"शशि कपूर": अवतरणों में अंतर
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अभिनेता पृथ्वीराज कपूर के तीसरे बेटे शशि कपूर की स्कूली पढ़ाई [[मुंबई]] के 'डॉन बास्को स्कूल' में हुई थी। स्कूल में वे नाटक में काम करना चाहते थे, लेकिन कभी रोल पाने में कामयाब नहीं हुए। आखिर में उनकी यह तमन्ना पूरी हुई पापाजी के पृथ्वी थिएटर से। शशि कपूर ने 40 के दशक में ही फ़िल्मों में काम करना शुरू कर दिया था। उन्होंने कई धार्मिक फ़िल्मों में बाल कलाकार की भूमिकाएँ निभाईं। पिता पृथ्वीराज कपूर उन्हें स्कूल की छुट्टियों के दौरान स्टेज पर अभिनय करने के लिए प्रोत्साहित करते थे। इसी का नतीजा रहा कि शशि के बड़े भाई राजकपूर ने उन्हें 'आग' ([[1948]] ई.) और 'आवारा' ([[1951]] ई.) में भूमिकाएँ दीं। 'आवारा' में उन्होंने राजकपूर के बचपन का रोल किया था। | अभिनेता पृथ्वीराज कपूर के तीसरे बेटे शशि कपूर की स्कूली पढ़ाई [[मुंबई]] के 'डॉन बास्को स्कूल' में हुई थी। स्कूल में वे नाटक में काम करना चाहते थे, लेकिन कभी रोल पाने में कामयाब नहीं हुए। आखिर में उनकी यह तमन्ना पूरी हुई पापाजी के पृथ्वी थिएटर से। शशि कपूर ने 40 के दशक में ही फ़िल्मों में काम करना शुरू कर दिया था। उन्होंने कई धार्मिक फ़िल्मों में बाल कलाकार की भूमिकाएँ निभाईं। पिता पृथ्वीराज कपूर उन्हें स्कूल की छुट्टियों के दौरान स्टेज पर अभिनय करने के लिए प्रोत्साहित करते थे। इसी का नतीजा रहा कि शशि के बड़े भाई राजकपूर ने उन्हें 'आग' ([[1948]] ई.) और 'आवारा' ([[1951]] ई.) में भूमिकाएँ दीं। 'आवारा' में उन्होंने राजकपूर के बचपन का रोल किया था। | ||
====जेनिफ़र से भेंट==== | ====जेनिफ़र से भेंट==== | ||
जिन दिनों शशि कपूर 'पृथ्वी थिएटर' में काम कर रहे थे, उन दिनों [[ब्रिटेन]] की मशहूर नाटक मंडली 'शेक्सथियरेना' [[भारत]] दौरे पर आई। इस यात्रा के दौरान जब यह थिएटर मंडली मुंबई पहुंची, तो उसके संचालक मिस्टर केण्डेल, शशि कपूर के पिता से मिले। दोनों की पहले से ही जान-पहचान थी। पृथ्वीराज के दो बेटों राजकपूर और शम्मी कपूर को थिएटर से कुछ लेना-देना नहीं था, क्योंकि तब तक वे फ़िल्मों में अपनी जगह बना चुके थे। शशि अभी भी स्टेज को अपनाए हुए थे, क्योंकि मिस्टर केण्डेल एक बेहतरीन अभिनेता होने के साथ-साथ स्टेज की बारीकियों से भली-भांति परिचित थे। इसलिए पापाजी ने पुत्र शशि को उनसे मिलाया और बेटे को चांस देने के लिए आग्रह किया। शशि कपूर को शेक्सथियरेना से बुलावा आ गया। अब वे कभी पृथ्वी थिएटर के नाटक में काम करते, तो कभी मिस्टर केण्डेल की शागिर्दी करते। इस बीच उनकी मुलाकात केण्डेल की बेटी '''जेनिफ़र''' से हो गई। जानकारी मिली कि जेनिफ़र सिर्फ़ एक प्रतिभावान अभिनेत्री ही नहीं हैं, शेक्सथियरेना के संचालन में भी उनका बहुत बड़ा योगदान है। शशि-जेनिफ़र का