"अनमोल वचन 1": अवतरणों में अंतर
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|'''ज्ञान का सागर - अनमोल वचन''' | |'''ज्ञान का सागर - अनमोल वचन''' | ||
# सत्य परायण मनुष्य किसी से घृणा नहीं करता है। | |||
# जो क्षमा करता है और बीती बातों को भूल जाता है, उसे ईश्वर पुरस्कार देता है। | |||
# यदि तुम फूल चाहते हो तो जल से पौधों को सींचना भी सीखो। | |||
# '''ईश्वर''' की शरण में गए बगैर साधना पूर्ण नहीं होती। | |||
# लज्जा से रहित व्यक्ति ही स्वार्थ के साधक होते हैं। | |||
# जिसकी इन्द्रियाँ वश में हैं, उसकी बुद्धि स्थिर है। | |||
# '''रोग''' का सूत्रपान मानव मन में होता है। | |||
# किसी भी व्यक्ति को मर्यादा में रखने के लिये तीन कारण जिम्मेदार होते हैं - व्यक्ति का मष्तिष्क, शारीरिक संरचना और कार्यप्रणाली, तभी उसके व्यक्तित्व का सामान्य विकास हो पाता है। | |||
# सामाजिक और धार्मिक शिक्षा व्यक्ति को नैतिकता एवं अनैतिकता का पाठ पढ़ाती है। | |||
# यदि कोई दूसरों की जिन्दगी को खुशहाल बनाता है तो उसकी जिन्दगी अपने आप खुशहाल बन जाती है। | |||
# यदि व्यक्ति के संस्कार प्रबल होते हैं तो वह नैतिकता से भटकता नहीं है। | |||
# सात्त्विक स्वभाव सोने जैसा होता है, लेकिन सोने को आकृति देने के लिये थोड़ा - सा पीतल मिलाने कि जरुरत होती है। | |||
# संसार कार्यों से, कर्मों के परिणामों से चलता है। | |||
# संन्यास डरना नहीं सिखाता। | |||
# सुख - दुःख जीवन के दो पहलू हैं, धूप व छांव की तरह। | |||
# अपनों के चले जाने का दुःख असहनीय होता है, जिसे भुला देना इतना आसान नहीं है; लेकिन ऐसे भी मत खो जाओ कि खुद का भी होश ना रहे। | |||
# इंसान को आंका जाता है अपने काम से। जब काम व उत्तम विचार मिलकर काम करें तो मुख पर एक नया - सा, अलग - सा तेज़ आ जाता है। | |||
# अपने आप को अधिक समझने व मानने से स्वयं अपना रास्ता बनाने वाली बात है। | |||
# अगर कुछ करना व बनाना चाहते हो तो सर्वप्रथम लक्ष्य को निर्धारित करें। वरना जीवन में उचित उपलब्धि नहीं कर पायेंगे। | |||
# ऊंचे उद्देश्य का निर्धारण करने वाला ही उज्जवल भविष्य को देखता है। | |||
# संयम की शक्ति जीवं में सुरभि व सुगंध भर देती है। | |||
# जहाँ वाद - विवाद होता है, वहां श्रद्धा के फूल नहीं खिल सकते और जहाँ जीवन में आस्था व श्रद्धा को महत्त्व न मिले, वहां जीवन नीरस हो जाता है। | |||
# फल की सुरक्षा के लिये छिलका जितना जरूरी है, धर्म को जीवित रखने के लिये सम्प्रदाय भी उतना ही काम का है। | |||
# सभ्यता एवं संस्कृति में जितना अंतर है, उतना ही अंतर उपासना और धर्म में है। | |||
# जब तक मानव के मन में मैं (अहंकार) है, तब तक वह शुभ कार्य नहीं कर सकता, क्योंकि मैं स्वार्थपूर्ति करता है और शुद्धता से दूर रहता है। | |||
# इस दुनिया में '''भगवान्''' से बढ़कर कोई घर या अदालत नहीं है। | |||
# '''मां''' है मोहब्बत का नाम, मां से बिछुड़कर चैन कहाँ। | |||
# सत्य का पालन ही राजाओं का दया प्रधान सनातन अचार था। राज्य सत्य स्वरुप था और सत्य में लोक प्रतिष्ठित था। | |||
# सत्य के समान कोई धर्म नहीं है। सत्य से उत्तम कुछ भी नहीं हैं और जूठ से बढ़कर तीव्रतर पाप इस जगत में दूसरा नहीं है। | |||
# अच्छा साहित्य जीवन के प्रति आस्था ही उत्पन्न नहीं करता, वरन उसके सौंदर्य पक्ष का भी उदघाटन कर उसे पूजनीय बना देता है। | |||
# सत्य भावना का सबसे बड़ा धर्म है। | |||
# व्रतों से सत्य सर्वोपरि है। | |||
# वह सत्य नहीं जिसमें हिंसा भरी हो। यदि दया युक्त हो तो असत्य भी सत्य ही कहा जाता है। जिसमें मनुष्य का हित होता हो, वही सत्य है। | |||
# मनुष्य को उत्तम शिक्षा अच्चा स्वभाव, धर्म, योगाभ्यास और विज्ञान का सार्थक ग्रहण करके जीवन में सफलता प्राप्त करनी चाहिए। | |||
# जीवन का महत्त्वा इसलिये है, ख्योंकी मृत्यु है। मृत्यु न हो तो जिन्दगी बोझ बन जायेगी. इसलिये मृत्यु को दोस्त बनाओ, उसी दरो नहीं। | |||
# कर्म करनी ही उपासना करना है, विजय प्राप्त करनी ही त्याग करना है। स्वयं जीवन ही धर्म है, इसे प्राप्त करना और अधिकार रखना उतना ही कठोर है जितना कि इसका त्याग करना और विमुख होना। | |||
# संसार की चिंता में पढ़ना तुम्हारा काम नहीं है, बल्कि जो सम्मुख आये, उसे भगवद रूप मानकर उसके अनुरूप उसकी सेवा करो। | |||
# मृत्यु दो बार नहीं आती और जब आने को होती है, उससे पहले भी नहीं आती है। | |||
# '''मां''' प्यार का सुर होती है। मां बनी तभी तो प्यार बना, सब दिन मां के दिए होते हैं। इसलिये सब दिन मदर्स दे होता है। | |||
# ज्ञान मूर्खता छुडवाता है और परमात्मा का सुख देता है। यही आत्मसाक्षात्कार का मार्ग है। | |||
