"आधुनिक भारत का आर्थिक इतिहास": अवतरणों में अंतर

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इस व्यवस्था को 'ज़मींदारी प्रथा', '[[मालगुज़ारी]]' व 'बीसवेदारी' नाम से भी जाना जाता था। इस व्यवस्था के लागू किये जाने से पूर्व ब्रिटिश सरकार के समक्ष यह समस्या थी, कि भारत में कृषि योग्य भूमि का मालिक किसे मान जाय? सरकार राजस्व चुकाने के लिए अन्तिम रूप से किसे उत्तरदायी बनाये तथा उपज में से सरकार का हिस्सा कितना हो। [[वारेन हेस्टिंग्स]] ने अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा था, कि किसानों से लगान वसूल करने के बदले में ज़मींदारों के पास कुछ कमीशन प्राप्त करने के अधिकार हों। परन्तु हेस्टिंग्स की यह पद्धति असफल रही। 1772 ई. में हेस्टिंग्स ने पंचवर्षीय बन्दोबस्त चलाया। 1776 ई. में इस व्यवस्था को भी त्याग दिया गया। 1786 ई. में लॉर्ड कॉर्नवॉलिस बंगाल का [[गवर्नर-जनरल]] बना। उसने जेम्स ग्राण्ट एवं [[सर जॉन शोर]] से नवीन लगान व्यवस्था पर विचार विमर्श किया। 1790 ई. में कार्नवालिस ने दसवर्षीय व्यवस्था को लागू किया। 1793 ई. में इस व्यवस्था को बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा में स्थायी कर दिया गया और कालान्तर में इसे उत्तर प्रदेश के [[बनारस]] खण्ड एवं उत्तरी [[कर्नाटक]] में भी लागू किया गया।
इस व्यवस्था को 'ज़मींदारी प्रथा', '[[मालगुज़ारी]]' व 'बीसवेदारी' नाम से भी जाना जाता था। इस व्यवस्था के लागू किये जाने से पूर्व ब्रिटिश सरकार के समक्ष यह समस्या थी, कि भारत में कृषि योग्य भूमि का मालिक किसे मान जाय? सरकार राजस्व चुकाने के लिए अन्तिम रूप से किसे उत्तरदायी बनाये तथा उपज में से सरकार का हिस्सा कितना हो। [[वारेन हेस्टिंग्स]] ने अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा था, कि किसानों से लगान वसूल करने के बदले में ज़मींदारों के पास कुछ कमीशन प्राप्त करने के अधिकार हों। परन्तु हेस्टिंग्स की यह पद्धति असफल रही। 1772 ई. में हेस्टिंग्स ने पंचवर्षीय बन्दोबस्त चलाया। 1776 ई. में इस व्यवस्था को भी त्याग दिया गया। 1786 ई. में लॉर्ड कॉर्नवॉलिस बंगाल का [[गवर्नर-जनरल]] बना। उसने जेम्स ग्राण्ट एवं [[सर जॉन शोर]] से नवीन लगान व्यवस्था पर विचार विमर्श किया। 1790 ई. में कार्नवालिस ने दसवर्षीय व्यवस्था को लागू किया। 1793 ई. में इस व्यवस्था को बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा में स्थायी कर दिया गया और कालान्तर में इसे उत्तर प्रदेश के [[बनारस]] खण्ड एवं उत्तरी [[कर्नाटक]] में भी लागू किया गया।
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महालवाड़ी व्यवस्था का प्रस्ताव सर्वप्रथम 'हॉल्ट मैकेंजी' द्वारा लाया गया था। इस व्यवस्था के अंतर्गत भूमि पर ग्राम समुदाय का सामूहिक अधिकार होता था। इस समुदाय के सदस्य अलग-अलग या फिर संयुक्त रूप से लगान की अदायगी कर सकते थे। सरकारी लगान को एकत्र करने के प्रति पूरा 'महाल' या 'क्षेत्र' सामूहिक रूप से ज़िम्मेदार होता था। महाल के अंतर्गत छोटे व बड़े सभी स्तर के ज़मींदार आते थे। [[महालवाड़ी व्यवस्था]] का प्रस्ताव सर्वप्रथम 1819 ई. में 'हॉल्ट मैकेंजी' द्वारा लाया गया था। इस प्रस्ताव को 1822 ई. के रेग्यूलेशन-7 द्वारा क़ानूनी रूप प्रदान किया गया।
 


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09:16, 8 अगस्त 2011 का अवतरण

