"अन्हिलवाड़": अवतरणों में अंतर
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[[गुजरात]] के पाटन नगर | '''अन्हिलवाड़''' अथवा '''अन्हलवाड़ा''' प्राचीन [[गुजरात]] की महिमामयी राजधानी थी जिसकी स्थापना चावड़ा वंश के वनराज या बंदाज द्वारा 746 ई. में हुईं थी। उसे इस कार्य में जैनाचार्य शीलगुण से विशेष सहायता मिली थी। इसको गुजरात का [[पाटन]] नगर भी कहा जाता है। | ||
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चावड़ा वंश के वनराज के पिता जयकृष्ण का राज्य, [[कच्छ का रण|कच्छ की रण]] के निकटस्थ पंचसर नामक स्थान पर था। वनराज ने नए नगर को [[सरस्वती नदी]] के तट पर स्थित प्राचीन ग्राम लखराम की जगह बसाया था। यह सूचना हमें जैन पट्टावलियों से मिलती है। धर्मसागरकृत प्रवचन परीक्षा में 1304 ई. तक अन्हलवाड़ा के राजाओं का वर्णन है। एक किंवदंती के अनुसार जब 770 ई. के लगभग अरब आक्रमणकारियों ने [[काठियावाड़]] के प्रसिद्ध नगर वल्लभीपुर को नष्ट कर दिया तो वहां के [[राजपूत|राजपूतों]] ने अन्हलवाड़ा बसाया था। अन्हलवाड़ा में चावड़ा वंश का शासनकाल 942 ई. तक रहा। इस वर्ष [[चालुक्य]] अथवा [[सोलंकी वंश]] के नरेश मूलराज ने गुजरात के इस भाग पर अधिकार कर लिया। चालुक्य-शासनकाल में गुजरात उन्नति के शिखर पर पहुंच गया। मूलराज ने सिद्धपुर में रुद्रमहालय नामक देवालय निर्मित किया था। इस वंश में सिद्धराज जयसिंह (1094-1143 ई.) सबसे प्रसिद्ध राजा था। यह गुजरात की प्राचीन लोक-कथाओं में मालवा के भोज की तरह ही प्रसिद्ध है। जैनाचार्य हेमचंद्र, सिद्धराज के ही राज्याश्रय में रहते थे। हेमचंद्र और उनके समकालीन सोमेश्वर के ग्रन्थों में 12वीं शती के पाटन के महान् ऐश्वर्य का विवरण मिलता है। सिद्धराज के समय में इस नगर में अनेक सत्रालयऔर मठ स्थापित किए गए थे। इनमें विद्वानों और निर्धनों को नि:शुल्क भोजन तथा निवासस्थान दिया जाता था। इस काल में पाटन, गुजरात की राजनीति, [[धर्म]] तथा [[संस्कृति]] का एकमात्र महान् केन्द्र था। [[जैन धर्म]] की भी यहां 12वीं शती में बहुत उन्नति हुई। सिद्धराज विद्या तथा कलाओं का प्रेमी था और विद्वानों का आश्रयदाता था। | |||
सिद्धराज के पश्चात् [[मुसलमान]] आक्रमणकारियों ने इस नगर की सारी श्री समाप्त कर दी। गुजरात में किंवदंती है कि [[महमूद गजनवी]] ने इस नगर को लूटा ही था किंतु [[मुहम्मद तुग़लक़]] ने इसे पूरी तरह उजाड़ कर हल चलवा दिए थे। मुहम्मद तुग़लक़ से पहले [[अलाउद्दीन खिलजी]] ने 1304 ई. में पाटन नरेश कर्ण बघेला को परास्त किया था और इस प्रकार यहाँ के प्राचीन हिंदू राज्य की इतिश्री कर दी थी। 15वीं शती में गुजरात का सुलतान अहमदशाह पाटन से अपनी राजधानी उठा कर नए बसाए हुए नगर [[अहमदाबाद]] में ले गया और इसके साथ ही [[पाटन]] के गौरव का सूर्य अस्त हो गया। | |||
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13:15, 26 मार्च 2012 का अवतरण
अन्हिलवाड़ अथवा अन्हलवाड़ा प्राचीन गुजरात की महिमामयी राजधानी थी जिसकी स्थापना चावड़ा वंश के वनराज या बंदाज द्वारा 746 ई. में हुईं थी। उसे इस कार्य में जैनाचार्य शीलगुण से विशेष सहायता मिली थी। इसको गुजरात का पाटन नगर भी कहा जाता है।
इतिहास
