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'''जयसिंह''' अथवा 'मिर्ज़ा राजा जयसिंह' अथवा 'जयसिंह प्रथम' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Jai Singh I'', जन्म- [[15 जुलाई]], 1611 ई., [[आमेर]]; मृत्यु- [[28 अगस्त]], 1667 ई.) [[आमेर]] के राजा तथा [[मुग़ल साम्राज्य]] के वरिष्ठ सेनापति (मिर्ज़ा राजा) थे। वे राजा भाऊ सिंह के [[पुत्र]] थे, जिन्होंने 1614 ई. से 1621 ई. तक शासन किया। [[शाहजहाँ]] ने [[अप्रॅल]], 1639 ई. में जयसिंह को रावलपिण्डी बुलाकर ‘मिर्ज़ा राजा‘ की पदवी दी थी। यह पदवी उनके दादा [[मानसिंह]] को भी [[अकबर]] से मिली थी।


==मिर्जा राजा जयसिंह / Mirza Raja Jaisingh==
*जयसिंह [[मुग़ल]] दरबार का सर्वाधिक प्रभावशाली सामंत था। [[औरंगज़ेब|बादशाह औरंगज़ेब]] के लिए वह सबसे बड़ा आँख का काँटा था। औरंगज़ेब ने [[मराठा]] प्रमुख [[छत्रपति शिवाजी]] को दबाने के लिए जयसिंह को भेजा था।
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*जयसिंह ने बड़ी बुद्धिमत्ता, वीरता और कूटनीति से [[शिवाजी]] को औरंगजेब से संधि करने के लिए राजी किया। उसने बादशाह की इच्छानुसार शिवाजी को [[आगरा]] दरबार में उपस्थित होने के लिए भी भेज दिया, किंतु वहाँ शिवाजी के साथ बड़ा अनुचित व्यवहार हुआ और औरंगजेब की आज्ञा से उन्हें नज़रबंद कर दिया गया।
*उसने सम्राट की इच्छानुसार शिवाजी को [[आगरा]] दरबार में उपस्थित होने को भी भेज दिया, किंतु वहाँ उनके साथ बड़ा अनुचित व्यवहार हुआ और औरंगजेब की आज्ञा से उन्हें नज़रबंद किया गया। बाद में शिवाजी किसी प्रकार औरंगजेब के चंगुल में से निकल गये जिससे औरंगजेब बड़ा दु:खी हुआ। उसने उन सभी लोगों को कड़ा दंड दिया, जिनकी असावधानी से शिवाजी को निकल भागने का अवसर मिल गया था।  
*बाद में शिवाजी किसी प्रकार औरंगज़ेब के चंगुल में से निकल गये, जिससे औरंगज़ेब बड़ा दु:खी हुआ। उसने उन सभी लोगों को कड़ा दंड दिया, जिनकी असावधानी से शिवाजी को निकल भागने का अवसर मिल गया था।
*मिर्जा जयसिंह और उसका पुत्र कुँवर रामसिंह भी उसके लिए दोषी समझे गये, क्योंकि वे ही शिवाजी की [[आगरा]] में सुरक्षा के लिए अधिक चिंतित थे। उसने रामसिंह का मनसब और जागीर छीन ली तथा जयसिंह को तत्काल दरबार में उपस्थित होने का हुक्मनामा भेजा।  
*मिर्ज़ा राजा जयसिंह और उसका पुत्र [[महाराज रामसिंह|कुँवर रामसिंह]] भी उसके लिए दोषी समझे गये, क्योंकि वे ही [[शिवाजी]] की [[आगरा]] में सुरक्षा के लिए अधिक चिंतित थे।
*मिर्जा राजा जयसिंह को इस बात का बड़ा खेद था कि शिवाजी को आगरा भेजने में उसने जिस कूटनीतिज्ञता और सूझ−बूझ का परिचय दिया था, उसके बदले में उसे वृद्धावस्था में अपमान एवं लांछन सहना पड़ा। इस दु:ख में वह अपनी यात्रा भी पूरी नहीं कर सका और मार्ग में बुरहानपुर नामक स्थान पर सन् 1667 में उसकी मृत्यु हो गई।  
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*मिर्जा राजा जयसिंह वीर सेनानायक और कुशल राजनीतिज्ञ होने के साथ ही साथ साहित्य और कला का भी बड़ा प्रेमी था।  
*जयसिंह को इस बात का बड़ा खेद था कि शिवाजी को [[आगरा]] भेजने में उसने जिस कूटनीतिज्ञता और सूझ-बूझ का परिचय दिया था, उसके बदले में उसे वृद्धावस्था में अपमान एवं लांछन सहना पड़ा। इस दु:ख में वह अपनी यात्रा भी पूरी नहीं कर सका और मार्ग में [[बुरहानपुर]] नामक स्थान पर सन 1667 में उसकी मृत्यु हो गई।  
*उसी के आश्रय में कविवर [[बिहारी]] ने अपनी सुप्रसिद्ध बिहारी सतसई की रचना सन 1662 में की थी।
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जयसिंह
जयसिंह
जयसिंह
पूरा नाम जयसिंह
अन्य नाम मिर्ज़ा राजा जयसिंह, जयसिंह प्रथम
जन्म 15 जुलाई, 1611 ई.
जन्म भूमि आमेर
मृत्यु तिथि 28 अगस्त, 1667 ई.
मृत्यु स्थान बुरहानपुर
पिता/माता पिता- राजा भाऊ सिंह
धार्मिक मान्यता हिन्दू
प्रसिद्धि राजपूत शासक
संबंधित लेख शिवाजी, औरंगज़ेब, राजपूत साम्राज्य, राजपूत, राजपूताना, आमेर, राजस्थान का इतिहास
अन्य जानकारी राजा जयसिंह वीर सेनानायक के साथ ही साहित्य और कला के भी प्रेमी थे। उन्हीं के आश्रय में कविवर बिहारी लाल ने अपनी सुप्रसिद्ध 'बिहारी सतसई' की रचना सन 1662 में की थी।

