"हिमाचल प्रदेश का इतिहास": अवतरणों में अंतर
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==इतिहास== | |||
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====सम्मेलन तथा प्रदेश निर्माण की घोषणा==== | |||
[[1946]] ई. में सभी प्रजा मंडलों को एचएचएसआरसी में शामिल कर लिया तथा मुख्यालय [[मंडी हिमाचल प्रदेश|मंडी]] में स्थापित किया गया। मंडी के स्वामी पूर्णानंद को अध्यक्ष, पदमदेव को सचिव तथा शिव नंद रमौल (सिरमौर) को संयुक्त सचिव नियुक्त किया था। एचएचएसआरसी के नाहन में 1946 ई. में चुनाव हुए, जिसमें यशवंत सिंह परमार को अध्यक्ष चुना गया। [[जनवरी]], [[1947]] ई. में राजा दुर्गा चंद (बघाट) की अध्यक्षता में 'शिमला हिल्स स्टेट्स यूनियन' की स्थापना की गई। जनवरी, [[1948]] ई. में इसका सम्मेलन [[सोलन]] में हुआ। हिमाचल प्रदेश के निर्माण की घोषणा इस सम्मेलन में की गई थी। दूसरी तरफ़ प्रजा मंडल के नेताओं का [[शिमला]] में सम्मेलन हुआ, जिसमें यशवंत सिंह परमार ने इस बात पर जोर दिया कि हिमाचल प्रदेश का निर्माण तभी संभव है, जब शक्ति प्रदेश की जनता तथा राज्य के हाथ सौंप दी जाए। | |||
==केंद्र शासित प्रदेश== | |||
शिवानंद रमौल की अध्यक्षता में 'हिमालयन प्लांट गर्वनमेंट' की स्थापना की गई, जिसका मुख्यालय [[शिमला]] में था। [[2 मार्च]], [[1948]] ई. को 'शिमला हिल स्टेट' के राजाओं का सम्मेलन [[दिल्ली]] में हुआ। राजाओं की अगुवाई मंडी के राजा जोगेंद्र सेन कर रहे थे। इन राजाओं ने हिमाचल प्रदेश में शामिल होने के लिए [[8 मार्च]], 1948 को एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। [[15 अप्रैल]], 1948 ई. को हिमाचल प्रदेश राज्य का निर्माण किया था। उस समय प्रदेश भर को चार ज़िलों में बांटा गया था और 'पंजाब हिल स्टेट्स' को पटियाला और पूर्व पंजाब राज्य का नाम दिया गया। 1948 ई. में सोलन की नालागढ़ रियासत कों शामिल किया गया। [[अप्रैल]], 1948 में इस क्षेत्र की 27,000 वर्ग कि.मी. में फैली लगभग 30 रियासतों को मिलाकर इस राज्य को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया। | |||
====प्रदेश का पुनर्गठन==== | |||
वर्ष [[1950]] में प्रदेश के पुनर्गठन के अंतर्गत प्रदेश की सीमाओं का पुनर्गठन किया गया। कोटखाई को उप-तहसील का दर्जा देकर खनेटी, दरकोटी, कुमारसैन उपतहसील के कुछ क्षेत्र तथा बलसन के कुछ क्षेत्र तथा बलसन के कुछ क्षेत्र कोटखाई में शामिल किए गए। कोटगढ़ को कुमारसैन उप-तहसील में मिलाया गया। [[उत्तर प्रदेश]] के दो गांव संगोस और भांदर [[जुब्बल हिमाचल प्रदेश|जुब्बल]] तहसील में शामिल कर दिए गए। [[पंजाब]] के नालागढ़ से सात गांव लेकर सोलन तहसील में शामिल गए गए। इसके बदले में शिमला के नजदीक कुसुम्पटी, भराड़ी, संजौली, वाक्ना, भारी, काटो, रामपुर। इसके साथ ही पेप्सी (पंजाब) के छबरोट क्षेत्र कुसुम्पटी तहसील में शामिल कर दिया गया। | |||
