"कवितावली (पद्य)-अरण्य काण्ड": अवतरणों में अंतर
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15:50, 14 सितम्बर 2012 का अवतरण
अरण्य काण्ड
मारीचानुधावन
(मारीचानुधावन)
पंचबटीं बर पर्नकुटी तर बैठे हैं रामु सुभायँ सुहाए।
सोहै प्रिया, प्रिय बंधु लसै ‘तलसी’ सब अंग घने छबि छाए।।
देखि मृगा मृगनैनी कहे प्रिय बेन, ते प्रीतम के मन भाए।
हेमकुरंगके संग सरासनु सायकु लै रघुनायकु धाए।।
(इति अरण्य काण्ड )
इन्हें भी देखें: कवितावली -तुलसीदास इन्हें भी देखें: कवितावली (पद्य)
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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