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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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संबंधित लेख
उत्तराखण्ड राज्य की माँग सर्वप्रथम 1897 में उठी और धीरे-धीरे यह माँग अनेक समयों पर उठती रही।1994 में इस माँग ने जनान्दोलन का रूप ले लिया और आखिरकार नियत तिथि पर यह देश का सत्ताइसवाँ राज्य बना।
संक्षिप्त इतिहास
उत्तराखण्ड संघर्ष से राज्य के गठन तक जिन महत्वपूर्ण तिथियों और घटनाओं मुख्य ने भूमिका निभाई वे इस प्रकार हैं -
- भारतीय स्वतंत्रता आंन्देालन की एक इकाइ के रुप् मे उत्तराखंड में स्वाधीनता संग्राम के दौरान 1913 के कांग्रेस अधिवेशन में उत्तराखंड के ज्यादा प्रतिनिधि सम्मिलित हुये। इसी वर्ष उत्तराखंड के अनुसूचित जातियों के उत्थान के लिये गठित टम्टा सुधारिणी सभा का रूपान्तरण एक व्यापक शिल्पकार महासभा के रूप में हुआ।
- 1916 के सितम्बर माह में हरगोविन्द पंत गोविन्द बल्लभ पंत बदरी दत्त पाण्डे इन्द्रलाल साह मोहन सिंह दड़मवाल चन्द्र लाल साह प्रेम बल्लभ पाण्डे भोलादत पाण्डे ओर लक्ष्मीदत्त शास्त्री आदि उत्साही युवकों के द्वारा कुमाऊँ परिषद की स्थापना की गयी जिसका मुख्य उद्देश्य तत्कालीन उत्तराखंड की सामाजिक तथा आर्थिक समस्याआं का समाधान खोजना था। 1926 तक इस संगठन ने उत्तराखण्ड में स्थानीय सामान्य सुधारो की दिशा के अतिरिक्त निश्चित राजनैतिक उद्देश्य के रूप में संगठनात्मक गतिविधियां संपादित कीं। 1923 तथा 1926 के प्रान्तीय काउन्सिल के चुनाव में गोविन्द बल्लभ पंत हरगोविन्द पंत मुकुन्दी लाल तथा बदरी दत्त पाण्डे ने प्रतिपक्षियों को बुरी तरह पराजित किया।
- 1926 में कुमाऊँ परिषद का कांग्रेस में विलीनीकरण कर दिया गया।
- आधिकारिक सूत्रों के अनुसार मई १९३८ में तत्कालीन ब्रिटिश शासन मे गढ़वाल के श्रीनगर में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इस पर्वतीय क्षेत्र के निवासियों को अपनी परिस्थितियों के अनुसार स्वयं निर्णय लेने तथा अपनी संस्कृति को समृद्ध करकने के आंदोलन का समर्थन किया।
- सन् १९४० में हल्द्वानी सम्मेलन में बद्रीदत्त पाण्डेय ने पर्वतीय क्षेत्र को विशेष दर्जा तथा अनुसूया प्रसाद बहुगुणा ने कुमाऊँ-गढ़वाल को पृथक इकाई के रूप में गठन की मांग रखी। १९५४में विधान परिषद के सदस्य इन्द्रसिंह नयाल ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविन्द बल्लभ पंत से पर्वतीय क्षेत्र के लिये पृथक विकास योजना बनाने का आग्रह किया तथा १९५५ में फजल अली आयोग ने पर्वतीय क्षेत्र को अलग राज्य के रूप में गठित करने की संस्तुति की।
- वर्ष १९५७ में योजना आयोग के उपाध्यक्ष टीटी कृष्णमाचारी ने पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं के निदान के लिये विशेष ध्यान देने का सुझाव दिया। १२ मई १९७० को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं का निदान राज्य तथा केन्द्र सरकार का दायित्व होने की घोषणा की और २४ जुलाई १९७९ में पृथक राज्य के गठन के लिये मसूरी में उत्तराखण्ड क्रान्ति दल की स्थापना की गई। जून १९८७ में कर्ण प्रयाग के सर्वदलीय सम्मेलन में उत्तराखण्ड के गठन के लिये संघर्ष का आह्वान किया तथा नवंबर १९८७ में पृथक उत्तराखण्ड राज्य के गठन के लिये नई दिल्ली में प्रदर्शन और राष्ट्रपति को ज्ञापन एवं हरिद्वार को भी प्रस्तावित राज्य में सम्मिलित् करने की मांग की गई।
