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'''मुस्लिम लीग''' का मूल नाम '''अखिल भारतीय मुस्लिम लीग''' था। यह एक राजनीतिक समूह था, जिसने ब्रिटिश [[भारत]] के विभाजन (1947) से निर्मित एक अलग मुस्लिम राष्ट्र के लिए आन्दोलन चलाया।
[[चित्र:Mohammad Ali Jinnah.jpg|thumb|[[मुहम्मद अली जिन्ना]]]]
====स्थापना एवं उद्देश्य====
'''मुस्लिम लीग''' का मूल नाम 'अखिल भारतीय मुस्लिम लीग' था। यह एक राजनीतिक समूह था, जिसने ब्रिटिश भारत के विभाजन ([[1947]] ई.) से निर्मित एक अलग [[मुस्लिम]] राष्ट्र के लिए आन्दोलन चलाया। मुस्लिम नेताओं, विशेषकर [[मुहम्मद अली जिन्ना]] ने इस बात का भय जताया कि स्वतंत्र होने पर [[भारत]] में सिर्फ़ [[हिन्दू|हिन्दुओं]] का ही वर्चस्व रहेगा। इसीलिए उन्होंने [[मुस्लिम|मुस्लिमों]] के लिए अलग से एक राष्ट्र की मांग को बार-बार दुहराया।
'''मुस्लिम लीग''' की स्थापना भारतीय मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा के लिए '''दिसम्बर, 1906 में हुई'''। पहले लीग को [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] ने प्रोत्साहित किया, जो आमतौर पर उनके शासन के लिए अनुकूल थी। लेकिन इस संगठन ने 1913 में भारत के लिए स्वशासन का लक्ष्य बना लिया। कई दशकों तक लीग और उसके नेता, विशेष रूप से [[मुहम्मद अली जिन्ना]], संगठित एवं स्वतंत्र भारत में हिन्दू-मुस्लिम एकता का आह्वान करते रहे। 1940 तक तो लीग ने प्रस्तावित स्वंतत्र भारत देश से अलग मुस्लिम राष्ट्र के गठन की माँग नहीं की, लेकिन उसके बाद लीग भारतीय मुसलमानों के लिए अलग से एक राष्ट्र चाहने लगी, क्योंकि उसे आशंका थी कि स्वतंत्र भारत में हिन्दुओं का ही प्रभुत्व रहेगा।
==लीग की स्थापना==
====संगठन की अक्षमता====  
[[1 अक्टूबर]], [[1906]] ई. को एच.एच. आगा ख़ाँ के नेतृत्व में मुस्लिमों का एक दल [[वायसराय]] [[लॉर्ड मिण्टो द्वितीय|लॉर्ड मिण्टो]] से [[शिमला]] में मिला। [[अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय|अलीगढ़ कॉलेज]] के प्रिंसपल आर्चबोल्ड इस प्रतिनिधिमण्डल के जनक थे। इस प्रतिनिधिमण्डल ने वायसराय से अनुरोध किया कि प्रान्तीय, केन्द्रीय व स्थानीय निर्वाचन हेतु मुस्लिमों के लिए पृथक् साम्प्रादायिक निर्वाचन की व्यवस्था की जाय। इस शिष्टमण्डल को भेजने के पीछे [[अंग्रेज़]] उच्च अधिकारियों का हाथ था। मिण्टो ने इनकी मांगो का पूर्ण समर्थन किया। जिसके फलस्वरूप मुस्लिम नेताओं ने [[ढाका]] के नवाब सलीमुल्ला के नेतृत्व में [[30 दिसम्बर]], 1906 ई. को ढाका में 'मुस्लिम लीग' की स्थापना की।
'''मुहम्मद अली जिन्ना''' तथा '''मुस्लिम लीग''' ने ब्रिटिश [[भारत]] को हिन्दू व मुस्लिम राष्ट्रों में विभाजित करने की माँग वाले आन्दोलन का नेतृत्व किया और 1947 में [[पाकिस्तान]] के गठन के बाद लीग पाकिस्तान का प्रमुख राजनीतिक दल बन गई। इसी साल इसका नाम बदलकर '''ऑल पाकिस्तान मुस्लिम लीग''' कर दिया गया, लेकिन पाकिस्तान में आधुनिक राजनीतिक दल के रूप में लीग उतने कारगर ढंग से काम नहीं कर सकी, जैसा यह ब्रिटिश भारत में जनआधारित दबाव गुट के रूप में काम करती थी और इस तरह से धीरे-धीरे इसकी लोकप्रियता व संगठन की क्षमता घटती चली गई। 1954 के चुनावों में मुस्लिम लीग ने पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान [[बांग्लादेश]]) में सत्ता खो दी और इसके तुरन्त बाद ही पार्टी ने '''पश्चिमी पाकिस्तान (वर्तमान पाकिस्तान)''' में भी सत्ता खो दी। 1960 के दशक के अन्त में पार्टी विभिन्न गुटों में बँट गई और 1970 के दशक तक यह पूरी तरह से ग़ायब हो चुकी थी।


