"शिव जी की आरती": अवतरणों में अंतर
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<blockquote><span style="color: blue"><poem>कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारं | | <blockquote><span style="color: blue"><poem>कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारं | | ||
सदा वसन्तं ह्रदयाविन्दे भंव भवानी सहितं नमामि ॥ </poem> | सदा वसन्तं ह्रदयाविन्दे भंव भवानी सहितं नमामि ॥ </poem></span></blockquote> | ||
<blockquote><span style="color: maroon"><poem>जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा | | <blockquote><span style="color: maroon"><poem>जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा | | ||
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जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा| | जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा| | ||
ब्रम्हा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा॥ ॐ जय शिव ओंकारा......</poem></span></blockquote> | ब्रम्हा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा॥ ॐ जय शिव ओंकारा......</poem></span></blockquote> | ||
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धन धन भोले नाथ तुम्हारे कौड़ी नहीं खजाने में, | |||
तीन लोक बस्ती में बसाये आप बसे वीराने में | | |||
जटा जूट के मुकुट शीश पर गले में मुंडन की माला, | |||
माथे पर छोटा चन्द्रमा कपाल में करके व्याला | | |||
जिसे देखकर भय ब्यापे सो गले बीच लपटे काला, | |||
और तीसरे नेत्र में तेरे महा प्रलय की है ज्वाला | | |||
पीने को हर भंग रंग है आक धतुरा खाने का, | |||
तीन लोक बस्ती में बसाये आप बसे वीराने में | | |||
नाम तुम्हारा है अनेक पर सबसे उत्तत है गंगा, | |||
वाही ते शोभा पाई है विरासत सिर पर गंगा | | |||
भूत बोतल संग में सोहे यह लश्कर है अति चंगा, | |||
तीन लोक के दाता बनकर आप बने क्यों भिखमंगा | | |||
अलख मुझे बतलाओ क्या मिलता है अलख जगाने में, | |||
ये तो सगुण स्वरूप है निर्गुन में निर्गुन हो जाये | | |||
पल में प्रलय करो रचना क्षण में नहीं कुछ पुण्य आपाये, | |||
चमड़ा शेर का वस्त्र पुराने बूढ़ा बैल सवारी को | | |||
जिस पर तुम्हारी सेवा करती, धन धन शैल कुमारी को, | |||
क्या जान क्या देखा इसने नाथ तेरी सरदारी को | | |||
सुन तुम्हारी ब्याह की लीला भिखमंगे के गाने में | | |||
तीन लोक बस्ती में बसाये................. | |||
किसी का सुमिरन ध्यान नहीं तुम अपने ही करते हो जाप, | |||
अपने बीच में आप समाये आप ही आप रहे हो व्याप | | |||
हुआ मेरा मन मग्न ओ बिगड़ी ऐसे नाथ बचाने में, | |||
तीन लोक बस्ती में बसाये................. | |||
कुबेर को धन दिया आपने, दिया इन्द्र को इन्द्रासन, | |||
अपने तन पर ख़ाक रमाये पहने नागों का भूषण | | |||
मुक्ति के दाता होकर मुक्ति तुम्हारे गाहे चरण, | |||
"देवीसिंह ये नाथ तुम्हारे हित से नित से करो भजन | | |||
तीन लोक बस्ती में बसाये................. | |||
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20:52, 9 सितम्बर 2011 का अवतरण
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारं |
सदा वसन्तं ह्रदयाविन्दे भंव भवानी सहितं नमामि ॥
जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा |
ब्रम्हा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव ओंकारा......
एकानन चतुरानन पंचांनन राजे |
हंसासंन, गरुड़ासन, वृषवाहन साजे॥ ॐ जय शिव ओंकारा......
दो भुज चारु चतुर्भज दस भुज अति सोहें |
तीनों रूप निरखता त्रिभुवन जन मोहें॥ ॐ जय शिव ओंकारा......
अक्षमाला, बनमाला, रुण्ड़मालाधारी |
चंदन, मृदमग सोहें, भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव ओंकारा......
श्वेताम्बर,पीताम्बर, बाघाम्बर अंगें |
सनकादिक, ब्रम्हादिक, भूतादिक संगें॥ ॐ जय शिव ओंकारा......
कर के मध्य कमड़ंल चक्र, त्रिशूल धरता |
जगकर्ता, जगभर्ता, जगससंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव ओंकारा......
ब्रम्हा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका |
प्रवणाक्षर मध्यें ये तीनों एका॥ ॐ जय शिव ओंकारा......
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रम्हचारी |
नित उठी भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव ओंकारा......
त्रिगुण शिवजी की आरती जो कोई नर गावें |
कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित फल पावें ॥ ॐ जय शिव ओंकारा.....
जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा|
ब्रम्हा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा॥ ॐ जय शिव ओंकारा......
धन धन भोले नाथ तुम्हारे कौड़ी नहीं खजाने में,
तीन लोक बस्ती में बसाये आप बसे वीराने में |
जटा जूट के मुकुट शीश पर गले में मुंडन की माला,
माथे पर छोटा चन्द्रमा कपाल में करके व्याला |
जिसे देखकर भय ब्यापे सो गले बीच लपटे काला,
और तीसरे नेत्र में तेरे महा प्रलय की है ज्वाला |
पीने को हर भंग रंग है आक धतुरा खाने का,
तीन लोक बस्ती में बसाये आप बसे वीराने में |
नाम तुम्हारा है अनेक पर सबसे उत्तत है गंगा,
वाही ते शोभा पाई है विरासत सिर पर गंगा |
भूत बोतल संग में सोहे यह लश्कर है अति चंगा,
तीन लोक के दाता बनकर आप बने क्यों भिखमंगा |
अलख मुझे बतलाओ क्या मिलता है अलख जगाने में,
ये तो सगुण स्वरूप है निर्गुन में निर्गुन हो जाये |
पल में प्रलय करो रचना क्षण में नहीं कुछ पुण्य आपाये,
चमड़ा शेर का वस्त्र पुराने बूढ़ा बैल सवारी को |
जिस पर तुम्हारी सेवा करती, धन धन शैल कुमारी को,
क्या जान क्या देखा इसने नाथ तेरी सरदारी को |
सुन तुम्हारी ब्याह की लीला भिखमंगे के गाने में |
तीन लोक बस्ती में बसाये.................
किसी का सुमिरन ध्यान नहीं तुम अपने ही करते हो जाप,
अपने बीच में आप समाये आप ही आप रहे हो व्याप |
हुआ मेरा मन मग्न ओ बिगड़ी ऐसे नाथ बचाने में,
तीन लोक बस्ती में बसाये.................
कुबेर को धन दिया आपने, दिया इन्द्र को इन्द्रासन,
अपने तन पर ख़ाक रमाये पहने नागों का भूषण |
मुक्ति के दाता होकर मुक्ति तुम्हारे गाहे चरण,
"देवीसिंह ये नाथ तुम्हारे हित से नित से करो भजन |
तीन लोक बस्ती में बसाये.................
इन्हें भी देखें: शिव, शिवरात्रि, शिव के अवतार एवं शिव चालीसा