"ओदन्तपुरी विश्वविद्यालय": अवतरणों में अंतर
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* | *ओदन्तपुरी विश्वविद्यालय भी [[नालन्दा विश्वविद्यालय|नालंदा]] और [[विक्रमशिला विश्वविद्यालय]] की तरह विख्यात था, परंतु उदंतपुरी विश्वविद्यालय का उत्खनन कार्य नहीं होने के कारण यह आज भी धरती के गर्भ में दबा है, जिसके कारण बहुत ही कम लोग इस विश्वविद्यालय के इतिहास से परिचित हैं। | ||
*[[अरब]] के लेखकों ने इसकी चर्चा 'अदबंद' के नाम से की है, वहीं लामा तारानाथ ने इस उदंतपुरी महाविहार को 'ओडयंतपुरी महाविद्यालय' कहा है। ऐसा कहा जाता है कि नालंदा विश्वविद्यालय जब अपने पतन की ओर अग्रसर हो रहा था, उसी समय इस विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी। | *[[अरब]] के लेखकों ने इसकी चर्चा 'अदबंद' के नाम से की है, वहीं 'लामा तारानाथ' ने इस 'उदंतपुरी महाविहार' को 'ओडयंतपुरी महाविद्यालय' कहा है। ऐसा कहा जाता है कि नालंदा विश्वविद्यालय जब अपने पतन की ओर अग्रसर हो रहा था, उसी समय इस विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी। | ||
*इसकी स्थापना प्रथम [[पाल वंश|पाल]] नरेश गोपाल ने सातवीं शताब्दी में की थी। | *इसकी स्थापना प्रथम [[पाल वंश|पाल]] [[गोपाल प्रथम|नरेश गोपाल]] ने सातवीं शताब्दी में की थी। | ||
==ख़िलजी का आक्रमण== | ==ख़िलजी का आक्रमण== | ||
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*तिब्बती पांडुलिपियों से ऐसा ज्ञात होता है कि इस महाविहार के संचालन का भार भिक्षुसंघ के हाथ में था, किसी राजा के हाथ नहीं। संभवतः उदंतपुरी महाविहार की स्थापना में नालंदा महाविहार और विक्रमशिला महाविहार के बौद्ध संघों का मतैक्य नहीं था। संभवतया इस उदंतपुरी की ख्याति नालंदा और विक्रमशिला की अपेक्षा कुछ अधिक बढ़ गई थी। तभी तो [[बख़्तियार ख़िलजी|मुहम्मद बिन बख़्तियार ख़िलजी]] का ध्यान इस महाविहार की ओर हुआ और उसने सर्वप्रथम इसी | *तिब्बती पांडुलिपियों से ऐसा ज्ञात होता है कि इस महाविहार के संचालन का भार 'भिक्षुसंघ' के हाथ में था, किसी राजा के हाथ नहीं। संभवतः उदंतपुरी महाविहार की स्थापना में नालंदा महाविहार और विक्रमशिला महाविहार के [[बौद्ध]] संघों का मतैक्य नहीं था। संभवतया इस उदंतपुरी की ख्याति नालंदा और विक्रमशिला की अपेक्षा कुछ अधिक बढ़ गई थी। तभी तो [[बख़्तियार ख़िलजी|मुहम्मद बिन बख़्तियार ख़िलजी]] का ध्यान इस महाविहार की ओर हुआ और उसने सर्वप्रथम इसी को अपने आक्रमण का पहला निशाना बनाया। | ||
*ख़िलजी | *ख़िलजी 1197 ई. में सर्वप्रथम इसी की ओर आकृष्ट हुआ और अपने आक्रमण का पहला निशाना बनाया। उसने इस विश्वविद्यालय को चारों ओर से घेर लिया, जिससे भिक्षुगण काफ़ी क्षुब्ध हुए और कोई उपाय न देखकर वे स्वयं ही संघर्ष के लिए आगे आ गए, जिसमें अधिकांश तो मौत के घाट उतार दिए गए, तो कुछ भिक्षु [[अखण्डित बंगाल|बंगाल]] तथा [[उड़ीसा]] की ओर भाग गए और अंत में इस विहार में आग लगवा दी। इस तरह विद्या का यह मंदिर सदा-सदा के लिए समाप्त हो गया। | ||
