"शिवराम कारंत": अवतरणों में अंतर
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'''कोटा शिवराम कारंत''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Kota Shivaram Karanth'', जन्म- [[10 अक्टूबर]], [[1902]], कोटा, [[कर्नाटक]]; मृत्यु- [[9 दिसम्बर]], [[1997]], [[उडुपी]]) [[कन्नड़ भाषा]] के विख्यात साहित्यकार थे। अपने कला विषयक ज्ञान के बल पर उन्होंने यक्षगान के अंतरंग में प्रवेश करने का साहस किया। कला विषयक क्षेत्र में शिवराम कारंत का योगदान महत्त्वपूर्ण माना जाता है। उन्होंने अपनी पैनी दृष्टि से बहुत पहले ही भांप लिया था कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली में क्या कमी और दोष हैं और फिर अवसर आते ही अपने विचार को व्यावहारिक रूप देने के लिए वह स्वयं पाठ्य पुस्तकें लिखने, शब्दकोशों तथा विश्वकोशों को तैयार करने में जी जान से जुट पड़े थे। | |||
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कोटा शिवराम कारंत के मन में बचपन से ही प्रकृति के प्रति बहुत आकर्षण था। स्कूल की पढ़ाई ने उन्हें कभी नहीं बांधा। यही कारण था कि [[1922]] में [[महात्मा गाँधी|गांधीजी]] की पुकार कान में पड़ते ही वह कॉलेज छोड़कर रचनात्मक कार्यक्रम में लग गए। कुछ ही समय के भीतर उन्हें लगा समाज को सुधारने से पहले लोगों की प्रकृति और सारी स्थिति को समझ लेना बहुत आवश्यक है, अत: वहीं से वह एक स्वतंत्र पथ का निर्माण करने में जुट पड़े उन्होंने अपनी पैनी दृष्टि से बहुत पहले ही भांप लिया था कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली में क्या कमी और दोष हैं और फिर अवसर आते ही अपने विचार को व्यावहारिक रूप देने के लिए वह स्वयं पाठ्य पुस्तकें लिखने, शब्दकोशों तथा विश्वकोशों को तैयार करने में जी जान से जुट पड़े। शुरुआत उन्होंने कर्नाटक कला से की और फिर वह संपूर्ण विश्वव्यापी कला तक पहुँच गए। | |||
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अपने कला विषयक ज्ञान के बल पर कारंत ने यक्षगान के अंतरंग | अपने कला विषयक ज्ञान के बल पर शिवराम कारंत ने यक्षगान के अंतरंग में प्रवेश करने का साहस किया। कला विषयक क्षेत्र में उनका योगदान महत्त्वपूर्ण माना जाता है। शिवराम कारंत ने अपना ध्यान मानव और उसकी परिस्थिति को देखने पर केंद्रित किया। उनके कई उपन्यास एक के बाद एक प्रकाशित हुए। इससे स्पष्ट होता है कि चारों ओर के वास्तविक जीवन को उन्होंने बहुत सूक्ष्मता के साथ परखा था। सबसे अधिक वह इससे प्रभावित हुए कि बड़ी दु:खद घटनाओं के बीच भी मनुष्य की सहज जीने की इच्छा बनी रहती है। | ||
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==कृतियाँ== | ==कृतियाँ== | ||
[[चित्र:Mukajji-cover.jpg|thumb|मूकज्जी उपन्यास]] | |||
शिवराम कारंत की प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार है:- | शिवराम कारंत की प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार है:- | ||
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*नारद गर्वभंग ([[1932]]) | | | ||
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* | * हुच्चु मनस्सिन हत्तु मुखगलु | ||
* | ; यात्रा-वृतांत | ||
* चित्रमय दक्षिण कन्नड़ (1934) | |||
;कला विषयक | |||
* | * भारतीय चित्रकले ([[1930]]) | ||
* | * यक्षगान ([[1971]]) | ||
* | * चालुक्य वास्तुशिल्प ([[1969]]) | ||
