"शोले (फ़िल्म)": अवतरणों में अंतर
कात्या सिंह (वार्ता | योगदान) ('{{सूचना बक्सा फ़िल्म |चित्र:Sholay.jpg |निर्देशक=रमेश सिप्प...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
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*'वो ही कर रहा हूँ भैया जो मजनूँ ने लैला के लिए किया था, राँझा ने हीर के लिए था, रोमियो ने जूलिएट के लिए था… सुसाईड' | *'वो ही कर रहा हूँ भैया जो मजनूँ ने लैला के लिए किया था, राँझा ने हीर के लिए था, रोमियो ने जूलिएट के लिए था… सुसाईड' | ||
*'तुम्हारा नाम क्या है बसंती?' | *'तुम्हारा नाम क्या है बसंती?' | ||
*'साला नौटंकी, घड़ी घड़ी ड्रामा करता है। | *'साला नौटंकी, घड़ी घड़ी ड्रामा करता है।' | ||
*अब तेरा क्या होगा कालिया? | *'अब तेरा क्या होगा कालिया?' | ||
*ये हाथ नहीं फाँसी का फंदा हैं। | *'ये हाथ नहीं फाँसी का फंदा हैं।' | ||
*ये हाथ हमको दे दे , ठाकुर। | *'ये हाथ हमको दे दे , ठाकुर।' | ||
*तेरे लिए तो मेरे पैर ही काफी हैं। | *'तेरे लिए तो मेरे पैर ही काफी हैं।' | ||
*तेरा नाम क्या है, बसंती? | *'तेरा नाम क्या है, बसंती?' | ||
*बसंती, इन कुत्तों के सामने मत नाचना। | *'बसंती, इन कुत्तों के सामने मत नाचना।' | ||
*आधे दायें जाओ, आधे बायें, बाकी मेरे पीछे आओ। | *'आधे दायें जाओ, आधे बायें, बाकी मेरे पीछे आओ।' | ||
*हम अंग्रेज़ों के ज़माने के जेलर हैं। | *'हम अंग्रेज़ों के ज़माने के जेलर हैं।' | ||
==प्रचार और प्रसार== | ==प्रचार और प्रसार== | ||
शोले के डायलाग बोलते हुए लोग कहीं भी मिल जाते थे। किसी बेवक़ूफ़ अफ़सर को अंग्रेजों के ज़माने का जेलर कह दिया जाता था, क्योंकि अपने इस डायलाग की वजह से असरानी सरकारी नाकारापन के सिम्बल बन गए थे। अमजद खां के डायलाग पूरी तरह से हिट हुए। खूंखार डाकू का रोल किया था अमजद खां ने लेकिन वह सबका प्यारा हो गया। मीडिया का इतना विस्तार नहीं था, कुछ फ़िल्मी पत्रिकाएं थीं, लेकिन धर्मयुग और साप्ताहिक हिन्दुस्तान के ज़रिये आबादी की मुख्यधारा में फिल्मों का ज़िक्र पंहुचता था।<ref>{{cite web |url=http://forums.abhisays.com/showthread.php?t=2121 |title=शोले - फिल्मी इतिहास का एक अनमोल पन्ना|accessmonthday=16 दिसम्बर|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref> | शोले के डायलाग बोलते हुए लोग कहीं भी मिल जाते थे। किसी बेवक़ूफ़ अफ़सर को अंग्रेजों के ज़माने का जेलर कह दिया जाता था, क्योंकि अपने इस डायलाग की वजह से असरानी सरकारी नाकारापन के सिम्बल बन गए थे। अमजद खां के डायलाग पूरी तरह से हिट हुए। खूंखार डाकू का रोल किया था अमजद खां ने लेकिन वह सबका प्यारा हो गया। मीडिया का इतना विस्तार नहीं था, कुछ फ़िल्मी पत्रिकाएं थीं, लेकिन धर्मयुग और साप्ताहिक हिन्दुस्तान के ज़रिये आबादी की मुख्यधारा में फिल्मों का ज़िक्र पंहुचता था।<ref>{{cite web |url=http://forums.abhisays.com/showthread.php?t=2121 |title=शोले - फिल्मी इतिहास का एक अनमोल पन्ना|accessmonthday=16 दिसम्बर|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref> | ||
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==विशेषताएँ== | ==विशेषताएँ== | ||
