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[[भारत]] के वृज्जि गणराज्य की वैशाली नगरी के निकट [[कुण्डग्राम]] में राजा सिद्धार्थ अपनी पत्नी प्रियकारिणी के साथ निवास करते थे। [[इन्द्र]] ने यह जानकर कि प्रियकारिणी के गर्भ से तीर्थंकर पुत्र का जन्म होने वाला है, उन्होंने प्रियकारिणी की सेवा के लिए षटकुमारिका देवियों को भेजा। प्रियकारिणी ने [[ऐरावत]] हाथी के स्वप्न देखे, जिससे राजा सिद्धार्थ ने भी यही अनुमान लगाया कि तीर्थंकर का जन्म होगा। [[आषाढ़]], [[शुक्ल पक्ष]] की [[षष्ठी]] के अवसर पर पुरुषोत्तर विमान से आकर [[प्राणतेन्द्र]] ने प्रियकारिणी के गर्भ में प्रवेश किया। [[चैत्र]], [[शुक्ल पक्ष]] की [[त्रयोदशी]] को [[सोमवार]] के दिन वर्धमान का जन्म हुआ। देवताओं को इसका पूर्वाभास था। अत: सबने विभिन्न प्रकार के उत्सव मनाये तथा बालक को विभिन्न नामों से विभूषित किया। इस बालक का नाम सौधर्मेन्द्र ने वर्धमान रखा तो ऋद्धिधारी मुनियों ने सन्मति रखा। संगमदेव ने उसके अपरिमित साहस की परीक्षा लेकर उसे महावीर नाम से अभिहित किया।
[[चित्र:Mahaveer.jpg|महावीर<br /> Mahaveer|thumb|250px]]
'''वर्धमान / महावीर स्वामी''' <br />
महावीर स्वामी (वर्धमान) (जन्म- 599 ई.पू.  —  मृत्यु- 527 ई.पू.) विश्व के उन महात्माओं में से एक थे जिन्होंने मानवता के कल्याण के लिए राजपाट छोड़कर तप और त्याग का मार्ग अपनाया था। बचपन से ही उनमें महानता के लक्षण दृष्टिगत होने लगे थे। 30 वर्ष की आयु में वन में जाकर 'केशलोच' के साथ उन्होंने गृह त्याग कर दिया। 12 वर्ष के कठोर तप के बाद जम्बक में एक शाल वृक्ष के नीचे उन्हें सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ और क्रमशः उनके उपदेश चतुर्दिक फैलने लगे। [[बिम्बिसार]] जैसे बड़े-बड़े राजा उनके अनुयायी बन गये। तीस वर्ष तक महावीर ने त्याग, प्रेम एवं अहिंसा का संदेश फैलाया। [[जैन धर्म]] के वे 24वें [[तीर्थंकर]] थे। वर्धमान महावीर का जन्मदिन [[महावीर जयन्ती]] के रूप में मनाया जाता है।