# संसार के सारे दु:ख चित्त की मूर्खता के कारण होते हैं। जितनी मूर्खता ताकतवर उतना ही दुःख मजबूत, जितनी मूर्खता कम उतना ही दुःख कम। मूर्खता हटी तो समझो दुःख छू-मंतर हो जायेगी। | |||
# पढ़ना एक गुण, चिंतन दो गुना, आचरण चौगुना करना चाहिए। | |||
# दण्ड देने की शक्ति होने पर भी दण्ड न देना सच्चे क्षमा है। | |||
# उसकी जय कभी नहीं हो सकती, जिसका दिल पवित्र नहीं है। | |||
# सच्चा दान वही है, जिसका प्रचार न किया जाए। | |||
# पाप आत्मा का शत्रु है और सद्गुण आत्मा का मित्र। | |||
# हमारा शरीर ईश्वर के मन्दिर के समान है, इसलिये इसे स्वस्थ रखना भी एक तरह की इश्वर - आराधना है। | |||
# सैकड़ों गुण रहित और मूर्ख पुत्रों के बजाय एक गुणवान और विद्वान पुत्र होना अच्छा है; क्योंकि रात्रि के समय हजारों तारों की उपेक्षा एक चन्द्रमा से ही प्रकाश फैलता है। | |||
# एक ही पुत्र यदि विद्वान और अच्छे स्वभाव वाला हो तो उससे परिवार को ऐसी ही खुशी होती है, जिस प्रकार एक चन्द्रमा के उत्पन्न होने पर काली रात चांदनी से खिल उठती है। | |||
# ब्रह्म विद्या मनुष्य को ब्रह्म - परमात्मा के चरणों में बिठा देती है और चित्त की मूर्खता छुडवा देती है। | |||
# जिस तरह से एक ही सूखे वृक्ष में आग लगने से सारा जंगल जलकर राख हो सकता है, उसी प्रकार एक मूर्ख पुत्र सारे कुल को नष्ट कर देता है। | |||
# जिस प्रकार सुगन्धित फूलों से लदा एक वृक्ष सारे जंगले को सुगन्धित कर देता है, उसी प्रकार एक सुपुत्र से वंश की शोभा बढती है। | |||
# पांच वर्ष की आयु तक पुत्र को प्यार करना चाहिए। इसके बाद दस वर्ष तक इस पर निगरानी राखी जानी चाहिए और गलती करने पर उसे दण्ड भी दिया जा सकता है, परन्तु सोलह वर्ष की आयु के बाद उससे मित्रता कर एक मित्र के समान व्यवहार करना चाहिए। | |||
# दुःख देने वाले और हृदय को जलाने वाले बहुत से पुत्रों से क्या लाभ? कुल को सहारा देने वाला एक पुत्र ही श्रेष्ठ होता है। | |||
# यदि पुत्र विद्वान और माता-पिता की सेवा करने वाला न हो तो उसका धरती पर जन्म लेना व्यर्थ है। | |||
# जो न दान देता है, न भोग करता है, उसका धन स्वतः नष्ट हो जाता है। अतः योग्य पात्र को दान देना चाहिए। | |||
# बुरी मंत्रणा से राजा, विषयों की आसक्ति से योगी, स्वाध्याय न करने से विद्वान, अधिक प्यार से पुत्र, दुष्टों की संगती से चरित्र, प्रदेश में रहने से प्रेम, अन्याय से ऐश्वर्य, प्रेम न होने से मित्रता तथा प्रमोद से धन नष्ट हो जाता है; अतः बुद्धिमान अपना सभी प्रकार का धन संभालकर रखता है, बुरे समय का हमें हमेशा ध्यान रहता है। | |||
# पापों का नाश प्रायश्चित करने और इससे सदा बचने के संकल्प से होता है। | |||
# जब मनुष्य दूसरों को भी अपना जीवन सार्थक करने को प्रेरित करता है तो मनुष्य के जीवन में सार्थकता आती है। | |||
# जो मिला है और मिल रहा है, उससे संतुष्ट रहो। | |||
# सब जीवों के प्रति मंगल कामना धर्म का प्रमुख ध्येय है। | |||
# जीवन को विपत्तियों से धर्म ही सुरक्षित रख सकता है। | |||
# दूसरों के जैसे बनने के प्रयास में अपना निजीपन नष्ट मत करो। | |||
# सत्य बोलने तक सीमित नहीं, वह चिंतन और कर्म का प्रकार है, जिसके साथ ऊंचा उद्देश्य अनिवार्य जुड़ा होता है। | |||
# महान प्यार और महान उपलब्धियों के खतरे भी महान होते हैं। | |||
# कभी-कभी मौन से श्रेष्ठ उत्तर नहीं होता, यह मंत्र याद रखो और किसी बात के उत्तर नहीं देना चाहते हो तो हंसकर पूछो- आप यह क्यों जानना चाहते हों? | |||
# अच्छा व ईमानदार जीवन बिताओ और अपने चरित्र को अपनी मंजिल मानो। | |||
# जब कभी भी हारो, हार के कारणों को मत भूलो। | |||
# धीरे बोल, जल्दी सोचों और छोटे-से विवाद पर पुरानी दोस्ती कुर्बान मत करो। | |||
# जब भी आपको महसूस हो, आपसे गलती हो गयी है, उसे सुधारने के उपाय तुरंत शुरू करो। | |||
# दुष्कर्मों के बढ़ जाने पर सच्चाई निष्क्रिय हो जाती है, जिसके परिणाम स्वरुप वह राहत के बदले प्रतिक्रया करना शुरू कर देती है। | |||
# क्रोध बुद्धि को समाप्त कर देता है। जब क्रोध समाप्त हो जाता है तो बाद में बहुत पश्चाताप होता है। | |||
# भले बनकर तुम दूसरों की भलाई का कारण भी बन जाते हो। | |||
# अपनी कलम सेवा के काम में लगाओ, न कि प्रतिष्ठा व पैसे के लिये। कलम से ही ज्ञान, साहस और त्याग की भावना प्राप्त करें। | |||
# समाज में कुछ लोग ताकत इस्तेमाल कर दोषी व्यक्तियों को बचा लेते हैं, जिससे दोषी व्यक्ति तो दोष से बच निकलता है और निर्दोष व्यक्ति क़ानून की गिरफ्त में आ जाता है। इसे नैतिक पतन का तकाजा ही कहा जायेगा। | |||
# न तो दरिद्रता में मोक्ष है और न सम्पन्नता में, बंधन धनी हो या निर्धन दोनों