*जी पी सिप्पी और रमेश सिप्पी निर्मित 'शोले' कई मायनों में | *जी पी सिप्पी और रमेश सिप्पी निर्मित 'शोले' कई मायनों में ख़ास रही। अकिरा कुरोसोवा की फिल्म 'सेवन सामुराई' और जॉन स्टजेंस के 'द मॅग्निफिशियंट' फिल्मों पर आधारित "शोले" की कथा, पटकथा और संवाद सलीम जावेद ने लिखे। | ||
*मजबूत कथा, | *मजबूत कथा, डायलॉग, जीते-जागते साहसी दृश्य, चंबल के डाकुओं का चित्रण, गब्बर बने अमजद द्वारा संवादों की दमदार अदायगी, ठाकुर बने [[संजीव कुमार]] का जबर्दस्त अभिनय और उसे मिला [[अमिताभ बच्चन|अमिताभ]] और [[धर्मेन्द्र]] का अचूक साथ। [[जया बच्चन]] और [[हेमा मालिनी]] के परस्पर विरोधी किरदारों का लाजवाब अभिनय कहानी के माफिक उम्दा संगीत और [[राहुल देव बर्मन|आर डी बर्मन]] के गीतों में और कहीं नजाकत भरे दृश्यों में माउथऑर्गन का लाजवाब इस्तेमाल उस पर [[हेलन]] का "महबूबा महबूबा" ऐसी तमाम खासियतें रहीं। | ||
*मुख्य किरदारों के साथ " | *मुख्य किरदारों के साथ "साँभा", "कालिया" इन डाकुओं के किरदारों में मॅकमोहन और विजू खोटे की भी अलग पहचान कायम हुई। वहीं छोटे अहमद (सचिन) की डाकुओं द्वारा हत्या के करुण दृश्य में इमाम (ए के हंगल) का भावपूर्ण अभिनय और पार्श्व में [[नमाज़]] की अजान के सुर गमगीन माहौल की पेशकश का चरम बिंदु रहे। | ||
*बसंती को शादी के लिए राजी करते वीरू का "सुसाइड नोट", जय के जेब में दो अलहदा सिक्के, राधा की नजाकत भरी खामोशी, वहीं ठाकुर के हाथ काटने का दर्दनाक दृश्य, जेलर असरानी, केश्टो मुखर्जी और जगदीप के व्यंग्य ऐसे तमाम अलहदा रंगों से सजे "शोले" ने दर्शकों के दिल पर असर | *बसंती को शादी के लिए राजी करते वीरू का "सुसाइड नोट", जय के जेब में दो अलहदा सिक्के, राधा की नजाकत भरी खामोशी, वहीं ठाकुर के हाथ काटने का दर्दनाक दृश्य, जेलर असरानी, केश्टो मुखर्जी और जगदीप के व्यंग्य ऐसे तमाम अलहदा रंगों से सजे "शोले" ने दर्शकों के दिल पर असर किया। | ||
*फिल्म में गब्बर के मशहूर किरदार के लिए पहले डैनी डेग्जोंप्पा को अहमियत दी गई थी। वहीं वीरू का किरदार संजीव कुमार तो जेलर को धर्मेंद्र निभाने वाले थे। लेकिन कहानी में वीरू के बसंती से प्रेम प्रसंगों पर नजर पड़ते ही धर्मेंद्र ने वीरू के किरदार को हरी झंडी दिखाई यह चर्चा उन दिनों रही। | *फिल्म में गब्बर के मशहूर किरदार के लिए पहले 'डैनी डेग्जोंप्पा' को अहमियत दी गई थी। वहीं वीरू का किरदार [[संजीव कुमार]] तो जेलर को [[धर्मेन्द्र|धर्मेंद्र]] निभाने वाले थे। लेकिन कहानी में वीरू के बसंती से प्रेम प्रसंगों पर नजर पड़ते ही धर्मेंद्र ने वीरू के किरदार को हरी झंडी दिखाई यह चर्चा उन दिनों रही। | ||
*"कितना इनाम रक्खे हैं सरकार हम पर?" गब्बर के इस सवाल का जवाब देने | *"कितना इनाम रक्खे हैं सरकार हम पर?" गब्बर के इस सवाल का जवाब देने साँभा का किरदार ऐन वक्त पर शामिल किया गया। रेल नकबजनी दृश्यों की शूटिंग पूरे सात हफ्ते चली। और "कितने आदमी थे?" डायलॉग 40 रिटेक के बाद शूट हुआ। | ||
