"पोषण": अवतरणों में अंतर
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इस प्रक्रिया में जीव अपने भोजन को शरीर के अन्दर पहुँचाता है। यह प्रक्रिया विभिन्न जीवों में विभिन्न प्रकार से होती है। अमीबा जैसे सरल प्राणी में भोजन शरीर के किसी भी भाग (कूटपाद) द्वारा पकड़ लिया जाता है और सीधा खाद्य रिक्तिका में चला जाता है। हाइड्रा अपने स्पर्शकों द्वारा भोजन को पकड़कर मुख | इस प्रक्रिया में जीव अपने भोजन को शरीर के अन्दर पहुँचाता है। यह प्रक्रिया विभिन्न जीवों में विभिन्न प्रकार से होती है। अमीबा जैसे सरल प्राणी में भोजन शरीर के किसी भी भाग (कूटपाद) द्वारा पकड़ लिया जाता है और सीधा खाद्य रिक्तिका में चला जाता है। हाइड्रा अपने स्पर्शकों द्वारा भोजन को पकड़कर मुख द्वारा शरीर में पहुँचाता है। केंचुए में माँसल ग्रसनी भोजन के निगलने में सहायता प्रदान करती है। | ||
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भोजन के अघुलनशील एवं जटिल पदार्थों (कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा) को एन्जाइम्स के द्वारा घुलनशील एवं सरल अवयवों में परिवर्तित करने की प्रक्रिया '''पाचन''' कहलाती है। अमीबा में पाचन क्रिया खाद्य रिक्तिका में होती है। जिसे अन्तःकोशिकीय पाचन कहते हैं। मेंढक, पक्षी, पशु एवं मनुष्य में पाचन क्रिया आहारनाल के अन्दर होती है, जिसे बाह्यकोशिकीय पाचन कहते हैं। | भोजन के अघुलनशील एवं जटिल पदार्थों (कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा) को एन्जाइम्स के द्वारा घुलनशील एवं सरल अवयवों में परिवर्तित करने की प्रक्रिया '''पाचन''' कहलाती है। अमीबा में पाचन क्रिया खाद्य रिक्तिका में होती है। जिसे अन्तःकोशिकीय पाचन कहते हैं। मेंढक, पक्षी, पशु एवं मनुष्य में पाचन क्रिया [[आहारनाल]] के अन्दर होती है, जिसे बाह्यकोशिकीय पाचन कहते हैं। | ||
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पाचन क्रिया में भोजन का कुछ भाग अपचित के रूप में शेष रह जाता है। इस अपचित अंश को मल के रूप में शरीर से बाहर त्यागने की क्रिया को बहिःक्षेपण कहते हैं। अमीबा, पैरामीशियम आदि में अपचित भोजन खाद्य रिक्तिका में ही रहता है और बाद में विसर्जित कर दिया जाता है। | पाचन क्रिया में भोजन का कुछ भाग अपचित के रूप में शेष रह जाता है। इस अपचित अंश को मल के रूप में शरीर से बाहर त्यागने की क्रिया को बहिःक्षेपण कहते हैं। अमीबा, पैरामीशियम आदि में अपचित भोजन खाद्य रिक्तिका में ही रहता है और बाद में विसर्जित कर दिया जाता है। | ||
==भोजन की शरीर के लिए उपयोगिता या कार्य== | ==भोजन की शरीर के लिए उपयोगिता या कार्य== | ||
समस्त जीवधारियों को जीवित रहने के लिए ऊर्जी की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा भोजन से प्राप्त होती है। हमारे शरीर के लिए भोजन के चार मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं- | समस्त जीवधारियों को जीवित रहने के लिए ऊर्जी की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा भोजन से प्राप्त होती है। हमारे शरीर के लिए भोजन के चार मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं- | ||