परिचय धीरे-धीरे मित्रता में बदलने लगा। इसी दौरान जेनिफ़र ने [[हिन्दी]] भी सीख ली। एक दिन शशि ने मजाक में कहा, मैं तुम्हारे पापा और उनकी कंपनी में काम कर रहा हूँ, तुम भी मेरे पापा के थिएटर में काम करो? जेनिफ़र ने कहा, क्यों नहीं! ज़रूर करूँगी। उसके बाद पृथ्वी थिएटर के नाटक 'पठान' में जेनिफ़र रोल निभाती नजर आईं। शशि जहाँ एक ओर हैरान थे, तो दूसरी ओर ओर जेनिफ़र की प्रतिभा और लगन के कायल भी हो रहे थे। | जिन दिनों शशि कपूर 'पृथ्वी थिएटर' में काम कर रहे थे, उन दिनों [[ब्रिटेन]] की मशहूर नाटक मंडली 'शेक्सथियरेना' [[भारत]] दौरे पर आई। इस यात्रा के दौरान जब यह थिएटर मंडली मुंबई पहुंची, तो उसके संचालक मिस्टर केण्डेल, शशि कपूर के पिता से मिले। दोनों की पहले से ही जान-पहचान थी। पृथ्वीराज के दो बेटों राजकपूर और शम्मी कपूर को थिएटर से कुछ लेना-देना नहीं था, क्योंकि तब तक वे फ़िल्मों में अपनी जगह बना चुके थे। शशि अभी भी स्टेज को अपनाए हुए थे, क्योंकि मिस्टर केण्डेल एक बेहतरीन अभिनेता होने के साथ-साथ स्टेज की बारीकियों से भली-भांति परिचित थे। इसलिए पापाजी ने पुत्र शशि को उनसे मिलाया और बेटे को चांस देने के लिए आग्रह किया। शशि कपूर को शेक्सथियरेना से बुलावा आ गया। अब वे कभी पृथ्वी थिएटर के नाटक में काम करते, तो कभी मिस्टर केण्डेल की शागिर्दी करते। इस बीच उनकी मुलाकात केण्डेल की बेटी '''जेनिफ़र''' से हो गई। जानकारी मिली कि जेनिफ़र सिर्फ़ एक प्रतिभावान अभिनेत्री ही नहीं हैं, शेक्सथियरेना के संचालन में भी उनका बहुत बड़ा योगदान है। शशि-जेनिफ़र का परिचय धीरे-धीरे मित्रता में बदलने लगा। इसी दौरान जेनिफ़र ने [[हिन्दी]] भी सीख ली। एक दिन शशि ने मजाक में कहा, मैं तुम्हारे पापा और उनकी कंपनी में काम कर रहा हूँ, तुम भी मेरे पापा के थिएटर में काम करो? जेनिफ़र ने कहा, क्यों नहीं! ज़रूर करूँगी। उसके बाद पृथ्वी थिएटर के नाटक 'पठान' में जेनिफ़र रोल निभाती नजर आईं। शशि जहाँ एक ओर हैरान थे, तो दूसरी ओर ओर जेनिफ़र की प्रतिभा और लगन के कायल भी हो रहे थे।<ref>{{cite web |url=http://in.jagran.yahoo.com/cinemaaza/cinema/memories/201_201_8101.html|title=मेरे जीवनसाथी/शशि कपूर-जेनिफर |accessmonthday=28 फ़रवरी|accessyear=2012|last=बच्चन|first=श्रीवास्तव|authorlink= |format=एच.टी.एम.एल.|publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | ||
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==फ़िल्मी सफलता== | |||