*कई तरह से खासियतों का रिकॉर्ड कायम करने वाले "शोले" ने टिकट खिड़की पर भी कामयाबी का इतिहास रचा। यह सुनकर तो आज भी कइयों को विश्वास नहीं होगा कि "शोले" प्रदर्शन के पहले कुछ दिनों तक नहीं चली थी।<ref>{{cite web |url=http://forums.abhisays.com/showthread.php?t=2121|title=शोले - फिल्मी इतिहास का एक अनमोल पन्ना|accessmonthday=16 दिसम्बर|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref> | *कई तरह से खासियतों का रिकॉर्ड कायम करने वाले "शोले" ने टिकट खिड़की पर भी कामयाबी का इतिहास रचा। यह सुनकर तो आज भी कइयों को विश्वास नहीं होगा कि "शोले" प्रदर्शन के पहले कुछ दिनों तक नहीं चली थी।<ref>{{cite web |url=http://forums.abhisays.com/showthread.php?t=2121|title=शोले - फिल्मी इतिहास का एक अनमोल पन्ना|accessmonthday=16 दिसम्बर|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref> | ||
*इस फिल्म की सबसे महत्त्वपूर्ण बात की पूरी फिल्म में | *इस फिल्म की सबसे महत्त्वपूर्ण बात की पूरी फिल्म में मैक मोहन द्वारा एक ही डायलोग बोला गया था और वो भी सुपर हिट हुआ ! | ||
*फिल्म शोले के साथ सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि फिल्म इतनी जबरदस्त हिट रही है कि 2005 मे इसे "Best Film of 50 year" का पुरस्कार दिया गया, परंतु इस पुरस्कार को छोड़ कर कोई अन्य पुरस्कार इस फिल्म को कभी नहीं मिला। शायद यह फिल्म पुरस्कार की सीमा में आती ही नहीं है। <ref>{{cite web |url=http://forums.abhisays.com/showthread.php?t=2121|title=शोले - फिल्मी इतिहास का एक अनमोल पन्ना|accessmonthday=16 दिसम्बर|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref> | *फिल्म शोले के साथ सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि फिल्म इतनी जबरदस्त हिट रही है कि 2005 मे इसे "Best Film of 50 year" का पुरस्कार दिया गया, परंतु इस पुरस्कार को छोड़ कर कोई अन्य पुरस्कार इस फिल्म को कभी नहीं मिला। शायद यह फिल्म पुरस्कार की सीमा में आती ही नहीं है। <ref>{{cite web |url=http://forums.abhisays.com/showthread.php?t=2121|title=शोले - फिल्मी इतिहास का एक अनमोल पन्ना|accessmonthday=16 दिसम्बर|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref> | ||
*शोले जब रिलीज हुई, तब इसे बहुत ही ठंडा रेस्पोंस मिला था। इस पर फिल्म के निर्देशक ने सलीम-जावेद से कहा कि इसका क्लाइमैक्स चेंज कर देते है और जय (अमिताभ बच्चन) को जिंदा रखते है, पर लेखक जोड़ी ने साफ मना कर दिया। फिर तो बिना किसी परिवर्तन के फिल्म ने जो इतिहास रचा, इसे पूरी दुनिया ने देखा।<ref>{{cite web |url=http://forums.abhisays.com/showthread.php?t=2121|title=शोले - फिल्मी इतिहास का एक अनमोल पन्ना|accessmonthday=16 दिसम्बर|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref> | *शोले जब रिलीज हुई, तब इसे बहुत ही ठंडा रेस्पोंस मिला था। इस पर फिल्म के निर्देशक ने सलीम-जावेद से कहा कि इसका क्लाइमैक्स चेंज कर देते है और जय (अमिताभ बच्चन) को जिंदा रखते है, पर लेखक जोड़ी ने साफ मना कर दिया। फिर तो बिना किसी परिवर्तन के फिल्म ने जो इतिहास रचा, इसे पूरी दुनिया ने देखा।<ref>{{cite web |url=http://forums.abhisays.com/showthread.php?t=2121|title=शोले - फिल्मी इतिहास का एक अनमोल पन्ना|accessmonthday=16 दिसम्बर|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref> | ||
