"सिंहासन बत्तीसी चौदह": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
एक बार राजा विक्रमादित्य की इच्छा हुई कि वह यज्ञ करे। देश-देश को न्योते भेजे। सातों द्वीपों के ब्राह्मणों को बुलाया, राजाओं को इकट्ठा किया। एक वीर स्वर्ग के देवताओं को बुलाने भेजा राजा ने एक ब्राह्मण से कहा कि तुम जाकर समुद्र को न्योता दे आओ। ब्राह्मण चला। चलते-चलते समुद्र के किनारे पहुंचा। वहां देखता क्या है कि चारों ओर पानी-ही-पानी है। न्योता किसे दे? तब उसने चिल्लाकर कहा कि हे समुद्र! तुम यज्ञ में आना।
[[सिंहासन बत्तीसी]] एक [[लोककथा]] संग्रह है। [[विक्रमादित्य|महाराजा विक्रमादित्य]] भारतीय लोककथाओं के एक बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। प्राचीनकाल से ही उनके गुणों पर [[प्रकाश]] डालने वाली कथाओं की बहुत ही समृद्ध परम्परा रही है। सिंहासन बत्तीसी भी 32 कथाओं का संग्रह है जिसमें 32 पुतलियाँ विक्रमादित्य के विभिन्न गुणों का कथा के रूप में वर्णन करती हैं।
==सिंहासन बत्तीसी तेरह==
<poem style="background:#fbf8df; padding:15px; font-size:16px; border:1px solid #003333; border-radius:5px">
एक बार राजा [[विक्रमादित्य]] की इच्छा हुई कि वह यज्ञ करे। देश-देश को न्योते भेजे। सातों द्वीपों के ब्राह्मणों को बुलाया, राजाओं को इकट्ठा किया। एक वीर स्वर्ग के देवताओं को बुलाने भेजा राजा ने एक ब्राह्मण से कहा कि तुम जाकर समुद्र को न्योता दे आओ। ब्राह्मण चला। चलते-चलते समुद्र के किनारे पहुंचा। वहां देखता क्या है कि चारों ओर पानी-ही-पानी है। न्योता किसे दे? तब उसने चिल्लाकर कहा कि हे समुद्र! तुम यज्ञ में आना।


जब वह चला तो आगे उसे ब्राह्मण के भेस में समुद्र मिला।  
जब वह चला तो आगे उसे ब्राह्मण के भेस में समुद्र मिला।  
पंक्ति 11: पंक्ति 14:
राजा चुप रह गया। अगले दिन पंद्रहवी पुतली अनूपवती की बारी आयी। उसने भी वही किया, जो चौदह कर चुकी थीं। उसने कहा कि लो, विक्रमादित्य के गुण कान लगा कर सुनो।
राजा चुप रह गया। अगले दिन पंद्रहवी पुतली अनूपवती की बारी आयी। उसने भी वही किया, जो चौदह कर चुकी थीं। उसने कहा कि लो, विक्रमादित्य के गुण कान लगा कर सुनो।


{{सिंहासन बत्तीसी}}
;आगे पढ़ने के लिए [[सिंहासन बत्तीसी पंद्रह]] पर जाएँ
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
</poem>
{{संदर्भ ग्रंथ}}
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{सिंहासन बत्तीसी}}
[[Category:सिंहासन बत्तीसी]]  
[[Category:सिंहासन बत्तीसी]]  
[[Category:कहानी]]   
[[Category:लोककथाएँ]]   
[[Category:कथा साहित्य]]   
[[Category:कथा साहित्य]]   
[[Category:कथा साहित्य कोश]]
[[Category:कथा साहित्य कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

16:51, 25 फ़रवरी 2013 का अवतरण

सिंहासन बत्तीसी एक लोककथा संग्रह है। महाराजा विक्रमादित्य भारतीय लोककथाओं के एक बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। प्राचीनकाल से ही उनके गुणों पर प्रकाश डालने वाली कथाओं की बहुत ही समृद्ध परम्परा रही है। सिंहासन बत्तीसी भी 32 कथाओं का संग्रह है जिसमें 32 पुतलियाँ विक्रमादित्य के विभिन्न गुणों का कथा के रूप में वर्णन करती हैं।

सिंहासन बत्तीसी तेरह

एक बार राजा विक्रमादित्य की इच्छा हुई कि वह यज्ञ करे। देश-देश को न्योते भेजे। सातों द्वीपों के ब्राह्मणों को बुलाया, राजाओं को इकट्ठा किया। एक वीर स्वर्ग के देवताओं को बुलाने भेजा राजा ने एक ब्राह्मण से कहा कि तुम जाकर समुद्र को न्योता दे आओ। ब्राह्मण चला। चलते-चलते समुद्र के किनारे पहुंचा। वहां देखता क्या है कि चारों ओर पानी-ही-पानी है। न्योता किसे दे? तब उसने चिल्लाकर कहा कि हे समुद्र! तुम यज्ञ में आना।

जब वह चला तो आगे उसे ब्राह्मण के भेस में समुद्र मिला।

उसने कहा: मैं आने को तो तैयार हूँ, लेकिन मेरे आने से पानी भी आयगा और बहुत-से नगर डूब जायंगे। सो तुम राजा से सब बात कह देना और ये पांच लाल और घोड़ा सौगात में मेरी ओर से दे देना।

ब्राह्मण पांचों रत्न और घोड़ा लेकर वापस आया और राजा को सब हाल कह सुनाया। राजा ने वे चीज़ें उसी ब्राह्मण को दान में दे दीं। ब्राह्मण प्रसन्न होकर चला गया।

पुतली बोली: ऐसा कोई दानी हो तो सिंहासन पर बैठै!

राजा चुप रह गया। अगले दिन पंद्रहवी पुतली अनूपवती की बारी आयी। उसने भी वही किया, जो चौदह कर चुकी थीं। उसने कहा कि लो, विक्रमादित्य के गुण कान लगा कर सुनो।

आगे पढ़ने के लिए सिंहासन बत्तीसी पंद्रह पर जाएँ


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख