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कलकत्ता (वर्तमान [[कोलकाता]]) में शिक्षा प्राप्त करने के बाद दत्त ने [[अल्मोड़ा]] स्थित उदय शंकर की नृत्य अकादमी में प्रशिक्षण प्राप्त किया और उसके बाद कलकत्ता में टेलीफ़ोन ऑपरेटर का काम करने लगे। बाद में वह [[पुणे]] (भूतपूर्व पूना) चले गए और प्रभात स्टूडियो से जुड़ गए, जहाँ उन्होंने पहले [[अभिनेता]] और फिर नृत्य-निर्देशक के रूप में काम किया। उनकी पहली फ़ीचर फ़िल्म बाज़ी (1951) देवानंद की नवकेतन फ़िल्म्स के बैनर तले बनी थी। इसके बाद उनकी दूसरी सफल फ़िल्म जाल (1952) बनी, जिसमें वही सितारे (देवानंद और गीता बाली) शामिल थे। इसके बाद गुरुदत्त ने बाज़ (1953) फ़िल्म के निर्माण के लिए अपनी प्रोडक्शन कंपनी शुरू की। हालांकि उन्होंने अपने संक्षिप्त, किंतु प्रतिभासंपन्न पेशेवर जीवन में कई शैलियों में प्रयोग किया, लेकिन उनकी प्रतिभा का सर्वश्रेष्ठ रूप उत्कट भावुकतापूर्ण फ़िल्मों में प्रदर्शित हुआ। | कलकत्ता (वर्तमान [[कोलकाता]]) में शिक्षा प्राप्त करने के बाद दत्त ने [[अल्मोड़ा]] स्थित उदय शंकर की नृत्य अकादमी में प्रशिक्षण प्राप्त किया और उसके बाद कलकत्ता में टेलीफ़ोन ऑपरेटर का काम करने लगे। बाद में वह [[पुणे]] (भूतपूर्व पूना) चले गए और प्रभात स्टूडियो से जुड़ गए, जहाँ उन्होंने पहले [[अभिनेता]] और फिर नृत्य-निर्देशक के रूप में काम किया। उनकी पहली फ़ीचर फ़िल्म बाज़ी (1951) देवानंद की नवकेतन फ़िल्म्स के बैनर तले बनी थी। इसके बाद उनकी दूसरी सफल फ़िल्म जाल (1952) बनी, जिसमें वही सितारे (देवानंद और गीता बाली) शामिल थे। इसके बाद गुरुदत्त ने बाज़ (1953) फ़िल्म के निर्माण के लिए अपनी प्रोडक्शन कंपनी शुरू की। हालांकि उन्होंने अपने संक्षिप्त, किंतु प्रतिभासंपन्न पेशेवर जीवन में कई शैलियों में प्रयोग किया, लेकिन उनकी प्रतिभा का सर्वश्रेष्ठ रूप उत्कट भावुकतापूर्ण फ़िल्मों में प्रदर्शित हुआ। | ||
;प्रसिद्धि का स्रोत | ;प्रसिद्धि का स्रोत | ||
मुख्य रूप से दत्त की प्रसिद्धि का स्रोत बारीकी से गढ़ी गई, उदास व चिंतन भरी उनकी तीन बेहतरीन फ़िल्में हैं- प्यासा (1957), काग़ज़ के फूल (1959) और साहब, बीबी और ग़ुलाम (1962)। हालांकि साहब, बीबी और ग़ुलाम का श्रेय उनके सह पटकथा लेखक अबरार अल्वी को दिया जाता है, लेकिन यह स्पष्ट रूप से गुरुदत्त की कृति थी। गुरुदत्त ने सी.आई.डी. से [[वहीदा रहमान]] का फ़िल्म जगत में परिचय कराया और फिर प्यास तथा काग़ज़ के फूल जैसी फ़िल्मों से उन्हे कीर्तिस्तंभ की तरह स्थापित कर दिया। प्रकाश और छाया के कल्पनाशील उपयोग, भावपूर्ण दृश्यबिंब, कथा में कई विषय- वस्तुओं की परतें गूंथने की अद्भुत क्षमता और गीतों के मंत्रमुग्धकारी छायांकन ने उन्हें भारतीय सिनेमा के सबसे | मुख्य रूप से दत्त की प्रसिद्धि का स्रोत बारीकी से गढ़ी गई, उदास व चिंतन भरी उनकी तीन बेहतरीन फ़िल्में हैं- प्यासा (1957), काग़ज़ के फूल (1959) और साहब, बीबी और ग़ुलाम (1962)। हालांकि साहब, बीबी और ग़ुलाम का श्रेय उनके सह पटकथा लेखक अबरार अल्वी को दिया जाता है, लेकिन यह स्पष्ट रूप से गुरुदत्त की कृति थी। गुरुदत्त ने सी.आई.डी. से [[वहीदा रहमान]] का फ़िल्म जगत में परिचय कराया और फिर प्यास तथा काग़ज़ के फूल जैसी फ़िल्मों से उन्हे कीर्तिस्तंभ की तरह स्थापित कर दिया। प्रकाश और छाया के कल्पनाशील उपयोग, भावपूर्ण दृश्यबिंब, कथा में कई विषय- वस्तुओं की परतें गूंथने की अद्भुत क्षमता और गीतों के मंत्रमुग्धकारी छायांकन ने उन्हें भारतीय सिनेमा के सबसे निपुण शैलीकारों में ला खड़ा किया। | ||
==गुरुदत्त की फ़िल्में== | |||
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! वर्ष | |||
! फ़िल्म | |||
! नायिका | |||
! निर्देशक | |||
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| 1945 | |||
| लाखा रानी | |||
| मोनिका देसाई | |||