*1999 में | *1999 में बी बी सी इंडिया ने इस फिल्म को '''शताब्दी की फिल्म''' का नाम दिया और दीवार की तरह इसे '''इंडिया टाइम्ज़ मूवियों में बॉलीवुड की शीर्ष 25 फिल्मों''' में शामिल किया। उसी साल 50 वें वार्षिक फिल्म फेयर पुरस्कार के निर्णायकों ने एक विशेष पुरस्कार दिया जिसका नाम 50 सालों की सर्वश्रेष्ठ फिल्म फिल्मफेयर पुरस्कार था। रमेश सिप्पी की यह फिल्म जापानी निर्देशक अकीरा कुरोसावा के निर्देशन में बनी क्लासिक फिल्म सवन समुराई से प्रेरित थी। | ||
*इस फिल्म के कथानक को रमेश सिप्पी ने मूलभूत परिवर्तन करते हुए कुछ इस अंदाज में परदे पर उतारा कि यह अपने आप में विश्व का आठवां अजूबा बन गई। शोले भारतीय फिल्म इतिहास की पहली | *इस फिल्म के कथानक को रमेश सिप्पी ने मूलभूत परिवर्तन करते हुए कुछ इस अंदाज में परदे पर उतारा कि यह अपने आप में विश्व का आठवां अजूबा बन गई। शोले भारतीय फिल्म इतिहास की पहली ऐसी फिल्म थी, जिसके संवादों को कैसेट के जरिए रिलीज करके म्यूजिक कम्पनी एचएमवी ने लाखों रूपये की कमाई की थी। बॉक्स ऑफिस पर शोले जैसी फिल्मों की जबरदस्त सफलता के बाद बॉलीवुड में अमिताभ बच्चन ने अपनी स्थिति को मजबूत कर लिया था।<ref>{{cite web |url=http://khaskhabar.wordpress.com/2011/10/12/%E0%A4%B6%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A5%87-%E0%A4%87%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B8-%E0%A4%AC%E0%A4%A8%E0%A5%80/|title=शोले : इतिहास बनी|accessmonthday=16 दिसम्बर|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref> | ||
*इस फिल्म का निर्माण तीन करोड़ रुपये के बजट में हुआ था। वर्ष 1999 में बीबीसी इंडिया ने इसे 'सहस्राब्दी की फिल्म' घोषित किया था। | *इस फिल्म का निर्माण तीन करोड़ रुपये के बजट में हुआ था। वर्ष 1999 में बीबीसी इंडिया ने इसे 'सहस्राब्दी की फिल्म' घोषित किया था। | ||
*इस फिल्म के | *इस फिल्म के बॉक्स ऑफिस पर लगातार पांच साल तक प्रदर्शन के लिए इसे 'गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉडर्स' में दर्ज किया गया था।<ref>{{cite web |url=http://www.aajkikhabar.com/hindi/news/75147/75147.html|title=लोगों पर अब भी छाया है शोले का जादू : जावेद अख्तर|accessmonthday=16 दिसम्बर|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref> | ||
==कलाकार परिचय== | ==कलाकार परिचय== | ||
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07:57, 19 दिसम्बर 2011 का अवतरण
शोले (फ़िल्म)
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निर्देशक | रमेश सिप्पी |
निर्माता | जी पी सिप्पी |
लेखक | जावेद अख्तर, सलीम ख़ान |
कलाकार | अमिताभ बच्चन,जया बच्चन, धर्मेन्द्र, हेमा मालिनी, संजीव कुमार,अमजद ख़ान,असरानी |
प्रसिद्ध चरित्र | गब्बर सिंह |
संगीत | राहुल देव बर्मन |
गीतकार | आनंद बख्शी |
गायक | लता मंगेशकर, राहुल देव बर्मन, मन्ना डे, किशोर कुमार, भूपेंद्र सिंह |
छायांकन | द्वारका दिवेचा |
संपादन | एम् एस शिंदे |
प्रदर्शन तिथि | 1975 |
भाषा | हिन्दी |
पुरस्कार | 2005 मे "Best Film of 50 year" |
बजट | तीन करोड़ रुपये |
देश | भारत |
कला निर्देशक | राम येडेकर |
स्टंट | मोहम्मद अली, जेरी क्रांपटन |
नृत्य निर्देशक | पी एल राज |
