार थे। इनका जन्म 15 सितम्बर सन् 1876 ई. को हुगली ज़िले के एक देवानंदपुर गाँव में हुआ था। शरतचंद्र अपने माता-पिता की नौ संतानों में एक थे। शरतचंद्र ने अठ्ठारह साल की उम्र में बारहवीं पास की थी। शरतचंद्र ने इन्हीं दिनों 'बासा' (घर) नाम से एक उपन्यास लिख डाला, पर यह रचना प्रकाशित नहीं हुई।[1] कॉलेज की पढ़ाई को बीच में ही छोड़कर वे तीस रुपए मासिक के क्लर्क होकर बर्मा (वर्तमान म्यांमार) पहुँच गए। शरत चंद्र चट्टोपाध्याय की कथा-साहित्य की प्रस्तुति जिस रूप-स्वरूप में हुई, लोकप्रियता के तत्त्व ने उनके पाठकीय आस्वाद में वृद्धि ही की है। शरत चंद्र चट्टोपाध्याय अकेले ऐसे भारतीय कथाकार भी हैं, जिनकी अधिकांश कालजयी कृतियों पर फ़िल्में बनीं तथा अनेक धारावाहिक सीरियल भी बने। इनकी कृतियाँ देवदास, चरित्रहीन और श्रीकान्त के साथ तो यह बार-बार घटित हुआ है।

साहित्यिक परिचय

शरत चंद्र चट्टोपाध्याय यथार्थवाद को लेकर साहित्य क्षेत्र में उतरे थे। यह लगभग बंगला साहित्य में नई चीज़ थी। शरत चंद्र चट्टोपाध्याय ने अपने लोकप्रिय उपन्यासों एवं कहानियों में सामाजिक रूढ़ियों पर प्रहार किया था, पिटी-पिटाई लीक से हटकर सोचने को बाध्य किया था।

प्रतिभा

शरतचंद्र की प्रतिभा उपन्यासों के साथ-साथ उनकी कहानियों में भी देखने योग्य है। उनकी कहानियों में भी उपन्यासों की तरह मध्यवर्गीय समाज का यथार्थ चित्र अंकित है। शरतचंद्र प्रेम कुशल के चितेरे थे। शरतचंद्र की कहानियों में प्रेम एवं स्त्री-पुरुष संबंधों का सशक्त चित्रण हुआ है। इनकी कुछ कहानियाँ कला की दृष्टि से बहुत ही मार्मिक हैं। ये कहानियाँ शरत के हृदय की सम्पूर्ण भावनाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। उन्होंने कहानियाँ अपने बालपन के संस्मरण से और अपने संपर्क में आये मित्र व अन्य जन के जीवन से उठाई हैं। ये कहानियाँ जैसे हमारे जीवन का एक हिस्सा है ऐसा प्रतीत होता है।

महात्मा गाँधी का कथन

महात्मा गांधी ने कहा था- "पाप से घृणा करो, पापी से नहीं।" विश्वविख्यात बांग्ला कथाशिल्पी शरत चंद्र चट्टोपाध्याय ने गांधी जी के उपरोक्त कथन को अपने साहित्य में उतारा था। उन्होंने पतिता, कुलटा, पीड़ित दहबी-कुचली और प्रताड़ित नारी की पीड़ा को अपनी रचनाओं में स्वर दिया।[2]

हृदय के सच्चे पारख़ी

शरतचंद्र के मन में नारियों के प्रति बहुत सम्मान था वे नारी हृदय के सच्चे पारख़ी थे। उनकी कहानियों में स्त्री के रहस्यमय चरित्र, उसकी कोमल भावनाओं, दमित इच्छाओं, अपूर्ण आशाओं, अतृप्त आकांक्षाओं, उसके छोटे-छोटे सपनों, छोटी-बड़ी मन की उलझनों और उसकी महत्त्वकांक्षाओं का जैसा सूक्ष्म, सच्चा और मनोवैज्ञानिक चित्रण-विश्लेषण हुआ है, वह अन्यत्र दुर्लभ है।[2]

सम्पूर्ण साहित्य

शरतचंद्र का सम्पूर्ण साहित्य नारी के उत्थान से पतन और पतन से उत्थान की करुण कथाओं से भरा पड़ा है। शरतचंद्र अपनी कहानियों में केवल पीडित-प्रताड़ित नारी की पतनगाथा नहीं गाते, सिर्फ़ उसके पतिता और कुलटा हो जाने की कथा नहीं कहते, उसके स्नेह, त्याग, बलिदान ममता और प्रेम की पावन-कथा भी सुनाते हैं। शरतचंद्र की कहानियों में नारी के नीचतम और महानतम दोनों रूपों के एक साथ दर्शन होते हैं। जब शरतचंद्र नारी के अधोपतन की कथा कहते-कहते उसी नारी के उदात्त और उज्ज्वल चरित्र को उद्घाटित करते हैं, तो पाठक सन्न रह जाता है। उसने मन में यह प्रश्न कहीं गहरे घर कर जाता है कि एक ही स्त्री के दो रूप कैसे हो सकते हैं और वह यह नहीं समझ पाता कि आख़िर वह नारी के किस रूप को स्वीकार करे। शरतचंद्र अपनी कहानियों में नारी हृदय की गांठों और गुत्थियों को जिस कुशलता से खोलते हैं, उनकी रचनाओं में नारी का जो बहुरूप सामने आता है, वैसी झलक विश्व-साहित्य में कहीं नहीं मिलती।[2]

