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+[[फ़िरोजशाह तुग़लक़]] | +[[फ़िरोजशाह तुग़लक़]] | ||
-[[ग़यासुद्दीन तुग़लक़]] | -[[ग़यासुद्दीन तुग़लक़]] | ||
||'फ़िरोजशाह तुग़लक़' के शासन काल में दासों की संख्या लगभग 1,80,000 तक पहुँच गई थी। इनकी देखभाल हेतु सुल्तान ने 'दीवान-ए-बंदग़ान' की स्थापना की। कुछ दास प्रांतों में भेजे गये तथा शेष को केन्द्र में रखा गया। दासों को नकद वेतन या भूखण्ड दिए गये। | ||'फ़िरोजशाह तुग़लक़' के शासन काल में दासों की संख्या लगभग 1,80,000 तक पहुँच गई थी। इनकी देखभाल हेतु सुल्तान ने 'दीवान-ए-बंदग़ान' की स्थापना की। कुछ दास प्रांतों में भेजे गये तथा शेष को केन्द्र में रखा गया। दासों को नकद वेतन या भूखण्ड दिए गये। सैन्य व्यवस्था के अन्तर्गत [[फ़िरोजशाह तुग़लक़|फ़िरोज]] ने सैनिकों को पुनः जागीर के रूप में वेतन देना प्रारम्भ कर दिया। उसने सैन्य पदों को वंशानुगत बना दिया, इससे सैनिकों की भर्ती और उनकी योग्यता की जाँच पर असर पड़ा। 'खुम्स' का 4/5 भाग फिर से सैनिकों को देने के आदेश दिए गये। कुछ समय बाद उसका भयानक परिणम सामने आया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[फ़िरोजशाह तुग़लक़]] | ||
{किसके शासन काल को [[इब्नबतूता]] ने "एक बहुत बड़ा समारोह" कहा है? | {किसके शासन काल को [[इब्नबतूता]] ने "एक बहुत बड़ा समारोह" कहा है? | ||
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-[[फ़िरोजशाह तुग़लक़]] | -[[फ़िरोजशाह तुग़लक़]] | ||
-[[मुइज़ुद्दीन बहरामशाह]] | -[[मुइज़ुद्दीन बहरामशाह]] | ||
||'कैकुबाद' (1287-1290 ई.) को 17-18 वर्ष की अवस्था में [[दिल्ली]] की गद्दी पर बैठाया गया था। इसके पूर्व [[बलबन]] ने अपनी मृत्यु से पहले कैख़ुसरो को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। लेकिन दिल्ली के कोतवाल फ़ख़रुद्दीन मुहम्मद ने बलबन की मृत्यु के बाद कूटनीति के द्वारा कैख़ुसरो को [[मुल्तान]] की सूबेदारी देकर [[कैकुबाद]] को दिल्ली की राजगद्दी पर बैठा दिया। [[अफ़्रीका|अफ़्रीकी]] यात्री [[इब्नबतूता]] ने कैकुबाद के समय में यात्रा की थी, उसने सुल्तान के शासन काल को 'एक बड़ा समारोह' कहकर | ||'कैकुबाद' (1287-1290 ई.) को 17-18 वर्ष की अवस्था में [[दिल्ली]] की गद्दी पर बैठाया गया था। इसके पूर्व [[बलबन]] ने अपनी मृत्यु से पहले कैख़ुसरो को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। लेकिन दिल्ली के कोतवाल फ़ख़रुद्दीन मुहम्मद ने बलबन की मृत्यु के बाद कूटनीति के द्वारा कैख़ुसरो को [[मुल्तान]] की सूबेदारी देकर [[कैकुबाद]] को दिल्ली की राजगद्दी पर बैठा दिया। [[अफ़्रीका|अफ़्रीकी]] यात्री [[इब्नबतूता]] ने कैकुबाद के समय में यात्रा की थी, उसने सुल्तान के शासन काल को 'एक बड़ा समारोह' कहकर सम्बोधित किया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कैकुबाद]] | ||
{[[सल्तनत काल]] में 'हक-ए-शर्ब' क्या था? | {[[सल्तनत काल]] में 'हक-ए-शर्ब' क्या था? | ||
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+[[फ़िरोजशाह तुग़लक़]] | +[[फ़िरोजशाह तुग़लक़]] | ||
-[[इब्राहीम लोदी]] | -[[इब्राहीम लोदी]] | ||
||फ़िरोजशाह तुग़लक़ ने मुद्रा व्यवस्था के अन्तर्गत बड़ी संख्या में [[ताँबा]] एवं [[चाँदी]] के मिश्रण से निर्मित सिक्के जारी करवाये, जिन्हें सम्भवतः 'अद्धा' एवं 'मिस्र' कहा जाता था। फ़िरोजशाह तुग़लक़ ने 'शंशगानी सिक्का', जो कि 6 जीतल का था, चलवाया था। उसने सिक्कों पर अपने नाम के साथ अपने पुत्र अथवा उत्तराधिकारी 'फ़तह ख़ाँ' का नाम भी अंकित करवाया। फ़िरोज ने अपने को 'ख़लीफ़ा का नाइब' पुकारा तथा सिक्कों पर ख़लीफ़ा का नाम अंकित करवाया। | ||फ़िरोजशाह तुग़लक़ ने मुद्रा व्यवस्था के अन्तर्गत बड़ी संख्या में [[ताँबा]] एवं [[चाँदी]] के मिश्रण से निर्मित सिक्के जारी करवाये, जिन्हें सम्भवतः 'अद्धा' एवं 'मिस्र' कहा जाता था। [[फ़िरोजशाह तुग़लक़]] ने 'शंशगानी सिक्का', जो कि 6 जीतल का था, चलवाया था। उसने सिक्कों पर अपने नाम के साथ अपने पुत्र अथवा उत्तराधिकारी 'फ़तह ख़ाँ' का नाम भी अंकित करवाया। फ़िरोज ने अपने को 'ख़लीफ़ा का नाइब' पुकारा तथा सिक्कों पर ख़लीफ़ा का नाम अंकित करवाया। वह प्रथम सुल्तान था, जिसनें विजयों तथा युद्धों की तुलना में अपनी प्रजा की भौतिक उन्नति को श्रेष्ठ स्थान दिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[फ़िरोजशाह तुग़लक़]] | ||