* | * भारतीय वास्तुशिल्प ([[1975]]) | ||
* कला प्रपंच ([[1978]]) | |||
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* | ;उपन्यास | ||
* देवदूतरु ([[1928]]) | |||
* सरसम्मन समाधि ([[1937]]) | |||
*ज्ञान | * मुगिद युद्ध([[1945]]) | ||
*चिक्कदोड्डवरू | * कुडियर कूसु ([[1951]]) | ||
*हल्लिय हत्तु समस्तरु | * गोंडारण्य ([[1954]]) | ||
* जगदोद्धारना ([[1960]]) | |||
* उक्किदा नोरे ([[1970]]) | |||
* केवल मनुष्यरु ([[1971]]) | |||
* मृजन्म ([[1974]]) | |||
* मूकज्जी ([[1979]]) | |||
* | ;निबंध | ||
* | * ज्ञान | ||
* | * चिक्कदोड्डवरू | ||
* | * हल्लिय हत्तु समस्तरु | ||
;विश्व कोश, शब्दकोश व ज्ञान विषयक | |||
* बाल प्रपंच ([[1936]]) | |||
* सिरिगन्नड अर्थकोश ([[1941]]) | |||
* विज्ञान प्रपंच ([[1956]]) | |||
* विचित्र खगोल([[1965]]) | |||
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==सम्मान और पुरस्कार== | |||
शिवराम कारंत को '[[पद्म भूषण]]' से सम्मानित किया गया था, किंतु उन्होंने [[आपात काल]] के दौरान इसे लौटा दिया। वर्ष [[1959]] में उन्हें '[[साहित्य अकादमी पुरस्कार]]' से सम्मानित किया गया। इसके बाद वर्ष [[1977]] में '[[ज्ञानपीठ पुरस्कार]]' से भी उनका सम्मान किया गया था। | |||
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*[http://ramyantar.blogspot.com/2009/10/blog-post_10.html सच्चा शरणम्] | *[http://ramyantar.blogspot.com/2009/10/blog-post_10.html सच्चा शरणम्] | ||
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शिवराम कारंत
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पूरा नाम | कोटा शिवराम कारंत |
जन्म | 10 अक्टूबर, 1902 |
जन्म भूमि | कोटा, कर्नाटक |
मृत्यु | 9 दिसम्बर, 1997 |
मृत्यु स्थान | उडुपी, कर्नाटक |
कर्म भूमि | कर्नाटक |
कर्म-क्षेत्र | स्वतंत्र लेखन |
मुख्य रचनाएँ | 'गर्भगुडि', 'एकांत नाटकगलु', 'मुक्तद्वार', 'चोमन दुड़ि', 'मरलि मण्णिगे', 'बेट्टद जीव' आदि। |
भाषा | कन्नड़ |
पुरस्कार-उपाधि | डी.लिट., साहित्य अकादमी पुरस्कार (1958), ज्ञानपीठ पुरस्कार (1977), स्वीडिश अकादमी पुरस्कार (1960) |
नागरिकता | भारतीय |
विधा | नाटक, उपन्यास, कहानी, आत्मकथा। |
अन्य जानकारी | शिवराम कारंत को देश के प्रतिष्ठित सम्मान 'पद्म भूषण' से भी सम्मानित किया गया था, किंतु उन्होंने आपात काल के दौरान इसे लौटा दिया। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
कोटा शिवराम कारंत (अंग्रेज़ी: Kota Shivaram Karanth, जन्म- 10 अक्टूबर, 1902, कोटा, कर्नाटक; मृत्यु- 9 दिसम्बर, 1997, उडुपी) कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार थे। अपने कला विषयक ज्ञान के बल पर उन्होंने यक्षगान के अंतरंग में प्रवेश करने का साहस किया। कला विषयक क्षेत्र में शिवराम कारंत का योगदान महत्त्वपूर्ण माना जाता है। उन्होंने अपनी पैनी दृष्टि से बहुत पहले ही भांप लिया था कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली में क्या कमी और दोष हैं और फिर अवसर आते ही अपने विचार को व्यावहारिक रूप देने के लिए वह स्वयं पाठ्य पुस्तकें लिखने, शब्दकोशों तथा विश्वकोशों को तैयार करने में जी जान से जुट पड़े थे।
व्यक्तिगत जीवन