शशि कपूर ने नायक के रुप में सिने कैरियर की शुरुआत साल [[1961]] ई. में यश चोपडा की फ़िल्म 'धर्म पुत्र' से की थी। इसके बाद उन्हें विमल राय की फ़िल्म 'प्रेम पत्र' में भी काम करने का मौका मिला, लेकिन दुर्भाग्य से ये दोनों ही फ़िल्में असफल साबित हुईं। इसके बाद शशि कपूर ने 'मेंहदी लगी मेरे हाथ' और 'हॉलीडे इन बांम्बे' जैसी फ़िल्मों में भी काम किया, लेकिन यह फ़िल्में भी टिकट खिड़की पर बुरी तरह नकार दी गईं।<ref>{{cite web |url=http://www.livehindustan.com/news/entertainment/entertainmentnews/article1-story-28-28-101622.html|title=सदाबहार अभिनेता है शशि कपूर |accessmonthday=28 फ़रवरी|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | |||
साल [[1965]] ई. शशि कपूर के सिने कैरियर का अहम साल साबित हुआ। इस साल उनकी 'जब जब फूल खिले' प्रदर्शित हुई। बेहतरीन गीत, [[संगीत]] और अभिनय से सजी इस फ़िल्म की ज़बर्दस्त कामयाबी ने न सिर्फ़ अभिनेत्री नंदा को, बल्कि गीतकार, आनंद बख्शी और संगीतकार कल्याणजी-आनंदजी को शोहरत की बुंलदियों पर पहुँचा। इस फ़िल्म की भारी सफलता ने शशि कपूर को भी स्टार के रूप में स्थापित कर दिया। आज भी इस फ़िल्म के सदाबहार गीत दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। कल्याणजी और आनंदजी के संगीत निर्देशन में आनंद बख्शी रचित सुपरहिट गाना 'परदेसियों से न अखियाँ मिलाना', 'यह समां समां है ये प्यार का, 'एक था गुल और एक थी बुलबुल' जैसे गीत श्रोताओं के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुए। फ़िल्म को सुपरहिट बनाने में इन गानों ने अह्म भूमिका निभाई थी। नब्बे के दशक में 'जब जब फूल खिले' की तर्ज पर ही आमिर ख़ान और करिश्मा कपूर को लेकर 'राजा हिंदुस्तानी' बनाई गई थी। | |||
*साल 1965 मे शशि कपूर के सिने कैरियर की एक और सुपरहिट फ़िल्म 'वक्त' रीलीज़ हुई। इस फ़िल्म में उनके साथ [[बलराज साहनी]], [[राजकुमार]] और [[सुनील दत्त]] जैसे नामी सितारे भी थे। इसके बावजूद वह अपने अभिनय से दर्शकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहे। | |||
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12:35, 28 फ़रवरी 2012 का अवतरण
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शशि कपूर
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पूरा नाम | शशि कपूर ( असली नाम बलबीर राज कपूर ) |
जन्म | 18 मार्च, 1938 |
पति/पत्नी | जेनिफर |
कर्म भूमि | मुंबई |
कर्म-क्षेत्र | अभिनेता |
विद्यालय | डोन बोस्की स्कूल से पढाई पूरी की |
शशि कपूर (जन्म- 18 मार्च, 1938 ई., कोलकाता) हिन्दी सिनेमा जगत के ऐसे अभिनेताओं में शुमार किये जाते हैं, जिन्होंने अपने सदाबहार अभिनय से लगभग चार दशक तक हिन्दी सिने प्रेमियों का भरपूर मनोरंजन किया। कोलकाता में जन्मे शशि कपूर का असली नाम 'बलबीर राज कपूर' है। उनका रूझान बचपन से ही फ़िल्मों की ओर था और वह अभिनेता बनना चाहते थे। उनके पिता पृथ्वीराज कपूर और भाई राजकपूर तथा शम्मी कपूर फ़िल्म इंडस्ट्री के जाने माने अभिनेता थे और प्रसिद्धि की बुलन्दियों पर थे। उनके पिता अगर चाहते तो वह उन्हें लेकर फ़िल्म बना सकते थे, लेकिन उनका मानना था कि शशि कपूर स्वयं ही संघर्ष करें और अपनी मेहनत से ही अभिनेता बनें।
