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'''त्रंकिबार दुर्ग''' [[तमिलनाडु]] में [[चैन्नई]] से 240 किमी दूर [[समुद्र]] [[तट]] पर [[डच|डचों]] द्वारा बनावाया गया एक ऐतिहासिक दुर्ग है।  
'''त्रंकिबार दुर्ग''' [[तमिलनाडु]] में [[चैन्नई]] से 240 किमी दूर [[समुद्र]] [[तट]] पर [[डच|डचों]] द्वारा बनावाया गया एक ऐतिहासिक दुर्ग है।  
*[[भारत]] में यही एकमात्र स्थान उनके कब्जे में था।  
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*जीगेनबाल ने यहाँ पर कुछ ही समय में [[तमिल भाषा|तमिल]] सीख कर [[बाइबिल]] के न्यू टेस्टामेंट को तमिल भाषा में अनूदित कर प्रकाशित करवा दी। क़िले के भीतर स्थित संग्रहालय त्रंकिबार के इतिहास और वहाँ हुए विदेशी व्यापार की जानकारी देता है।  
*जीगेनबाल ने यहाँ पर कुछ ही समय में [[तमिल भाषा|तमिल]] सीख कर [[बाइबिल]] के न्यू टेस्टामेंट को तमिल भाषा में अनूदित कर प्रकाशित करवा दी। क़िले के भीतर स्थित संग्रहालय त्रंकिबार के इतिहास और वहाँ हुए विदेशी व्यापार की जानकारी देता है।  
*अब यह दुर्ग तमिलनाडु के पुरातत्त्व विभाग के अंतर्गत संरक्षित स्मारक रूप में है।  
*अब यह दुर्ग तमिलनाडु के पुरातत्त्व विभाग के अंतर्गत संरक्षित स्मारक रूप में है।  
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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09:02, 4 जुलाई 2012 के समय का अवतरण

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त्रंकिबार दुर्ग

त्रंकिबार दुर्ग तमिलनाडु में चैन्नई से 240 किमी दूर समुद्र तट पर डचों द्वारा बनावाया गया एक ऐतिहासिक दुर्ग है।

  • भारत में यही एकमात्र स्थान उनके कब्जे में था।
  • त्रंकिबार दुर्ग आज भी ज्यों का त्यों खड़ा है।
  • सत्रहवीं सदी के प्रारम्भ में विदेशी व्यापार के प्रोत्साहन के लिए तंजौर (वर्तमान तंजावुर) के राजा श्री रघुनाथ नाइक (1600-1630 ई.) ने डेनमार्क के प्रथम गवर्नर को इस स्थान का आठ किमी लम्बा और चार किमी चौड़ा भू-भाग किराये पर दिया।
  • तत्पश्चात् 'द डेनिश ईस्ट इंडिया कम्पनी' ने यहाँ एक गोदाम बनाया तथा उसकी सुरक्षा के लिए 1620-21 ई. में 'डैंसबर्ग' नाम से एक क़िले का निर्माण किया। तब से 1845 ई. तक डैंसबर्ग ने कोरोमण्डल तट और यूरोप के बीच व्यापार को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • डेनमार्क के राजा और लुथेरियन चर्च के प्रमुख फ्रेडरिक प्लुशॉ को त्रंकिबार भेजा गया। 9 जुलाई, 1706 को वे यहाँ पहुँचे।
  • जीगेनबाल ने यहाँ पर कुछ ही समय में तमिल सीख कर बाइबिल के न्यू टेस्टामेंट को तमिल भाषा में अनूदित कर प्रकाशित करवा दी। क़िले के भीतर स्थित संग्रहालय त्रंकिबार के इतिहास और वहाँ हुए विदेशी व्यापार की जानकारी देता है।
  • अब यह दुर्ग तमिलनाडु के पुरातत्त्व विभाग के अंतर्गत संरक्षित स्मारक रूप में है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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