36 साल पहले 1975 के स्वतंत्रता दिवस पर फिल्म 'शोले' रिलीज़ हुई थी। इस फिल्म की शुरुआत तो बहुत मामूली थी लेकिन कुछ ही दिनों में यह फिल्म पूरे देश में चर्चा का विषय बन गयी। देखते ही देखते शोले सुपर हिट और फिर ऐतिहासिक फिल्म हो गई। इसकी लोकप्रियता का अनुमान सिर्फ इसी से लगाया जा सकता है कि यह फिल्म मुंबई के 'मिनर्वा टाकीज़' में 286 सप्ताह तक चलती रही। 'शोले' ने भारत के सभी बड़े शहरों मे 'रजत जयंती' मनायी। शोले ने अपने समय में 2,36,45,000,00 रूपये कमाए जो मुद्रास्फीति को समायोजित करने के बाद 60 मिलियन अमरीकी डॉलर के बराबर हैं।
- रशंसनीय फ़िल्म
'तेरा क्या होगा कालिया' संवाद आज भी सबके दिलो दिमाग पर छाया है। शोले हिन्दी सिनेमा की सबसे प्रशंसनीय फ़िल्मों में से एक फिल्म है। एक गाँव रामगढ़ मे निर्देशित, यह एक परंपरागत हिन्दी फिल्म है जो आज तक हिन्दी फिल्म प्रशंसको के दिल मे घर किये बैठी है। हज़ारो बार देखने बाद भी लोग इसे देखते नही थकते। जय और वीरू की दोस्ती, गब्बर सिंह का डर, सूरमा भोपाली और जेलर का हास्य, और ताँगेवाली बसंती और उसकी धन्नो- हर पात्र ने दिलोदिमाग़ पर अपनी छाप छोड़ी।
कहानी
फिल्म की कहानी बहुत ही साधारण है, पर रमेश सिप्पी के निर्देशन ने इसमें अलग ही जान डाल दी थी। ठाकुर बलदेव सिंह (संजीव कुमार), सेवा निवृत पुलिस अफ़सर, डाकू गब्बर सिंह (अमजद ख़ान) को गिरफ्तार करते है, पर वो जेल से भागने मे क़ामयाब हो जाता है। बदला लेने के लिए वह ठाकुर के परिवार का खून कर देता है। ठाकुर गब्बर को जिंदा पकड़ने के लिए दो बहादुर लोफर जय (अमिताभ बच्चन) और वीरू (धर्मेन्द्र) की मदद लेता है। रामगढ़ में इनकी मुलाक़ात राधा (जया बच्चन) और बसंती (हेमा मालिनी) से होती है। और फिर शुरू होती है गब्बर को जिंदा पकड़ने की कवायद।
पात्र
शोले फिल्म में आनंद और ज़ंजीर जैसी फिल्मों से थोड़ा नाम कमा चुके अमिताभ बच्चन थे तो उस वक़्त के ही-मैन धर्मेन्द्र भी थे। किंतु फिल्म सबसे ज्यादा चर्चा में अमजद खां के कारण आई। फिल्म की सफलता के पीछे मुख्य कारण हैं उसके पात्र। हर पात्र एक दूसरे से भिन्न है और सब कलाकार उसमें फिट बैठते है। जय का निहित व्यंग्य, वीरू का बचकाना हास्य, बसंती की बकबक, ठाकुर का दृढ़ संकल्प, राधा की गम्भीरता, गब्बर की दहाड़- हर पात्र की अपनी ही खूबी है और इन सबके साथ सलीम ख़ान की पटकथा और आर. डी. बर्मन का संगीत दोनों ही बहुत सुंदर हैं। इस फिल्म के कई ऐसे दृश्य है जो आज भी फ़िल्मो मे आज़माए जाते है -
- वीरू का पानी की टंकी से आत्महत्या का ड्रामा।
- जय का वीरू के लिए मौसी जी से बसंती का हाथ माँगना।
- हेलेन का महबूबा महबूबा गाना।
- सलीम और जावेद की जोड़ी
- सफल फ़िल्म
व्यापारिक दृष्टिकोण से फिल्म बहुत ही सफल रही। सफलता का मुख्य कारण है उसकी कहानी और उसकी भाषा। आज के सबसे बेहतरीन फिल्म लेखक जावेद अख्तर के इम्तिहान की फिल्म थी यह। 'यक़ीन' जैसी फ्लॉप फिल्मों से शुरू करके उन्होंने सलीम खां के साथ जोड़ी बनायी थी। दोनों जी पी सिप्पी के बैनर के लेखक थे। अंदाज़, सीता और गीता जैसी फिल्मों के लिए यह जोड़ी कहानी लिख चुकी थी। और जब शोले बनी तो कम दाम देकर इन्हीं लेखकों से कहानी और संवाद लिखवा लिए गए और उसके बाद तो जिधर जाओ वहीं इस फिल्म के डायलाग सुनने को मिल जाते थे।
यादगार संवाद
सलीम-जावेद की जोड़ी ने संवादों में रचनात्मक काम किया है। उनमें से कुछ प्रसिद्ध है-
- 'अरे ओ सांभा, कितने आदमी थे?'
