"जैन व्युष्टि संस्कार": अवतरणों में अंतर
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*अनन्तर यथाशक्ति औषधि, शास्त्र, अभय और आहार- ये चार प्रकार के दान सुपात्रों को देकर इष्टजन तथा बन्धु-वर्गों को भोजनादि द्वारा सन्तुष्ट करना चाहिए। | *अनन्तर यथाशक्ति औषधि, शास्त्र, अभय और आहार- ये चार प्रकार के दान सुपात्रों को देकर इष्टजन तथा बन्धु-वर्गों को भोजनादि द्वारा सन्तुष्ट करना चाहिए। | ||
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12:57, 23 सितम्बर 2010 का अवतरण
- यह संस्कार जैन धर्म के अंतर्गत आता है।
- व्युष्टि का अर्थ वर्ष-वृद्धि अर्थात प्रत्येक जन्म दिन के बाद उसमें एक-एक वर्ष की वृद्धि है।
- जिस दिन बालक का वर्ष पूर्ण हो उस दिन यह संस्कार करना चाहिए।
- इस संस्कार में कोई विशेष क्रिया नहीं है, केवल जन्मोत्सव मनाना है।
- यहाँ पर पूर्व के समान श्रीजिनेन्द्र देव की पूजा करें एवं हवन करें।
- नीचे लिखे मन्त्र को पढ़कर उस बालक पर पीले चावल (पुष्प) की वर्षा करें। मन्त्र-
- 'उपनयन जन्मवर्षवर्धनभागी भव,
- वैवाहनिष्ठवर्षवर्धनभागी भव,
- मुनीन्द्रवर्षवर्धनभागी भव,
- महाराज्यवर्षवर्धनभागी भव,
- परमराज्यवर्षवर्धनभागी भव,
- आर्हन्त्यराज्यवर्षवर्धनभागी भव'।
- अनन्तर यथाशक्ति औषधि, शास्त्र, अभय और आहार- ये चार प्रकार के दान सुपात्रों को देकर इष्टजन तथा बन्धु-वर्गों को भोजनादि द्वारा सन्तुष्ट करना चाहिए।
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