[[महावीर]] के तीस वर्ष सुख-सम्पदा में व्यतीत हुए। उनके मन में वैराग्य उत्पन्न हुआ तो लोकांतक देवों ने उस भाव को विशेष प्रश्रय दिया। [[मार्गशीर्ष]], [[कृष्णपक्ष]] की [[दशमी]] के अवसर पर महावीर ने गृहत्याग कर दीक्षा ग्रहण की। उत्तरोत्तर अलौकिक उपलब्धियाँ बढ़ती गईं। सबसे पहले उन्होंने सात ऋद्धियाँ प्राप्त कीं। '''एक श्मशान में [[रुद्र]] के उपसर्ग को धैर्यपूर्ण ग्रहण कर अविचल रहने के कारण वे 'महातिवीर' कहलाए।'''  
==जन्म और शिक्षा==
वर्धमान (महावीर) का जन्म 599 ई.पू. [[वैशाली]] (जो अब [[बिहार]] प्रान्त)  के एक क्षत्रिय परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम सिद्धार्थ और माता का नाम त्रिशिला था। वर्धमान [[चैत्र]] शुक्ला, 13 को [[सोमवार]] की प्रातः जन्मे थे। 5 वर्ष की आयु में उन्हें गुरुकुल में पढ़ने के लिए भेज दिया गया। वे [[संस्कृत]] के प्रकाण्ड विद्वान थे। लेकिन बाल्यकाल से ही वे आध्यात्मिक विषयों के बारे में सोचते रहते थे। वर्धमान के तीस वर्ष सुख-सम्पदा में व्यतीत हुए। श्वेतांबर जैनियों के अनुसार उनका विवाह यशोदा नामक कन्या से हुआ था, जिससे उन्हें एक पुत्री प्रियदर्शन उत्पन्न हुई। उनके मन में वैराग्य उत्पन्न हुआ तो लोकांतक देवों ने उस भाव को विशेष प्रश्रय दिया। [[मार्गशीर्ष]], [[कृष्णपक्ष]] की [[दशमी]] के अवसर पर महावीर ने गृहत्याग कर दीक्षा ग्रहण की। उत्तरोत्तर अलौकिक उपलब्धियाँ बढ़ती गईं। सबसे पहले उन्होंने सात ऋद्धियाँ प्राप्त कीं। '''एक श्मशान में [[रुद्र]] के उपसर्ग को धैर्यपूर्ण ग्रहण कर अविचल रहने के कारण वे 'महातिवीर' कहलाए।'''  
==ज्ञान की प्राप्ति==
30 वर्ष की आयु में महावीर ने गृहत्याग दिया और एक वर्ष तक वस्त्र धारण करके भटकते रहे। तत्पश्चात् उन्होंने वस्त्र, भिक्षापात्र आदि सभी चीज़ों का त्याग कर दिया और घोर तपस्या में लीन हो गये। लगभग 12 वर्षों के कठोर तप के पश्चात् उन्हें '[[कैवल्य ज्ञान]]' प्राप्त हुआ। तत्पश्चात् उन्होंने जीवन भर घूम-घूम कर अपने मत का प्रचार किया। [[वैशाख]], [[शुक्ल पक्ष]] की दशमी के अवसर पर ऋजुकुला नदी के तट पर स्थित जृंजग्राम में उन्हें केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई। देवताओं ने तरह-तरह से अपने हर्ष का उदघोष किया। इन्द्र ने [[कुबेर]] को आज्ञा दी कि वह समवसरण की रचना करे। इन्द्र स्वयं गौतम ग्राम से इन्द्रभूति ब्राह्मण को, उसके पाँच सौ शिष्यों सहित लाया। उन सबने वर्धमान का शिष्यत्व ग्रहण किया। इस प्रकार महावीर ने लगभग तीन वर्ष तक धर्म का प्रचार किया। तदुपरान्त [[कार्तिक]], [[कृष्ण पक्ष]] की [[चतुर्दशी]] के अन्तिम मुहूर्त में उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया।<ref>वर्धमान चरितम, सर्ग 17-18</ref>


[[वैशाख]], [[शुक्ल पक्ष]] की दशमी के अवसर पर ऋजुकुला नदी के तट पर स्थित जृंजग्राम में उन्हें केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई। देवताओं ने तरह-तरह से अपने हर्ष का उदघोष किया। इन्द्र ने [[कुबेर]] को आज्ञा दी कि वह समवसरण की रचना करे। इन्द्र स्वयं गौतम ग्राम से इन्द्रभूति ब्राह्मण को, उसके पाँच सौ शिष्यों सहित लाया। उन सबने वर्धमान का शिष्यत्व ग्रहण किया। इस प्रकार महावीर ने लगभग तीन वर्ष तक धर्म का प्रचार किया। तदुपरान्त [[कार्तिक]], [[कृष्ण पक्ष]] की [[चतुर्दशी]] के अन्तिम मुहूर्त में उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया।<ref>वर्धमान चरितम, सर्ग 17-18</ref>
==निधन==
विश्वबंधुत्व और समानता का आलोक फैलाने वाले महावीर स्वामी, 527 ई.पू.72 वर्ष की आयु में पावापुरी ([[बिहार]]) में कार्तिक कृष्णा 14 ([[दीपावली]] की पूर्व संध्या) को निर्वाण को प्राप्त हुए।


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07:35, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