- १९९४ उत्तराखण्ड राज्य एवं आरक्षण को लेकर छात्रों ने सामूहिक रूप से आन्दोलन किया। मुलायम सिंह यादव के उत्तराखण्ड विरोधी वक्तव्य से क्षेत्र में आन्दोलन तेज हो गया। उत्तराखण्ड क्रान्ति दल के नेताओं ने अनशन किया। उत्तराखण्ड में सरकारी कर्मचारी पृथक राज्य की मांग के समर्थन में लगातार तीन महीने तक हड़ताल पर रहे तथा उत्तराखण्ड में चक्काजाम और पुलिस फायरिंग की घटनाएं हुई। उत्तराखण्ड आन्दोलनकारियों पर मसूरी और खटीमा में पुलिस द्वारा गोलियां चलायीं गईं। संयुक्त मोर्चा के तत्वाधान में २ अक्टूबर, १९९४ को दिल्ली में भारी प्रदर्शन किया गया। इस संघर्ष में भाग लेने के लिये उत्तराखण्ड से हजारों लोगों की भागीदारी हुई। प्रदर्शन में भाग लेने जा रहे आन्दोलनकारियों को मुजफ्फर नगर में बहुत पेरशान किया गया और उन पर पुलिस ने फायिरिंग की और लाठिया बरसाईं तथा महिलाओं के साथ अश्लील व्यहार और अभद्रता की गयी। इसमें अनेक लोग हताहत और घायल हुए। इस घटना ने उत्तराखण्ड आन्दोलन की आग में घी का काम किया। अगले दिन तीन अक्टूबर को इस घटना के विरोध में उत्तराखण्ड बंद का आह्वान किया गया जिसमें तोड़फोड़ गोलाबारी तथा अनेक मौतें हुईं।
- ७ अक्टूबर, १९९४ को देहरादून में एक महिला आन्दोलनकारी की मृत्यु हो हई इसके विरोध में आन्दोलनकारियों ने पुलिस चौकी पर उपद्रव किया।
- १५ अक्टूबर को देहरादून में कर्फ्यू लग गया और उसी दिन एक आन्दोलनकारी शहीद हो गया।
- २७ अक्टूबर, १९९४ को देश के तत्कालीन गृहमंत्री राजेश पायलट की आन्दोलनकारियों की वार्ता हुई। इसी बीच श्रीनगर में श्रीयंत्र टापू में अनशनकारियों पर पुलिस ने बर्बरतापूर्वक प्रहार किया जिसमें अनेक आन्दोलनकारी शहीद हो गए।
- १५ अगस्त, १९९६ को तत्कालीन प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा ने उत्तराखण्ड राज्य की घोषणा लालकिले से की।
- १९९८ में केन्द्र की भाजपा गठबंधन सरकार ने पहली बार राष्ट्रपति के माध्यम से उ.प्र. विधानसभा को उत्तरांचल विधेयक भेजा। उ.प्र. सरकार ने २६ संशोधनों के साथ उत्तरांचल राज्य विधेयक विधान सभा में पारित करवाकर केन्द्र सरकार को भेजा। केन्द्र सरकार ने २७ जुलाई, २००० को उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक २००० को लोकसभा में प्रस्तुत किया जो १ अगस्त, २००० को लोकसभा में तथा १० अगस्त, २००० अगस्त को राज्यसभा में पारित हो गया। भारत के राष्ट्रपति ने उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक को २८ अगस्त, २००० को अपनी स्वीकृति दे दी और इसके बाद यह विधेयक अधिनियम में बदल गया और इसके साथ ही ९ नवंबर, २००० को उत्तरांचल राज्य अस्तित्व मे आया जो अब उत्तराखण्ड नाम से अस्तित्व में है।
राज्य आन्दोलन की घटनाएँ
उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन में बहुत सी हिंसक घटनाएँ भी हुईं जो इस प्रकार हैं:
खटीमा गोलीकाण्ड
