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चित्र:Jain-Tirthankara-Rishabhanatha-Jain-Museum-Mathura-25.jpg|[[ॠषभनाथ तीर्थंकर|तीर्थंकर ऋषभनाथ]]<br /> Tirthankara Rishabhanath
चित्र:Jain-Tirthankara-Rishabhanatha-Jain-Museum-Mathura-25.jpg|[[ॠषभनाथ तीर्थंकर|तीर्थंकर ऋषभनाथ]]<br /> Tirthankara Rishabhanath
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==टीका टिप्पणी==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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14:59, 15 जून 2010 का अवतरण

आसनस्थ ऋषभनाथ
Seated Rishabhanatha
राजकीय जैन संग्रहालय, मथुरा
  • तीर्थ का अर्थ जिसके द्वारा संसार समुद्र तरा जाए,पार किया जाए और वह अहिंसा धर्म है।
  • इस विषय में जिन्होंने प्रवर्तन किया, उपदेश दिया, उन्हें तीर्थंकर कहा गया है।
  • तीर्थंकर 24 माने गए है।
  • जैन धर्म में चौबीस तीर्थंकरों के नाम इस प्रकार प्रसिद्ध है-
  1. ॠषभनाथ तीर्थंकर,
  2. अजित,
  3. सम्भव,
  4. अभिनन्दन,
  5. सुमति,
  6. पद्य,
  7. सुपार्श्व,
  8. चन्द्रप्रभ,
  9. पुष्पदन्त,
  10. शीतल,
  11. श्रेयांस,
  12. वासुपूज्य,
  13. विमल,
  14. अनन्त,
  15. धर्मनाथ,
  16. शांति,
  17. कुन्थु,
  18. अरह,
  19. मल्लिनाथ,
  20. मुनिसुब्रत,
  21. नमि,
  22. नेमिनाथ तीर्थंकर,
  23. पार्श्वनाथ तीर्थंकर, और
  24. वर्धमान-महावीर
  • इन 24 तीर्थंकरों ने अपने-अपने समय में धर्ममार्ग से च्युत हो रहे जन समुदाय को संबोधित किया और उसे धर्ममार्ग में लगाया।
  • इसी से इन्हें धर्म मार्ग-मोक्ष मार्ग का नेता तीर्थ प्रवर्त्तक-तीर्थंकर कहा गया है।
  • जैन सिद्धान्त के अनुसार 'तीर्थंकर' नाम की एक पुण्य (प्रशस्त) कर्म प्रकृति है। उसके उदय से तीर्थंकर होते और वे तत्त्वोपदेश करते हैं।
  • आचार्य विद्यानंद ने स्पष्ट कहा है[1] कि 'बिना तीर्थंकरत्वेन नाम्ना नार्थोपदेशना' अर्थात बिना तीर्थंकर-पुण्यनामकर्म के तत्त्वोपदेश संभव नहीं है।[2]

वीथिका

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऋषभादिमहावीरान्तेभ्य: स्वात्मोपलब्धये। धर्मतीर्थंकरेभ्योऽस्तु स्याद्वादिभ्यो नमोनम:॥ अकलंक, लघीयस्त्रय, 1
  2. आप्तपरीक्षा, कारिका 16