महावीर
Mahaveer

वर्धमान / महावीर स्वामी
महावीर स्वामी (वर्धमान) (जन्म- 599 ई.पू. — मृत्यु- 527 ई.पू.) विश्व के उन महात्माओं में से एक थे जिन्होंने मानवता के कल्याण के लिए राजपाट छोड़कर तप और त्याग का मार्ग अपनाया था। बचपन से ही उनमें महानता के लक्षण दृष्टिगत होने लगे थे। 30 वर्ष की आयु में वन में जाकर 'केशलोच' के साथ उन्होंने गृह त्याग कर दिया। 12 वर्ष के कठोर तप के बाद जम्बक में एक शाल वृक्ष के नीचे उन्हें सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ और क्रमशः उनके उपदेश चतुर्दिक फैलने लगे। बिम्बिसार जैसे बड़े-बड़े राजा उनके अनुयायी बन गये। तीस वर्ष तक महावीर ने त्याग, प्रेम एवं अहिंसा का संदेश फैलाया। जैन धर्म के वे 24वें तीर्थंकर थे। वर्धमान महावीर का जन्मदिन महावीर जयन्ती के रूप में मनाया जाता है।

जन्म और शिक्षा

वर्धमान (महावीर) का जन्म 599 ई.पू. वैशाली (जो अब बिहार प्रान्त) के एक क्षत्रिय परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम सिद्धार्थ और माता का नाम त्रिशिला था। वर्धमान चैत्र शुक्ला, 13 को सोमवार की प्रातः जन्मे थे। 5 वर्ष की आयु में उन्हें गुरुकुल में पढ़ने के लिए भेज दिया गया। वे संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान थे। लेकिन बाल्यकाल से ही वे आध्यात्मिक विषयों के बारे में सोचते रहते थे। वर्धमान के तीस वर्ष सुख-सम्पदा में व्यतीत हुए। श्वेतांबर जैनियों के अनुसार उनका विवाह यशोदा नामक कन्या से हुआ था, जिससे उन्हें एक पुत्री प्रियदर्शन उत्पन्न हुई। उनके मन में वैराग्य उत्पन्न हुआ तो लोकांतक देवों ने उस भाव को विशेष प्रश्रय दिया। मार्गशीर्ष, कृष्णपक्ष की दशमी के अवसर पर महावीर ने गृहत्याग कर दीक्षा ग्रहण की। उत्तरोत्तर अलौकिक उपलब्धियाँ बढ़ती गईं। सबसे पहले उन्होंने सात ऋद्धियाँ प्राप्त कीं। एक श्मशान में रुद्र के उपसर्ग को धैर्यपूर्ण ग्रहण कर अविचल रहने के कारण वे 'महातिवीर' कहलाए।

ज्ञान की प्राप्ति

30 वर्ष की आयु में महावीर ने गृहत्याग दिया और एक वर्ष तक वस्त्र धारण करके भटकते रहे। तत्पश्चात् उन्होंने वस्त्र, भिक्षापात्र आदि सभी चीज़ों का त्याग कर दिया और घोर तपस्या में लीन हो गये। लगभग 12 वर्षों के कठोर तप के पश्चात् उन्हें 'कैवल्य ज्ञान' प्राप्त हुआ। तत्पश्चात् उन्होंने जीवन भर घूम-घूम कर अपने मत का प्रचार किया। वैशाख, शुक्ल पक्ष की दशमी के अवसर पर ऋजुकुला नदी के तट पर स्थित जृंजग्राम में उन्हें केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई। देवताओं ने तरह-तरह से अपने हर्ष का उदघोष किया। इन्द्र ने कुबेर को आज्ञा दी कि वह समवसरण की रचना करे। इन्द्र स्वयं गौतम ग्राम से इन्द्रभूति ब्राह्मण को, उसके पाँच सौ शिष्यों सहित लाया। उन सबने वर्धमान का शिष्यत्व ग्रहण किया। इस प्रकार महावीर ने लगभग तीन वर्ष तक धर्म का प्रचार किया। तदुपरान्त कार्तिक, कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के अन्तिम मुहूर्त में उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया।[1]

निधन

विश्वबंधुत्व और समानता का आलोक फैलाने वाले महावीर स्वामी, 527 ई.पू.72 वर्ष की आयु में पावापुरी (बिहार) में कार्तिक कृष्णा 14 (दीपावली की पूर्व संध्या) को निर्वाण को प्राप्त हुए।

इन्हें भी देखें: महावीर एवं महावीर जयन्ती



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वर्धमान चरितम, सर्ग 17-18

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