ही स्थितियों में ज्ञान से मोक्ष मिलता है। | |||
# कोई भी व्यक्ति क्रुद्ध हो सकता है, लेकिन सही समय पर, सही मात्रा में, सही स्थान पर, सही उद्देश्य के लिये सही ढंग से क्रुद्ध होना सबके सामर्थ्य की बात नहीं है। | |||
# हीन से हीन प्राणी में भी एकाध गुण होते हैं। उसी के आधार पर वह जीवन जी रहा है। | |||
# सुखों का मानसिक त्याग करना ही सच्चा सुख है जब तक व्यक्ति लौकिक सुखों के आधीन रहता है, तब तक उसे अलौकिक सुख की प्राप्ति नहीं हों सकती, क्योंकि सुखों का शारीरिक त्याग तो आसान काम है, लेकिन मानसिक त्याग अति कठिन है। | |||
# लोगों को चाहिए कि इस जगत में मनुष्यता धारण कर उत्तम शिक्षा, अच्छा स्वभाव, धर्म, योग्याभ्यास और विज्ञान का सम्यक ग्रहण करके सुख का प्रयत्न करें, यही जीवन की सफलता है। | |||
# विधा, बुद्धि और ज्ञान को जितना खर्च करो, उतना ही बढ़ते हैं। | |||
# सब कर्मों में आत्मज्ञान श्रेष्ठ समझना चाहिए; क्योंकि यह सबसे उत्तम विद्या है। यह अविद्या का नाश करती है और इससे मुक्ति प्राप्त होती है। | |||
# अपनी स्वंय की [[आत्मा]] के उत्थान से लेकर, व्यक्ति विशेष या सार्वजनिक लोकहितार्थ में निष्ठापूर्वक निष्काम भाव आसक्ति को त्याग कर समत्व भाव से किया गया प्रत्येक कर्म यज्ञ है। | |||
# परमात्मा वास्तविक स्वरुप को न मानकर उसकी कथित पूजा करना अथवा अपात्र को दान देना, ऐसे कर्म क्रमश: कोई कर्म-फल प्राप्त नहीं कराते, बल्कि पाप का भागी बनाते हैं। | |||
# जिस कर्म से किन्हीं मनुष्यों या अन्य प्राणियों को किसी भी प्रकार का कष्ट या हानि पहुंचे, वे ही दुष्कर्म कहलाते हैं। | |||
# यज्ञ, दान और तप से त्याग करने योग्य कर्म ही नहीं, अपितु अनिवार्य कर्त्तव्य कर्म भी हैं; क्योंकि यज्ञ, दान व तप बुद्धिमान लोगों को पवित्र करने वाले हैं। | |||
# परोपकारी, निष्कामी और सत्यवादी यानी निर्भय होकर मन, वचन व कर्म से सत्य का आचरण करने वाला देव है। | |||
# परमात्मा के गुण, कर्म और स्वभाव के समान अपने स्वयं के गुण, कर्म व स्वभावों को समयानुसार धारण करना ही परमात्मा की सच्ची पूजा है। | |||
# जो कार्य प्रारंभ में कष्टदायक होते हैं, वे परिणाम में अत्यंत सुखदायक होते हैं। | |||
# जो दानदाता इस भावना से सुपात्र को दान देता है कि, तेरी (परमात्मा) वस्तु तुझे ही अर्पित है; परमात्मा उसे अपना प्रिय सखा बनाकर उसका हाथ थामकर उसके लिये धनों के द्वार खोल देता है; क्योंकि मित्रता सदैव समान विचार और कर्मों के कर्ता में ही होती है, विपरीत वालों में नहीं। | |||
# जो मनुष्य अपने समीप रहने वालों की तो सहायता नहीं करता, किन्तु दूरस्थ की सहायता करता है, उसका दान, दान न होकर दिखावा है। | |||
# दान की वृत्ति दीपक की ज्योति के समान होनी चाहिए, जो समीप से अधिक प्रकाश देती है और ऐसे दानी अमरपद को प्राप्त करते हैं। | |||
# समय मूल्यवान है, इसे व्यर्थ नष्ट न करो। आप समय देकर धन पैदा कर रखते हैं और संसार की सभी वस्तुएं प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन स्मरण रहे - सब कुछ देकर भी समय प्राप्त नहीं कर सकते अथवा गए समय को वापिस नहीं ला सकते। | |||
# यदि ज़्यादा पैसा कमाना हाथ की बात नहीं तो कम खर्च करना तो हाथ की बात है; क्योंकि खर्चीला जीवन बनाना अपनी स्वतन्त्रता को खोना है। | |||
# ज़्यादा पैसा कमाने की इच्छा से ग्रसित मनुष्य झूठ, कपट, बेईमानी, धोखेबाजी, विश्वाघात आदि का सहारा लेकर परिणाम में दुःख ही प्राप्त करता है। | |||
# इन दोनों व्यक्तियों के गले में पत्थर बाँधकर पानी में डूबा देना चाहिए- एक दान न करने वाला धनिक तथा दूसरा परिश्रम न करने वाला दरिद्र। | |||
# ज्ञान से एकता पैदा होती है और अज्ञान से संकट। | |||
# भगवान् प्रेम के भूखे हैं, पूजा के नहीं। | |||
# परमात्मा इन्साफ करता है, पर सदगुरु बख्शता है। | |||
# जिसके पास कुछ नहीं रहता, उसके पास '''भगवान्''' रहता है। | |||
# उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति होने तक मत रुको। | |||
# जिस तेज़ी से विज्ञान की प्रगति के साथ उपभोग की वस्तुएँ प्रचुर मात्रा में बनना शुरू हो गयी हैं, वे मनुष्य के लिये पिंजरा बन रही हैं। | |||
# जिस व्यक्ति का मन चंचल रहता है, उसकी कार्यसिद्धि नहीं होती। | |||
# अपराध करने के बाद डर पैदा होता है और यही उसका दण्ड है। | |||
# अभागा वह है, जो कृतज्ञता को भूल जाता है। | |||
# पूर्वजों के गुणों का अनुसरण करना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि देना है। | |||
# वृद्धावस्था बीमारी नहीं, विधि का विधान है, इस दौरान सक्रिय रहें। | |||
# अतीत की स्म्रतियाँ और भविष्य की कल्पनाएँ मनुष्य को वर्तमान जीवन का सही