"संगम": अवतरणों में अंतर
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संगम तट पर लगने वाले [[कुम्भ मेला|कुम्भ मेले]] के बिना [[इलाहाबाद का इतिहास]] अधूरा है। प्रत्येक बारह वर्ष में यहाँ पर महाकुम्भ मेले का आयोजन होता है, जो कि अपने में एक लघु भारत का दर्शन करने के समान है। इसके अलावा प्रत्येक वर्ष लगने वाले [[माघ स्नान]] और कल्पवास का भी आध्यात्मिक महत्व है। [[महाभारत]] के अनुशासन पर्व के अनुसार माघ मास में तीन करोड़ दस हज़ार तीर्थ इलाहाबाद में एकत्र होते हैं और विधि-विधान से यहाँ [[ध्यान]] और कल्पवास करने से मनुष्य स्वर्गलोक का अधिकारी बनता है। '[[पद्मपुराण]]' के अनुसार इलाहाबाद में माघ मास के समय तीन दिन पर्यन्त संगम [[स्नान]] करने से प्राप्त फल [[पृथ्वी]] पर एक हज़ार [[अश्वमेध यज्ञ]] करने से भी नहीं प्राप्त होता- | |||
[[चित्र:Kumbh mela.jpg|thumb|left|[[कुम्भ मेला]], [[इलाहाबाद]]]] | |||
<blockquote><poem>प्रयागे माघमासे तु त्र्यहं स्नानस्य यत्फलम्। | |||
नाश्वमेधसस्त्रेण तत्फलं लभते भुवि।।</poem></blockquote> | |||
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[[चित्र:Junction-Of-Gange-And-Yamuna-Allahabad.jpg|thumb|350px|मानचित्र में [[गंगा नदी|गंगा]] और [[यमुना नदी|यमुना]] का संगम, इलाहाबाद ([[1885]])]] | |||
इलाहाबाद में [[गंगा]] और [[यमुना नदी|यमुना]] नदियों का संगम भी बहुत महत्त्व रखता है। यह माना जाता है कि प्रसिद्ध पौराणिक नदी [[सरस्वती नदी|सरस्वती]] अदृश्य रूप में संगम में आकर मिलती है। गंगा-यमुना के संगम स्थल को [[पुराण|पुराणों]]<ref>मत्स्य 109.15; स्कन्द, काशी0 7.45; पद्म 6.23.27-34 तथा अन्य</ref> में 'तीर्थराज' अर्थात "तीर्थों का राजा" नाम से अभिहित किया गया है। इस संगम के सम्बन्ध में [[ॠग्वेद]]<ref>ऋग्वेद खिल सूक्त (10.75</ref> में कहा गया है कि जहाँ 'कृष्ण' (काले) और 'श्वेत' (स्वच्छ) [[जल]] वाली दो सरिताओं का संगम है, वहाँ [[स्नान]] करने से मनुष्य स्वर्गारोहण करता है। पुराणोक्ति यह है कि [[ब्रह्मा|प्रजापति]] ने आहुति की तीन वेदियाँ बनायी थीं- | |||
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उपर्युक्त तीनों वेदियों में प्रयाग मध्यम वेदी है। माना जाता है कि यहाँ गंगा, यमुना और सरस्वती ([[पाताल]] से आने वाली) तीन सरिताओं का संगम हुआ है पर सरस्वती का कोई बाह्य अस्तित्व दृष्टिगत नहीं होता। पुराणों<ref>[[मत्स्य पुराण|मत्स्य]] (104.12), [[कूर्म पुराण|कूर्म]] (1.36.27) तथा [[अग्नि पुराण|अग्नि]] (111.6-7) आदि</ref> के अनुसार जो प्रयाग का दर्शन करके उसका नामोच्चारण करता है तथा वहाँ की [[मिट्टी]] का अपने शरीर पर आलेप करता है, वह पापमुक्त हो जाता है। वहाँ स्नान करने वाला स्वर्ग को प्राप्त होता है तथा देह त्याग करने वाला पुन: संसार में उत्पन्न नहीं होता। यह केशव को प्रिय (इष्ट) है। इसे 'त्रिवेणी' कहकर भी सम्बोधित किया जाता हैं। | |||