जयसिंह अथवा 'मिर्ज़ा राजा जयसिंह' अथवा 'जयसिंह प्रथम' (अंग्रेज़ी: Jai Singh I, जन्म- 15 जुलाई, 1611 ई., आमेर; मृत्यु- 28 अगस्त, 1667 ई.) आमेर के राजा तथा मुग़ल साम्राज्य के वरिष्ठ सेनापति (मिर्ज़ा राजा) थे। वे राजा भाऊ सिंह के पुत्र थे, जिन्होंने 1614 ई. से 1621 ई. तक शासन किया। शाहजहाँ ने अप्रॅल, 1639 ई. में जयसिंह को रावलपिण्डी बुलाकर ‘मिर्ज़ा राजा‘ की पदवी दी थी। यह पदवी उनके दादा मानसिंह को भी अकबर से मिली थी।

  • जयसिंह मुग़ल दरबार का सर्वाधिक प्रभावशाली सामंत था। बादशाह औरंगज़ेब के लिए वह सबसे बड़ा आँख का काँटा था। औरंगज़ेब ने मराठा प्रमुख छत्रपति शिवाजी को दबाने के लिए जयसिंह को भेजा था।
  • जिस समय दक्षिण में शिवाजी के विजय−अभियानों की घूम थी, और उनसे युद्ध करने में अफ़ज़ल ख़ाँ एवं शाइस्ता ख़ाँ की हार हुई तथा राजा यशवंतसिंह को भी असफलता मिली; तब औरंगज़ेब ने मिर्ज़ा राजा जयसिंह को शिवाजी को दबाने के लिए भेजा। इस प्रकार वह एक तीर से दो शिकार करना चाहता था।
  • जयसिंह ने बड़ी बुद्धिमत्ता, वीरता और कूटनीति से शिवाजी को औरंगजेब से संधि करने के लिए राजी किया। उसने बादशाह की इच्छानुसार शिवाजी को आगरा दरबार में उपस्थित होने के लिए भी भेज दिया, किंतु वहाँ शिवाजी के साथ बड़ा अनुचित व्यवहार हुआ और औरंगजेब की आज्ञा से उन्हें नज़रबंद कर दिया गया।
  • बाद में शिवाजी किसी प्रकार औरंगज़ेब के चंगुल में से निकल गये, जिससे औरंगज़ेब बड़ा दु:खी हुआ। उसने उन सभी लोगों को कड़ा दंड दिया, जिनकी असावधानी से शिवाजी को निकल भागने का अवसर मिल गया था।
  • मिर्ज़ा राजा जयसिंह और उसका पुत्र कुँवर रामसिंह भी उसके लिए दोषी समझे गये, क्योंकि वे ही शिवाजी की आगरा में सुरक्षा के लिए अधिक चिंतित थे।
  • औरंगज़ेब ने रामसिंह का मनसब और जागीर छीन ली तथा जयसिंह को तत्काल दरबार में उपस्थित होने का हुक्मनामा भेजा।
  • जयसिंह को इस बात का बड़ा खेद था कि शिवाजी को आगरा भेजने में उसने जिस कूटनीतिज्ञता और सूझ-बूझ का परिचय दिया था, उसके बदले में उसे वृद्धावस्था में अपमान एवं लांछन सहना पड़ा। इस दु:ख में वह अपनी यात्रा भी पूरी नहीं कर सका और मार्ग में बुरहानपुर नामक स्थान पर सन 1667 में उसकी मृत्यु हो गई।
  • जयसिंह वीर सेनानायक और कुशल राजनीतिज्ञ होने के साथ ही साथ साहित्य और कला का भी बड़ा प्रेमी था। उसी के आश्रय में कविवर बिहारी लाल ने अपनी सुप्रसिद्ध 'बिहारी सतसई' की रचना सन 1662 में की थी।


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