शिक्षा तथा अभिनय की शुरुआत
अभिनेता पृथ्वीराज कपूर के तीसरे बेटे शशि कपूर की स्कूली पढ़ाई मुंबई के 'डॉन बास्को स्कूल' में हुई थी। स्कूल में वे नाटक में काम करना चाहते थे, लेकिन कभी रोल पाने में कामयाब नहीं हुए। आखिर में उनकी यह तमन्ना पूरी हुई पापाजी के पृथ्वी थिएटर से। शशि कपूर ने 40 के दशक में ही फ़िल्मों में काम करना शुरू कर दिया था। उन्होंने कई धार्मिक फ़िल्मों में बाल कलाकार की भूमिकाएँ निभाईं। पिता पृथ्वीराज कपूर उन्हें स्कूल की छुट्टियों के दौरान स्टेज पर अभिनय करने के लिए प्रोत्साहित करते थे। इसी का नतीजा रहा कि शशि के बड़े भाई राजकपूर ने उन्हें 'आग' (1948 ई.) और 'आवारा' (1951 ई.) में भूमिकाएँ दीं। 'आवारा' में उन्होंने राजकपूर के बचपन का रोल किया था।
जेनिफ़र से भेंट
जिन दिनों शशि कपूर 'पृथ्वी थिएटर' में काम कर रहे थे, उन दिनों ब्रिटेन की मशहूर नाटक मंडली 'शेक्सथियरेना' भारत दौरे पर आई। इस यात्रा के दौरान जब यह थिएटर मंडली मुंबई पहुंची, तो उसके संचालक मिस्टर केण्डेल, शशि कपूर के पिता से मिले। दोनों की पहले से ही जान-पहचान थी। पृथ्वीराज के दो बेटों राजकपूर और शम्मी कपूर को थिएटर से कुछ लेना-देना नहीं था, क्योंकि तब तक वे फ़िल्मों में अपनी जगह बना चुके थे। शशि अभी भी स्टेज को अपनाए हुए थे, क्योंकि मिस्टर केण्डेल एक बेहतरीन अभिनेता होने के साथ-साथ स्टेज की बारीकियों से भली-भांति परिचित थे। इसलिए पापाजी ने पुत्र शशि को उनसे मिलाया और बेटे को चांस देने के लिए आग्रह किया। शशि कपूर को शेक्सथियरेना से बुलावा आ गया। अब वे कभी पृथ्वी थिएटर के नाटक में काम करते, तो कभी मिस्टर केण्डेल की शागिर्दी करते। इस बीच उनकी मुलाकात केण्डेल की बेटी जेनिफ़र से हो गई। जानकारी मिली कि जेनिफ़र सिर्फ़ एक प्रतिभावान अभिनेत्री ही नहीं हैं, शेक्सथियरेना के संचालन में भी उनका बहुत बड़ा योगदान है। शशि-जेनिफ़र का परिचय धीरे-धीरे मित्रता में बदलने लगा। इसी दौरान जेनिफ़र ने हिन्दी भी सीख ली। एक दिन शशि ने मजाक में कहा, मैं तुम्हारे पापा और उनकी कंपनी में काम कर रहा हूँ, तुम भी मेरे पापा के थिएटर में काम करो? जेनिफ़र ने कहा, क्यों नहीं! ज़रूर करूँगी। उसके बाद पृथ्वी थिएटर के नाटक 'पठान' में जेनिफ़र रोल निभाती नजर आईं। शशि जहाँ एक ओर हैरान थे, तो दूसरी ओर ओर जेनिफ़र की प्रतिभा और लगन के कायल भी हो रहे थे।[1]
विवाह