#'''ऊर्जा की आपूर्ति:-''' शरीर के विभिन्न कार्यों के संचालन हेतु आवश्यक ऊर्जा के विभिन्न अवयवों मुख्यतः कार्बोहाइड्रेट एवं वसा के ऑक्सीकरण से प्राप्त होती है। | #'''ऊर्जा की आपूर्ति:-''' शरीर के विभिन्न कार्यों के संचालन हेतु आवश्यक ऊर्जा के विभिन्न अवयवों मुख्यतः कार्बोहाइड्रेट एवं वसा के ऑक्सीकरण से प्राप्त होती है। | ||
#'''शारीरिक वृद्धि एवं टूट–फूट की मरम्मत:-''' भोजन शरीर की वृद्धि एवं क्षतिग्रस्त अंगों एवं ऊतकों की मरम्मत में योगदान करता है। इस कार्य को प्रोटीन, [[खनिज]], [[लवण (रसायन विज्ञान)|लवण]], [[विटामिन्स]] आदि सम्पन्न करने में योगदन करते हैं। | #'''शारीरिक वृद्धि एवं टूट–फूट की मरम्मत:-''' भोजन शरीर की वृद्धि एवं क्षतिग्रस्त अंगों एवं ऊतकों की मरम्मत में योगदान करता है। इस कार्य को प्रोटीन, [[खनिज]], [[लवण (रसायन विज्ञान)|लवण]], [[विटामिन्स]] आदि सम्पन्न करने में योगदन करते हैं। | ||
#'''उपापचयी नियन्त्रण:-''' भोजन शरीर के विभिन्न अंगों एवं जन्तुओं को उचित दशा में बनाए रखता है और उनका उचित संचालन कर उपापचयी क्रियाओं पर नियन्त्रण रखने में योगदान करता है। इस कार्य में विटामिन्स, खनिज, लवण एवं जल की | #'''उपापचयी नियन्त्रण:-''' भोजन शरीर के विभिन्न अंगों एवं जन्तुओं को उचित दशा में बनाए रखता है और उनका उचित संचालन कर उपापचयी क्रियाओं पर नियन्त्रण रखने में योगदान करता है। इस कार्य में विटामिन्स, खनिज, लवण एवं जल की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। | ||
#'''रोगों से रक्षा:-''' सन्तुलित भोजन शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाता है। प्रोटीन, खनिज लवण, विटामिन आदि इस कार्य के लिए | #'''रोगों से रक्षा:-''' सन्तुलित भोजन शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाता है। प्रोटीन, खनिज लवण, विटामिन आदि इस कार्य के लिए महत्त्वपूर्ण पदार्थ हैं। इस प्रकार भोजन शरीर की रोगों से रक्षा करता है। | ||
==भोजन के मुख्य तत्व== | ==भोजन के मुख्य तत्व== | ||
भोजन में कार्बोहाइड्रेट, वसा, खनिज, लवण, विटामिन्स, जल आदि प्रमुख पोषक | भोजन में कार्बोहाइड्रेट, वसा, खनिज, लवण, विटामिन्स, जल आदि प्रमुख पोषक तत्त्व होते हैं। इन पोषक तत्वों को कार्यों के आधार पर निम्नलिखित समूहों में बाँटा जाता है- | ||
#'''ऊर्जा प्रदान करने वाले तत्व:-''' इसके अन्तर्गत कार्बोहाइड्रेट तथा वसा आते हैं, जो मुख्यतः अनाज, घी, शक्कर, तेल से प्राप्त होते हैं। | #'''ऊर्जा प्रदान करने वाले तत्व:-''' इसके अन्तर्गत कार्बोहाइड्रेट तथा वसा आते हैं, जो मुख्यतः अनाज, घी, शक्कर, तेल से प्राप्त होते हैं। | ||
#'''निर्माणकारी तत्व:-''' इसके अन्तर्गत कोशिकाओं की मरम्मत, तथा जीवद्रव्य के निर्माण में भाग लेने वाले | #'''निर्माणकारी तत्व:-''' इसके अन्तर्गत कोशिकाओं की मरम्मत, तथा जीवद्रव्य के निर्माण में भाग लेने वाले तत्त्व जैसे- प्रोटीन, वसा तथा जल आते हैं। माँस, मछली, अण्डा, दाल, तिलहन आदि इनके प्रमुख स्रोत हैं। | ||
#'''प्रतिरक्षा प्रदान करने वाले तत्व:-''' इसके अन्तर्गत प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने वाले | #'''प्रतिरक्षा प्रदान करने वाले तत्व:-''' इसके अन्तर्गत प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने वाले तत्त्व जैसे- विटामिन तथा खनिज लवण आते हैं। | ||