==बिलासपुर का विलय== | |||
बिलासपुर रियासत को 1948 ई. में प्रदेश से अलग रखा गया था। उन दिनों इस क्षेत्र में भाखड़ा-बांध परियोजना का कार्य चलाने के कारण इसे प्रदेश में अलग रखा गया। [[1 जुलाई]], [[1954]] ई. को कहलूर रियासत को प्रदेश में शामिल करके इसे बिलासपुर का नाम दिया गया। उस समय बिलासपुर तथा घुमारवीं नामक दो तहसीलें बनाई गई थीं। यह प्रदेश का पांचवां ज़िला बना। 1954 में जब ‘ग’ श्रेणी की रियासत बिलासपुर को इसमें मिलाया गया, तो इसका क्षेत्रफल बढ़कर 28,241 वर्ग कि.मी. हो गया। [[1 मई]], [[1960]] को छठे ज़िले के रूप में किन्नौर का निर्माण किया गया। इस ज़िले में महासू ज़िले की चीनी तहसील तथा रामपुर तहसील के 14 गांव शामिल गए गए। इसकी तीन तहसीलें कल्पा, निचार और पूह बनाई गईं। | |||
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09:24, 4 फ़रवरी 2015 का अवतरण
हिमाचल प्रदेश उत्तर-पश्चिमी भारत में स्थित एक राज्य है। इस प्रदेश को 'देवभूमि' भी कहा जाता है। हिमाचल प्रदेश का शाब्दिक अर्थ "बर्फ़ीले पहाड़ों का प्रांत" है। इस क्षेत्र में आर्यों का प्रभाव ऋग्वेद से भी पुराना है। आंग्ल-गोरखा युद्ध के बाद यह ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार के हाथ में आ गया था। सन 1857 तक यह महाराजा रणजीत सिंह के शासन के अधीन पंजाब राज्य[1] का हिस्सा था। 1950 में इस राज्य को केन्द्र शासित प्रदेश बनाया गया, परन्तु 1971 में 'हिमाचल प्रदेश राज्य अधिनियम-1971' के अन्तर्गत इसे 25 जून, 1971 को भारत का अठारहवाँ राज्य बना दिया गया।
इतिहास
हिमाचल प्रदेश का इतिहास उतना ही प्राचीन है, जितना कि मानव अस्तित्व का अपना इतिहास है। इस बात की सत्यता के प्रमाण हिमाचल प्रदेश के विभिन्न भागों में हुई खुदाई में प्राप्त सामग्रियों से मिलते हैं। प्राचीन काल में इस प्रदेश के आदि निवासी दास, दस्यु और निषाद के नाम से जाने जाते थे। उन्नीसवीं शताब्दी में रणजीत सिंह ने इस क्षेत्र के अनेक भागों को अपने राज्य में मिला लिया। जब अंग्रेज़ यहां आए, तो उन्होंने गोरखा लोगों को पराजित करके कुछ राजाओं की रियासतों को अपने साम्राज्य में मिलाया। 'शिमला हिल स्टेट्स' की स्थापना 1945 ई. तक प्रदेश भर में प्रजा मंडलों का गठन हो चुका था।
सम्मेलन तथा प्रदेश निर्माण की घोषणा
1946 ई. में सभी प्रजा मंडलों को एचएचएसआरसी में शामिल कर लिया तथा मुख्यालय मंडी में स्थापित किया गया। मंडी के स्वामी पूर्णानंद को अध्यक्ष, पदमदेव को सचिव तथा शिव नंद रमौल (सिरमौर) को संयुक्त सचिव नियुक्त किया था। एचएचएसआरसी के नाहन में 1946 ई. में चुनाव हुए, जिसमें यशवंत सिंह परमार को अध्यक्ष चुना गया। जनवरी, 1947 ई. में राजा दुर्गा चंद (बघाट) की अध्यक्षता में 'शिमला हिल्स स्टेट्स यूनियन' की स्थापना की गई। जनवरी, 1948 ई. में इसका सम्मेलन सोलन में हुआ। हिमाचल प्रदेश के निर्माण की घोषणा इस सम्मेलन में की गई थी। दूसरी तरफ़ प्रजा मंडल के नेताओं का शिमला में सम्मेलन हुआ, जिसमें यशवंत सिंह परमार ने इस बात पर जोर दिया कि हिमाचल प्रदेश का निर्माण तभी संभव है, जब शक्ति प्रदेश की जनता तथा राज्य के हाथ सौंप दी जाए।