==बिहारशरीफ== | ==बिहारशरीफ== | ||
*उल्लेखनीय है कि उदंतपुर को ही इन दिनों बिहारशरीफ के नाम से जाना जाता है। बिहारशरीफ के पास नालंदा विश्वविद्यालय होने के बावजूद उसी काल में उसी के नज़दीक एक अन्य विश्वविद्यालय की स्थापना होना आश्चर्य की बात है। | *उल्लेखनीय है कि उदंतपुर को ही इन दिनों '[[बिहारशरीफ]]' के नाम से जाना जाता है। बिहारशरीफ के पास [[नालंदा विश्वविद्यालय]] होने के बावजूद उसी काल में उसी के नज़दीक एक अन्य विश्वविद्यालय की स्थापना होना आश्चर्य की बात है। | ||
*उदंतपुरी के प्रधान आचार्य जेतारि और अतिश के शिष्य थे। एक समय विद्या और आचार्यों की प्रसिद्धि के कारण इसका महत्त्व नालंदा से अधिक बढ़ गया था। | *उदंतपुरी के प्रधान आचार्य जेतारि और अतिश के शिष्य थे। एक समय विद्या और आचार्यों की प्रसिद्धि के कारण इसका महत्त्व [[नालंदा]] से अधिक बढ़ गया था। | ||
*उदंतपुरी महाविहार के उन्नत तथा विकासशील बनाने में यहाँ के विद्यार्थियों तथा आचार्यों का विशेष योगदान रहा है। इनमें अतिश दीपंकर, ज्ञानश्रीमित्र, शांति-पा, योगा-पा, शांति रक्षित आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। | *उदंतपुरी महाविहार के उन्नत तथा विकासशील बनाने में यहाँ के विद्यार्थियों तथा आचार्यों का विशेष योगदान रहा है। इनमें [[अतिश दीपंकर]], ज्ञानश्रीमित्र, [[शान्तिदेव बौद्धाचार्य|शांति-पा]], योगा-पा, [[शान्तरक्षित बौद्धाचार्य|शांति रक्षित]] आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। | ||
*इस विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति प्रभाकर थे। मित्र योगी कुछ दिनों तक प्रधान आचार्य पद पर थे। | *इस विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति 'प्रभाकर' थे। 'मित्र योगी' कुछ दिनों तक प्रधान आचार्य पद पर थे। | ||
*तिब्बती पांडुलिपियों के अनुसार वहाँ के प्रसिद्ध राजा खरी स्त्रोन डसुत्सेन शिक्षा प्राप्त करने आए थे। | *तिब्बती पांडुलिपियों के अनुसार वहाँ के प्रसिद्ध 'राजा खरी स्त्रोन डसुत्सेन' शिक्षा प्राप्त करने आए थे। | ||
* | *[[शान्तरक्षित बौद्धाचार्य|शांति रक्षित]] इस महाविहार के प्रथम शिष्य रहे हैं, जिनके द्वारा यहाँ के सांस्कृतिक वैभव को देश-विदेशों में ख्याति प्राप्त करने का श्रेय रहा। | ||
*इस विश्वविद्यालय में देश-विदेश के लगभग एक हज़ार विद्यार्थी अध्ययन किया करते थे। | *इस विश्वविद्यालय में देश-विदेश के लगभग एक हज़ार विद्यार्थी अध्ययन किया करते थे। | ||
==बौद्ध धर्म का मुख्य केंद्र== | ==बौद्ध धर्म का मुख्य केंद्र== | ||