कोटा शिवराम कारंत के मन में बचपन से ही प्रकृति के प्रति बहुत आकर्षण था। स्कूल की पढ़ाई ने उन्हें कभी नहीं बांधा। यही कारण था कि 1922 में गांधीजी की पुकार कान में पड़ते ही वह कॉलेज छोड़कर रचनात्मक कार्यक्रम में लग गए। कुछ ही समय के भीतर उन्हें लगा समाज को सुधारने से पहले लोगों की प्रकृति और सारी स्थिति को समझ लेना बहुत आवश्यक है, अत: वहीं से वह एक स्वतंत्र पथ का निर्माण करने में जुट पड़े उन्होंने अपनी पैनी दृष्टि से बहुत पहले ही भांप लिया था कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली में क्या कमी और दोष हैं और फिर अवसर आते ही अपने विचार को व्यावहारिक रूप देने के लिए वह स्वयं पाठ्य पुस्तकें लिखने, शब्दकोशों तथा विश्वकोशों को तैयार करने में जी जान से जुट पड़े। शुरुआत उन्होंने कर्नाटक कला से की और फिर वह संपूर्ण विश्वव्यापी कला तक पहुँच गए।
कला विषयक ज्ञान
अपने कला विषयक ज्ञान के बल पर शिवराम कारंत ने यक्षगान के अंतरंग में प्रवेश करने का साहस किया। कला विषयक क्षेत्र में उनका योगदान महत्त्वपूर्ण माना जाता है। शिवराम कारंत ने अपना ध्यान मानव और उसकी परिस्थिति को देखने पर केंद्रित किया। उनके कई उपन्यास एक के बाद एक प्रकाशित हुए। इससे स्पष्ट होता है कि चारों ओर के वास्तविक जीवन को उन्होंने बहुत सूक्ष्मता के साथ परखा था। सबसे अधिक वह इससे प्रभावित हुए कि बड़ी दु:खद घटनाओं के बीच भी मनुष्य की सहज जीने की इच्छा बनी रहती है।
मूकज्जिय कनसुगलु
मूकज्जिय कनसुगलु [1] में शिवराम कारंत ने अन्वेषण की एक बिल्कुल नई और विराट यात्रा की है। उनका उद्देश्य (हिन्दी अनुवाद मूकज्जी) पुस्तक के माध्यम से प्रागैतिहासिक काल से लेकर वर्तमान काल तक की मानव सभ्यता का परिचय देना था। उन्होंने एक ऐसी विधवा वृद्धा की कल्पना की, जिसकी कुछ अधिमानसिक संवेदनाएँ जाग्रत थी। वह इस कृति द्वारा यह प्रमाणित करना चाहते थे कि मनुष्य की ईश्वर संबंधी धारणा इतिहास में निरंतर बदलती आई है और सेक्स जैसी जैविक प्रवृत्तियाँ जीवन का इतना अनिवार्य अंग है कि वैराग्य धारण के नाम उनकी वर्जना सर्वथा अनुचित है। यह वृद्धा देश के प्राचीन मूल्यों के प्रतिनिधि - रूप पीपल के पेड़ तले बैठ कर अपने पौत्र को, अर्थात् हम सभी को सुदूर अतीत का दर्शन कराती है और इस प्रत्येक प्रसंग में उनका बल एक ही बात पर होता कि हम जीवन को, जैसा वह था और जैसा अब है एक साथ लेते हुए संपूर्ण रूप में देखें। आदि से अंत तक इस उपन्यास में काल के सौ छोरों को एक साथ लेकर कांरत ने अपना वक्तव्य वृद्धा मूकज्जी के माध्यम से प्रस्तुत किया है।
चोमाना दुडि
शिवराम कारंत के उपन्यास 'चोमाना दुडि' पर इसी नाम से फ़िल्म भी बन चुकी है, जिसे 1976 का सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का 'राष्ट्रीय पुरस्कार' भी मिल चुका है।
कृतियाँ
शिवराम कारंत की प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार है:-
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सम्मान और पुरस्कार
शिवराम कारंत को 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया गया था, किंतु उन्होंने आपात काल के दौरान इसे लौटा दिया। वर्ष 1959 में उन्हें 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' से सम्मानित किया गया। इसके बाद वर्ष 1977 में 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से भी उनका सम्मान किया गया था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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