केंद्र शासित प्रदेश
शिवानंद रमौल की अध्यक्षता में 'हिमालयन प्लांट गर्वनमेंट' की स्थापना की गई, जिसका मुख्यालय शिमला में था। 2 मार्च, 1948 ई. को 'शिमला हिल स्टेट' के राजाओं का सम्मेलन दिल्ली में हुआ। राजाओं की अगुवाई मंडी के राजा जोगेंद्र सेन कर रहे थे। इन राजाओं ने हिमाचल प्रदेश में शामिल होने के लिए 8 मार्च, 1948 को एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। 15 अप्रैल, 1948 ई. को हिमाचल प्रदेश राज्य का निर्माण किया था। उस समय प्रदेश भर को चार ज़िलों में बांटा गया था और 'पंजाब हिल स्टेट्स' को पटियाला और पूर्व पंजाब राज्य का नाम दिया गया। 1948 ई. में सोलन की नालागढ़ रियासत कों शामिल किया गया। अप्रैल, 1948 में इस क्षेत्र की 27,000 वर्ग कि.मी. में फैली लगभग 30 रियासतों को मिलाकर इस राज्य को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया।
प्रदेश का पुनर्गठन
वर्ष 1950 में प्रदेश के पुनर्गठन के अंतर्गत प्रदेश की सीमाओं का पुनर्गठन किया गया। कोटखाई को उप-तहसील का दर्जा देकर खनेटी, दरकोटी, कुमारसैन उपतहसील के कुछ क्षेत्र तथा बलसन के कुछ क्षेत्र तथा बलसन के कुछ क्षेत्र कोटखाई में शामिल किए गए। कोटगढ़ को कुमारसैन उप-तहसील में मिलाया गया। उत्तर प्रदेश के दो गांव संगोस और भांदर जुब्बल तहसील में शामिल कर दिए गए। पंजाब के नालागढ़ से सात गांव लेकर सोलन तहसील में शामिल गए गए। इसके बदले में शिमला के नजदीक कुसुम्पटी, भराड़ी, संजौली, वाक्ना, भारी, काटो, रामपुर। इसके साथ ही पेप्सी (पंजाब) के छबरोट क्षेत्र कुसुम्पटी तहसील में शामिल कर दिया गया।
बिलासपुर का विलय
बिलासपुर रियासत को 1948 ई. में प्रदेश से अलग रखा गया था। उन दिनों इस क्षेत्र में भाखड़ा-बांध परियोजना का कार्य चलाने के कारण इसे प्रदेश में अलग रखा गया। 1 जुलाई, 1954 ई. को कहलूर रियासत को प्रदेश में शामिल करके इसे बिलासपुर का नाम दिया गया। उस समय बिलासपुर तथा घुमारवीं नामक दो तहसीलें बनाई गई थीं। यह प्रदेश का पांचवां ज़िला बना। 1954 में जब ‘ग’ श्रेणी की रियासत बिलासपुर को इसमें मिलाया गया, तो इसका क्षेत्रफल बढ़कर 28,241 वर्ग कि.मी. हो गया। 1 मई, 1960 को छठे ज़िले के रूप में किन्नौर का निर्माण किया गया। इस ज़िले में महासू ज़िले की चीनी तहसील तथा रामपुर तहसील के 14 गांव शामिल गए गए। इसकी तीन तहसीलें कल्पा, निचार और पूह बनाई गईं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पंजाब हिल्स के सीबा राज्य को छोड़कर