*नालंदा व विक्रमशिला विश्वविद्यालय की तरह देश के राजाओं तथा धनाढ्य लोगों द्वारा सहायता मिलती थी। फिर भी उदंतपुरी विश्वविद्यालय [[बौद्ध धर्म]] के माननेवाले तथा भिक्षुओं का मुख्य केंद्र था। [[तिब्बत]] में इनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की जाती है। आज भी उनके कमंडल, खोपड़ी और अस्थियाँ वहाँ के संग्रहालय में सुरक्षित हैं। | *नालंदा व विक्रमशिला विश्वविद्यालय की तरह देश के राजाओं तथा धनाढ्य लोगों द्वारा सहायता मिलती थी। फिर भी उदंतपुरी विश्वविद्यालय [[बौद्ध धर्म]] के माननेवाले तथा भिक्षुओं का मुख्य केंद्र था। [[तिब्बत]] में इनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की जाती है। आज भी उनके कमंडल, खोपड़ी और अस्थियाँ वहाँ के संग्रहालय में सुरक्षित हैं। | ||
* | *[[शान्तरक्षित बौद्धाचार्य|शांति रक्षित]] लगभग 743 ई. में जब [[तिब्बत]] गए तो वहाँ पर 'उदंतपुरी महाविहार' के समरूप ही एक 'बौद्ध विहार' का निर्माण कराया, जिसे 'साम्ये विहार' के नाम से जाना जाता है। यहाँ एक बहुत बड़ा समृद्धशाली पुस्तकालय है, जिसके संबंध में कहा जाता है कि जितना विशाल संग्रह यहाँ उपलब्ध था, उतना संग्रह [[विक्रमशिला विश्वविद्यालय]] में भी नहीं था। | ||
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*बुकानन और [[कनिंघम]] ने आधुनिक बिहारशरीफ शहर जो कि [[नालंदा]] जाने के मार्ग में पड़ता है, वहाँ एक विशाल | *बुकानन और [[कनिंघम]] ने आधुनिक [[बिहारशरीफ]] शहर जो कि [[नालंदा]] जाने के मार्ग में पड़ता है, वहाँ एक विशाल टीले का उल्लेख किया है। यहाँ के एक [[बौद्ध]] देवी की कांस्य की प्रतिमा प्राप्त हुई है। इस पर एक अभिलेख अंकित है जिसमें 'एणकठाकुट' का नाम उल्लेखित है। यह उदंतपुरी का निवासी था। शायद इसी अभिलेख के आधार पर इस स्थान की पहचान '''उदंतपुरी विश्वविद्यालय''' से की गई है। | ||
12:19, 30 अगस्त 2011 का अवतरण
उदंतपुरी विश्वविद्यालय
- ओदन्तपुरी विश्वविद्यालय भी नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय की तरह विख्यात था, परंतु उदंतपुरी विश्वविद्यालय का उत्खनन कार्य नहीं होने के कारण यह आज भी धरती के गर्भ में दबा है, जिसके कारण बहुत ही कम लोग इस विश्वविद्यालय के इतिहास से परिचित हैं।
- अरब के लेखकों ने इसकी चर्चा 'अदबंद' के नाम से की है, वहीं 'लामा तारानाथ' ने इस 'उदंतपुरी महाविहार' को 'ओडयंतपुरी महाविद्यालय' कहा है। ऐसा कहा जाता है कि नालंदा विश्वविद्यालय जब अपने पतन की ओर अग्रसर हो रहा था, उसी समय इस विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी।
- इसकी स्थापना प्रथम पाल नरेश गोपाल ने सातवीं शताब्दी में की थी।
ख़िलजी का आक्रमण
- तिब्बती पांडुलिपियों से ऐसा ज्ञात होता है कि इस महाविहार के संचालन का भार 'भिक्षुसंघ' के हाथ में था, किसी राजा के हाथ नहीं। संभवतः उदंतपुरी महाविहार की स्थापना में नालंदा महाविहार और विक्रमशिला महाविहार के बौद्ध संघों का मतैक्य नहीं था। संभवतया इस उदंतपुरी की ख्याति नालंदा और विक्रमशिला की अपेक्षा कुछ अधिक बढ़ गई थी। तभी तो मुहम्मद बिन बख़्तियार ख़िलजी का ध्यान इस महाविहार की ओर हुआ और उसने सर्वप्रथम इसी को अपने आक्रमण का पहला निशाना बनाया।
