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*वी. शांताराम ने दो आँखें बारह हाथ में परिश्रम के प्रतिफल का उल्लास दर्शाने के लिए बारिश के गीत का उपयोग किया है। सुधारवादी जेलर और उसके कैदियों ने बंजर ज़मीन पर खेती का प्रयास किया है और जब बादल उनकी मेहनत पर अपना आशीष बरसाने आते हैं तो सभी ‘उमड़-घुमड़कर के आई रे घटा’ गाते हुए नाच उठते हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.samaydarpan.com/aug/manoranjan1.aspx |title=फ़िल्मों में बरसात का दृश्य |accessmonthday=[[30 अगस्त]] |accessyear=[[2010]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=समय दर्पण |language=[[हिन्दी]] }}</ref> | *वी. शांताराम ने दो आँखें बारह हाथ में परिश्रम के प्रतिफल का उल्लास दर्शाने के लिए बारिश के गीत का उपयोग किया है। सुधारवादी जेलर और उसके कैदियों ने बंजर ज़मीन पर खेती का प्रयास किया है और जब बादल उनकी मेहनत पर अपना आशीष बरसाने आते हैं तो सभी ‘उमड़-घुमड़कर के आई रे घटा’ गाते हुए नाच उठते हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.samaydarpan.com/aug/manoranjan1.aspx |title=फ़िल्मों में बरसात का दृश्य |accessmonthday=[[30 अगस्त]] |accessyear=[[2010]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=समय दर्पण |language=[[हिन्दी]] }}</ref> | ||
*दो आंखे बारह हाथ में बसंत देसाई की धुन पर मैं गाऊं तू चुप हो जा, मैं जागू तू सो जा...को लता मंगेशकर ने अपनी आवाज देकर मर्मस्पर्शी बना दिया।<ref>{{cite web |url=http://www.visfot.com/index.php/jan_jeevan/2488.html |title=हमारी | *दो आंखे बारह हाथ में बसंत देसाई की धुन पर मैं गाऊं तू चुप हो जा, मैं जागू तू सो जा...को लता मंगेशकर ने अपनी आवाज देकर मर्मस्पर्शी बना दिया।<ref>{{cite web |url=http://www.visfot.com/index.php/jan_jeevan/2488.html |title=हमारी फ़िल्में अब लोरी नहीं गाती |accessmonthday=[[30 अगस्त]] |accessyear=[[2010]] |last=स्वदेश |first=संजय |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=विस्फोट डॉट कॉम |language=[[हिन्दी]] }}</ref> | ||
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*इस फ़िल्म को सर्वश्रेष्ठ फीचर फ़िल्म के लिए राष्ट्रपति के स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया था। | *इस फ़िल्म को सर्वश्रेष्ठ फीचर फ़िल्म के लिए राष्ट्रपति के स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया था। | ||
*[[1957]] में इसे फ़िल्म को बर्लिन फ़िल्म फेस्टिवल में सिल्वर बियर का पुरस्कार मिला था। | *[[1957]] में इसे फ़िल्म को बर्लिन फ़िल्म फेस्टिवल में सिल्वर बियर का पुरस्कार मिला था। | ||
*सर्वश्रेष्ठ विदेशी फ़िल्म के लिए सैमुअल गोल्डविन पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।<ref>{{cite web |url=http://in.jagran.yahoo.com/cinemaaza/cinema/memories/201_201_8173.html |title=सामाजिक बदलाव का ज़रिया है | *सर्वश्रेष्ठ विदेशी फ़िल्म के लिए सैमुअल गोल्डविन पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।<ref>{{cite web |url=http://in.jagran.yahoo.com/cinemaaza/cinema/memories/201_201_8173.html |title=सामाजिक बदलाव का ज़रिया है फ़िल्में: वी शांताराम |accessmonthday=[[30 अगस्त]] |accessyear=[[2010]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=जागरण |language=[[हिन्दी]] }}</ref> | ||