१ सितंबर, १९९४ को उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन का काला दिन माना जाता है, क्योंकि इस दिन की जैसी पुलिस बर्बरता की कार्यवाही इससे पहले कहीं और देखने को नहीं मिली थी। पुलिस द्वारा बिना चेतावनी दिये ही आन्दोलनकारियों के ऊपर अंधाधुंध फायरिंग की गई, जिसके परिणामस्वरुप सात आन्दोलनकारियों की मृत्यु हो गई। मारे ग एलोगों के नाम हैं:
- अमर शहीद स्व० भगवान सिंह सिरौला, ग्राम श्रीपुर बिछुवा, खटीमा।
- अमर शहीद स्व० प्रताप सिंह, खटीमा।
- अमर शहीद स्व० सलीम अहमद, खटीमा।
- अमर शहीद स्व० गोपीचन्द, ग्राम-रतनपुर फुलैया, खटीमा।
- अमर शहीद स्व० धर्मानन्द भट्ट, ग्राम-अमरकलां, खटीमा
- अमर शहीद स्व० परमजीत सिंह, राजीवनगर, खटीमा।
- अमर शहीद स्व० रामपाल, निवासी-बरेली।
- अमर शहीद स्व० श्री भगवान सिंह सिरोला।
इस पुलिस फायरिंग में बिचपुरी निवासी श्री बहादुर सिंह, श्रीपुर बिछुवा के पूरन चन्द्र भी गंभीर रुप से घायल हुये थे।
मसूरी गोलीकाण्ड
२ सितंबर, १९९४ को खटीमा गोलीकाण्ड के विरोध में मौन जुलूस निकाल रहे लोगों पर एक बार फिर पुलिसिया कहर टूटा। प्रशासन से बातचीत करने गई दो सगी बहनों को पुलिस ने झूलाघर स्थित आन्दोलनकारियों के कार्यालय में गोली मार दी। इसका विरोध करने पर पुलिस द्वारा अंधाधुंध फायरिंग कर दी गई, जिसमें कई लोगों को (लगभग २१) गोली लगी और इसमें से तीन आन्दोलनकारियों की अस्पताल में मृत्यु हो गई।
मसूरी गोलीकाण्ड में शहीद लोगः
- अमर शहीद स्व० बेलमती चौहान (४८), पत्नी श्री धर्म सिंह चौहान, ग्राम-खलोन, पट्टी घाट, अकोदया, टिहरी।
- अमर शहीद स्व० हंसा धनई (४५), पत्नी श्री भगवान सिंह धनई, ग्राम-बंगधार, पट्टी धारमंडल, टिहरी।
- अमर शहीद स्व० बलबीर सिंह (२२), पुत्र श्री भगवान सिंह नेगी, लक्ष्मी मिष्ठान्न, लाइब्रेरी, मसूरी।
- अमर शहीद स्व० धनपत सिंह (५०), ग्राम-गंगवाड़ा, पट्टी-गंगवाड़स्यू, गढ़वाल।
- अमर शहीद स्व० मदन मोहन ममगई (४५), नागजली, कुलड़ी, मसूरी।
- अमर शहीद स्व० राय सिंह बंगारी (५४), ग्राम तोडेरा, पट्टी-पूर्वी भरदार, टिहरी।
मुजफ्फरनगर गोलीकाण्ड / रामपुर तिराहा काण्ड
२ अक्टूबर, १९९४ की रात्रि को दिल्ली रैली में जा रहे आन्दोलनकारियों का रामपुर तिराहा, मुजफ्फरनगर में पुलिस-प्रशासन ने जैसा दमन किया, उसका उदारहण किसी भी लोकतान्त्रिक देश तो क्या किसी तानाशाह ने भी आज तक दुनिया में नहीं दिया कि निहत्थे आन्दोलनकारियों को रात के अन्धेरे में चारों ओर से घेरकर गोलियां बरसाई गई और पहाड़ की सीधी-सादी महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार तक किया गया। इस गोलीकाण्ड में राज्य के ७ आन्दोलनकारी शहीद हो गये थे। इस गोली काण्ड के दोषी आठ पुलिसवालों पर्, जिनमे तीन इंस्पै़क्टर भी हैं, पर मामला चलाया जा रहा है।[1]
शहीदों के नाम:
- अमर शहीद स्व० सूर्यप्रकाश थपलियाल (२०), पुत्र श्री चिंतामणि थपलियाल, चौदहबीघा, मुनि की रेती, ऋषिकेश।
- अमर शहीद स्व० राजेश लखेड़ा (२४), पुत्र श्री दर्शन सिंह लखेड़ा, अजबपुर कलां, देहरादून।
- अमर शहीद स्व० रविन्द्र सिंह रावत (२२), पुत्र श्री कुंदन सिंह रावत, बी-२०, नेहरु कालोनी, देहरादून।
