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चित्र:23rd-Tirthankara-Parsvanatha-Jain-Museum-Mathura-9.jpg|[[तीर्थंकर पार्श्वनाथ]]<br /> Tirthankara Parsvanatha | चित्र:23rd-Tirthankara-Parsvanatha-Jain-Museum-Mathura-9.jpg|[[तीर्थंकर पार्श्वनाथ]]<br /> Tirthankara Parsvanatha | ||
चित्र:Seated-Jain-Tirthankara-Jain-Museum-Mathura-30.jpg|आसनस्थ जैन तीर्थंकर<br /> Seated Jaina Tirthankara | चित्र:Seated-Jain-Tirthankara-Jain-Museum-Mathura-30.jpg|आसनस्थ जैन तीर्थंकर<br /> Seated Jaina Tirthankara | ||
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07:54, 18 जून 2011 का अवतरण
- तीर्थ का अर्थ जिसके द्वारा संसार समुद्र तरा जाए,पार किया जाए और वह अहिंसा धर्म है। इस विषय में जिन्होंने प्रवर्तन किया, उपदेश दिया, उन्हें तीर्थंकर कहा गया है।
- तीर्थंकर 24 माने गए है।
- जैन धर्म में चौबीस तीर्थंकरों के नाम इस प्रकार प्रसिद्ध है-
- ॠषभनाथ तीर्थंकर,
- अजित,
- सम्भव,
- अभिनन्दन,
- सुमति,
- पद्य,
- सुपार्श्व,
- चन्द्रप्रभ,
- पुष्पदन्त,
- शीतल,
- श्रेयांस,
- वासुपूज्य,
- विमल,
- अनन्त,
- धर्मनाथ,
- शांति,
- कुन्थु,
- अरह,
- मल्लिनाथ,
- मुनिसुब्रत,
- नमि,
- नेमिनाथ तीर्थंकर,
- पार्श्वनाथ तीर्थंकर, और
- वर्धमान-महावीर
- इन 24 तीर्थंकरों ने अपने-अपने समय में धर्ममार्ग से च्युत हो रहे जन समुदाय को संबोधित किया और उसे धर्ममार्ग में लगाया।
- इसी से इन्हें धर्म मार्ग-मोक्ष मार्ग का नेता तीर्थ प्रवर्त्तक-तीर्थंकर कहा गया है।
- जैन सिद्धान्त के अनुसार 'तीर्थंकर' नाम की एक पुण्य (प्रशस्त) कर्म प्रकृति है। उसके उदय से तीर्थंकर होते और वे तत्त्वोपदेश करते हैं।
- आचार्य विद्यानंद ने स्पष्ट कहा है[1] कि 'बिना तीर्थंकरत्वेन नाम्ना नार्थोपदेशना' अर्थात बिना तीर्थंकर-पुण्यनामकर्म के तत्त्वोपदेश संभव नहीं है।[2]
वीथिका
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तीर्थंकर पार्श्वनाथ
Tirthankara Parsvanatha -
आसनस्थ जैन तीर्थंकर
Seated Jaina Tirthankara -
तीर्थंकर ऋषभनाथ
Tirthankara Rishabhanath -
आसनस्थ जैन तीर्थंकर
Seated Jaina Tirthankara -
आसनस्थ जैन तीर्थंकर
Seated Jaina Tirthankara -
जैन तीर्थंकर
Jaina Tirthankara -
आसनस्थ जैन तीर्थंकर
Seated Jaina Tirthankara -
तीर्थंकर ऋषभनाथ
Tirthankara Rishabhanath
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