==भोजन के अवयव - रासायनिक वर्गीकरण== | ==भोजन के अवयव - रासायनिक वर्गीकरण== | ||
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07:03, 25 मई 2011 के समय का अवतरण
(अंग्रेज़ी:Nutrition) सजीवों के शरीर में जैविक क्रियाओं के संचालन हेतु ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा भोजन से प्राप्त होती है। सजीवों द्वारा भोजन (पोषक पदार्थों) का अन्तर्ग्रहण, पाचन, अवशोषण और स्वांगीकरण करने एवं अपच पदार्थ का परित्याग करने की सम्पूर्ण प्रक्रिया को पोषण कहते हैं। ऊर्जा उत्पादन तथा शारीरिक वृद्धि एवं टूट–फूट की मरम्मत के लिए आवश्यक पदार्थों को पोषक पदार्थ कहते हैं। कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन एवं वसा समस्त जीवों के प्रमुख बृहत् पोषक पदार्थ होते हैं।
जन्तु के पोषण की विभिन्न अवस्थाएँ
जन्तुओं में पोषण की निम्नलिखित पाँच अवस्थाएँ होती हैं-
- अन्तर्ग्रहण
इस प्रक्रिया में जीव अपने भोजन को शरीर के अन्दर पहुँचाता है। यह प्रक्रिया विभिन्न जीवों में विभिन्न प्रकार से होती है। अमीबा जैसे सरल प्राणी में भोजन शरीर के किसी भी भाग (कूटपाद) द्वारा पकड़ लिया जाता है और सीधा खाद्य रिक्तिका में चला जाता है। हाइड्रा अपने स्पर्शकों द्वारा भोजन को पकड़कर मुख द्वारा शरीर में पहुँचाता है। केंचुए में माँसल ग्रसनी भोजन के निगलने में सहायता प्रदान करती है।
- पाचन
भोजन के अघुलनशील एवं जटिल पदार्थों (कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा) को एन्जाइम्स के द्वारा घुलनशील एवं सरल अवयवों में परिवर्तित करने की प्रक्रिया पाचन कहलाती है। अमीबा में पाचन क्रिया खाद्य रिक्तिका में होती है। जिसे अन्तःकोशिकीय पाचन कहते हैं। मेंढक, पक्षी, पशु एवं मनुष्य में पाचन क्रिया आहारनाल के अन्दर होती है, जिसे बाह्यकोशिकीय पाचन कहते हैं।
- अवशोषण
इस प्रक्रिया में पचा हुआ तरल भोजन कोशिका द्रव्य या रुधिर आदि में अवशोषित हो जाता है। अमीबा तथा पैरामीशियम आदि में पचा हुआ भोजन खाद्य रिक्तिका की झिल्ली से विसरित होकर कोशिकाद्रव्य में आ जाता है।
- स्वांगीकरण
पचे हुए भोजन का अवशोषण होकर रुधिर में मिलना और फिर कोशिकाओं में मिलकर जीवद्रव्य में आत्मसात हो जाने की क्रिया को स्वांगीकरण कहते हैं। कोशिकाओं के अन्दर इस पचे हुए भोजन के ऑक्सीकरण होने से ऊर्जा उत्पन्न होती है।
- बहिःक्षेपण
पाचन क्रिया में भोजन का कुछ भाग अपचित के रूप में शेष रह जाता है। इस अपचित अंश को मल के रूप में शरीर से बाहर त्यागने की क्रिया को बहिःक्षेपण कहते हैं। अमीबा, पैरामीशियम आदि में अपचित भोजन खाद्य रिक्तिका में ही रहता है और बाद में विसर्जित कर दिया जाता है।
भोजन की शरीर के लिए उपयोगिता या कार्य
समस्त जीवधारियों को जीवित रहने के लिए ऊर्जी की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा भोजन से प्राप्त होती है। हमारे शरीर के लिए भोजन के चार मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं-
- ऊर्जा की आपूर्ति:- शरीर के विभिन्न कार्यों के संचालन हेतु आवश्यक ऊर्जा के विभिन्न अवयवों मुख्यतः कार्बोहाइड्रेट एवं वसा के ऑक्सीकरण से प्राप्त होती है।
- शारीरिक वृद्धि एवं टूट–फूट की मरम्मत:- भोजन शरीर की वृद्धि एवं क्षतिग्रस्त अंगों एवं ऊतकों की मरम्मत में योगदान करता है। इस कार्य को प्रोटीन, खनिज, लवण, विटामिन्स आदि सम्पन्न करने में योगदन करते हैं।
