"तिसट्ठि महारुरिष गुणालंकार": अवतरणों में अंतर
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उत्तर पुराण में 42 संधियाँ हैं। इसमें तरेसठ महापुरुषों के चरित्र हैं। उत्तर पुराण में बाक़ी 23 [[तीर्थंकर]] तथा उनके समकालीन | उत्तर पुराण में 42 संधियाँ हैं। इसमें तरेसठ महापुरुषों के चरित्र हैं। उत्तर पुराण में बाक़ी 23 [[तीर्थंकर]] तथा उनके समकालीन पुरुषों के चरित्र हैं। | ||
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11:13, 3 जून 2012 के समय का अवतरण
तिसट्ठि महारुरिष गुणालंकार जैन साहित्य के महाकवि पुष्पदंत का उपलब्ध ग्रंथ है।
- तिसट्ठि महारुरिष गुणालंकार को 'त्रिषष्टि महापुरुष गुणालंकार' भी कहा जाता है।
- इसी ग्रंथ को महापुराण भी कहा गया है।
- इसके दो खण्ड हैं -
आदि पुराण में 80 संधियाँ हैं। आदि पुराण में प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का चरित्र है।
- उत्तर पुराण -
उत्तर पुराण में 42 संधियाँ हैं। इसमें तरेसठ महापुरुषों के चरित्र हैं। उत्तर पुराण में बाक़ी 23 तीर्थंकर तथा उनके समकालीन पुरुषों के चरित्र हैं।
- इन दोनों में लगभग 20 हज़ार पद होगें।
- इसके निर्माण में प्रथम राष्ट्रकूट वंश के महाराजाधिराज कृष्णराज (तृतीय) के महामात्य भरत की प्रेरणा थी, क्योंकि ग्रंथ की प्रत्येक संधि में भरत का गुणगान है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख