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चिर जागृति का पहरा।
चिर जागृति का पहरा।


जाना उज्जवल प्रात:  
जाना उज्ज्वल प्रात:  
न यह काली निशि पहचाना।
न यह काली निशि पहचाना।
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12:32, 20 सितम्बर 2011 का अवतरण

क्या जलने की रीत -महादेवी वर्मा
महादेवी वर्मा
महादेवी वर्मा
कवि महादेवी वर्मा
जन्म 26 मार्च, 1907
जन्म स्थान फ़र्रुख़ाबाद, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 22 सितम्बर, 1987
मृत्यु स्थान प्रयाग, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ 'मेरा परिवार', 'स्मृति की रेखाएँ', 'पथ के साथी', 'शृंखला की कड़ियाँ', 'अतीत के चलचित्र', नीरजा, नीहार
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
महादेवी वर्मा की रचनाएँ

क्या जलने की रीति
शलभ समझा दीपक जाना।

घेरे हैं बंदी दीपक को
ज्वाला की बेला
दीन शलभ भी दीपशिखा से
सिर धुन धुन खेला।

इसको क्षण संताप
भोर उसको भी बुझ जाना।

इसके झुलसे पंख धूम की
उसके रेख रही
इसमें वह उन्माद न उसमें
ज्वाला शेष रही।

जग इसको चिर तृप्त कहे
या समझे पछताना।

प्रिय मेरा चिर दीप जिसे छू
जल उठता जीवन
दीपक का आलोक, शलभ
का भी इसमें क्रंदन।

युग युग जल निष्कंप
इसे जलने का वर पाना

धूम कहाँ विद्युत लहरों से
हैं नि:श्वास भरा
झंझा की कंपन देती
चिर जागृति का पहरा।

जाना उज्ज्वल प्रात:
न यह काली निशि पहचाना।

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