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11:58, 28 फ़रवरी 2012 का अवतरण
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शशि कपूर
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पूरा नाम | शशि कपूर ( असली नाम बलबीर राज कपूर ) |
जन्म | 18 मार्च, 1938 |
पति/पत्नी | जेनिफर |
कर्म भूमि | मुंबई |
कर्म-क्षेत्र | अभिनेता |
विद्यालय | डोन बोस्की स्कूल से पढाई पूरी की |
शशि कपूर (जन्म- 18 मार्च, 1938 ई., कोलकाता) हिन्दी सिनेमा जगत के ऐसे अभिनेताओं में शुमार किये जाते हैं, जिन्होंने अपने सदाबहार अभिनय से लगभग चार दशक तक हिन्दी सिने प्रेमियों का भरपूर मनोरंजन किया। कोलकाता में जन्मे शशि कपूर का असली नाम 'बलबीर राज कपूर' है। उनका रूझान बचपन से ही फ़िल्मों की ओर था और वह अभिनेता बनना चाहते थे। उनके पिता पृथ्वीराज कपूर और भाई राजकपूर तथा शम्मी कपूर फ़िल्म इंडस्ट्री के जाने माने अभिनेता थे और प्रसिद्धि की बुलन्दियों पर थे। उनके पिता अगर चाहते तो वह उन्हें लेकर फ़िल्म बना सकते थे, लेकिन उनका मानना था कि शशि कपूर स्वयं ही संघर्ष करें और अपनी मेहनत से ही अभिनेता बनें।
शिक्षा
अभिनेता पृथ्वीराज कपूर के तीसरे बेटे शशि कपूर की स्कूली पढ़ाई मुंबई के 'डॉन बास्को स्कूल' में हुई थी। स्कूल में वे नाटक में काम करना चाहते थे, लेकिन कभी रोल पाने में कामयाब नहीं हुए। आखिर में उनकी यह तमन्ना पूरी हुई पापाजी के पृथ्वी थिएटर से। पहले बाल भूमिकाएँ और फिर बड़े रोल मिलने लगे। पृथ्वी थिएटर में पचास रुपये मासिक पर काम करके जब शशि कपूर अपनी स्टेज पर काम करने की तमन्ना पूरी कर रहे थे, तब उन्हें सपने में भी यह ख्याल नहीं आया कि एक दिन उनका रोमांस थिएटर की दुनिया में होगा और यहीं उन्हें पत्नी मिल जाएगी।
जेनिफ़र से भेंट
जिन दिनों शशि कपूर 'पृथ्वी थिएटर' में काम कर रहे थे, उन दिनों ब्रिटेन की मशहूर नाटक मंडली 'शेक्सथियरेना' भारत दौरे पर आई। इस यात्रा के दौरान जब यह थिएटर मंडली मुंबई पहुंची, तो उसके संचालक मिस्टर केण्डेल, शशि कपूर के पिता से मिले। दोनों की पहले से ही जान-पहचान थी। पृथ्वीराज के दो बेटों राजकपूर और शम्मी कपूर को थिएटर से कुछ लेना-देना नहीं था, क्योंकि तब तक वे फ़िल्मों में अपनी जगह बना चुके थे। शशि अभी भी स्टेज को अपनाए हुए थे, क्योंकि मिस्टर केण्डेल एक बेहतरीन अभिनेता होने के साथ-साथ स्टेज की बारीकियों से भली-भांति परिचित थे। इसलिए पापाजी ने पुत्र शशि को उनसे मिलाया और बेटे को चांस देने के लिए आग्रह किया। शशि कपूर को शेक्सथियरेना से बुलावा आ गया। अब वे कभी पृथ्वी थिएटर के नाटक में काम करते, तो कभी मिस्टर केण्डेल की शागिर्दी करते। इस बीच उनकी मुलाकात केण्डेल की बेटी जेनिफ़र से हो गई। जानकारी मिली कि जेनिफ़र सिर्फ़ एक प्रतिभावान अभिनेत्री ही नहीं हैं, शेक्सथियरेना के संचालन में भी उनका बहुत बड़ा योगदान है। शशि-जेनिफ़र का परिचय धीरे-धीरे मित्रता में बदलने लगा। इसी दौरान जेनिफ़र ने हिन्दी भी सीख ली। एक दिन शशि ने मजाक में कहा, मैं तुम्हारे पापा और उनकी कंपनी में काम कर रहा हूँ, तुम भी मेरे पापा के थिएटर में काम करो? जेनिफ़र ने कहा, क्यों नहीं! ज़रूर करूँगी। उसके बाद पृथ्वी थिएटर के नाटक 'पठान' में जेनिफ़र रोल निभाती नजर आईं। शशि जहाँ एक ओर हैरान थे, तो दूसरी ओर ओर जेनिफ़र की प्रतिभा और लगन के कायल भी हो रहे थे।
विवाह
जेनिफ़र उम्र में शशि कपूर से बड़ी थीं। मजे की बात तो यह थी कि मित्र, प्रेमिका और फिर पत्नी बनने वाली यह युवती अक्सर नाटक में शशि कपूर की माँ का किरदार बखूबी निभा रही थी। दरअसल, सिंगापुर, मलाया और हांगकांग की यात्रा के दौरान दोनों को स्टेज पर न केवल काम करने का बेहतर अवसर मिला, बल्कि घूमने-फिरने का भी खूब मौका मिला। जेनिफ़र के इस साथ ने जहाँ भारतीय शशि कपूर को इंग्लिश मैन बना दिया, वहीं उन्होंने शशि से भारतीय रहन-सहन और तौर-तरीकों के बारे भी में बहुत कुछ सीखा-जाना। ब्रेड की जगह चपाती खाना और बनाना भी सीखा। जब मुंबई लौटे, तो मिस्टर केण्डेल की बेटी से उनका रिश्ता पक्का हो चुका था। पिता पृथ्वीराज कपूर को इस रिश्ते पर कोई आपत्ति नहीं थी। आखिर वे उनके मित्र की बेटी थीं। 1958 में शशि और जेनिफ़र केण्डेल पति-पत्नी बन गए। विवाह विधि-विधान से पृथ्वीराज कपूर के मुंबई के 'माटुंगा फ़्लैट' में हुआ।
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