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संगम | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- संगम (बहुविकल्पी) |
संगम का अर्थ है मिलन अथवा सम्मिलन। इलाहाबाद में गंगा, यमुना और सरस्वती के मिलन स्थल को संगम कहा जाता है। साधु सन्तों को यहाँ हमेशा पूजा पाठ करते हुए देखा जा सकता है। यहाँ वर्ष भर लाखों श्रद्धालु आते है और संगम में डुबकी लगाकर अपने आपको धन्य समझते हैं। यहाँ से सूर्योदय और सूर्यास्त का नज़ारा बेहद सुन्दर लगता है।
कुम्भ मेला
संगम तट पर लगने वाले कुम्भ मेले के बिना इलाहाबाद का इतिहास अधूरा है। प्रत्येक बारह वर्ष में यहाँ पर महाकुम्भ मेले का आयोजन होता है, जो कि अपने में एक लघु भारत का दर्शन करने के समान है। इसके अलावा प्रत्येक वर्ष लगने वाले माघ स्नान और कल्पवास का भी आध्यात्मिक महत्व है। महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार माघ मास में तीन करोड़ दस हज़ार तीर्थ इलाहाबाद में एकत्र होते हैं और विधि-विधान से यहाँ ध्यान और कल्पवास करने से मनुष्य स्वर्गलोक का अधिकारी बनता है। 'पद्मपुराण' के अनुसार इलाहाबाद में माघ मास के समय तीन दिन पर्यन्त संगम स्नान करने से प्राप्त फल पृथ्वी पर एक हज़ार अश्वमेध यज्ञ करने से भी नहीं प्राप्त होता-
प्रयागे माघमासे तु त्र्यहं स्नानस्य यत्फलम्।
नाश्वमेधसस्त्रेण तत्फलं लभते भुवि।।
संगम स्थल
इलाहाबाद में गंगा और यमुना नदियों का संगम भी बहुत महत्त्व रखता है। यह माना जाता है कि प्रसिद्ध पौराणिक नदी सरस्वती अदृश्य रूप में संगम में आकर मिलती है। गंगा-यमुना के संगम स्थल को पुराणों[1] में 'तीर्थराज' अर्थात "तीर्थों का राजा" नाम से अभिहित किया गया है। इस संगम के सम्बन्ध में ॠग्वेद[2] में कहा गया है कि जहाँ 'कृष्ण' (काले) और 'श्वेत' (स्वच्छ) जल वाली दो सरिताओं का संगम है, वहाँ स्नान करने से मनुष्य स्वर्गारोहण करता है। पुराणोक्ति यह है कि प्रजापति ने आहुति की तीन वेदियाँ बनायी थीं-
उपर्युक्त तीनों वेदियों में प्रयाग मध्यम वेदी है। माना जाता है कि यहाँ गंगा, यमुना और सरस्वती (पाताल से आने वाली) तीन सरिताओं का संगम हुआ है पर सरस्वती का कोई बाह्य अस्तित्व दृष्टिगत नहीं होता। पुराणों[3] के अनुसार जो प्रयाग का दर्शन करके उसका नामोच्चारण करता है तथा वहाँ की मिट्टी का अपने शरीर पर आलेप करता है, वह पापमुक्त हो जाता है। वहाँ स्नान करने वाला स्वर्ग को प्राप्त होता है तथा देह त्याग करने वाला पुन: संसार में उत्पन्न नहीं होता। यह केशव को प्रिय (इष्ट) है। इसे 'त्रिवेणी' कहकर भी सम्बोधित किया जाता हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख