"सत्यमेव जयते": अवतरणों में अंतर
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "{{लेख प्रगति |आधार=आधार1 |प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}" to "{{लेख प्रगति |आधार= |प्रारम्भि�) |
No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
[[चित्र:Satyameva-Jayate.jpg|thumb|100px|[[भारत]] का राष्ट्रीय प्रतीक]] | [[चित्र:Satyameva-Jayate.jpg|thumb|100px|[[भारत]] का राष्ट्रीय प्रतीक]] | ||
'''सत्यमेव जयते''' [[भारत]] का | '''सत्यमेव जयते''' [[भारत]] का 'राष्ट्रीय आदर्श वाक्य' है, जिसका अर्थ है- "सत्य की सदैव ही विजय होती है"। यह भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के नीचे [[देवनागरी लिपि]] में अंकित है। 'सत्यमेव जयते' को राष्ट्रपटल पर लाने और उसका प्रचार करने में [[पंडित मदनमोहन मालवीय]] की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। [[वेदान्त]] एवं [[दर्शन]] ग्रंथों में जगह-जगह सत् असत् का प्रयोग हुआ है। सत् शब्द उसके लिए प्रयुक्त हुआ है, जो सृष्टि का मूल तत्त्व है, सदा है, जो परिवर्तित नहीं होता, जो निश्चित है। इस सत् तत्त्व को ब्रह्म अथवा परमात्मा कहा गया है। | ||
==इतिहास== | |||
सम्पूर्ण भारत का आदर्श वाक्य 'सत्यमेव जयते' उत्तर भारतीय राज्य [[उत्तर प्रदेश]] के [[वाराणसी]] के निकट स्थित [[सारनाथ]] में 250 ई. पू. में [[मौर्य]] [[सम्राट अशोक]] द्वारा बनवाये गए सिंह स्तम्भ के शिखर से लिया गया है, किंतु इस शिखर में यह आदर्श वाक्य नहीं है। 'सत्यमेव जयते' मूलतः '[[मुण्डकोपनिषद|मुण्डकोपनिषद्]]' का सर्वज्ञात मंत्र है। 'मुण्डकोपनिषद' के निम्न [[श्लोक]] से 'सत्यमेव जयते' लिया गया है- | |||
<blockquote><poem>सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पंथा विततो देवयानः। | <blockquote><poem>सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पंथा विततो देवयानः। | ||
येनाक्रमन्त्यृषयो ह्याप्तकामा यत्र सत्सत्यस्य परमं निधानम्॥<ref>[[मुण्डकोपनिषद|मुण्डकोपनिषद्]] तृतीय मुण्डक श्लोक 6</ref></poem></blockquote> | येनाक्रमन्त्यृषयो ह्याप्तकामा यत्र सत्सत्यस्य परमं निधानम्॥<ref>[[मुण्डकोपनिषद|मुण्डकोपनिषद्]] तृतीय मुण्डक श्लोक 6</ref></poem></blockquote> | ||
{{लेख प्रगति |आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति |आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{राष्ट्रीय चिह्न और प्रतीक}} | {{राष्ट्रीय चिह्न और प्रतीक}}{{भारत गणराज्य}} | ||
{{भारत गणराज्य}} | |||
[[Category:राष्ट्रीय_चिह्न_और_प्रतीक]] | [[Category:राष्ट्रीय_चिह्न_और_प्रतीक]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ |
11:16, 11 मई 2013 का अवतरण
सत्यमेव जयते भारत का 'राष्ट्रीय आदर्श वाक्य' है, जिसका अर्थ है- "सत्य की सदैव ही विजय होती है"। यह भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के नीचे देवनागरी लिपि में अंकित है। 'सत्यमेव जयते' को राष्ट्रपटल पर लाने और उसका प्रचार करने में पंडित मदनमोहन मालवीय की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। वेदान्त एवं दर्शन ग्रंथों में जगह-जगह सत् असत् का प्रयोग हुआ है। सत् शब्द उसके लिए प्रयुक्त हुआ है, जो सृष्टि का मूल तत्त्व है, सदा है, जो परिवर्तित नहीं होता, जो निश्चित है। इस सत् तत्त्व को ब्रह्म अथवा परमात्मा कहा गया है।
इतिहास
सम्पूर्ण भारत का आदर्श वाक्य 'सत्यमेव जयते' उत्तर भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के वाराणसी के निकट स्थित सारनाथ में 250 ई. पू. में मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनवाये गए सिंह स्तम्भ के शिखर से लिया गया है, किंतु इस शिखर में यह आदर्श वाक्य नहीं है। 'सत्यमेव जयते' मूलतः 'मुण्डकोपनिषद्' का सर्वज्ञात मंत्र है। 'मुण्डकोपनिषद' के निम्न श्लोक से 'सत्यमेव जयते' लिया गया है-
सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पंथा विततो देवयानः।
येनाक्रमन्त्यृषयो ह्याप्तकामा यत्र सत्सत्यस्य परमं निधानम्॥[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मुण्डकोपनिषद् तृतीय मुण्डक श्लोक 6
संबंधित लेख