आनंद नहीं लेने देतीं। वर्तमान में सही जीने के लिये आवश्य है अनुकूलता और प्रतिकूलता में सम रहना। | |||
# मानसिक शांति के लिये मन-शुद्धी, श्वास-शुद्धी एवं इन्द्रिय-शुद्धी का होना अति आवश्यक है। | |||
# अडिग रूप से चरित्रवान बनें, ताकि लोग आप पर हर परिस्थिति में विश्वास कर सकें। | |||
# जैसे एक अच्छा गीत तभी सम्भव है, जब संगीत व शब्द लयबद्ध हों; वैसे ही अच्छे नेतृत्व के लिये ज़रूरी है कि आपकी करनी एवं कथनी में अंतर न हो। | |||
# अपने व्यवहार में पारदर्शिता लाएँ। अगर आप में कुछ कमियाँ भी हैं, तो उन्हें छिपाएं नहीं; क्योंकि कोई भी पूर्ण नहीं है, सिवाय एक ईश्वर के। | |||
# मनुष्य की सफलता के पीछे मुख्यता उसकी सोच, शैली एवं जीने का नज़रिया होता है। | |||
# गुण व कर्म से ही व्यक्ति स्वयं को ऊपर उठाता है। जैसे कमल कहाँ पैदा हुआ, इसमें विशेषता नहीं, बल्कि विशेषता इसमें है कि, कीचड़ में रहकर भी उसने स्वयं को ऊपर उठाया है। | |||
# हमें अपने अभाव एवं स्वभाव दोनों को ही ठीक करना चाहिए; क्योंकि ये दोनों ही उन्नति के रास्ते में बाधक होते हैं। | |||
# अगर हर आदमी अपना-अपना सुधार कर ले तो, सारा संसार सुधर सकता है; क्योंकि एक-एक के जोड़ से ही संसार बनता है। | |||
# अपनों के लिये गोली सह सकते हैं, लेकिन बोली नहीं सह सकते। गोली का घाव भर जाता है, पर बोली का नहीं। | |||
# भगवान् से निराश कभी मत होना, संसार से आशा कभी मत करना; क्योंकि संसार स्वार्थी है। इसका नमूना तुम्हारा खुद शरीर है। | |||
# '''धन''' अच्छा सेवक भी है और बुरा मालिक भी। | |||
# जिसका मन-बुद्धि परमात्मा के प्रति वफादार है, उसे मन की शांति अवश्य मिलती है। | |||
# राग-द्वेष की भावना अगर प्रेम, सदाचार और कर्त्तव्य को महत्त्व दें तो, मन की सभी समस्याओं का समाधान हो सकता है। | |||
# कुमति व कुसंगति को छोड़ अगर सुमति व सुसंगति को बढाते जायेंगे तो एक दिन सुमार्ग को आप अवश्य पा लेंगे। | |||
# यह सच है कि सच्चाई को अपनाना बहुत अच्छी बात है, लेकिन किसी सच से दूसरे का नुकसान होता हो तो, ऐसा सच बोलते समय सौ बार सोच लेना चाहिए। | |||
# स्वर्ग व नरक कोई भौगोलिक स्थिति नहीं हैं, बल्कि एक मनोस्थिति है। जैसा सोचोगे, वैसा ही पाओगे। | |||
# पूरी तरह तैरने का नाम तीर्थ है। एक मात्र पानी में डुबकी लगाना ही तीर्थस्नान नहीं। | |||
# सदा, सहज व सरल रहने से आतंरिक खुशी मिलती है। | |||
# मन की शांति के लिये अंदरूनी संघर्ष को बंद करना ज़रूरी है, जब तक अंदरूनी युद्ध चलता रहेगा, शांति नहीं मिल सकती। | |||
# किसी का बुरा मत सोचो; क्योंकि बुरा सोचते-सोचते एक दिन अच्छा-भला व्यक्ति भी बुरे रास्ते पर चल पड़ता है। | |||
# सारा संसार ऐसा नहीं हो सकता, जैसा आप सोचते हैं, अतः समझौतावादी बनो। | |||
# महान उद्देश्य की प्राप्ति के लिये बहुत कष्ट सहना पड़ता है, जो तप के समान होता है; क्योंकि ऊंचाई पर स्थिर रह पाना आसान काम नहीं है। | |||
# जैसे प्रकृति का हर कारण उपयोगी है, ऐसे ही हमें अपने जीवन के हर क्षण को परहित में लगाकर स्वयं और सभी के लिये उपयोगी बनाना चाहिए। | |||
# हर व्यक्ति संवेदनशील होता है, पत्थर कोई नहीं होता; लेकिन सज्जन व्यक्ति पर बाहरी प्रभाव पानी की लकीर की भाँति होता है। | |||
# जहाँ भी हो, जैसे भी हो, कर्मशील रहो, भाग्य अवश्य बदलेगा; अतः मनुष्य को कर्मवादी होना चाहिए, भाग्यवादी नहीं। | |||
# सभी मन्त्रों से महामंत्र है - कर्म मंत्र, कर्म करते हुए भजन करते रहना ही प्रभु की सच्ची भक्ति है। | |||
# जूँ, खटमल की तरह दूसरों पर नहीं पलना चाहिए, बल्कि अंत समय तक कार्य करते जाओ; क्योंकि गतिशीलता जीवन का आवश्यक अंग है। | |||
# बाहर मैं, मेरा और अंदर तू, तेरा, तेरी के भाव के साथ जीने का आभास जिसे हो गया, वह उसके जीवन की एक महान व उत्तम प्राप्ति है। | |||
# भाग्यशाली होते हैं वे, जो अपने जीवन के संघर्ष के बीच एक मात्र सहारा परमात्मा को मानते हुए आगे बढ़ते जाते हैं। | |||
# सन्यासी स्वरुप बनाने से अहंकार बढ़ता है, कपडे मत रंगवाओ, मन को रंगों तथा भीतर से सन्यासी की तरह रहो। | |||
# जीवन चलते रहने का नाम है। सोने वाला सतयुग में रहता है, बैठने वाला द्वापर में, उठ खडा होने वाला त्रेता में, और चलने वाला सतयुग में, इसलिए चलते रहो। | |||
# अपनों व अपने प्रिय से धोखा हो या बीमारी से उठे हों या राजनीति में हार गए हों या श्मशान घर में जाओ; तब जो मन होता है, वैसा मन अगर हमेशा रहे, तो मनुष्य का कल्याण हो जाए। | |||
# मनुष्य का मन कछुए की भाँति होना चाहिए, जो बाहर की चोटें सहते हुए भी अपने लक्ष्य को नहीं छोड़ता और धीरे-धीरे मंजिल पर पहुँच जाता है। | |||
# हर शाम में एक