- उपापचयी नियन्त्रण:- भोजन शरीर के विभिन्न अंगों एवं जन्तुओं को उचित दशा में बनाए रखता है और उनका उचित संचालन कर उपापचयी क्रियाओं पर नियन्त्रण रखने में योगदान करता है। इस कार्य में विटामिन्स, खनिज, लवण एवं जल की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
- रोगों से रक्षा:- सन्तुलित भोजन शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाता है। प्रोटीन, खनिज लवण, विटामिन आदि इस कार्य के लिए महत्त्वपूर्ण पदार्थ हैं। इस प्रकार भोजन शरीर की रोगों से रक्षा करता है।
भोजन के मुख्य तत्व
भोजन में कार्बोहाइड्रेट, वसा, खनिज, लवण, विटामिन्स, जल आदि प्रमुख पोषक तत्त्व होते हैं। इन पोषक तत्वों को कार्यों के आधार पर निम्नलिखित समूहों में बाँटा जाता है-
- ऊर्जा प्रदान करने वाले तत्व:- इसके अन्तर्गत कार्बोहाइड्रेट तथा वसा आते हैं, जो मुख्यतः अनाज, घी, शक्कर, तेल से प्राप्त होते हैं।
- निर्माणकारी तत्व:- इसके अन्तर्गत कोशिकाओं की मरम्मत, तथा जीवद्रव्य के निर्माण में भाग लेने वाले तत्त्व जैसे- प्रोटीन, वसा तथा जल आते हैं। माँस, मछली, अण्डा, दाल, तिलहन आदि इनके प्रमुख स्रोत हैं।
- प्रतिरक्षा प्रदान करने वाले तत्व:- इसके अन्तर्गत प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने वाले तत्त्व जैसे- विटामिन तथा खनिज लवण आते हैं।
भोजन के अवयव - रासायनिक वर्गीकरण
भोजन का रासायनिक संरचना के आधार पर निम्नवत वर्गीकृत किया जा सकता है
कार्बनिक | अकार्बनिक |
---|---|
कार्बोहाइड्रेट | खनिज लवण |
वसा | जल |
प्रोटीन | |
विटामिन्स | |
न्यूक्लिक अम्ल |
- कार्बोहाइड्रेट
कार्बोहाइड्रेट कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन के यौगिक होते हैं। सरल कार्बोहाइड्रेट के रूप में शर्कराएँ ग्लूकोज़, फ्रुक्टोज़, लैक्टोज़ आदि प्रमुख हैं। गन्ना, चुकन्दर, खजूर, अंगूर इनके प्रमुख स्रोत हैं।
- वसा
वसा जटिल कार्बनिक अम्लों, वसीय अम्लों द्वारा निर्मिल यौगिक होते हैं तथा शाकाहारी तथा माँसाहारी दोनों प्रकार के भोजन से प्राप्त होती हैं। कार्बोहाइड्रेट की कमी की स्थिति में वसा से ऊर्जा प्राप्त होती है।
- प्रोटीन
प्रोटीन जटिल कार्बनिक यौगिक होते हैं तथा इनका निर्माण अमीनों अम्लों से होता है। जन्तु प्रोटीन माँस, मछली, दूध, अण्डा, पनीर से प्राप्त होती है। वनस्पति प्रोटीन मुख्यतः गेहूँ, मूँगफली, बादाम तथा अन्य सूखे मेवों से प्राप्त होती है।
- विटामिन
विटामिन जटिल कार्बनिक पदार्थ होते हैं तथा शरीर की उपापचयी क्रियाओं में भाग लेते हैं। इन्हें वृद्धिकारक भी कहते हैं। इनकी कमी से अपूर्णता रोग हो जाते हैं।
- खनिज लवण
खनिज लवण शरीर की जैविक क्रियाओं के संचालन के लिए आवश्यक होते हैं। दूध, पनीर, अण्डा, मछली, फल, हरी पत्तेदार सब्जियाँ खनिज लवणों का प्रमुख स्रोत हैं।
- जल
जल हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन का यौगिक होता है। जल जीवद्रव्य का मुख्य भाग बनाता है। प्रत्येक कोशिकीय क्रिया जल में ही होती है। जीवद्रव्य की सक्रियता जल की कमी के साथ कम हो जाती है। जल शरीर के ताप नियमन में सहायता करता है तथा रुधिर के प्रमुख घटक प्लाज्मा का निर्माण करता है।
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