*[[1957]] में इस फ़िल्म ने राष्ट्रपति का स्वर्ण पदक जीता था। | *[[1957]] में इस फ़िल्म ने राष्ट्रपति का स्वर्ण पदक जीता था। | ||
*[[1958]] में चार्ली चैपलिन के नेतृत्व वाली जूरी ने इसे 'बेस्ट फ़िल्म ऑफ़ द ईयर' का खिताब दिया था। | *[[1958]] में चार्ली चैपलिन के नेतृत्व वाली जूरी ने इसे 'बेस्ट फ़िल्म ऑफ़ द ईयर' का खिताब दिया था। |
13:18, 6 अप्रैल 2011 का अवतरण
दो आँखें बारह हाथ
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निर्देशक | वी. शांताराम |
निर्माता | वी. शांताराम |
कलाकार | वी. शांताराम और संध्या |
प्रसिद्ध चरित्र | आदिनाथ और चंपा |
संगीत | वसंत देसाई |
गीतकार | भरत व्यास |
गायक | लता मंगेशकर और मन्ना डे |
प्रसिद्ध गीत | ऐ मालिक तेरे बन्दे हम, ऐसे हों हमारे करम |
प्रदर्शन तिथि | 1957 |
अवधि | 143 मिनट |
भाषा | हिन्दी |
पुरस्कार | सर्वश्रेष्ठ फीचर फ़िल्म, सिल्वर बियर का पुरस्कार, सैमुअल गोल्डविन पुरस्कार, राष्ट्रपति का स्वर्ण पदक जीता, बेस्ट फ़िल्म ऑफ़ द ईयर |
हिन्दी फ़िल्म उद्योग जिस समय अपने विकास के शुरूआती दौर में था उसी समय एक ऐसा फ़िल्मकार भी था जिसने कैमरे, पटकथा, अभिनय और तकनीक में तमाम प्रयोग कर दो आँखें बारह हाथ जैसी फ़िल्म भी बनाई थी। दो आँखें कलात्मक दृष्टि से कमज़ोर फ़िल्म है। इसमें सामाजिक प्रवचन ज़्यादा है। दो आँखें बारह हाथ जिसमें गांधी जी के ‘हृदय परिवर्तन’ के दर्शन से प्रेरित होकर छह कैदियों के सुधार की कोशिश की जाती है। दो आँखें बारह हाथ 1957 में प्रदर्शित हुई थी।
वी शांताराम ने सरल और सादे से कथानक पर बिना किसी लटके झटके के साथ एक कालजयी फ़िल्म बनाई थी। इस फ़िल्म में युवा जेलर आदिनाथ का किरदार खुद शांताराम ने निभाया। और उनकी नायिका बनीं संध्या। इसके अलावा कोई ज्यादा मशहूर कलाकार इस फ़िल्म में नहीं था। भरत व्यास ने फ़िल्म के गीत लिखे और संगीत वसंत देसाई ने दिया था। मुंबई में ये फ़िल्म लगातार पैंसठ हफ्ते चली थी। कई शहरों में इसने गोल्डन जुबली मनाई थी।[1]
कथावस्तु
कहानी एक युवा प्रगतिशील और सुधारवादी विचारों वाले जेलर आदिनाथ की है, जो क़त्ल की सज़ा भुगत रहे छह खूंखार कै़दियों को एक पुराने जर्जर फार्म-हाउस में ले जाकर सुधारने की अनुमति ले लेता है और तब शुरू होता है उन्हें सुधारने की कोशिशों का आशा-निराशा भरा दौर।[1]
निर्माण
राजकमल कला मंदिर के बैनर तले निर्मित और वी. शांताराम निर्देशित फ़िल्म दो आँखें बारह हाथ को भला कौन भूल सकता है। वी. शांताराम ने दो आँखें बारह हाथ फ़िल्म बनाई, तब उनकी उम्र सत्तावन साल थी और वो बहुत ही चुस्त-दुरूस्त हुआ करते थे। फ़िल्म में रोचकता और रस का समावेश करने के लिए संध्या को एक खिलौने बेचने वाली का किरदार दिया गया, जो जब भी खेत वाले बाड़े से गुजरती है तो कडि़यल और खूंखार क़ैदियों में उसे प्रभावित करने की होड़ लग जाती है।[1]
गीत-संगीत
भरत व्यास द्वारा इस फ़िल्म के गीत लिखे गाये और वसंत देसाई द्वारा संगीत दिया गाया था। सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर और मन्ना डे ने इस फ़िल्म में के गाने गाये थे। दो आँखें बारह हाथ का संगीत शांताराम की अन्य फ़िल्मों की तरह उत्कृष्ट था और आज भी रेडियो स्टेशनों पर इसकी खूब फरमाईश की जाती है।