जीवन का समापन हो रहा है और हर सवेरे में नए जीवन की शुरूआत होती है। | |||
# भगवान् को अनुशासन एवं सुव्यवस्थितपना बहुत पसंद है। अतः उन्हें ऐसे लोग ही पसंद आते हैं, जो सुव्यवस्था व अनुशासन को अपनाते हैं। | |||
# आज का मनुष्य अपने अभाव से इतना दुखी नहीं है, जितना दूसरे के प्रभाव से होता है। | |||
# जानकारी व वैदिक ज्ञान का भार तो लोग सिर पर गधे की तरह उठाये फिरते हैं और जल्द अहंकारी भी हो जाते हैं, लेकिन उसकी सरलता का आनंद नहीं उठा सकते हैं। | |||
# जहाँ सत्य होता है, वहां लोगों की भीड़ नहीं हुआ करती; क्योंकि सत्य ज़हर होता है और ज़हर को कोई पीना या लेना नहीं चाहता है, इसलिए आजकल हर जगह मेला लगा रहता है। | |||
# दिन में अधूरी इच्छा को व्यक्ति रात को स्वप्न के रूप में देखता है, इसलिए जितना मन अशांत होगा, उतने ही अधिक स्वप्न आते हैं। | |||
# कई बच्चे हज़ारों मील दूर बैठे भी माता - पिता से दूर नहीं होते और कई घर में साथ रहते हुई भी हजारों मील दूर होते हैं। | |||
# जो व्यक्ति हर स्थिति में प्रसन्न और शांत रहना सीख लेता है, वह जीने की कला प्राणी मात्र के लिये कल्याणकारी है। | |||
# जो व्यक्ति आचरण की पोथी को नहीं पढता, उसके पृष्ठों को नहीं पलटता, वह भला दूसरों का क्या भला कर पायेगा। | |||
# हमारे शरीर को नियमितता भाती है, लेकिन मन सदैव परिवर्तन चाहता है। | |||
# मनुष्य अपने अंदर की बुराई पर ध्यान नहीं देता और दूसरों की उतनी ही बुराई की आलोचना करता है, अपने पाप का तो बड़ा नगर बसाता है और दूसरे का छोटा गाँव भी ज़रा-सा सहन नहीं कर सकता है। | |||
# सुख-दुःख, हानि-लाभ, जय-पराजय, मान-अपमान, निंदा-स्तुति, ये द्वन्द निरंतर एक साथ जगत में रहते हैं और ये हमारे जीवन का एक हिस्सा होते हैं, दोनों में भगवान् को देखें। | |||
# मन-बुद्धि की भाषा है - मैं, मेरी, इसके बिना बाहर के जगत का कोई व्यवहार नहीं चलेगा, अगर अंदर स्वयं को जगा लिया तो भीतर तेरा-तेरा शुरू होने से व्यक्ति परम शांति प्राप्त कर लेता है। | |||
# न तो किसी तरह का कर्म करने से नष्ट हुई वस्तु मिल सकती है, न चिंता से। कोई ऐसा दाता भी नहीं है, जो मनुष्य को विनष्ट वस्तु दे दे, विधाता के विधान के अनुसार मनुष्य बारी-बारी से समय पर सब कुछ पा लेता है। | |||
# जिस राष्ट्र में विद्वान् सताए जाते हैं, वह विपत्तिग्रस्त होकर वैसे ही नष्ट हो जाता है, जैसे टूटी नौका जल में डूबकर नष्ट हो जाती है। | |||
# पूरी दुनिया में 350 धर्म हैं, हर '''धर्म''' का मूल तत्व एक ही है, परन्तु आज लोगों का धर्म की उपेक्षा अपने-अपने भजन व पंथ से अधिक लगाव है। | |||
# तीनों लोकों में प्रत्येक व्यक्ति सुख के लिये दौड़ता फिरता है, दुखों के लिये बिल्कुल नहीं, किन्तु दुःख के दो स्त्रोत हैं-एक है देह के प्रति मैं का भाव और दूसरा संसार की वस्तुओं के प्रति मेरेपन का भाव। | |||
# सारे काम अपने आप होते रहेंगे, फिर भी आप कार्य करते रहें. निरंतर कार्य करते रहें, पर उसमें ज़रा भी आसक्त न हों. आप बस कार्य करते रहें, यह सोचकर कि अब हम जा रहें हैं बस, अब जा रहे हैं। | |||
# आप बच्चों के साथ कितना समय बिताते हैं, वह इतना महत्त्वपूर्ण नहीं है, जितना कैसे बिताते हैं। | |||
# पिता सिखाते हैं पैरों पर संतुलन बनाकर व ऊंगली थाम कर चलना, पर माँ सिखाती है सभी के साथ संतुलन बनाकर दुनिया के साथ चलना, तभी वह अलग है, महान है। | |||
# माँ-बेटी का रिश्ता इतना अनूठा, इतना अलग होता है कि उसकी व्याख्या करना मुश्किल है, इस रिश्ते से सदैव पहली बारिश की फुहारों-सी ताजगी रहती है, तभी तो माँ के साथ बिताया हर क्षण होता है अमिट, अलग उनके साथ गुज़ारा हर पल शानदार होता है। | |||
# जो संसार से ग्रसित रहता है, वह बुद्धू तो हो सकता; लेकिन बुद्ध नहीं हो सकता। | |||
# विपरीत दिशा में कभी न घबराएं, बल्कि पक्की ईंट की तरह मजबूत बनना चाहिय और जीवन की हर चुनौती को परीक्षा एवं तपस्या समझकर निरंतर आगे बढना चाहिए। | |||
# सत्य बोलते समय हमारे शरीर पर कोई दबाव नहीं पड़ता, लेकिन झूठ बोलने पर हमारे शरीर पर अनेक प्रकार का दबाव पड़ता है, इसलिए कहा जाता है कि सत्य के लिये एक हाँ और झूठ के लिये हज़ारों बहाने ढूँढने पड़ते हैं। | |||
# अखण्ड ज्योति ही प्रभु का प्रसाद है, वह मिल जाए तो जीवन में चार चाँद लग जाएँ। | |||
# दो प्रकार की प्रेरणा होती है-एक बाहरी व दूसरी अंतर प्रेरणा, आतंरिक प्रेरणा बहुत महत्त्वपूर्ण होती है; क्योंकि वह स्वयं की निर्मात्री होती है। | |||
# अपने आप को बचाने के लिये तर्क-वितर्क करना हर व्यक्ति की आदत है, जैसे क्रोधी व लोभी आदमी भी अपने बचाव में कहता मिलेगा कि, यह सब मैंने तुम्हारे कारण किया है। | |||
