"माधवराव नारायण": अवतरणों में अंतर
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*'''माधवराव नारायण''' को 'माधवराव द्वितीय' के नाम से भी जाना जाता है। | *'''माधवराव नारायण''' को 'माधवराव द्वितीय' के नाम से भी जाना जाता है। | ||
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10:26, 12 जुलाई 2011 का अवतरण
- माधवराव नारायण को 'माधवराव द्वितीय' के नाम से भी जाना जाता है।
- इसका जन्म पिता पेशवा नारायणराव की मृत्यु के बाद उसकी विधवा गंगाबाई के गर्भ से 18 अप्रैल, 1774 ई. को हुआ था।
- इसे 28 मई, 1774 को 'माधवराव नारायण' के नाम से पेशवा बनाया गया।
- उस समय वह शिशु था, इसलिए शासन कार्य चलाने के लिए एक समिति नियुक्त कर दी गई और नाना फड़नवीस उसका प्रधान नियुक्त हुआ।
- इस समिति में कुल 12 सदस्य थे, तथा इस समिति को 'बारभाई' के नाम से जाना जाता था।
- माधवराव नारायण का दादा (उसके पिता नारायणराव का चाचा) राघोवा, ईस्ट इण्डिया कम्पनी से षड़यंत्र करके स्वयं पेशवा बनने का प्रयत्न करने लगा।
- इसके फलस्वरूप 'प्रथम मराठा युद्ध' (1775-1782 ई.) हुआ, जिसका अन्त साल्बाई की सन्धि (1782 ई.) से हुआ।
- इस सन्धि के फलस्वरूप पेशवा का राज्य अखण्डित रहा।
- पेशवा के बालक होने के कारण सत्ता पर अधिकार प्राप्त करने के लिए महादजी शिन्दे और नाना फड़नवीस में गहरी प्रतिद्वन्द्विता चली।
- इस प्रतिद्वन्द्विता के फलस्वरूप मराठों की शक्ति क्षीण हो गई।
- 1794 ई. में महादजी शिन्दे की मृत्यु होने पर यह आपसी प्रतिद्वन्द्विता समाप्त हुई।
- अगले साल (1794 ई.) में मराठों ने खर्डा की लड़ाई में निज़ाम को पराजित किया।
- नवयुवक पेशवा 'माधवराव नारायण' नाना फड़नवीस की कड़ी निगरानी में रहने के कारण ज़िन्दगी से ऊब गया था, और 1795 ई. में उसने आत्महत्या कर ली।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
भट्टाचार्य, सच्चिदानन्द भारतीय इतिहास कोश, द्वितीय संस्करण-1989 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 358।