- वो दो थे, और तुम तीन। फिर भी खाली हाथ लौट आये।
- कितना इनाम रखे है, सरकार हम पर।
- यहाँ से पचास पचास गाँवो में, जब बच्चा नहीं सोता हैं, तो माँ कहती हैं - सो जा बेटा, नहीं तो गब्बर आ जायेगा।
- बहुत नाइंसाफी हैं।
- 'बहुत याराना लगता है?'
- 'इतना सन्नाटा क्यूँ है भाई?'
- 'वो ही कर रहा हूँ भैया जो मजनूँ ने लैला के लिए किया था, राँझा ने हीर के लिए था, रोमियो ने जूलिएट के लिए था… सुसाईड'
- 'तुम्हारा नाम क्या है बसंती?'
- 'साला नौटंकी, घड़ी घड़ी ड्रामा करता है।'
- 'अब तेरा क्या होगा कालिया?'
- 'ये हाथ नहीं फाँसी का फंदा हैं।'
- 'ये हाथ हमको दे दे , ठाकुर।'
- 'तेरे लिए तो मेरे पैर ही काफी हैं।'
- 'तेरा नाम क्या है, बसंती?'
- 'बसंती, इन कुत्तों के सामने मत नाचना।'
- 'आधे दायें जाओ, आधे बायें, बाकी मेरे पीछे आओ।'
- 'हम अंग्रेज़ों के ज़माने के जेलर हैं।'
प्रचार और प्रसार
शोले के डायलाग बोलते हुए लोग कहीं भी मिल जाते थे। किसी बेवक़ूफ़ अफ़सर को अंग्रेजों के ज़माने का जेलर कह दिया जाता था, क्योंकि अपने इस डायलाग की वजह से असरानी सरकारी नाकारापन के सिम्बल बन गए थे। अमजद खां के डायलाग पूरी तरह से हिट हुए। खूंखार डाकू का रोल किया था अमजद खां ने लेकिन वह सबका प्यारा हो गया। मीडिया का इतना विस्तार नहीं था, कुछ फ़िल्मी पत्रिकाएं थीं, लेकिन धर्मयुग और साप्ताहिक हिन्दुस्तान के ज़रिये आबादी की मुख्यधारा में फिल्मों का ज़िक्र पंहुचता था।[1]
गाने
क्रमांक | गाना | गायक/गायिका का नाम |
---|---|---|
1. | होली के दिन जब दिल मिल जाते हैं | किशोर कुमार, लता मंगेशकर |
2. | महबूबा ओ महबूबा | राहुल देव बर्मन |
3. | ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे | किशोर कुमार, मन्ना डे |
4. | ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे (दुखद) | किशोर कुमार |
5. | कोई हसीना जब रूठ जाती है | किशोर कुमार, हेमा मालिनी |
6. | जब तक है जाँ जाने जहाँ | लता मंगेशकर |
विशेषताएँ
- जी पी सिप्पी और रमेश सिप्पी निर्मित 'शोले' कई मायनों में ख़ास रही। अकिरा कुरोसोवा की फिल्म 'सेवन सामुराई' और जॉन स्टजेंस के 'द मॅग्निफिशियंट' फिल्मों पर आधारित "शोले" की कथा, पटकथा और संवाद सलीम जावेद ने लिखे।
- मजबूत कथा, डायलॉग, जीते-जागते साहसी दृश्य, चंबल के डाकुओं का चित्रण, गब्बर बने अमजद द्वारा संवादों की दमदार अदायगी, ठाकुर बने संजीव कुमार का जबर्दस्त अभिनय और उसे मिला अमिताभ और धर्मेन्द्र का अचूक साथ। जया बच्चन और हेमा मालिनी के परस्पर विरोधी किरदारों का लाजवाब अभिनय कहानी के माफिक उम्दा संगीत और आर डी बर्मन के गीतों में और कहीं नजाकत भरे दृश्यों में माउथऑर्गन का लाजवाब इस्तेमाल उस पर हेलन का "महबूबा महबूबा" ऐसी तमाम खासियतें रहीं।
- मुख्य किरदारों के साथ "साँभा", "कालिया" इन डाकुओं के किरदारों में मॅकमोहन और विजू खोटे की भी अलग पहचान कायम हुई। वहीं छोटे अहमद (सचिन) की डाकुओं द्वारा हत्या के करुण दृश्य में इमाम (ए के हंगल) का भावपूर्ण अभिनय और पार्श्व में नमाज़ की अजान के सुर गमगीन माहौल की पेशकश का चरम बिंदु रहे।
