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*खानवा के युद्ध में राणा साँगा जीवित तो बच गया, किन्तु पराजय के आघात से वह अधिक दिन जीवित नहीं रहा और उसकी मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु के साथ ही [[भारत]] में [[हिन्दू]] राज्य स्थापित करने का उसका सपना भंग हो गया। | *[[खानवा का युद्ध|खानवा के युद्ध]] में राणा साँगा जीवित तो बच गया, किन्तु पराजय के आघात से वह अधिक दिन जीवित नहीं रहा और उसकी मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु के साथ ही [[भारत]] में [[हिन्दू]] राज्य स्थापित करने का उसका सपना भंग हो गया। | ||
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06:52, 16 अप्रैल 2013 का अवतरण
राणा साँगा (शासनकाल 1509 से 1528 ई.) को 'संग्राम सिंह' के नाम से भी जाना जाता है। वह राणा रायमल (शासनकाल 1473 से 1509 ई.) का पुत्र और उत्तराधिकारी था। इतिहास में संग्राम सिंह मेवाड़ का राजा साँगा के नाम से प्रसिद्ध था। उसने अपने शासन काल में दिल्ली, मालवा और गुजरात के विरुद्ध अभियान किया।। राणा साँगा महान योद्धा था और तत्कालीन भारत के समस्त राज्यों में से ऐसा कोई भी उल्लेखनीय शासक न था, जो उससे लोहा ले सके।[1]
- बाबर के भारत पर आक्रमण के समय राणा साँगा को आशा थी कि वह भी तैमूर की भाँति दिल्ली में लूट-पाट करने के उपरान्त स्वदेश लौट जायेगा।
- 1526 ई. में राणा साँगा ने देखा कि इब्राहीम लोदी को पानीपत के युद्ध में परास्त कर बाबर दिल्ली में शासन करने लगा है, तो वह अपने 120 सहायक सामन्तों, 80 हज़ार अश्वारोहियों और 500 हाथियों की एक विशाल सेना लेकर बाबर से युद्ध के लिए चल पड़ा।
- 16 मार्च, 1527 ई. को खानवा नामक स्थान पर बाबर से उसका घमासान युद्ध हुआ।
- युद्ध में राजपूतों ने अत्यधिक वीरता दिखाई, तथापि वह बाबर द्वारा पराजित हुए।
- खानवा के युद्ध में राणा साँगा जीवित तो बच गया, किन्तु पराजय के आघात से वह अधिक दिन जीवित नहीं रहा और उसकी मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु के साथ ही भारत में हिन्दू राज्य स्थापित करने का उसका सपना भंग हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 458 |