- इस फ़िल्म का भरत व्यास लिखित गीत आज भी लोगों को याद है और आब भी अनेक पाठशालाओं में प्रार्थना बनकर सत्य की राह पर चलने का जज़्बा और प्रेरणा देता है-
"ऐ मालिक तेरे बन्दे हम, ऐसे हों हमारे करम, नेकी पर चलें, और बदी से टलें, ताकि हंसते हुए निकले दम…"! [2]
- वी. शांताराम ने दो आँखें बारह हाथ में परिश्रम के प्रतिफल का उल्लास दर्शाने के लिए बारिश के गीत का उपयोग किया है। सुधारवादी जेलर और उसके कैदियों ने बंजर ज़मीन पर खेती का प्रयास किया है और जब बादल उनकी मेहनत पर अपना आशीष बरसाने आते हैं तो सभी ‘उमड़-घुमड़कर के आई रे घटा’ गाते हुए नाच उठते हैं।[3]
- दो आंखे बारह हाथ में बसंत देसाई की धुन पर मैं गाऊं तू चुप हो जा, मैं जागू तू सो जा...को लता मंगेशकर ने अपनी आवाज देकर मर्मस्पर्शी बना दिया।[4]
फ़िल्म का उद्देश्य
इस फ़िल्म का सबसे बड़ा संदेश है नैतिकता का संदेश। भारतीय मानस में नैतिकता की गहरी पैठ है। हमें भटकने से बचाती है। अगर हमसे कोई ग़लत क़दम उठ जाता है तो हम अपराध-बोध के तले दब जाते हैं। इस फ़िल्म में जेलर आदिनाथ अपने क़ैदियों को इसी ताक़त के सहारे सुधारता है, उनके भीतर की नैतिकता को जगाता है। यही नैतिकता उन्हें फरार नहीं होने देती। इसी नैतिक बल के सहारे वो कड़ी मेहनत करके शानदार फ़सल हासिल करते हैं। इस तरह ये फ़िल्म कहीं ना कहीं गांधीवादी विचारधारा का प्रातिनिधित्व करती है।
फ़िल्म दो आँखें बारह हाथ साबित करती है कि चाहे 'क़ैदी हो या जल्लाद'- हैं तो सब इंसान ही ना। तमाम बातों के बावजूद हम सबके भीतर एक कोमल-हृदय है। हमारे भीतर जज़्बात की नर्मी है। हमारे भीतर आंसू हैं, मुस्कानें हैं। हमारे भीतर अपराध बोध है। प्यार की चाहत है।[1]
मुख्य कलाकार
- वी. शांताराम - आदिनाथ
- संध्या - चंपा
पुरस्कार
- इस फ़िल्म को सर्वश्रेष्ठ फीचर फ़िल्म के लिए राष्ट्रपति के स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया था।
- 1957 में इसे फ़िल्म को बर्लिन फ़िल्म फेस्टिवल में सिल्वर बियर का पुरस्कार मिला था।
- सर्वश्रेष्ठ विदेशी फ़िल्म के लिए सैमुअल गोल्डविन पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।[5]
- 1957 में इस फ़िल्म ने राष्ट्रपति का स्वर्ण पदक जीता था।
- 1958 में चार्ली चैपलिन के नेतृत्व वाली जूरी ने इसे 'बेस्ट फ़िल्म ऑफ़ द ईयर' का खिताब दिया था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 1.3 शांताराम की फ़िल्म ‘दो आंखें बारह हाथ’ ने पूरे किये पचास साल। रेडियोवाणी पर इस फिल्म की बातें और गाने । (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) रेडियोवाणी। अभिगमन तिथि: 30 अगस्त, 2010।
- ↑ रियाज, राजू कादरी। जज्बा देशप्रेम का (हिन्दी) पत्रिका। अभिगमन तिथि: 30 अगस्त, 2010।
- ↑ फ़िल्मों में बरसात का दृश्य (हिन्दी) समय दर्पण। अभिगमन तिथि: 30 अगस्त, 2010।
- ↑ स्वदेश, संजय। हमारी फ़िल्में अब लोरी नहीं गाती (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) विस्फोट डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 30 अगस्त, 2010।
- ↑ सामाजिक बदलाव का ज़रिया है फ़िल्में: वी शांताराम (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) जागरण। अभिगमन तिथि: 30 अगस्त, 2010।
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