अंग्रेज़ों ने भारतीय कृषि के क्षेत्र में 'भूमि व्यवस्था' व 'भू-राजस्व' के अन्तर्गत व्यापक परिवर्तन किया था। उन्होंने अनेक भू-धृति पद्धतियाँ लागू कीं, जिनमें मुख्य थीं- स्थायी बन्दोबस्त या ज़मींदारी प्रथा, 'महालवाड़ी व्यवस्था' एवं 'रैय्यतवाड़ी व्यवस्था'। लगान व्यवस्था के अंतर्गत 1790 ई. में लॉर्ड कॉर्नवॉलिस ने दसवर्षीय व्यवस्था को लागू किया था। यह व्यवस्था 1793 ई. में बंगाल, बिहार और उड़ीसा में स्थाई रूप से लागू कर दी गई। ब्रिटिश भारत की 19 प्रतिशत भूमि पर यह व्यवस्था निश्चित कर दी गई थी। इसके बाद 'महालवाड़ी व्यवस्था' का प्रस्ताव सर्वप्रथम 1819 ई. में 'हॉल्ट मैकेंजी' द्वारा लाया गया। सबसे पहले यह व्यवस्था उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं पंजाब में लागू की गई थी। इसके अंतर्गत भूमि का लगभग 30 प्रतिशत भाग शामिल था। 1792 ई. में 'रैय्यतवाड़ी व्यवस्था' मद्रास के बारामहल में पहली बार लागू की गई। मद्रास में यह व्यवस्था 30 वर्षों तक लागू रही। 1835 ई. में भू-सर्वेक्षण के आधार पर इसे बम्बई (वर्तमान मुम्बई) में भी लागू कर दिया गया था।

भूमि व्यवस्था

भारत में अंग्रेज़ों ने जो भूमि व्यवस्था लागू की थी, उनका विवरण इस प्रकार से है-

स्थायी बन्दोबस्त

इस व्यवस्था को 'ज़मींदारी प्रथा', 'मालगुज़ारी' व 'बीसवेदारी' नाम से भी जाना जाता था। इस व्यवस्था के लागू किये जाने से पूर्व ब्रिटिश सरकार के समक्ष यह समस्या थी, कि भारत में कृषि योग्य भूमि का मालिक किसे मान जाय? सरकार राजस्व चुकाने के लिए अन्तिम रूप से किसे उत्तरदायी बनाये तथा उपज में से सरकार का हिस्सा कितना हो। वारेन हेस्टिंग्स ने अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा था, कि किसानों से लगान वसूल करने के बदले में ज़मींदारों के पास कुछ कमीशन प्राप्त करने के अधिकार हों। परन्तु हेस्टिंग्स की यह पद्धति असफल रही। 1772 ई. में हेस्टिंग्स ने पंचवर्षीय बन्दोबस्त चलाया। 1776 ई. में इस व्यवस्था को भी त्याग दिया गया। 1786 ई. में लॉर्ड कॉर्नवॉलिस बंगाल का गवर्नर-जनरल बना। उसने जेम्स ग्राण्ट एवं सर जॉन शोर से नवीन लगान व्यवस्था पर विचार विमर्श किया। 1790 ई. में कार्नवालिस ने दसवर्षीय व्यवस्था को लागू किया। 1793 ई. में इस व्यवस्था को बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा में स्थायी कर दिया गया और कालान्तर में इसे उत्तर प्रदेश के बनारस खण्ड एवं उत्तरी कर्नाटक में भी लागू किया गया।

महालवाड़ी व्यवस्था

महालवाड़ी व्यवस्था का प्रस्ताव सर्वप्रथम 'हॉल्ट मैकेंजी' द्वारा लाया गया था। इस व्यवस्था के अंतर्गत भूमि पर ग्राम समुदाय का सामूहिक अधिकार होता था। इस समुदाय के सदस्य अलग-अलग या फिर संयुक्त रूप से लगान की अदायगी कर सकते थे। सरकारी लगान को एकत्र करने के प्रति पूरा 'महाल' या 'क्षेत्र' सामूहिक रूप से ज़िम्मेदार होता था। महाल के अंतर्गत छोटे व बड़े सभी स्तर के ज़मींदार आते थे। महालवाड़ी व्यवस्था का प्रस्ताव सर्वप्रथम 1819 ई. में 'हॉल्ट मैकेंजी' द्वारा लाया गया था। इस प्रस्ताव को 1822 ई. के रेग्यूलेशन-7 द्वारा क़ानूनी रूप प्रदान किया गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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