| विश्राम बेड़ेकर | |||
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| 1953 | |||
| बाज़ | |||
| गीता बाली | |||
| गुरुदत्त | |||
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| 1954 | |||
| आर पार | |||
| श्यामा, शकीला | |||
| गुरुदत्त | |||
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| 1955 | |||
| मि.एंड मिसेस 55 | |||
| [[मधुबाला]] | |||
| गुरुदत्त | |||
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| 1957 | |||
| प्यासा | |||
| मालासिन्हा, [[वहीदा रहमान]] | |||
| गुरुदत्त | |||
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| 1958 | |||
| बारह बजे | |||
| वहीदा रहमान | |||
| प्रमोद चक्रवती | |||
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| 1959 | |||
| कागज़ के फूल | |||
| वहीदा रहमान | |||
| गुरुदत्त | |||
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| 1960 | |||
| चौदहवी का चाँद | |||
| वहीदा रहमान | |||
| एम. सादिक | |||
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| 1962 | |||
| साहिब बीवी और गुलाम | |||
| [[मीना कुमारी]], वहीदा रहमान | |||
| अबरार अल्वी | |||
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| 1963 | |||
| सौतेला भाई | |||
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| महेश कौल | |||
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| 1963 | |||
| बहुरानी | |||
| मालासिन्हा | |||
| टी. प्रकाश राव | |||
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| 1963 | |||
| भरोसा | |||
| [[आशा पारेख]] | |||
| के.शंकर | |||
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| 1964 | |||
| सांझ और सवेरा | |||
| मीना कुमारी | |||
| ऋषिकेश मुखर्जी | |||
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| 1964 | |||
| सुहागन | |||
| वहीदा रहमान | |||
| के.एस. गोपालकृष्णन | |||
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| colspan="4" style="text-align:center;"| निर्देशक के तौर पर गुरुदत्त | |||
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! फ़िल्म | |||
! नायक | |||
! नायिका | |||
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| 1951 | |||
| बाज़ी | |||
| [[देव आनंद]] | |||
| गीता बाली, कल्पना कार्तिक | |||
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| 1951 | |||
| जाल | |||
| देव आनंद | |||
| गीता बाली, पूर्णिमा | |||
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| 1956 | |||
| सैलाब | |||
| अभि भट्टाचार्य | |||
| गीता बाली | |||
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| colspan="4" style="text-align:center;"| निर्माता के तौर पर गुरुदत्त | |||
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! वर्ष | |||
! फ़िल्म | |||
! नायक / नायिका | |||
! निर्देशक | |||
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| देव आनंद, शकीला, वहीदा रहमान | |||
| राज खोसला | |||
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==निधन== | ==निधन== | ||
शराब की लत से लंबे समय तक जूझने के बाद 1964 में उन्होंने आत्महत्या कर ली और इस प्रकार एक प्रतिभाशाली जीवन का असमय अंत हो गया। | शराब की लत से लंबे समय तक जूझने के बाद 1964 में उन्होंने आत्महत्या कर ली और इस प्रकार एक प्रतिभाशाली जीवन का असमय अंत हो गया। | ||
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07:49, 2 दिसम्बर 2011 का अवतरण
गुरु दत्त
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पूरा नाम | गुरुदत्त |
जन्म | 9 जुलाई 1925 |
जन्म भूमि | बंगलोर, कर्नाटक |
मृत्यु | 10 अक्तूबर 1964 (आत्महत्या) |
