"पिलाजी गायकवाड़": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "महत्वपूर्ण" to "महत्त्वपूर्ण") |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "Category:मराठा साम्राज्य" to "Category:मराठा साम्राज्यCategory:जाट-मराठा काल") |
||
पंक्ति 19: | पंक्ति 19: | ||
{{मराठा साम्राज्य}} | {{मराठा साम्राज्य}} | ||
[[Category:इतिहास कोश]] | [[Category:इतिहास कोश]] | ||
[[Category:मराठा साम्राज्य]] | [[Category:मराठा साम्राज्य]][[Category:जाट-मराठा काल]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
11:45, 16 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण
- पिलाजी गायकवाड़ (1721-1732 ई.) दामाजी गायकवाड़ प्रथम का भतीजा था।
- मराठा साम्राज्य में पिलाजी गायकवाड़ बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान रखता था।
- भले ही दामाजी गायकवाड़ प्रथम, गायकवाड़ वंश का संस्थापक था, किंतु इस वंश ने पिलाजी गायकवाड़ के समय में ही प्रसिद्धि प्राप्त की थी।
- पिलाजी छत्रपति शिवाजी के पौत्र राजा साहू के सेनापति खाण्डेराव दाभाड़े के गुट में सम्मिलित था।
- पिलाजी गायकवाड़ ने 1720 ई. में सूरत से 50 मील की दूरी पर सौनगढ़ में एक दुर्ग का निर्माण करवाया था।
- 1731 ई. में पिलाजी ने बिल्हापुर के युद्ध में खाण्डेराव के पुत्र त्र्यम्बकराव दाभाड़े की ओर से युद्ध किया था।
- इस युद्ध में त्र्यम्बकराव दाभाड़े की मृत्यु हो जाने के कारण पिलाजी को पेशवा बाजीराव प्रथम के साथ सन्धि करनी पड़ी।
- बाजीराव प्रथम ने पिलाजी को गुजरात पर निगाह रखने को कहा।
- बाद में पिलाजी ने बड़ौदा को अपना मुख्य कार्य क्षेत्र बनाया।
- पिलाजी गायकवाड़ की 1732 ई. में हत्या कर दी गई।
- उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र दामाजी गायकवाड़ द्वितीय उत्तराधिकारी बना।
|
|
|
|
|