# जब-जब ह्रदय की विशालता बढ़ती है, तो मन प्रफुल्लित होकर आनंद की प्राप्ति कर्ता है और जब संकीर्ण मन होता है, तो व्यक्ति दुःख भोगता है। | |||
# जैसे बाहरी जीवन में युक्ति व शक्ति ज़रूरी है, वैसे ही आतंरिक जीवन के लिये मुक्ति व भक्ति आवश्यक है। | |||
# तर्क से विज्ञान में वृद्धि होती है, कुतर्क से अज्ञान बढ़ता है और वितर्क से अध्यात्मिक ज्ञान बढ़ता है। | |||
# जिसकी मुस्कुराहट कोई छीन न सके, वही असल सफ़ा व्यक्ति है। | |||
# मनुष्य का जीवन तीन मुख्य तत्वों का समागम है - शरीर, विचार एवं मन। | |||
# प्रेम करने का मतलब सम-व्यवहार ज़रूरी नहीं, बल्कि समभाव होना चाहिए, जिसके लिये घोड़े की लगाम की भाँति व्यवहार में ढील देना पड़ती है और कभी खींचना भी ज़रूरी हो जाता है। | |||
# इस दुनिया में ना कोई ज़िन्दगी जीता है, ना कोई मरता है, सभी सिर्फ़ अपना-अपना कर्ज़ चुकाते हैं।<ref>{{cite web |url=http://uditbhargavajaipur.blogspot.com/2010/04/blog-post_5344.html |title=ज्ञान का सागर- अनमोल वचन |accessmonthday=30 जनवरी |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=अपने विचार |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | |||
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|'''अनमोल वचन''' | |'''अनमोल वचन''' | ||
# हमारे वचन चाहे कितने भी श्रेष्ठ क्यों न हों, परन्तु दुनिया हमें हमारे कर्मों के द्वारा पहचानती है। | |||
# यदि आपको मरने का डर है, तो इसका यही अर्थ है, की आप जीवन के महत्त्व को ही नहीं समझते। | |||
# अधिक सांसारिक ज्ञान अर्जित करने से अंहकार आ सकता है, परन्तु आध्यात्मिक ज्ञान जितना अधिक अर्जित करते हैं, उतनी ही नम्रता आती है। | |||
# वही सबसे तेज़ चलता है, जो अकेला चलता है। | |||
# प्रत्येक अच्छा कार्य पहले असम्भव नज़र आता है। | |||
# ऊद्यम ही सफलता की कुंजी है। | |||
# एकाग्रता से ही विजय मिलती है। | |||
# कीर्ति वीरोचित कार्यों की सुगन्ध है। | |||
# भाग्य साहसी का साथ देता है। | |||
# सफलता अत्यधिक परिश्रम चाहती है। | |||
# विवेक बहादुरी का उत्तम अंश है। | |||
# कार्य उद्यम से सिद्ध होते हैं, मनोरथों से नहीं। | |||
# संकल्प ही मनुष्य का बल है। | |||
# प्रचंड वायु में भी पहाड़ विचलित नहीं होते। | |||
# कर्म करने में ही अधिकार है, फल में नहीं। | |||
# मेहनत, हिम्मत और लगन से कल्पना साकार होती है। | |||
# अपनी शक्तियो पर भरोसा करने वाला कभी असफल नहीं होता। | |||
# मुस्कान प्रेम की भाषा है। | |||
# सच्चा प्रेम दुर्लभ है, सच्ची मित्रता और भी दुर्लभ है। | |||
# अहंकार छोड़े बिना सच्चा प्रेम नहीं किया जा सकता। | |||
# प्रसन्नता स्वास्थ्य देती है, विषाद रोग देते हैं। | |||
# प्रसन्न करने का उपाय है, स्वयं प्रसन्न रहना। | |||
# अधिकार जताने से अधिकार सिद्ध नहीं होता। | |||
# एक गुण समस्त दोषो को ढक लेता है। | |||
# दूसरों से प्रेम करना अपने आप से प्रेम करना है। | |||
# '''समय''' महान चिकित्सक है। | |||
# '''समय''' किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। | |||
# हर दिन वर्ष का सर्वोत्तम दिन है। | |||
# एक '''झूठ''' छिपाने के लिये दस झूठ बोलने पडते हैं। | |||
# प्रकृति के सब काम धीरे-धीरे होते हैं। | |||
# बिना गुरु के ज्ञान नहीं होता। | |||
# आपकी बुद्धि ही आपका गुरु है। | |||
# जिज्ञासा के बिना ज्ञान नहीं होता। | |||
# बिना अनुभव के कोरा शाब्दिक ज्ञान अंधा है। | |||
# अल्प ज्ञान ख़तरनाक होता है। | |||
# कर्म सरल है, विचार कठिन। | |||
# उपदेश देना सरल है, उपाय बताना कठिन। | |||
# धन अपना पराया नहीं देखता। | |||
# जैसा अन्न, वैसा मन। | |||
# '''अहिंसा''' सर्वोत्तम धर्म है। | |||
# बहुमत की आवाज न्याय का द्योतक नहीं है। | |||
# अन्याय में सहयोग देना, अन्याय के ही समान है। | |||
# विश्वास से आश्चर्य-जनक प्रोत्साहन मिलता है। <ref>{{cite web |url=http://quotes2u.blogspot.com/ |title=अनमोल वचन|accessmonthday=30 जनवरी |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=quotes |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | |||
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|'''सुभाषित'''<br> | |'''सुभाषित'''<br> | ||
1) इस संसार में प्यार करने लायक दो वस्तुएँ हैं - एक दु:ख और दूसरा श्रम। दुख के बिना हृदय निर्मल नहीं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता।<br> | 1) इस संसार में प्यार करने लायक दो वस्तुएँ हैं - एक दु:ख और दूसरा श्रम। दुख के बिना हृदय निर्मल नहीं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता।<br> | ||
2) '''ज्ञान''' का अर्थ है - जानने की शक्ति। सच को झूठ को सच से पृथक् करने वाली जो विवेक बुद्धि है-उसी का नाम ज्ञान है।<br> | 2) '''ज्ञान''' का अर्थ है - जानने की शक्ति। सच को झूठ को सच से पृथक् करने वाली जो विवेक बुद्धि है- उसी का नाम ज्ञान है।<br> | ||
3) अध्ययन, विचार, मनन, विश्वास एवं आचरण द्वार जब एक मार्ग को मजबूति से पकड़ लिया जाता है, तो अभीष्ट उद्द्श्य को प्राप्त करना बहुत सरल हो जाता है।<br> | 3) अध्ययन, विचार, मनन, विश्वास एवं आचरण द्वार जब एक मार्ग को मजबूति से पकड़ लिया जाता है, तो अभीष्ट उद्द्श्य को प्राप्त करना बहुत सरल हो जाता है।<br> | ||
4) आदर्शों के प्रति श्रद्धा और कत्र्तव्य के प्रति लगन का जहाँ भी उदय हो रहा है, समझना चाहिए कि वहाँ किसी देवमानव का आविर्भाव हो रहा है।<br> | 4) आदर्शों के प्रति श्रद्धा और कत्र्तव्य के प्रति लगन का जहाँ भी उदय हो रहा है, समझना चाहिए कि वहाँ किसी देवमानव का आविर्भाव हो रहा है।<br> |
17:17, 17 मार्च 2011 का अवतरण
हम अनमोल वचन ( Priceless Words ) उन बातों और लेखों को कहते हैं, जिन्हें संसार के अनेकानेक विद्वानों ने कहे और लिखे हैं, जो जीवन उपयोगी हैं। इन अनमोल वचनों को हम अपने जीवन में अपनाकर अपने जीवन में नई उंमग एवं उत्साह का संचार कर सकते हैं। अनमोल वचन को हम सूक्ति (सु + उक्ति) या सुभाषित (सु + भाषित) भी कहते हैं। इन बातों को अनमोल इसलिए भी कहा जाता हैं क्योंकि यदि हम इन बातों का अर्थ या सार समझेगें, तो हम पायेंगे की इन बातों का कोई मोल नहीं लगा सकता। इन बातों को हम अपने जीवन में अपनाकर अपने जीवन की दिशा को बदल सकते हैं और जीवन की दिशा बदलनें वाली बातों का कभी कोई मोल नहीं लगा सकता हैं क्योकि ये बातें तो अनमोल होती हैं।
वक्ता हो या संत हो, विद्वान हो या लेखक हो, राजनेता हो या फिर कोई प्रशासक — अपनी बात कहने के साथ-साथ वह उसे सार-रूप में कहता हुआ एक माला के रूप में पिरोता चलता है। इस सार-रूप में कहे गए वाक्यों में ऐसे सूत्र छिपे रहते हैं, जिन पर चिंतन करने से विचारों की एक व्यवस्थित श्रृंखला का सहज रूप से निर्माण होता है। उस समय ऐसा लगता है मानो किसी विशिष्ट विषय पर लिखी गई पुस्तक के पन्ने एक-एक करके पलट रहे हों।
सूत्ररूप में कहे गए ये कथन आत्मविकास के लिए अत्यंत उपयोगी हैं। इसीलिए व्यक्तित्व विकास पर कार्य कर रहे अनुसंधानकर्ताओं और विद्वानों का कहना है कि प्रत्येक आत्मविकास के इच्छुक को चाहिए कि वह अपने लिए आदर्शवाक्य चुनकर उसे ऐसे स्थान पर रख या चिपका ले, जहां उसकी नज़र ज़्यादातर पड़ती हो। ऐसा करने से वह विचार अवचेतन में बैठकर उसके व्यक्तित्व को गहराई तक प्रभावित करेगा। इन वाक्यों का आपसी बातचीत में, भाषण आदि में प्रयोग करके आप अपने पक्ष को पुष्ट करते हैं। ऐसा करने से आपकी बातों में वजन तो आता ही है लोगों के बीच आपकी साख भी बढ़ती है।
लोग जीवन में कर्म को महत्त्व देते हैं, विचार को नहीं। ऐसा सोचने वाले शायद यह नहीं जानते कि विचारों का ही स्थूल रूप होता है कर्म अर्थात् किसी भी कर्म का चेतन-अचेतन रूप से विचार ही कारण होता है। जानाति, इच्छति, यतते—जानता है (विचार करता है), इच्छा करता है फिर प्रयत्न करता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसे आधुनिक मनोविज्ञान भी स्वीकार करता है। जानना और इच्छा करना विचार के ही पहलू हैं । आपने यह भी सुना होगा कि विचारों का ही विस्तार है आपका अतीत, वर्तमान और भविष्य। दूसरे शब्दों में, आज आप जो भी हैं, अपने विचारों के परिमामस्वरूप ही हैं और भविष्य का निर्धारण आपके वर्तमान विचार ही करेंगे। तो फिर उज्ज्वल भविष्य की आकांक्षा करने वाले आप शुभ-विचारों से आपने दिलो-दिमाग को पूरित क्यों नहीं करते।
ख़ंज़र की क्या मजाल जो इक ज़ख़्म कर सके। तेरा ही है ख़याल कि घायल हुआ है तू।। --- स्वामी रामतीर्थ
शब्द ब्रह्म है। भारतीय दर्शकों में शब्द को उत्तम प्रमाण माना गया है। इस संदर्भ में एक अत्यंत प्रचलित कथा का उल्लेख करना यहां युक्तिसंगत होगा। कथा इस प्रकार है — दस व्यक्तियों ने बरसाती नदी पार की। पार पहुँचने पर यह जांचने के लिए कि दसों ने नदी पार कर ली है, कोई नदी में डूब तो नहीं गया, एक ने गिनना शुरू किया। उसके अनुसार उनका एक साथी नदी में बह गया था। एक-एक करके सभी ने गिनती की, प्रत्येक का यही मानना था कि कोई बह गया है। सभी उस दसवें व्यक्ति के लिए रोने और विलाप करने लगे। वहां से गुज़र रहे एक बुद्धिमान व्यक्ति ने जब उनसे रोने तथा विलाप करने का कारण पूछा, तो उन्होंने सारी बात कह सुनाई। उस व्यक्ति ने उनको एक पंक्ति में खड़ा होने को कहा। जब सब पंक्ति में खड़े हो गए, तब उनमें से एक को बुलाकर उससे गिनने को कहा। उस व्यक्ति ने नौ तक गिनती गिनी और चुप हो गया। तब आगन्तुक ने कहा दसवें तुम हो’ इतना सुनते ही सारा रोना-विलाप करना अपने आप, बिना किसी प्रयास के समाप्त हो गया। आगंतुक ने क्या किया ? उसके शब्दों ने ही रोने-बिलखने को विदाई दिलवा दी।