सलीमुल्ला ख़ाँ 'मुस्लिम लीग' के संस्थापक व अध्यक्ष थे, जबकि प्रथम अधिवेशन की अध्यक्षता मुश्ताक हुसैन ने की। इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य था- 'भारतीय मुस्लिमों में ब्रिटिश सरकार के प्रति [[भक्ति]] उत्पत्र करना व भारतीय मुस्लिमों के राजनीतिक व अन्य अधिकारो की रक्षा करना।' 'मुस्लिम लीग' ने अपने [[अमृतसर]] के अधिवेशन में मुस्लिमों के पृथक् निर्वाचक मण्डल की मांग की, जो [[1909]] ई. में [[मार्ले-मिण्टो सुधार|मार्ले-मिण्टो सुधारों]] के द्वारा प्रदान कर दिया गया। लीग ने [[1916]] ई. के '[[लखनऊ समझौता|लखनऊ समझौते]]' के आधार पर [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] का समर्थन करने के अतिरिक्त कभी भी भारतीयों के राजनीतिक अधिकारों की मांग नहीं की।
==संगठन की अक्षमता==
मुहम्मद अली जिन्ना तथा 'मुस्लिम लीग' ने ब्रिटिश भारत को हिन्दू व मुस्लिम राष्ट्रों में विभाजित करने की माँग वाले आन्दोलन का नेतृत्व किया और [[1947]] ई. में [[पाकिस्तान]] के गठन के बाद लीग पाकिस्तान का प्रमुख राजनीतिक दल बन गई। इसी साल इसका नाम बदलकर 'ऑल पाकिस्तान मुस्लिम लीग' कर दिया गया, लेकिन पाकिस्तान में आधुनिक राजनीतिक दल के रूप में लीग उतने कारगर ढंग से काम नहीं कर सकी, जैसा यह ब्रिटिश भारत में जनआधारित दबाव गुट के रूप में काम करती थी और इस तरह से धीरे-धीरे इसकी लोकप्रियता व संगठन की क्षमता घटती चली गई। [[1954]] ई. के चुनावों में 'मुस्लिम लीग' ने पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान [[बांग्लादेश]]) में सत्ता खो दी और इसके तुरन्त बाद ही पार्टी ने 'पश्चिमी पाकिस्तान (वर्तमान पाकिस्तान)' में भी सत्ता खो दी। [[1960]] के दशक के अन्त में पार्टी विभिन्न गुटों में बँट गई और [[1970]] ई. के दशक तक यह पूरी तरह से ग़ायब हो चुकी थी।
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13:27, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