- ख़िलजी 1197 ई. में सर्वप्रथम इसी की ओर आकृष्ट हुआ और अपने आक्रमण का पहला निशाना बनाया। उसने इस विश्वविद्यालय को चारों ओर से घेर लिया, जिससे भिक्षुगण काफ़ी क्षुब्ध हुए और कोई उपाय न देखकर वे स्वयं ही संघर्ष के लिए आगे आ गए, जिसमें अधिकांश तो मौत के घाट उतार दिए गए, तो कुछ भिक्षु बंगाल तथा उड़ीसा की ओर भाग गए और अंत में इस विहार में आग लगवा दी। इस तरह विद्या का यह मंदिर सदा-सदा के लिए समाप्त हो गया।
बिहारशरीफ
- उल्लेखनीय है कि उदंतपुर को ही इन दिनों 'बिहारशरीफ' के नाम से जाना जाता है। बिहारशरीफ के पास नालंदा विश्वविद्यालय होने के बावजूद उसी काल में उसी के नज़दीक एक अन्य विश्वविद्यालय की स्थापना होना आश्चर्य की बात है।
- उदंतपुरी के प्रधान आचार्य जेतारि और अतिश के शिष्य थे। एक समय विद्या और आचार्यों की प्रसिद्धि के कारण इसका महत्त्व नालंदा से अधिक बढ़ गया था।
- उदंतपुरी महाविहार के उन्नत तथा विकासशील बनाने में यहाँ के विद्यार्थियों तथा आचार्यों का विशेष योगदान रहा है। इनमें अतिश दीपंकर, ज्ञानश्रीमित्र, शांति-पा, योगा-पा, शांति रक्षित आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
- इस विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति 'प्रभाकर' थे। 'मित्र योगी' कुछ दिनों तक प्रधान आचार्य पद पर थे।
- तिब्बती पांडुलिपियों के अनुसार वहाँ के प्रसिद्ध 'राजा खरी स्त्रोन डसुत्सेन' शिक्षा प्राप्त करने आए थे।
- शांति रक्षित इस महाविहार के प्रथम शिष्य रहे हैं, जिनके द्वारा यहाँ के सांस्कृतिक वैभव को देश-विदेशों में ख्याति प्राप्त करने का श्रेय रहा।
- इस विश्वविद्यालय में देश-विदेश के लगभग एक हज़ार विद्यार्थी अध्ययन किया करते थे।
बौद्ध धर्म का मुख्य केंद्र
- नालंदा व विक्रमशिला विश्वविद्यालय की तरह देश के राजाओं तथा धनाढ्य लोगों द्वारा सहायता मिलती थी। फिर भी उदंतपुरी विश्वविद्यालय बौद्ध धर्म के माननेवाले तथा भिक्षुओं का मुख्य केंद्र था। तिब्बत में इनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की जाती है। आज भी उनके कमंडल, खोपड़ी और अस्थियाँ वहाँ के संग्रहालय में सुरक्षित हैं।
- शांति रक्षित लगभग 743 ई. में जब तिब्बत गए तो वहाँ पर 'उदंतपुरी महाविहार' के समरूप ही एक 'बौद्ध विहार' का निर्माण कराया, जिसे 'साम्ये विहार' के नाम से जाना जाता है। यहाँ एक बहुत बड़ा समृद्धशाली पुस्तकालय है, जिसके संबंध में कहा जाता है कि जितना विशाल संग्रह यहाँ उपलब्ध था, उतना संग्रह विक्रमशिला विश्वविद्यालय में भी नहीं था।
- बुकानन और कनिंघम के अनुसार
- बुकानन और कनिंघम ने आधुनिक बिहारशरीफ शहर जो कि नालंदा जाने के मार्ग में पड़ता है, वहाँ एक विशाल टीले का उल्लेख किया है। यहाँ के एक बौद्ध देवी की कांस्य की प्रतिमा प्राप्त हुई है। इस पर एक अभिलेख अंकित है जिसमें 'एणकठाकुट' का नाम उल्लेखित है। यह उदंतपुरी का निवासी था। शायद इसी अभिलेख के आधार पर इस स्थान की पहचान उदंतपुरी विश्वविद्यालय से की गई है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- नालंदा विश्वविद्यालय, जहाँ ज्ञान प्राप्त किए बिना शिक्षा अधूरी मानी जाती थी
- भारत के प्राचीन शिक्षा केन्द्र