{'महाराष्ट्र धर्म' का प्रणेता किसे माना जाता है? | {'महाराष्ट्र धर्म' का प्रणेता किसे माना जाता है? | ||
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-[[नामदेव]] | -[[नामदेव]] | ||
-[[तुकाराम]] | -[[तुकाराम]] | ||
||[[चित्र:Sant-Gyaneshwar.gif|right|100px|संत ज्ञानेश्वर]]'संत ज्ञानेश्वर' की गणना [[भारत]] के महान संतों एवं [[मराठी]] कवियों में होती है। इनका जन्म 1275 ई. में [[महाराष्ट्र]] के [[अहमदनगर]] ज़िले में [[पैठाण]] के पास आपेगाँव में [[भाद्रपद]] के [[कृष्ण पक्ष]] की [[अष्टमी]] को हुआ था। पंद्रह वर्ष की उम्र में ही [[ज्ञानेश्वर]] भगवान [[श्रीकृष्ण]] के [[भक्त]] और योगी बन चुके थे। अपने बड़े भाई 'निवृत्तिनाथ' के कहने पर उन्होंने एक वर्ष के अंदर ही [[श्रीमद्भागवदगीता]] पर टीका लिख डाली। 'ज्ञानेश्वरी' नाम का यह [[ग्रंथ]] मराठी भाषा का अद्वितीय ग्रंथ माना जाता है। यह ग्रंथ 10,000 पद्यों में लिखा गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ज्ञानेश्वर]] | ||[[चित्र:Sant-Gyaneshwar.gif|right|100px|संत ज्ञानेश्वर]]'संत ज्ञानेश्वर' की गणना [[भारत]] के महान संतों एवं [[मराठी]] कवियों में होती है। इनका जन्म 1275 ई. में [[महाराष्ट्र]] के [[अहमदनगर]] ज़िले में [[पैठाण]] के पास 'आपेगाँव' में [[भाद्रपद]] के [[कृष्ण पक्ष]] की [[अष्टमी]] को हुआ था। पंद्रह वर्ष की उम्र में ही [[ज्ञानेश्वर]] भगवान [[श्रीकृष्ण]] के [[भक्त]] और योगी बन चुके थे। अपने बड़े भाई 'निवृत्तिनाथ' के कहने पर उन्होंने एक वर्ष के अंदर ही [[श्रीमद्भागवदगीता]] पर टीका लिख डाली। 'ज्ञानेश्वरी' नाम का यह [[ग्रंथ]] मराठी भाषा का अद्वितीय ग्रंथ माना जाता है। यह ग्रंथ 10,000 पद्यों में लिखा गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ज्ञानेश्वर]] | ||
{निम्नलिखित में से कौन-सी पुस्तक [[हुमायूँ]] के शासन के बारे में सूचना देती है? | {निम्नलिखित में से कौन-सी पुस्तक [[हुमायूँ]] के शासन के बारे में सूचना देती है? | ||
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+[[प्लूरिसी]] | +[[प्लूरिसी]] | ||
-आंत्र ज्वर | -आंत्र ज्वर | ||
||'प्लूरिसी' मानव में होने वाला एक रोग है। [[मानव शरीर]] में [[फेफड़ा|फेफड़े]] और छाती की अन्दरूनी दोहरी परत को ढकने वाली पतली झिल्ली को 'प्लूरा' | ||'प्लूरिसी' मानव में होने वाला एक रोग है। [[मानव शरीर]] में [[फेफड़ा|फेफड़े]] और छाती की अन्दरूनी दोहरी परत को ढकने वाली पतली झिल्ली को 'प्लूरा' कहा जाता है। अगर इस झिल्ली में किसी तरह का संक्रमण हो जाता है तो उसे 'प्लूरिसी रोग' कहा जाता है। जब यह रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो उसके फेफड़े की झिल्लियाँ थोड़ी मोटी हो जाती है और इसमें पाई जाने वाली दोनों सतह एक-दूसरे से टकराने लगती हैं। इन दोनों सतहों के बीच [[द्रव्य]] भरा रहता है, जो इस रोग के कारण एक जगह ठहर जाता है और अपने स्थान से बाहर होकर जमा होने लगता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[प्लूरिसी]] | ||
{मुग़लकालीन [[भारत]] में बादशाह के बाद प्रमुख स्थान किस वर्ग को प्राप्त था? | {मुग़लकालीन [[भारत]] में बादशाह के बाद प्रमुख स्थान किस वर्ग को प्राप्त था? |
06:08, 7 अगस्त 2012 का अवतरण
इतिहास सामान्य ज्ञान
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