"स्वर (संगीत)": अवतरणों में अंतर
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*साधारणत: जब कोई ध्वनि नियमित और आवर्त-कम्पनों से मिलकर उत्पन्न होती है, तो उसे 'स्वर' कहते हैं। इसके विपरीत जब कम्पन्न अनियमित तथा पेचीदे या मिश्रित हों तो उस ध्वनि को 'कोलाहल' कहते हैं। | *साधारणत: जब कोई ध्वनि नियमित और आवर्त-कम्पनों से मिलकर उत्पन्न होती है, तो उसे 'स्वर' कहते हैं। इसके विपरीत जब कम्पन्न अनियमित तथा पेचीदे या मिश्रित हों तो उस ध्वनि को 'कोलाहल' कहते हैं। | ||
*बोलचाल की [[भाषा]] की ध्वनि को स्वर और कोलाहल के बीच की श्रेणी में रखा जाता है। | *बोलचाल की [[भाषा]] की ध्वनि को स्वर और कोलाहल के बीच की श्रेणी में रखा जाता है। | ||
*भारतीय संगीतज्ञों ने एक स्वर (ध्वनि) से उससे दुगुनी ध्वनि तक के क्षेत्र में ऐसे संगीतोपयोगी नाद बाईस माने हैं, जिन्हें 'श्रुतियाँ' कहा गया है। ध्वनि की प्रारम्भिक अवस्था 'श्रुति' और उसका अनुरणात्मक (गुंजित) 'स्वर' कहलाता है। | *भारतीय संगीतज्ञों ने एक स्वर (ध्वनि) से उससे दुगुनी ध्वनि तक के क्षेत्र में ऐसे संगीतोपयोगी [[नाद]] बाईस माने हैं, जिन्हें 'श्रुतियाँ' कहा गया है। ध्वनि की प्रारम्भिक अवस्था 'श्रुति' और उसका अनुरणात्मक (गुंजित) 'स्वर' कहलाता है। | ||
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संक्षेप में यह समझिए की नियमित आन्दोलन संख्यावली ध्वनि 'स्वर' कहलाती है। यही ध्वनि [[संगीत]] के काम में आती है, जो [[कान|कानों]] को मधुर लगती है तथा चित्त को प्रसन्न् करती है। इस ध्वनि को संगीत की भाषा में '''नाद''' कहते हैं। इस आधार पर संगीतोपयोगी नाद 'स्वर' कहलाता है। | संक्षेप में यह समझिए की नियमित आन्दोलन संख्यावली ध्वनि 'स्वर' कहलाती है। यही ध्वनि [[संगीत]] के काम में आती है, जो [[कान|कानों]] को मधुर लगती है तथा चित्त को प्रसन्न् करती है। इस ध्वनि को संगीत की भाषा में '''नाद''' कहते हैं। इस आधार पर संगीतोपयोगी नाद 'स्वर' कहलाता है। |
05:18, 12 अप्रैल 2011 का अवतरण
- ध्वनियों में हम प्राय: दो भेद रखते हैं, जिनमें से एक को स्वर और दूसरे को कोलाहल या रव कहते हैं। कुछ लोग बातचीत की ध्वनि को भी एक भेद मानते हैं।
- साधारणत: जब कोई ध्वनि नियमित और आवर्त-कम्पनों से मिलकर उत्पन्न होती है, तो उसे 'स्वर' कहते हैं। इसके विपरीत जब कम्पन्न अनियमित तथा पेचीदे या मिश्रित हों तो उस ध्वनि को 'कोलाहल' कहते हैं।
- बोलचाल की भाषा की ध्वनि को स्वर और कोलाहल के बीच की श्रेणी में रखा जाता है।
- भारतीय संगीतज्ञों ने एक स्वर (ध्वनि) से उससे दुगुनी ध्वनि तक के क्षेत्र में ऐसे संगीतोपयोगी नाद बाईस माने हैं, जिन्हें 'श्रुतियाँ' कहा गया है। ध्वनि की प्रारम्भिक अवस्था 'श्रुति' और उसका अनुरणात्मक (गुंजित) 'स्वर' कहलाता है।
संक्षेप
संक्षेप में यह समझिए की नियमित आन्दोलन संख्यावली ध्वनि 'स्वर' कहलाती है। यही ध्वनि संगीत के काम में आती है, जो कानों को मधुर लगती है तथा चित्त को प्रसन्न् करती है। इस ध्वनि को संगीत की भाषा में नाद कहते हैं। इस आधार पर संगीतोपयोगी नाद 'स्वर' कहलाता है।
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