- बसंती को शादी के लिए राजी करते वीरू का "सुसाइड नोट", जय के जेब में दो अलहदा सिक्के, राधा की नजाकत भरी खामोशी, वहीं ठाकुर के हाथ काटने का दर्दनाक दृश्य, जेलर असरानी, केश्टो मुखर्जी और जगदीप के व्यंग्य ऐसे तमाम अलहदा रंगों से सजे "शोले" ने दर्शकों के दिल पर असर किया।
- फिल्म में गब्बर के मशहूर किरदार के लिए पहले 'डैनी डेग्जोंप्पा' को अहमियत दी गई थी। वहीं वीरू का किरदार संजीव कुमार तो जेलर को धर्मेंद्र निभाने वाले थे। लेकिन कहानी में वीरू के बसंती से प्रेम प्रसंगों पर नजर पड़ते ही धर्मेंद्र ने वीरू के किरदार को हरी झंडी दिखाई यह चर्चा उन दिनों रही।
- "कितना इनाम रक्खे हैं सरकार हम पर?" गब्बर के इस सवाल का जवाब देने साँभा का किरदार ऐन वक्त पर शामिल किया गया। रेल नकबजनी दृश्यों की शूटिंग पूरे सात हफ्ते चली। और "कितने आदमी थे?" डायलॉग 40 रिटेक के बाद शूट हुआ।
- कई तरह से खासियतों का रिकॉर्ड कायम करने वाले "शोले" ने टिकट खिड़की पर भी कामयाबी का इतिहास रचा। यह सुनकर तो आज भी कइयों को विश्वास नहीं होगा कि "शोले" प्रदर्शन के पहले कुछ दिनों तक नहीं चली थी।[3]
- इस फिल्म की सबसे महत्त्वपूर्ण बात की पूरी फिल्म में मैक मोहन द्वारा एक ही डायलोग बोला गया था और वो भी सुपर हिट हुआ !
- फिल्म शोले के साथ सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि फिल्म इतनी जबरदस्त हिट रही है कि 2005 मे इसे "Best Film of 50 year" का पुरस्कार दिया गया, परंतु इस पुरस्कार को छोड़ कर कोई अन्य पुरस्कार इस फिल्म को कभी नहीं मिला। शायद यह फिल्म पुरस्कार की सीमा में आती ही नहीं है। [4]
- शोले जब रिलीज हुई, तब इसे बहुत ही ठंडा रेस्पोंस मिला था। इस पर फिल्म के निर्देशक ने सलीम-जावेद से कहा कि इसका क्लाइमैक्स चेंज कर देते है और जय (अमिताभ बच्चन) को जिंदा रखते है, पर लेखक जोड़ी ने साफ मना कर दिया। फिर तो बिना किसी परिवर्तन के फिल्म ने जो इतिहास रचा, इसे पूरी दुनिया ने देखा।[5]
- 1999 में बी बी सी इंडिया ने इस फिल्म को शताब्दी की फिल्म का नाम दिया और दीवार की तरह इसे इंडिया टाइम्ज़ मूवियों में बॉलीवुड की शीर्ष 25 फिल्मों में शामिल किया। उसी साल 50 वें वार्षिक फिल्म फेयर पुरस्कार के निर्णायकों ने एक विशेष पुरस्कार दिया जिसका नाम 50 सालों की सर्वश्रेष्ठ फिल्म फिल्मफेयर पुरस्कार था। रमेश सिप्पी की यह फिल्म जापानी निर्देशक अकीरा कुरोसावा के निर्देशन में बनी क्लासिक फिल्म सवन समुराई से प्रेरित थी।
- इस फिल्म के कथानक को रमेश सिप्पी ने मूलभूत परिवर्तन करते हुए कुछ इस अंदाज में परदे पर उतारा कि यह अपने आप में विश्व का आठवां अजूबा बन गई। शोले भारतीय फिल्म इतिहास की पहली ऐसी फिल्म थी, जिसके संवादों को कैसेट के जरिए रिलीज करके म्यूजिक कम्पनी एचएमवी ने लाखों रूपये की कमाई की थी। बॉक्स ऑफिस पर शोले जैसी फिल्मों की जबरदस्त सफलता के बाद बॉलीवुड में अमिताभ बच्चन ने अपनी स्थिति को मजबूत कर लिया था।[6]