- अमर शहीद स्व० राजेश नेगी (२०), पुत्र श्री महावीर सिंह नेगी, भानिया वाला, देहरादून।
- अमर शहीद स्व० सतेन्द्र चौहान (१६), पुत्र श्री जोध सिंह चौहान, ग्राम हरिपुर, सेलाकुईं, देहरादून।
- अमर शहीद स्व० गिरीश भद्री (२१), पुत्र श्री वाचस्पति भद्री, अजबपुर खुर्द, देहरादून।
- अमर शहीद स्व० अशोक कुमारे कैशिव, पुत्र श्री शिव प्रसाद, मंदिर मार्ग, ऊखीमठ, रुद्रप्रयाग।
देहरादून गोलीकाण्ड
३ अक्टूबर, १९९४ को मुजफ्फरनगर काण्ड की सूचना देहरादून में पहुंचते ही लोगों का उग्र होना स्वाभाविक था। इसी बीच इस काण्ड में शहीद स्व० श्री रविन्द्र सिंह रावत की शवयात्रा पर पुलिस के लाठीचार्ज के बाद स्थिति और उग्र हो गई और लोगों ने पूरे देहरादून में इसके विरोध में प्रदर्शन किया, जिसमें पहले से ही जनाक्रोश को किसी भी हालत में दबाने के लिये तैयार पुलिस ने फायरिंग कर दी, जिसने तीन और लोगों को इस आन्दोलन में शहीद कर दिया।
मारे गए लोगों के नामः
- अमर शहीद स्व० बलवन्त सिंह सजवाण (४५), पुत्र श्री भगवान सिंह, ग्राम-मल्हान, नयागांव, देहरादून।
- अमर शहीद स्व० राजेश रावत (१९), पुत्र श्रीमती आनंदी देवी, २७-चंदर रोड, नई बस्ती, देहरादून।
- अमर शहीद स्व० दीपक वालिया (२७), पुत्र श्री ओम प्रकाश वालिया, ग्राम बद्रीपुर, देहरादून।
- स्व० राजेश रावत की मृत्यु तत्कालीन [सपा] नेता सूर्यकांत धस्माना के घर से हुई फायरिंग में हुई थी।
कोटद्वार काण्ड
३ अक्टूबर, १९९४ को पूरा उत्तराखण्ड मुजफ्फरनगर काण्ड के विरोध में उबला हुआ था और पुलिस-प्रशासन इनके किसी भी प्रकार से दमन के लिये तैयार था। इसी कड़ी में कोट्द्वार में भी आन्दोलन हुआ, जिसमें दो आन्दोलनकारियों को पुलिस कर्मियों द्वारा राइफल के बटों व डण्डों से पीट-पीटकर मार डाला।
कोटद्वार में शहीद आन्दोलनकारी:
- अमर शहीद स्व० श्री राकेश देवरानी।
- अमर शहीद स्व० श्री पृथ्वी सिंह बिष्ट, मानपुर, कोटद्वार।
नैनीताल गोलीकाण्ड
नैनीताल में भी विरोध चरम पर था, लेकिन इसका नेतृत्व बुद्धिजीवियों के हाथ में होने के कारण पुलिस कुछ कर नहीं पाई, लेकिन इसकी भड़ास उन्होने निकाली प्रशान्त होटल में काम करने वाले प्रताप सिंह के ऊपर। आर०ए०एफ० के सिपाहियों ने इसे होटल से खींचा और जब यह बचने के लिये मेघदूत होटल की तरफ भागा, तो इनकी गर्दन में गोली मारकर हत्या कर दी गई।
नैनीताल गोलीकांड में शहीद लोगः
- अमर शहीद स्व० श्री प्रताप सिंह।
श्रीयंत्र टापू (श्रीनगर) काण्ड
श्रीनगर कस्बे से २ कि०मी० दूर स्थित श्रीयन्त्र टापू पर आन्दोलनकारियों ने ७ नवंबर, १९९४ से इन सभी दमनकारी घटनाओं के विरोध और पृथक उत्तराखण्ड राज्य हेतु आमरण अनशन आरम्भ किया। १० नवंबर, १९९४ को पुलिस ने इस टापू में पहुँचकर अपना कहर बरपाया, जिसमें कई लोगों को गम्भीर चोटें भी आई, इसी क्रम में पुलिस ने दो युवकों को राइफलों के बट और लाठी-डण्डों से मारकर अलकनन्दा नदी में फेंक दिया और उनके ऊपर पत्थरों की बरसात कर दी, जिससे इन दोनों की मृत्यु हो गई।
श्रीयन्त्र टापू के शहीद लोगः
- अमर शहीद स्व० श्री राजेश रावत।
- अमर शहीद स्व० श्री यशोधर बेंजवाल।
इन दोनों शहीदों के शव १४ नवंबर, १९९४ को बागवान के समीप अलकनन्दा में तैरते हुये पाये गये थे।