जेनिफ़र उम्र में शशि कपूर से बड़ी थीं। मजे की बात तो यह थी कि मित्र, प्रेमिका और फिर पत्नी बनने वाली यह युवती अक्सर नाटक में शशि कपूर की माँ का किरदार बखूबी निभा रही थी। दरअसल, सिंगापुर, मलाया और हांगकांग की यात्रा के दौरान दोनों को स्टेज पर न केवल काम करने का बेहतर अवसर मिला, बल्कि घूमने-फिरने का भी खूब मौका मिला। जेनिफ़र के इस साथ ने जहाँ भारतीय शशि कपूर को इंग्लिश मैन बना दिया, वहीं उन्होंने शशि से भारतीय रहन-सहन और तौर-तरीकों के बारे भी में बहुत कुछ सीखा-जाना। ब्रेड की जगह चपाती खाना और बनाना भी सीखा। जब मुंबई लौटे, तो मिस्टर केण्डेल की बेटी से उनका रिश्ता पक्का हो चुका था। पिता पृथ्वीराज कपूर को इस रिश्ते पर कोई आपत्ति नहीं थी। आखिर वे उनके मित्र की बेटी थीं। 1958 में शशि कपूर ने 20 वर्ष की उम्र में जेनिफ़र केण्डेल से विवाह कर लिया। विवाह विधि-विधान से पृथ्वीराज कपूर के मुंबई के 'माटुंगा फ़्लैट' में हुआ।
फ़िल्मी सफलता
शशि कपूर ने नायक के रुप में सिने कैरियर की शुरुआत साल 1961 ई. में यश चोपडा की फ़िल्म 'धर्म पुत्र' से की थी। इसके बाद उन्हें विमल राय की फ़िल्म 'प्रेम पत्र' में भी काम करने का मौका मिला, लेकिन दुर्भाग्य से ये दोनों ही फ़िल्में असफल साबित हुईं। इसके बाद शशि कपूर ने 'मेंहदी लगी मेरे हाथ' और 'हॉलीडे इन बांम्बे' जैसी फ़िल्मों में भी काम किया, लेकिन यह फ़िल्में भी टिकट खिड़की पर बुरी तरह नकार दी गईं।[2] साल 1965 ई. शशि कपूर के सिने कैरियर का अहम साल साबित हुआ। इस साल उनकी 'जब जब फूल खिले' प्रदर्शित हुई। बेहतरीन गीत, संगीत और अभिनय से सजी इस फ़िल्म की ज़बर्दस्त कामयाबी ने न सिर्फ़ अभिनेत्री नंदा को, बल्कि गीतकार, आनंद बख्शी और संगीतकार कल्याणजी-आनंदजी को शोहरत की बुंलदियों पर पहुँचा। इस फ़िल्म की भारी सफलता ने शशि कपूर को भी स्टार के रूप में स्थापित कर दिया। आज भी इस फ़िल्म के सदाबहार गीत दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। कल्याणजी और आनंदजी के संगीत निर्देशन में आनंद बख्शी रचित सुपरहिट गाना 'परदेसियों से न अखियाँ मिलाना', 'यह समां समां है ये प्यार का, 'एक था गुल और एक थी बुलबुल' जैसे गीत श्रोताओं के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुए। फ़िल्म को सुपरहिट बनाने में इन गानों ने अह्म भूमिका निभाई थी। नब्बे के दशक में 'जब जब फूल खिले' की तर्ज पर ही आमिर ख़ान और करिश्मा कपूर को लेकर 'राजा हिंदुस्तानी' बनाई गई थी।
- साल 1965 मे शशि कपूर के सिने कैरियर की एक और सुपरहिट फ़िल्म 'वक्त' रीलीज़ हुई। इस फ़िल्म में उनके साथ बलराज साहनी, राजकुमार और सुनील दत्त जैसे नामी सितारे भी थे। इसके बावजूद वह अपने अभिनय से दर्शकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ बच्चन, श्रीवास्तव। मेरे जीवनसाथी/शशि कपूर-जेनिफर (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल.)। । अभिगमन तिथि: 28 फ़रवरी, 2012।
- ↑ सदाबहार अभिनेता है शशि कपूर (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 28 फ़रवरी, 2012।
बाहरी कड़ियाँ
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