- इस फिल्म का निर्माण तीन करोड़ रुपये के बजट में हुआ था। वर्ष 1999 में बीबीसी इंडिया ने इसे 'सहस्राब्दी की फिल्म' घोषित किया था।
- इस फिल्म के बॉक्स ऑफिस पर लगातार पांच साल तक प्रदर्शन के लिए इसे 'गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉडर्स' में दर्ज किया गया था।[7]
कलाकार परिचय
क्रमांक | कलाकार | पात्र का नाम |
---|---|---|
1. | धर्मेन्द्र | वीरू |
2. | संजीव कुमार | ठाकुर बलदेव सिंह (ठाकुर साहब) |
3. | हेमा मालिनी | बसंती |
4. | अमिताभ बच्चन | जय (जयदेव) |
5. | जया भादुडी | राधा |
6. | अमज़द ख़ान | गब्बर सिंह |
7. | ए के हंगल | इमाम साहब / रहीम चाचा |
8. | सचिन | अहमद |
9. | सत्येन्द्र कप्पू | रामलाल |
10. | इफ़्तिख़ार | नर्मदा जी, राधा के पिता |
11. | लीला मिश्रा | मौसी |
12. | विकास आनंद | जय और वीरू को लाने नियुक्त जेलर |
13. | पी जयराज | पुलिस कमिश्नर |
14. | असरानी | जेलर |
15 | राज किशोर | कैदी |
16 | मैक मोहन | साँभा |
17 | विजू खोटे | कालिया |
18 | केस्टो मुखर्जी | हरिराम |
19 | हबीब | हीरा |
20 | शरद कुमार | निन्नी |
21 | मास्टर अलंकार | दीपक |
22 | गीता सिद्धार्थ | दीपक की माँ (अतिथि पात्र) |
23 | ओम शिवपुरी | इंस्पेक्टर साहब (अतिथि पात्र) |
24. | जगदीप - | सूरमा भोपाली (अतिथि पात्र) |
25 | हेलन | बंजारा नर्तकी (अतिथि पात्र, 'महबूबा महबूबा' गाने में) |
26 | जलाल आग़ा | बंजारा गायक (अतिथि पात्र, 'महबूबा महबूबा' गाने में) |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ शोले - फिल्मी इतिहास का एक अनमोल पन्ना (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 16 दिसम्बर, 2011।
- ↑ शोले (Sholay Movie) (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 16 दिसम्बर, 2011।
- ↑ शोले - फिल्मी इतिहास का एक अनमोल पन्ना (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 16 दिसम्बर, 2011।
- ↑ शोले - फिल्मी इतिहास का एक अनमोल पन्ना (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 16 दिसम्बर, 2011।
- ↑ शोले - फिल्मी इतिहास का एक अनमोल पन्ना (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 16 दिसम्बर, 2011।
- ↑ शोले : इतिहास बनी (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 16 दिसम्बर, 2011।
- ↑ लोगों पर अब भी छाया है शोले का जादू : जावेद अख्तर (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 16 दिसम्बर, 2011।
- ↑ Error on call to Template:cite web: Parameters url and title must be specified (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 16 दिसम्बर, 2011।
बाहरी कड़ियाँ
- 35 साल से धधकता हुआ शोले
- शोले : इतिहास बनी
- लोगों पर अब भी छाया है शोले का जादू : जावेद अख्तर
- "शोले" का जय जीवित हो सकता था
- Sholay (1975)
- शोले : इतिहास बनी
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