"अभिनव धर्मभूषणयति": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
No edit summary |
No edit summary |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
*वास्तव में यह अभिनव धर्मभूषण की प्रतिभा, योग्यता और कुशलता की परिचायिका कृति है। | *वास्तव में यह अभिनव धर्मभूषण की प्रतिभा, योग्यता और कुशलता की परिचायिका कृति है। | ||
*इनका समय ई॰ 1358 से 1418 है। | *इनका समय ई॰ 1358 से 1418 है। | ||
==सम्बंधित लिंक== | |||
{{जैन धर्म2}} | |||
{{जैन धर्म}} | |||
[[Category:दर्शन कोश]] | [[Category:दर्शन कोश]] | ||
[[Category:जैन_दर्शन]] | [[Category:जैन_दर्शन]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
12:24, 14 जुलाई 2010 का अवतरण
- जैन तार्किकों में ये अधिक लोकप्रिय और उल्लेखनीय हैं।
- इनकीं 'न्यायदीपिका' एक ऐसी महत्वपूर्ण एवं यशस्वी कृति है जो न्यायशास्त्र में प्रवेश करने के लिए बहुत ही सुगम और सरल है।
- न्यायशास्त्र के प्राथमिक अभ्यासी इसी के माध्यम से अकलंकदेव और विद्यानन्द के दुरूह एवं जटिल न्यायग्रन्थों में प्रवेश करते हैं।
- न्याय का ऐसा कोई विषय नहीं छूटा जिसका धर्मभूषणयति ने इसमें संक्षेपत: और सरल भाषा में प्रतिपादन न किया हो।
- प्रमाण, प्रमाण के भेदों, नय और नय के भेदों के अलावा अनेकान्त, सप्तभंगी, वीतरागकथा, विजिगीषुकथा जैसे विषयों का भी इस छोटी-सी कृति में समावेश कर उनका संक्षेप में विशद निरूपण किया है।
- अनुमान का विवेचन तो ग्रन्थ के बहुभाग में निबद्ध है और बड़े सरल ढंग से उसे दिया है।
- वास्तव में यह अभिनव धर्मभूषण की प्रतिभा, योग्यता और कुशलता की परिचायिका कृति है।
- इनका समय ई॰ 1358 से 1418 है।