मृत्यु स्थान | बंबई {वर्तमान मुंबई}, महाराष्ट्र |
कर्म भूमि | मुंबई |
कर्म-क्षेत्र | अभिनेता, निर्माता व निर्देशक |
मुख्य फ़िल्में | प्यासा (1957), काग़ज़ के फूल (1959) और साहब, बीबी और ग़ुलाम (1962), चौदहवीं का चाँद |
प्रसिद्धि | इनकी फ़िल्मों में कैमरा और प्रकाश व्यवस्था |
नागरिकता | भारतीय |
गुरुदत्त (जन्म- 9 जुलाई 1925, बंगलोर, कर्नाटक, भारत; मृत्यु- 10 अक्तूबर 1964, बंबई {वर्तमान मुंबई}, महाराष्ट्र), हिन्दी सिनेमा के निर्देशक तथा अभिनेता थे।
फ़िल्मी सफ़र
कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में शिक्षा प्राप्त करने के बाद दत्त ने अल्मोड़ा स्थित उदय शंकर की नृत्य अकादमी में प्रशिक्षण प्राप्त किया और उसके बाद कलकत्ता में टेलीफ़ोन ऑपरेटर का काम करने लगे। बाद में वह पुणे (भूतपूर्व पूना) चले गए और प्रभात स्टूडियो से जुड़ गए, जहाँ उन्होंने पहले अभिनेता और फिर नृत्य-निर्देशक के रूप में काम किया। उनकी पहली फ़ीचर फ़िल्म बाज़ी (1951) देवानंद की नवकेतन फ़िल्म्स के बैनर तले बनी थी। इसके बाद उनकी दूसरी सफल फ़िल्म जाल (1952) बनी, जिसमें वही सितारे (देवानंद और गीता बाली) शामिल थे। इसके बाद गुरुदत्त ने बाज़ (1953) फ़िल्म के निर्माण के लिए अपनी प्रोडक्शन कंपनी शुरू की। हालांकि उन्होंने अपने संक्षिप्त, किंतु प्रतिभासंपन्न पेशेवर जीवन में कई शैलियों में प्रयोग किया, लेकिन उनकी प्रतिभा का सर्वश्रेष्ठ रूप उत्कट भावुकतापूर्ण फ़िल्मों में प्रदर्शित हुआ।
- प्रसिद्धि का स्रोत
मुख्य रूप से दत्त की प्रसिद्धि का स्रोत बारीकी से गढ़ी गई, उदास व चिंतन भरी उनकी तीन बेहतरीन फ़िल्में हैं- प्यासा (1957), काग़ज़ के फूल (1959) और साहब, बीबी और ग़ुलाम (1962)। हालांकि साहब, बीबी और ग़ुलाम का श्रेय उनके सह पटकथा लेखक अबरार अल्वी को दिया जाता है, लेकिन यह स्पष्ट रूप से गुरुदत्त की कृति थी। गुरुदत्त ने सी.आई.डी. से वहीदा रहमान का फ़िल्म जगत में परिचय कराया और फिर प्यास तथा काग़ज़ के फूल जैसी फ़िल्मों से उन्हे कीर्तिस्तंभ की तरह स्थापित कर दिया। प्रकाश और छाया के कल्पनाशील उपयोग, भावपूर्ण दृश्यबिंब, कथा में कई विषय- वस्तुओं की परतें गूंथने की अद्भुत क्षमता और गीतों के मंत्रमुग्धकारी छायांकन ने उन्हें भारतीय सिनेमा के सबसे निपुण शैलीकारों में ला खड़ा किया।
गुरुदत्त की फ़िल्में
वर्ष | फ़िल्म | नायिका | निर्देशक |
---|---|---|---|
1945 | लाखा रानी | मोनिका देसाई | विश्राम बेड़ेकर |
1953 | बाज़ | गीता बाली | गुरुदत्त |
1954 | आर पार | श्यामा, शकीला | गुरुदत्त |
1955 | मि.एंड मिसेस 55 | मधुबाला | गुरुदत्त |
1957 | प्यासा | मालासिन्हा, वहीदा रहमान | गुरुदत्त |
1958 | बारह बजे | वहीदा रहमान | प्रमोद चक्रवती |
1959 | कागज़ के फूल | वहीदा रहमान | गुरुदत्त |
1960 | चौदहवी का चाँद | वहीदा रहमान | एम. सादिक |
1962 | साहिब बीवी और गुलाम | मीना कुमारी, वहीदा रहमान | अबरार अल्वी |
1963 | सौतेला भाई | महेश कौल | |
1963 | बहुरानी | मालासिन्हा | टी. प्रकाश राव |
1963 | भरोसा | आशा पारेख | के.शंकर |
1964 | सांझ और सवेरा | मीना कुमारी | ऋषिकेश मुखर्जी |
1964 | सुहागन | वहीदा रहमान | के.एस. गोपालकृष्णन |
निर्देशक के तौर पर गुरुदत्त | |||
वर्ष | फ़िल्म | नायक | नायिका |
1951 | बाज़ी | देव आनंद | गीता बाली, कल्पना कार्तिक |
1951 | जाल | देव आनंद | गीता बाली, पूर्णिमा |
1956 | सैलाब | अभि भट्टाचार्य | गीता बाली |
निर्माता के तौर पर गुरुदत्त | |||
वर्ष | फ़िल्म | नायक / नायिका | निर्देशक |
1956 | सीआईडी | देव आनंद, शकीला, वहीदा रहमान | राज खोसला |
निधन
शराब की लत से लंबे समय तक जूझने के बाद 1964 में उन्होंने आत्महत्या कर ली और इस प्रकार एक प्रतिभाशाली जीवन का असमय अंत हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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