ऐसे एक नहीं अनेक उदाहरण मिल जाएँगे, जिनसे इस बात की पुष्टि होगी कि एक वाक्य ने किसी की जीवनधारा ही बदल दी। आपने कहानी सुनी होगी यह छोटी-सी कहानी, जो कुछ ठगों ने मिलकर एक व्यक्ति को, जो बछिया ले जा रहा था, यह विश्वास दिला दिया कि वह हछिया नहीं, बकरी ले जा रहा है। एक विचार यदि आपके अचेतन पर बराबर चोट करे तो आपकी दृष्टि में परिवर्तन हो जाता है।
आद्यशंकराचार्य से जब उनके शिष्यों ने पूछा कि इस संसार - चक्र से मुक्त होने का क्या उपाय है, तो उनका जवाब था - केवल विचार ही। इसीलिए प्रत्येक धर्म-संप्रदाय और जाति के महान पुरुषों ने सुझाव दिया कि जिस दिशा में आप अपने व्यक्तित्व को विकसित करना चाहते हैं, उससे संबंधित विचार को आप किसी ऐसी जगह रखे या चिपकाएं, जहां आपकी नज़र बार-बार जाती हो। वाक्य का अर्थ आपके भीतर बूस्टर की सी प्रतिक्रिया करेगा। श्रीमद्भागवद्ग गीता में श्रीकृष्ण ने स्पष्ट कहा कि मनुष्य को स्वयं से स्वयं का उद्धार करना होगा। कोई किसी की अवनति के लिए न तो उत्तरदायी है, न ही कोई किसी की उन्नति में अवरोध पैदा कर सकता है। मंथरा ने कैकेई में परिवर्तन कैसे किया ? कैसे वह राम के राजा बनने में विरोधी बन गई ? कैसे उसने अपने पति दशरथ की मृत्यु और अपने वैधव्य की परवाह नहीं की ? इन सभी सवालों का जवाब आपको विचारों के परिवर्तन के इर्द-गिर्द ही घूमता मिलेगा। जिसने ‘क्रिश्चियन साइन्स’ — एक ऐसा उपचार पद्धति जिसमें रोगी अपने स्वस्थ होने के विचारों से स्वयं पूरित करता है और स्वस्थ हो जाता है — का विकास किया, वह स्वयं विचारों के प्रभाव को भोग चुकी थी। तात्पर्य यह है कि एक ही विचार की बारंबारता के प्रभाव की गहराई का आपको एकदम पता नहीं चलेगा, लेकिन कुछ दिनों के बाद उसके फलस्वरूप होने वाले परिवर्तन को आप स्वयं महसूस करेंगे।
महापुरुषों के वाक्यों को पढ़ते समय उनके व्यक्तित्व की गरिमा भी आपको प्रभावित करती है, जिससे अचेतन मन वैसा करने या न करने को विवश हो जाता है। इस प्रकार की बेबसी की स्थिति व्यक्तित्व के विकास के लिए अनुकूल वातावरण पैदा करती है, क्योंकि तब आपके मन के पास मनमानी करने का न तो अवसर होता है, न ही सामर्थ्य। अनुभव में एक बात और आई है कि कभी - कभी आपकी ऐसी शंका का समाधान एक छोटा-सा वाक्य कर जाता है, जिसके लिए आप लंबे समय से भटक रहे होते हैं। ‘देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर’ वाली इन वाक्यों के साथ लागू होती है। बातचीत करते समय, भाषण देते समय, बहस करते वक़्त या लिखते समय जब आप इन वाक्यों द्वारा अपने कथन की पुष्टि करते हैं तो आपकी बात में वजन आ जाता है, आपके व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाने में इनसे सहायता मिलती है। सुनने - पढ़ने वाले ‘कुएं का मेढक’ नहीं समझते।
हमें विश्वास है कि यह संकलन आपके व्यक्तित्व को विकसित कर आपके जीवन में नई स्फूर्ति का संचार करते हुए आपमें आत्मविश्वास पैदा करेगा कि आपसे श्रेष्ठ कोई नहीं है और कौन-सा काम ऐसा है, जिसे आप नहीं कर सकते।
इन्हें भी देखें: कहावत लोकोक्ति मुहावरे एवं सूक्ति और कहावत
अनमोल वचन संग्रह
अनमोल वचन |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गांधीजी के शब्दों में (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल)। । अभिगमन तिथि: 20 जनवरी, 2011।
- ↑ स्वामी विवेकानन्द के सुविचार (हिन्दी) (पी.एच.पी.) छठ पूजा। अभिगमन तिथि: 20 जनवरी, 2011।
- ↑ स्वामी रामदेव- अनमोल (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) पंतजलि योग कर्ज़न। अभिगमन तिथि: 30 जनवरी, 2011।
- ↑ आचार्य बालकृष्ण (हिन्दी) (ए.एस.पी) भारत स्वाभिमान। अभिगमन तिथि: 30 जनवरी, 2011।
- ↑ अनमोल वचन (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) आधारशिला। अभिगमन तिथि: 30 जनवरी, 2011।
- ↑ महापुरूषों के प्रेरक-वचन एवं कहावतें (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) महाशक्ति। अभिगमन तिथि: 30 जनवरी, 2011।
- ↑ सूक्तियाँ (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) अभिव्यक्ति। अभिगमन तिथि: 30 जनवरी, 2011।
- ↑ ज्ञान का सागर- अनमोल वचन (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) अपने विचार। अभिगमन तिथि: 30 जनवरी, 2011।
- ↑ अनमोल वचन (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) quotes। अभिगमन तिथि: 30 जनवरी, 2011।