मुहम्मद अली जिन्ना

मुस्लिम लीग का मूल नाम 'अखिल भारतीय मुस्लिम लीग' था। यह एक राजनीतिक समूह था, जिसने ब्रिटिश भारत के विभाजन (1947 ई.) से निर्मित एक अलग मुस्लिम राष्ट्र के लिए आन्दोलन चलाया। मुस्लिम नेताओं, विशेषकर मुहम्मद अली जिन्ना ने इस बात का भय जताया कि स्वतंत्र होने पर भारत में सिर्फ़ हिन्दुओं का ही वर्चस्व रहेगा। इसीलिए उन्होंने मुस्लिमों के लिए अलग से एक राष्ट्र की मांग को बार-बार दुहराया।

लीग की स्थापना

1 अक्टूबर, 1906 ई. को एच.एच. आगा ख़ाँ के नेतृत्व में मुस्लिमों का एक दल वायसराय लॉर्ड मिण्टो से शिमला में मिला। अलीगढ़ कॉलेज के प्रिंसपल आर्चबोल्ड इस प्रतिनिधिमण्डल के जनक थे। इस प्रतिनिधिमण्डल ने वायसराय से अनुरोध किया कि प्रान्तीय, केन्द्रीय व स्थानीय निर्वाचन हेतु मुस्लिमों के लिए पृथक् साम्प्रादायिक निर्वाचन की व्यवस्था की जाय। इस शिष्टमण्डल को भेजने के पीछे अंग्रेज़ उच्च अधिकारियों का हाथ था। मिण्टो ने इनकी मांगो का पूर्ण समर्थन किया। जिसके फलस्वरूप मुस्लिम नेताओं ने ढाका के नवाब सलीमुल्ला के नेतृत्व में 30 दिसम्बर, 1906 ई. को ढाका में 'मुस्लिम लीग' की स्थापना की।

सलीमुल्ला ख़ाँ 'मुस्लिम लीग' के संस्थापक व अध्यक्ष थे, जबकि प्रथम अधिवेशन की अध्यक्षता मुश्ताक हुसैन ने की। इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य था- 'भारतीय मुस्लिमों में ब्रिटिश सरकार के प्रति भक्ति उत्पत्र करना व भारतीय मुस्लिमों के राजनीतिक व अन्य अधिकारो की रक्षा करना।' 'मुस्लिम लीग' ने अपने अमृतसर के अधिवेशन में मुस्लिमों के पृथक् निर्वाचक मण्डल की मांग की, जो 1909 ई. में मार्ले-मिण्टो सुधारों के द्वारा प्रदान कर दिया गया। लीग ने 1916 ई. के 'लखनऊ समझौते' के आधार पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का समर्थन करने के अतिरिक्त कभी भी भारतीयों के राजनीतिक अधिकारों की मांग नहीं की।

संगठन की अक्षमता

मुहम्मद अली जिन्ना तथा 'मुस्लिम लीग' ने ब्रिटिश भारत को हिन्दू व मुस्लिम राष्ट्रों में विभाजित करने की माँग वाले आन्दोलन का नेतृत्व किया और 1947 ई. में पाकिस्तान के गठन के बाद लीग पाकिस्तान का प्रमुख राजनीतिक दल बन गई। इसी साल इसका नाम बदलकर 'ऑल पाकिस्तान मुस्लिम लीग' कर दिया गया, लेकिन पाकिस्तान में आधुनिक राजनीतिक दल के रूप में लीग उतने कारगर ढंग से काम नहीं कर सकी, जैसा यह ब्रिटिश भारत में जनआधारित दबाव गुट के रूप में काम करती थी और इस तरह से धीरे-धीरे इसकी लोकप्रियता व संगठन की क्षमता घटती चली गई। 1954 ई. के चुनावों में 'मुस्लिम लीग' ने पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में सत्ता खो दी और इसके तुरन्त बाद ही पार्टी ने 'पश्चिमी पाकिस्तान (वर्तमान पाकिस्तान)' में भी सत्ता खो दी। 1960 के दशक के अन्त में पार्टी विभिन्न गुटों में बँट गई और 1970 ई. के दशक तक यह पूरी तरह से ग़ायब हो चुकी थी।


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