चावड़ा वंश के वनराज के पिता जयकृष्ण का राज्य, कच्छ की रण के निकटस्थ पंचसर नामक स्थान पर था। वनराज ने नए नगर को सरस्वती नदी के तट पर स्थित प्राचीन ग्राम लखराम की जगह बसाया था। यह सूचना हमें जैन पट्टावलियों से मिलती है। धर्मसागरकृत प्रवचन परीक्षा में 1304 ई. तक अन्हलवाड़ा के राजाओं का वर्णन है। एक किंवदंती के अनुसार जब 770 ई. के लगभग अरब आक्रमणकारियों ने काठियावाड़ के प्रसिद्ध नगर वल्लभीपुर को नष्ट कर दिया तो वहां के राजपूतों ने अन्हलवाड़ा बसाया था। अन्हलवाड़ा में चावड़ा वंश का शासनकाल 942 ई. तक रहा। इस वर्ष चालुक्य अथवा सोलंकी वंश के नरेश मूलराज ने गुजरात के इस भाग पर अधिकार कर लिया। चालुक्य-शासनकाल में गुजरात उन्नति के शिखर पर पहुंच गया। मूलराज ने सिद्धपुर में रुद्रमहालय नामक देवालय निर्मित किया था। इस वंश में सिद्धराज जयसिंह (1094-1143 ई.) सबसे प्रसिद्ध राजा था। यह गुजरात की प्राचीन लोक-कथाओं में मालवा के भोज की तरह ही प्रसिद्ध है। जैनाचार्य हेमचंद्र, सिद्धराज के ही राज्याश्रय में रहते थे। हेमचंद्र और उनके समकालीन सोमेश्वर के ग्रन्थों में 12वीं शती के पाटन के महान् ऐश्वर्य का विवरण मिलता है। सिद्धराज के समय में इस नगर में अनेक सत्रालयऔर मठ स्थापित किए गए थे। इनमें विद्वानों और निर्धनों को नि:शुल्क भोजन तथा निवासस्थान दिया जाता था। इस काल में पाटन, गुजरात की राजनीति, धर्म तथा संस्कृति का एकमात्र महान् केन्द्र था। जैन धर्म की भी यहां 12वीं शती में बहुत उन्नति हुई। सिद्धराज विद्या तथा कलाओं का प्रेमी था और विद्वानों का आश्रयदाता था।
सिद्धराज के पश्चात् मुसलमान आक्रमणकारियों ने इस नगर की सारी श्री समाप्त कर दी। गुजरात में किंवदंती है कि महमूद गजनवी ने इस नगर को लूटा ही था किंतु मुहम्मद तुग़लक़ ने इसे पूरी तरह उजाड़ कर हल चलवा दिए थे। मुहम्मद तुग़लक़ से पहले अलाउद्दीन खिलजी ने 1304 ई. में पाटन नरेश कर्ण बघेला को परास्त किया था और इस प्रकार यहाँ के प्राचीन हिंदू राज्य की इतिश्री कर दी थी। 15वीं शती में गुजरात का सुलतान अहमदशाह पाटन से अपनी राजधानी उठा कर नए बसाए हुए नगर अहमदाबाद में ले गया और इसके साथ ही पाटन के गौरव का सूर्य अस्त हो गया।
पाटन
पाटन या पाटण अब भी एक छोटा-सा कस्बा है जो महसाणा से 25 मील दूर है। स्थानीय जनश्रुति है कि महाभारत में उल्लिखित हिडिंबवन पाटन के निकट ही स्थित था और भीम ने हिडिंब राक्षस को मारकर उसकी बहिन हिडिंबा से यहीं विवाह किया था। पाटन के खण्डहर सहस्त्रलिंग झील के किनारे स्थित हैं। इसकी खुदाई में अनेक बहुमूल्य स्मारक मिले हैं- इनमें मुख्य हैं भीमदेव प्रथम की रानी उदयमती की बाव या बावड़ी, रानी महल और पार्श्वनाथ का मंदिर। ये सभी स्मारक वास्तुकला के सुंदर उदाहरण हैं।
सामाजिक जनजीवन
अन्हिलवाड़ का नगर व्यापारियों के लिए तीर्थ स्थान के समान था। यह नगर आठवीं सदी से चौदहवीं सदी तक एक प्रसिद्ध व्यापारिक केन्द्र रहा। पूर्व मध्यकाल में अन्हिलवाड़ या अन्हिलपाटन ने शिक्षा के केन्द्र के रूप में पहचान बना ली थी। हिन्दू धर्म- दर्शन के अतिरिक्त जैन धर्म और दर्शन की भी शिक्षा दी जाती थी। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश आदि भाषाओं का उत्कर्ष और प्रयास यहाँ हुआ था।
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