कृतियाँ

शरतचंद्र ने अनेक उपन्यास लिखे हैं जिनमें पंडित मोशाय, बैकुंठेर बिल, मेज दीदी, दर्पचूर्ण, अभागिनी का स्वर्ग, श्रीकांत, अरक्षणीया, निष्कृति, मामलार फल, अनुपमा का प्रेम, गृहदाह, शेष प्रश्न, दत्ता, देवदास, ब्राह्मण की लड़की, सती, विप्रदास, देना पावना आदि प्रमुख हैं। इन्होंने बंगाल के क्रांतिकारी आंदोलन को लेकर 'पथेर दावी' उपन्यास लिखा था। कई भारतीय भाषाओं में शरत के उपन्यासों के अनुवाद हुए हैं। शरतचंद्र के कुछ उपन्यासों पर आधारित हिन्दी फ़िल्में भी कई बार बनी हैं। 1974 में इनके उपन्यास 'चरित्रहीन' पर आधारित फ़िल्म बनी थी। उसके बाद देवदास को आधार बनाकर देवदास फ़िल्म का निर्माण तीन बार हो चुका है। पहली देवदास (1936) कुन्दन लाल सहगल द्वारा अभिनीत, दूसरी देवदास (1955) दिलीप कुमार, वैजयन्ती माला द्वारा अभिनीत तथा तीसरी देवदास (2002) शाहरुख़ ख़ान, माधुरी दीक्षित, ऐश्वर्या राय द्वारा अभिनीत है। इसके अतिरिक्त 1974 में चरित्रहीन, परिणीता 1953 और 2005 में भी बनी थी, बड़ी दीदी (1969) तथा मँझली बहन, आदि पर भी चलचित्रों के निर्माण हुए हैं।

रचनात्मक हस्तक्षेप

शरतचंद्र बाबू ने मनुष्य को अपने विपुल लेखन के माध्यम से उसकी मर्यादा सौंपी और समाज की उन तथाकथित परम्पराओं को ध्वस्त किया, जिनके अन्तर्गत नारी की आँखें अनिच्छित आँसुओं से हमेशा छलछलाई रहती हैं। शरत बाबू ने समाज द्वारा अनसुनी रह गई वंचितों की विलख-चीख और आर्तनाद को परख़ा और यह जाना कि जाति, वंश और धर्म आदि के नाम पर एक बड़े वर्ग को मनुष्य की श्रेणी से ही अपदस्थ किया जा रहा है। उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से इस षड्यन्त्र के अन्तर्गत पनप रही तथाकथित सामाजिक 'आम सहमति' पर रचनात्मक हस्तक्षेप किया, जिसके चलते वह लाखों करोड़ों पाठकों के चहेते शब्दकार बने। नारी और अन्य शोषित समाजों के धूसर जीवन का उन्होंने चित्रण ही नहीं किया, बल्कि उनके आम जीवन में आच्छादित इन्दधनुषी रंगों की छटा भी बिखेरी थी। शरत का प्रेम को आध्यात्मिकता तक ले जाने में विरल योगदान है। शरत-साहित्य आम आदमी के जीवन को जीवंत करने में सहायक जड़ी-बूटी सिद्ध हुआ है।[3]

मृत्यु

प्रसिद्ध उपन्यासकार शरत चंद्र चट्टोपाध्याय की मृत्यु 16 जनवरी सन् 1938 ई. को हुई थी। शरतचंद्र चट्टोपाध्याय को यह गौरव हासिल है कि उनकी रचनाएँ हिन्दी सहित सभी भारतीय भाषाओं में आज भी चाव से पढ़ी जाती हैं। लोकप्रियता के मामले में बंकिम चंद्र चटर्जी और शरतचंद्र रवीन्द्रनाथ टैगोर से भी आगे हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शरत चंद्र चट्टोपाध्याय (हिन्दी) हिन्दी। अभिगमन तिथि: 13 सितंबर, 2010
  2. 2.0 2.1 2.2 प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश (हिन्दी) भारतीय साहित्य संग्रह। अभिगमन तिथि: 13 सितंबर, 2010
  3. शरतचंद्र चट्टोपाध्याय (हिन्दी) भारतीय साहित्य संग्रह। अभिगमन तिथि: 13 सितंबर, 2010

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